महिलाओं ने तीज व्रत रख मांगा अखंड सौभाग्य
सुरेश गांधी
वाराणसी।
पति के दीर्घायु
के लिए शहर
से लेकर देहात
तक में धूमधाम
के साथ हरितालिका
तीज मनाया गया।
सुहागिन महिलाओं ने मां
पार्वती व भगवान
शिव की भक्तिभाव
के साथ श्रद्धापूर्वक
आराधना की। अपने
पति के दीर्घायु
जीवन की कामना
के साथ ही
रंग-बिरंगे परिधानों
में सजे महिलाओं
ने सोलह शृंगार
कर निजर्ला व्रत
कर अपने परिवार
के खुशहाल जीवन
की मंगलकामना भी
की। युवतियों ने
भी अच्छे वर
के लिए निर्जला
व्रत रखा। व्रती
महिलाओं ने शिवालयों
में जलाभिषेक भी
किया़। वहीं अपने
अपने घरों में
व्रत का अनुष्ठान
कर भगवान शिव
की आराधना में
डूबे रह़े। इसको
लेकर घरों में
भक्तिमय माहौल बना रहा।
सुबह से
ही महिलाएं-युवतियां
शृंगार कर हरतालिका
की पूजा की
तैयारियों में जुट
गई थीं। व्रत
रखने वाली महिलाओं
ने भोर में
स्नान व श्रृंगार
करने के बाद
गौरी शंकर की
चंदन, अक्षत, धूप,
दीप फल-फल
से पूजा की।
कुछ महिलाओं ने
केले के पत्ते
पर शिव पार्वती
की प्रतिमा रख
कर विधि विधान
से पूजन किया।
रात घिरने के
साथ ही विभिन्न
स्थानों से महिलाओं-युवतियों की टोलियां
ढोलक की थाप
और नृत्य करते
हुए मंदिरों में
पहुंच रही थीं।
इसके चलते शहर
के कई मंदिरों
में भी रातभर
चहल-पहल रही।
मंदिर में ढोलक,
मंजीरों महिलाओं के समूह
ने भजन-कीर्तन
किया। इस दौरान
व्रत की कथा
सुनकर अखंड सौभाग्यवती
होने की कामना
की। आरती व
भजन गाया। ब्राह्माणों
को यथोचित दान
भी किया।
मान्यता है कि
सबसे पहले मां
पार्वती ने पति
के रुप में
भगवान शिव को
प्राप्त करने के
लिए तीज व्रत
रखा था। बाल्यावस्था
में जंगल में
शिव¨लग बनाया
और अधोमुखी होकर
बारह वर्ष तक
घोर तपस्या किया
था। उनकी तपस्या
से समाधि में
लीन शिव का
आसन डोल गया।
वह पार्वती को
न केवल दर्शन
दिया बल्कि तपस्या
का कारण भी
पूजा तो पार्वती
ने शिव को
पति के रुप
में मांगा, जिसे
शिव से सहर्ष
स्वीकार कर लिया।
यही वजह है
कि पति के
लंबी आयु के
लिए महिलाएं व्रत
के माध्यम से
भगवान शिव को
प्रसन्न करती है।
वहीं मां पार्वती
को साड़ी, चूड़ी,
सिंदूर व आलता
आदि श्रृंगार की
सामग्री अर्पित करती है।
ग्रामीण अंचलों के
बाजारों में भी
गणोश चतुर्थी और
तीज व्रत को
लेकर फल व
पूजन सामग्री की
खरीदारी के लिए
श्रद्धालुओं की भीड़
उमड़ी, तो सुबह
से शिव मंदिरों
में महिला श्रद्धालुओं
की भीड़ लगी
रही। व्रत को
लेकर महिलाओं में
काफी उत्साह था।
सबसे अधिक उत्साह
उन महिलाओं में
था जिनका पहला
तीज था। नयी
नवेली दुल्हन मायके
में थी। उसके
ससुराल से कपड़े,
जेवर और मिठाई
आया। महिलाओं ने
सोलह श्रृंगार के
साथ नये कपड़े
धारण कर डलिया
भरा। डलिया में
मिठाई, पकवान, सोलह श्रृंगार
का सामान, फल-
फूल, चना आदि
भर सुहागिनों ने
हरतालिका व्रत की
कथा सुनी।
दिनभर उपवास रखने
के बाद संध्या
में गौर और
गौरी की प्रतिमा
बनाकर उनकी पूजा-अर्चना की। तीज
कथा का पाठ
किया। सामूहिक रूप
से पूजा-अर्चना
करने वाली महिलाओं
ने मंदिरों में
जाकर विधि विधान
के साथ पूजा
की। मंदिरों में
पूजा करने की
लिए महिलाओं की
भीड़ उमड़ रही
थी। कई जगहों
पर गीत व
भजनों को गाकर
भगवान से अपने
सुहाग की लंबी
आयु, स्वास्थ्य जीवन
की अर्चना की।
खासकर नव विवाहिताओं
के लिये, तो
उनके जीवन का
पहला तीज कई
मायने में अहम
था। अपने घर
की बड़ी बुजुर्ग
महिलाओं के सान्निध्य
में नव विवाहित
महिला तीज के
हर नियम को
सीख व उन्हें
अपने जेहन में
उतार रही थी।
आधुनिकता के साथ
ही अपने परंपरा
को संजोये व
संवारने में कोई
कसर वह नहीं
छोड़ना चाहती थी।
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