चंदौली : जातीय घमासन में दौड़ेगा ‘‘मोदी का करिश्माई घोड़ा’’
यहां
के
चुनाव
में
मतदाताओं
के
बीच
मोदी
कुछ
इस
ताह
रच
बस
गए
है,
उन्हें
दुसरा
कुछ
सूझता
ही
नहीं।
घनघोर
विचारधारा
वालों
की
अपनी
मजबूरी
है,
लेकिन
सच
सभी
जानते
हैं।
चंदौली
में
लड़ाई
भाजपा
से
होगी,
मुकाबले
में
सपा-कांग्रेस
ही
दिखती
है।
यहां
से
सूबे
के
पूर्व
भाजपा
अध्यक्ष
एवं
सांसद
और
केंद्रीय
भारी
उद्योग
मंत्री
डॉ
महेंद्रनाथ
पांडेय
को
पार्टी
ने
तीसरी
बार
अपना
प्रत्याशी
बनाया
है.
इससे
पहले
डॉक्टर
महेंद्र
नाथ
पांडेय
2014 और
2019 में
चंदौली
लोकसभा
सीट
पर
जीत
हासिल
कर
चुके
है।
इस
बार
हैट्रिक
लगाने
के
लिए
मैदान
में
उतरें
हैं।
उनके
सामने
कांग्रेस-सपा
गठबंधन
के
पूर्व
मंत्री
वीरेन्द्र
सिंह
हैं।
वे
मुस्लिम,
दलित,
यादव
समेत
अन्य
जातियों
से
उम्मीद
लगाएं
बैठे
है
कि
यही
उनका
बेड़ापार
करेंगे।
लेकिन
सच
यह
है
कि
चंदौली
में
भी
श्रीराम
मंदिर,
370, राष्ट्रवाद,
विकास
व
मोदी
लहर
की
बहती
बयार
में
जात-पात
गौढ़
हो
चला
है।
बाजी
किसके
हाथ
लगेगी,
ये
तो
चुनाव
परिणाम
बतायेंगे,
लेकिन
लड़ाई
कांटे
की
होगी,
इसमें
कोई
संशय
नहीं।
मुगलसराय
के
जावेद
अंसारी
कहते
है
बड़ी
उम्मीद
से
2014 एवं
2019 में
महेन्द्र
को
जीताया
गया
था
पर
हुआ
कुछ
नहीं।
विकास
तो
दूर
वे
मौके
पर
पहुंचते
ही
नहीं।
क्षेत्र
की
जनता
तो
उनका
नाम
ही
रख
दिया
है
‘लेटलतीफा
गुरु‘।
जबकि
उन्हीं
के
बगल
में
खड़े
रामप्रवेश
जायसवाल
कहते
है
कुछ
भी
हो
वोट
इस
बार
भी
मोदी
के
नाम
पर
ही
पड़ेगा,
प्रत्याशी
कौन
है,
मायने
नहीं
रखता।
कहते
है
चंदौली
का
क्षत्रिय
मतदाता
जिस
और
रुख
कर
देता
है,
उसी
पार्टी
के
उम्मीदवार
की
जीत
होती
है.
