क्या रामभक्तों पर गोली चलवाना भी है अखिलेश की उपलब्धि?
जी हां, यूपी में इन दिनों जहां कहीं भी उद्घाटन या लोकापर्ण व शिलान्यास हो रहा है, सपा मुखिया अखिलेश यादव हो या बसपा सुप्रीमों मायावती, उसे अपने शासनकाल की उपलब्धि बताने में रंच मात्र की देरी नहीं कर रहे है। उनके मुताबिक उत्तर प्रदेश में चाहे पूर्वांचल एक्सप्रेस वे हो या बुंदेलखंड एक्सप्रेस हो या जेवर ऐअरपोर्ट से लेकर अयोध्या-वाराणसी के विकास सब उन्होंने ही किया है। योगी केवल फीता काट रहे है। जबकि सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर पीएम मोदी तक यही कह रहे है अगर काम किया है तो पूरा क्यों नहीं हुआ। हमने तो पुराने कामों को पूरा करने के साथ ही जो वादे किए या शिलान्यास सब पांच साल में ही निपटा दिया। लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या अखिलेश यादव अयोध्या में राम भक्तों पर गोली चलवाने को भी अपनी बड़ी उपलब्धि मानते है? सुरेश गांधी
फिरहाल, जैसे-जैसे विधान सभा चुनाव का समय नजदीक
आता जा रहा है,
वैसे-वैसे सियासी पार्टियों के बीच शह-मात का खेल तेज
हो गया है। उत्तर प्रदेश का सियासी पारा
लगातार चढ़ता जा रहा है।
चाहे सूबे के मुख्यमंत्री योगी
आदित्यनाथ हो विपक्ष के
अखिलेश यादव से लेकर मायावती
व ओवैसी तक सबके सब
एक-दुसरे पर शब्दभेदी बाणों
के जरिए हमलावर हैं। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के एक ट्वीट
से बवाल मच गया है।
डिप्टी सीएम ने ट्वीट किया
है कि अयोध्या काशी
भव्य मंदिर निर्माण जारी है, मथुरा की तैयारी है।
जय श्री राम, जय शिव शम्भू,
जय श्री राधे कृष्ण। मतलब साफ है यूपी विधानसभा
से पहले बीजेपी हिंदुत्व की पिच पर
उतरने की हरसंभव कोशिश
कर रही है। मतलब साफ है यूपी इन
दिनों सियासी समर का अखाड़ा बन
चुका है। सत्ता दोहराने के फिराक में
जुटी बीजेपी इस बार पूर्वांचल
को अपनी धुरी बनाना चाहती है तो सपा
सत्ता तक रफ्तार भरने
के लिए चाहे एक्सप्रेस-वे हो जेवर
पोर्ट हो अन्य विकास
कार्यो का क्रेडिट ले
रही है।
काशी के सनवारुलहक कहते
है सपा की विकास की
कोई सोच ही नहीं थी।
वो सिर्फ घोषणाएं करते थे, माफियाओं व बाहुबलियों के
संरक्षणदाता थे, वोटबैंक के लिए पहले
दंगे बाद में विरोधियों पर फर्जी मुकदमें।
आज भी अखिलेशकाल के
प्रशासनिक गुंडई हो या सपाई
तांडव लोगों के जेहन में
है। कनेक्टिविटी या यूं कहे
विकास तो बीजेपी सरकार
ने दी है। बिना
भेदभाव व मजहब की
पहचान किए बगैर हर पात्र को
मकान से लेकर राशन
हो अन्य योजनाएं मिल रही है। 2017 से पहले जहां
एक घंटे का सफर तीन
घंटे में होता था, वो अब 30 मिनट
में पूरा हो रहा है।
जहां तक अयोध्या या
वाराणसी से लेकर अन्य
जिलों के विकास का
सवाल है तो इसके
लिए कौन उन्हें रोका था। यदि विकास किए हो तो बीजेपी
सपने में भी सत्ता नहीं
पाती। सपा-बसपा में तो सिर्फ माफियाओं
व गुंडों के मुकदमे वापस
लिए जाते थे। उन्हें खुशी है इंसान तो
दूर बिना चीटी मरे अयोध्या में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर
बन रहा है। जनता ’दोहरे चरित्र और गिरगिट की
तरह रंग बदलने वालों को अब समझ
रही है।
प्रदेश सरकार, राशन की दुकानों पर
अंत्योदय और पात्र गृहस्थी
राशन कार्ड धारकों को मिलने वाले
अनाज और अन्य वस्तुओं
में अब खाद्य तेल,
आयोडाइज्ड नमक,दाल और चना भी
जोड़ दिया गया है। अब अंत्योदय कार्डधारकों
को प्रति राशनकार्ड 35 किलो खाद्यान्न दिया जाएगा जिसमे (20 किलो गेहूं व 15 किलो चावल) निःशुल्क प्रदान किया जाएगा। वहीं पात्र गृहस्थी योजना के कार्डधारकों को
5 किलोग्राम खाद्यान्न जिसमें (3 किलोग्राम गेहूं और 2 किलोग्राम चावल) प्रति यूनिट निःशुल्क प्रदान किया जाएगा। अंत्योदय एवं पात्र गृहस्थी कार्डधारको को प्रति राशनकार्ड