2019 में
बीजेपी
ने
अंतिम
समय
में
बसपा
के
पूर्व
एमएलसी
विनीत
सिंह
को
बीजेपी
में
शामिल
कर
इन
वोटों
में
अपनी
सेंध
लगाने
का
मास्टरस्ट्रोक
खेला
था।
इस
बार
भी
पार्टी
से
नाराज
चल
रही
मुगलसराय
से
2017 में
विधायक
रही
साधना
सिंह
को
राज्यसभा
सांसद
बनाकर
ठाकुर
मतों
को
मैनेज
करने
के
लिए
भाजपा
द्वारा
बड़ा
दांव
चला
गया
है।
यहां
जिक्र
करना
जरुरी
है
कि
2017 में
साधना
सिंह
का
टिकट
काटकर
रमेश
जायसवाल
को
लड़ाया
गया
था।
इसके
अलावा
सपा
के
पूर्व
सांसद
रामकिशुन
की
जगह
वीरेन्द्र
सिंह
को
लड़ाया
जाने
से
यादव
वोटों
की
नाराजगी
का
भी
फायदा
बीजेपी
को
मिल
सकता
है
सुरेश गांधी
‘धान का कटोरा‘
के नाम से विख्यात
चंदौली पहले वाराणसी का
ही हिस्सा था। इसे तहसील
का दर्जा प्राप्त था। यहां विश्वप्रसिद्ध
पश्चिम वाहिनी मेला लगता था।
मान्यता है कि केवल
दो ही जगह गंगा
पूर्व से पश्चिम की
ओर बहती है। पहला
इलाहाबाद दूसरा बलुआ है, जो
चंदौली में मौजूद है।
सत्ताइस बरस पहले 1997 में
मुख्यमंत्री रही मायावती ने
इसे जिले का दर्जा
यहकर प्रदान किया था कि
जल्द ही अन्य बड़े
शहरों की तरह चंदौली
में भी विकास की
गंगा बहेगी। उनके कार्यकाल में
विकास की गंगा तो
नहीं बही, लेकिन योगीकाल
में जरुर बहती दिखने
लगी है। भव्य जिला
कलेक्ट्रेट में प्रशासनिक अमला
लोगांं की सुनवाई करने
लगा है। यह अलग
बात है कि न्यायालय
आज भी तहसील परिसर
में ही चलता है
और डीएम एसपी आवास
उधार के पालिटेक्निक गेस्ट
हाउस में ही बैठकर
जनता की समस्याओ को
सुलझाने के लिए विवश
है। 65 फीसदी कार्यालय अभी भी निजी
भवनों में किराए पर
चल रहे हैं। जिले
में पांच तहसीले हैं।
नौगढ़, सकलडीहा, चंदौली, चकिया और मुगलसराय। जिस
चंदौली तहसील को लेकर जिला
बनाया गया, वहां जिला
मुख्यालय पर तो रोडवेज
का बस डिपो तक
नहीं है।
फिरहाल, भाजपा ने यहां से सांसद और केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडेय पर तीसरी बार भरोसा जताया है और उनको अपना प्रत्याशी बनाया है. डॉ महेंद्रनाथ पांडेय 2014 और 2019 में चंदौली लोकसभा सीट पर जीत हासिल कर इस बार हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में है। उनका मुकाबला कांग्रेस-सपा गठबंधन के पूर्वमंत्री वीरेन्द्र सिंह से है और कांटे की टक्कर होगी। यही वजह है कि सपा के लिए 2024 का चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण है। कयास लगाया जा रहा है कि भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए सपा ने क्षत्रिय जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। हालांकि डॉ महेंद्र नाथ पांडेय का दावा है कि उनके सामने कोई भी प्रत्याशी चुनौती नहीं दे रहा है. जनता की अपेक्षाओं पर संपूर्ण समाज का आशीर्वाद है। कहते है चंदौली का क्षत्रिय मतदाता जिस और रुख कर देता है, उसी पार्टी के उम्मीदवार की जीत होती है. 2019 में बीजेपी ने अंतिम समय में बसपा के पूर्व एमएलसी विनीत सिंह को बीजेपी में शामिल कर इन वोटों में अपनी सेंध लगाने का मास्टरस्ट्रोक खेला था। इस बार भी पार्टी से नाराज चल रही मुगलसराय से 2017 में विधायक रही साधना सिंह को राज्यसभा सांसद बनाकर ठाकुर मतों को मैनेज करने के लिए भाजपा द्वारा बड़ा दांव चला गया है। यहां जिक्र करना जरुरी है कि 2017 में साधना सिंह का टिकट काटकर रमेश जायसवाल को लड़ाया गया था। इसके अलावा सपा के पूर्व सांसद रामकिशुन की जगह वीरेन्द्र सिंह को लड़ाया जाने से यादव वोटों की नाराजगी का भी फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
बात विकास की
करें तो जिले में
बनने वाला गवर्नमेंट मेडिकल
कॉलेज राजीनीतिक खींचातानी में मिर्जापुर चला
गया. चंदौली में ट्रॉमा सेंटर
की आधारशिला तो काफी पहले
रखी जा चुकी है
लेकिन उसका निर्माण कार्य
कब शुरू होगा इसकी
कोई तारीख अब तक तय
नहीं हो सकी. यह
अलग बात है कि
पड़ाव में गन्ना शोध
संस्थान की जमीन पर
पंडित दीनदयाल म्यूजियम उंची मूर्ति लोकों
के आकषर्ण का केन्द्र है
और उन्हीं के नाम मुगलसराय
का नाम बदला गया।
चंदौली को धान का
कटोरा भी कहा जाता
है क्योंकि यहां अच्छी गुणवत्ता
वाला चावल प्रचुर मात्रा
में पैदा होता है।
वाराणसी से नजदीक होने
के कारण चंदौली सीट
वीआईपी सीट मानी जाती
है. चुनाव हों या न
हों, यहां का सियासी
पारा पूरे साल गर्म
रहता है।देखा जाएं तो चंदौली
लोकसभा सीट भले ही
वाराणसी लोकसभा के पड़ोस में
है लेकिन विकास के मामले में
दोनों सीटों में काफी अंतर
है. पिछले कुछ वर्षों से
यहां विकास की गति तो
तेज दिख रही है
लेकिन बुनियादी ढांचा इतना कमजोर है
कि हर क्षेत्र में
समान रूप से विकास
नहीं दिख रहा है।
सभी विधानसभाओं में विकास का
पैमाना भी अलग-अलग
दिखता है.