1 किलोग्राम आयोडाइज्ड नमक, 1 किलोग्राम दाल(साबुत) चना एवं 1 लीटर खाद्य तेल (यथा-सरसो तेल/रिफाइंड ऑयल) निःशुल्क प्रदान किया जाएगा।
जातिय समीकरण का ताना-बाना
यूपी चुनाव में जातीय समीकरण शुरु से ही अहम
भूमिका निभाता आया है, ऐसे में सभी पार्टियां अपनी चुनावी रणनीति जातीय समीकरण को ध्यान में
रखते हुए ही बनाती हैं।
सियासी दलों के विकास के
तमाम दावे उस वक्त खोखले
हो जाते हैं जब वह प्रदेश
में टिकटों के बंटवारे का
समय आता है। यही वजह है इस चुनावी
माहौल में राहुल अखिलेश मायावती योगी कोई भी एक मौका
नहीं छोड़ना चाहता है। एक दूसरे को
नीचा दिखाने के लिए सभी
प्रयास में लगे है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव भी यूपी की
सत्ता पाने के लिए योगी
सरकार को गिराने में
लगे हैं और अब वे
कांग्रेस को अपने पाले
में करने में लगे हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने आरएलडी अध्यक्ष
जयंत चौधरी के साथ हाथ
मिलाकर पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को मजबूत करने
का दांव चला है। जबकि अखिलेश के इस जातीय
कॉम्बिनेशन पर बसपा सुप्रीमो
मायावती की भी नजर
है। मायावती पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण पर दिन-रात
काम कर रही हैं।
मायावती ने ओबीसी (अन्य
पिछड़ा वर्ग), मुस्लिम और जाट को
एक साथ जोड़ने के लिए जिसकी
जितनी आबादी उसकी उतनी हिस्सेदारी के हिसाब से
टिकट देने की बात कहीं
है। मायावती ने अब कांशीराम
के फ़ार्मूले पर यूपी चुनाव
लड़ने की तैयारी की
है। अब तक ब्राह्मण
दलित गठजोड़ वाली पॉलिटिक्स कर रहीं मायावती
की उम्मीदें बैक्वर्ड कास्ट पर टिक गई
है। बीएसपी की रणनीति सुरक्षित
सीटों पर जीत दर्ज
कर यूपी में सत्ता पाने की है। उन्हें
लगता है कि दलित
और पिछड़े मिल गए तो उनका
हाथी लखनऊ तक पहुंच जाएगा।
यूपी में 86 सुरक्षित सीटें हैं। चुनावी इतिहास गवाह है कि इन
सीटों पर जिस पार्टी
ने बाज़ी मारी, यूपी में सत्ता उसको ही नसीब हुई
है। 2017 के विधानसभा चुनावों
में बीजेपी ने इन सीटों
पर बढ़त ली थी। जबकि
2012 के चुनावों में यही करिश्मा अखिलेश यादव ने किया था।
योगी अयोध्या और काशी पर मेहरबान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सूबे के अन्य जिलों
के साथ काशी और अयोध्या पर
कुछ ज्यादा ही मेहरबान है।
भला क्यों नहीं, ये दोनों ऐसे
क्षेत्र है जहां से
सियासी समीकरण पूरे पूर्वांचल का जो तय
होता है। काशी में काशी विश्वनाथ धाम का काम पूरा
होने को है, 13 दिसम्बर
को पीएम मोदी के हाथों लोकापर्ण
होगा। जबकि अयोध्या में भी तेजी से
भव्य राम मंदिर निर्माण कार्य चल रहा है।
इसी कड़ी में अब अयोध्या में
रिसर्च के लिए 21 एकड़
में रामायण विश्वविद्यालय बनाया जाएगा, जिसके लिए महर्षि विद्यापीठ ट्रस्ट की ओर से
रूपरेखा तय कर ली
गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या पहुंचकर हवन में आहूति देकर इसका शिलान्यास भी कर दिया।
इस यूनिवर्सिटी में संस्कृत और हिंदी भाषा
को प्रमुख स्थान दिया जाएगा।
पिछड़ी जातियों के वोट बैंक में लगेगी सेंध
पिछड़ी जाति के वोट बैंक
पर नज़र डालें तो यह कुल
35 फीसदी है, जिसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जातियों के लोग आते
हैं। इन सभी जातियों
पर तमाम दलों का अलग-अलग
वोट बैंक है। एक तरफ जहां
सपा को पिछड़ी जाति
का अगुवा, तो बसपा को
दलित वोट बैंक का प्रतिनिधि तो
भाजपा को अगड़ी जाति
का पैरोकार माना जाता है। जातीय समीकरण के अलावा प्रदेश
में 18 फीसदी मुस्लिम व 5 फीसद जाट वोट बैंक भी प्रदेश की
राजनीति में काफी अहम भूमिका निभाता है, जिनपर तमाम दलों की नजर रहती
है। मुस्लिम वोटों पर भी हाल