जीतेन्द्र मिश्रा का कहते है मोदी सरकार ने काम किया है। सड़के लहक दहक रही है। सांसद निधि से शत प्रतिशत काम हुआ है। लोगों को मकान शौचालय, उज्जवला योजना के तहत गैसे कनेक्शन सबकुछ तो मिला है। विरोधी कुछ भी कहें लेकिन जीतेगे महेन्द्रनाथ पांडेय ही। सैयदराजा के जमाल अंसारी व सकलडीहा के दलजीत यादव कहते है बरसो से यहां फलाईओवर की मांग है, अगर पूरी हो तो कम से कम इस चिलखती धूप में पसीना तो न बहाना पड़े। लेकिन वोट तो वहीं के मिलेगा जो हमरे देश के जवानों के लिए कुछ कर रहा है। वैसे भी चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं और मुद्दों पर ही वोट डाले जायेंगे। चौबेपुर के लालजी मौर्या कहते है खेती के खाद व बीज जैसी हर छोटी-छोटी जरूरत के लिए तो बनारस जाना पड़ता है। बेरोजगारी की समस्या यहां का एक अहम मुद्दा है। औद्योगिक क्षेत्र के रुप में रामनगर तो है लेकिन एक भी बड़ा उद्योग नहीं है, जहां स्थानीय युवाओं को रोजगार मिल सके। जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है तो उसे इस गठबंधन के दौर में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। मदन चौरसिया कहते है वोटिंग के समय विकास जैसे मुद्दे गौण हो जाते है। लोग अपनी जाति का ताना बाना बुनने लगते है। जो जिस जाति का होता है माना जाता है उसे उसकी सहयोगी जातियां सपोर्ट करती है। लेकिन यहां की मुख्य समस्या सिंचाई के लिए पानी, जाम को देखते हुए ओवरब्रिज स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट बड़ा मुद्दा है। चंदौली की रेंगती यातायात, अवैध कब्जे यानी कच्ची बस्तियां और पानी का बिगड़ा सिस्टम याद दिलाता है कि यदि स्मार्ट सीटी में चयन होता तो करोड़ों का बजट कुछ सुधार कर सकता था। जावेद अख्तर बताते है कि चुनाव में हर बार उन्हें यही झुनझुना पकड़ा दिया जाता है कि सरकार बनते ही चंदौली को भी स्मार्ट सीटी में शामिल किया जायेगा। लेकिन हालात फिर वही रह जाते है।
ऐसे शुरू हुआ महेन्द्रनाथ का राजनीतिक सफर
डॉ महेंद्र नाथपांडेय
मूल रूप से गाजीपुर
जनपद के रहने वाले
हैं. इनका जन्म 15 अक्टूबर
1957 को गाजीपुर जनपद के पक्खनपुर
गांव में हुआ था.
डॉ महेंद्र नाथ पांडेय की
शैक्षणिक योग्यता की बात करें
तो इन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय
से हिंदी में पीएचडी किया
है. साथ ही डॉ
महेंद्रनाथ पांडेय ने जर्नलिज्म में
पोस्ट ग्रेजुएट किया है. छात्र
जीवन से ही डॉ
महेंद्रनाथ पांडेय का राजनीति से
जुड़ाव रहा. 1973 में बनारस के
सीएम एंग्लो बंगाली कॉलेज के छात्र संघ
के अध्यक्ष रहे महेन्द्रनाथ बीएचयू
में पढ़ाई के दौरान
छात्रसंघ में जनरल सेक्रेटरी
भी रहे. डॉ महेंद्र
नाथपांडेय इमरजेंसी के दौरान 5 महीने
तक जेल में भी
बंद रहे. 1978 में इन्होंने राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ ज्वाइन किया
और बाद में वह
राम जन्मभूममि आंदोलन से भी जुड़े.
1978 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से
जुड़े। 1975-1976 में एवीबीपी के
वाराणसी जिला संयोजक रहे।
1985-1986 में भाजयुमो का प्रदेश मंत्री
बनाया। 1987 में भाजपा उत्तर
प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य चुने
गए। पहली बार 1991 में
सैदपुर (गाजीपुर) विधानसभा से वह विधायक
चुने गए। सक्रिय राजनीति
की बात करें तो
1991 में महेंद्र नाथ पांडेय यूपी
विधानसभा का चुनाव लड़े
और जीत हासिल की.
इसके बाद 1996 में भी इन्होंने
विधानसभा का चुनाव लड़ा
और जीते. इस दौरान कल्याण
सिंह की सरकार में
उन्होंने राज्य मंत्री का पद संभाला.
इसके बाद इन्होंने अगली
सरकार में पंचायती राज
विभाग का भी मंत्रालय
संभाला. भाजपा-बसपा गठबंधन सरकार
में आवास एवं नगर
विकास राज्यमंत्री। मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कार्यकाल
में नियोजन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे। प्रदेश में
राजनाथ सिंह व स्व.
रामप्रकाश गुप्ता के कार्यकाल में
पंचायती राज्य मंत्री रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव
में महेंद्रनाथ ने भाजपा के
टिकट पर 16 साल बाद चंदौली
लोकसभा से जीत हासिल
करते हुए भगवा लहराया।
2016 में जब मोदी मंत्रिमंडल
का विस्तार हुआ तो उन्हें
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री का
पदभार मिला, लेकिन अगले ही साल
अगस्त 2017 में यह मंत्रालय
सत्यपाल सिंह को दे
दिया गया. इसके बाद
उन्हें पार्टी नेतृत्व ने उत्तर प्रदेश
की कमान सौंपी। उत्तर
प्रदेश के बड़े ब्राह्मण
चेहरे के रूप में
पहचाने जाने वाले महेंद्रनाथ
पांडेय पर 2019 में भी भाजपा
ने भरोसा जताया और इन्हें चंदौली
लोकसभा से प्रत्याशी बनाया.
इस चुनाव में महेंद्र ने
सपा-बसपा गठबंधन के
प्रत्याशी डॉ संजय चौहान
को हराकर चंदौली से लगातार दूसरी
बार जीत हासिल की.
इसके बाद महेंद्रनाथ पांडेय
को मोदी मंत्रिमंडल में
शामिल किया गया और
इन्हें कौशल विकास मंत्रालय
की जिम्मेदारी दी गई. सन
2021 में डॉ महेंद्र पांडेय
का मंत्रालय बदल दिया गया
और इन्हें भारी उद्योग मंत्रालय
की जिम्मेदारी दी गई.
2019 में सपा ने दी थी कांटे की टक्कर
2019 के चुनाव में
डॉ. महेंद्रनाथ पांडेय को 5 लाख 10 हजार
733 वोट मिले। उन्होंने सपा-बसपा गठबंधन
के संजय सिंह चौहान
को 13 हजार 959 वोट के अंतर
से हराया। चंदौली सीट के मतदाताओं
ने उन्हें दोबारा सांसद चुनकर लोकसभा में भेजने का
काम किया। जबकि 2014 में महेंद्रनाथ को
4 लाख 14 हजार 135 वोट मिले थे।
उन्होंने बसपा प्रत्याशी अनिल
कुमार मौर्या को एक लाख
56 हजार 756 वोट के भारी
अंतर से हराया था।
इस चुनाव में कुल 17,56,837 मतदाताओं
के सापेक्ष कुल वो 10,84,961 पड़े।
जिसमें कुल पुरुष 7,95,388 व
कुल महिला 9,61,337 थे। थर्ड जेंडर
के मतदाता 112 हैं। 2019 में कुल मतदान
प्रतिशत 61.76 फीसदी था।
कब कौन जीता
चंदौली सीट पर 1998 से
एक और दिलचस्प ट्रेंड
देखने को मिला कि
यहां से लगातार दोबारा
कोई सांसद नहीं बना है.