के सालों में सपा की पैठ रही
है। लेकिन जिस तरह से ओवैसी की
पार्टी ने प्रदेश में
सभी 403 सीटों पर चुनाव लड़ने
का ऐलान किया है उसने सपा
की मुश्किलों को बढ़ा दिया
है। लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि
यूपी में जिस भी पार्टी को
30 फीसदी वोट मिलता है वह प्रदेश
में सरकार बनाने में सफल होती है। ऐसे में छोटे-छोटे समीकरण भी पार्टियों के
लिए काफी अहम हैं और वह इन
जातीय समीकरणों को नजरअंदाज नहीं
कर सकती है।
दलित, अगड़ी जाति का तय करेगी रुख
यूपी में 25 फीसदी वोट बैंक मुख्य रूप से दलितों का
है। इसके बाद अगड़ी जाति का वोट बैंक
जोकि तमाम जातियों में बंटा है वह भी
प्रदेश की राजनीति में
अहम भूमिका निभाता है। इसमें मुख्य रूप से ब्राह्मण, ठाकुर
आते हैं जिनके वोटों पर सभी धर्मों
की नज़र रहती है। इसके अलावा पिछड़ी जातियों का वोट बैंक
भी प्रदेश के चुनाव में
अहम भूमिका निभाता है।एक तरफ जहां दलितों का वोट बैंक
25 फीसदी है तो ब्राह्मणों
का वोट बैंक 8 फीसदी, 5 फीसदी ठाकुर व अन्य अगड़ी
जाति 3 फीसदी है। ऐसे अगड़ी जाति का कुल वोट
बैंक तकरीबन 16 फीसदी है।
मुस्लिम वोट बैंक
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले मुस्लिम
वोट बैंक पर कब्ज़ा को
लेकर सियासत तेज हो गई है.
मुस्लिम वोट बैंक को लेकर कांग्रेस
और सपा बिल्कुल आमने सामने है. कांग्रेस ने सपा पर
आरोप लगाया है कि सत्ता
तक पहुंचने के लिए सपा
ने सिर्फ मुस्लिमों का इस्तेमाल किया.
सत्ता में आने के बाद सपा
ने सिर्फ एक जाति विशेष
को फायदा पहुचाने का काम किया.
सपा ने कांग्रेस पर
आरोप लगाया है कि जो
पार्टी आज़म खान की न हो
सकी वो मुसलमानों का
क्या भला कर सकती है.
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले चुनाव से पहले यूपी
की सियासत खासकर मुस्लिम वोट को लेकर गरम
होती जा रही है.
यूपी में करीब 20 फीसदी मुस्लिम वोटों को लेकर सपा
और कांग्रेस आमने सामने है. कांग्रेस का सपा पर
आरोप है कि पिछले
कई सालों से यूपी का
मुसलमान समाजवादी पार्टी पर भरोसा करता
आ रहा है लेकिन सत्ता
में आने के बाद सपा
सिर्फ एक जाति विशेष
को फायदा पहुंचाती है. कांग्रेस का कहना है
कि कांग्रेस इसी मुद्दे को लेकर अब
मुस्लिम समाज के बीच जा
रही है और मुस्लिम
समाज के लोगों को
समझा रही है कि मुसलमानों
का भला सिर्फ कांग्रेस ही कर सकती
है और कांग्रेस की
सरकारों में ही मुसलमान सुरक्षित
हैं। हालांकि मुस्लिम वोटबैंक को लेकर सपा
पहले की तरह इसबार
भी आश्वस्त नज़र आ रही है.सपा को इसबात का
भरोसा है कि मुसलमान
वोटर उससे दूर नही जाएगा.यही वजह है कि जिला
पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में
सपा में मुस्लिम उम्मीदवारों पर जमकर भरोसा
दिखाया है.सियासी जानकारों
की माने तो विधानसभा चुनाव
से पहले ज़िला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में
मुस्लिम उम्मीदवारों
को मैदान में उतार सपा ने ये मैसेज
देने की कोशिश भी
की है कि मुस्लिम
समाज की रहनुमा सपा
ही है.वही गाज़ियाबाद
प्रकरण में सपा नेता की भूमिका सामने
आने के बाद ये
कहा जा रहा है
कि मुस्लिम वोटों में फूट से बचने के
लिए सपा की ये एक
रणनीति हो सकती है.
इन सबके बीच मुस्लिम वोटों को लेकर चल
रही खींचतान के बीच भाजपा
ने विपक्ष पर मुस्लिम तुष्टिकरण
का आरोप लगाते हुए कहा कि ये कुछ
भी कर लें 2022 में
जीत भाजपा की होगी. देखा
जाय तो करीब 20 फीसदी
मुस्लिम वोटों की आबादी वाले
राज्य यूपी में करीब 140 सीटों पर मुस्लिम निर्णायक
भूमिका में होता है. यही वजह है कि यूपी
में हाशिये पर चल रही
कांग्रेस मुस्लिम वोटों को अपने पाले
में लाने की हर कोशिश
कर रही है।
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