1998 में बीजेपी के आनंद रत्न
मौर्या सांसद बने थे, उसके
बाद यह सीट सपा
के जवाहर जायसवाल के खाते में
चली गई थी. आनंद
रत्न मौर्या 1991 से लेकर 1998 तक
लगतार तीन बार सांसद
बने थे. लेकिन उसके
बाद यह सिलसिला टूट
गया. इस लोकसभा सीट
पर पहली बार बीजेपी
ने 1991 में अपना खाता
खोला था। 1991 से 1998 तक बीजेपी के
आनंद रतन मौर्या ने
यहां से जीत की
हैट्रिक लगाई थी। 2009 के
लोकसभा चुनाव में सपा के
प्रत्याशी रामकिशुन ने बसपा के
कैलाश नाथ सिंह यादव
को हराया था। 1957 से 2014 तक चंदौली लोकसभा
में 16 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं
जिसमें एक बार उपचुनाव
(1959) भी हुआ था। चंदौली
में बीजेपी का प्रदर्शन शानदार
रहा है। चंदौली लोकसभा
सीट से अब तक
कांग्रेस 4, बीजेपी 4 और जनता पार्टी
2-2 बार जीत हासिल कर
चुके हैं।
विधानसभा में है बीजेपी का दबदबा
चंदौली देश के सबसे
पिछड़े जिलों में आता है।
2006 में पंचायती राज मंत्रालय ने
देशभर के 640 जिलों में सबसे पिछड़े
जिलों की एक सूची
जारी की जिसमें 250 पिछड़े
जिलों में इस जिले
को भी रखा गया
था। यह यूपी के
उन 34 जिलों में से एक
है जिसे बैकवर्ड रिजन
ग्रांट फंड प्रोग्राम के
तहत अनुदान दिया जाता है।
पूर्व में बिहार, उत्तर-पूर्व में गाजीपुर, दक्षिण
में सोनभद्र, दक्षिण-पूर्व में बिहार और
दक्षिण-पश्चिम में मिर्जापुर की
सीमाओं से घिरे इस
लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र (मुगलसराय, सकलडीहा, सैयदराजा, अजगरा और शिवपुर) आते
हैं। इसमें अजगरा रिजर्व सीट है। इनमें
से चार विधानसभा सीटों
पर बीजेपी, एक पर सपा
का कब्जा है। सैयदराजा सीट
से बीजेपी प्रत्याशी सुशील सिंह को 87891 मत
मिले जबकि सपा के
मनोज सिंह को 76974 वोट
ही मिल सका. सुशील
ने मनोज को 10917 वोटों
से हराया. यहां बसपा के
अमित यादव 36848 वोट पाकर तीसरे
और कांग्रेस की विमला 2155 वोट
लेकर चौथे स्थान पर
रहीं.मुगलसराय सीट से बीजेपी
के रमेश जायसवाल ने
जीत दर्ज की. उन्हें
102216 वोट मिले. वहीं सपा के
चंद्रशेखर यादव को 87295 वोट
हासिल हुए. रमेश जायसवाल
ने चंद्रशेखर को 14921 मतों से हराया.
वहीं बसपा के इरशाद
अहमद 31602 वोट लेकर तीसरे
और कांग्रेस के छब्बू पटेल
5344 वोट लेकर चौथे स्थान
पर रहे. सकलडीहा सीट
पर सपा प्रत्याशी प्रभु
नारायण सिंह यादव ने
दर्ज की. उन्हें 86328 मत
मिले. जबकि बीजेपी के
सूर्यमुनि तिवारी 69667 वोट पाकर लेकर
दूसरे स्थान पर रहे. प्रभु
नारायण ने सूर्यमुनि तिवारी
को 16661 मतों से हराया.
तीसरे स्थान पर बसपा के
जयश्याम त्रिपाठी को 43756 वोट मिले. इसके
बाद कांग्रेस के देवेंद्र सिंह
मुन्न 5135 वोट लेकर चौथे
स्थान पर रहे. चकिया
सीट में बीजेपी प्रत्याशी
कैलाश खरवार को 97812 वोट मिले. जबकि
सपा के जितेंद्र को
88561 वोटों स.संतोष करना
पड़ा. कैलाश ने जितेंद्र को
9251 मतों से हराया. इस
सीट से बसपा के
विकास आजाद 44530 वोट लेकर तीसरे
और कांग्रेस 2049 वोट लेकर चौथे
स्थान पर रही।
दिग्गजों की कर्मभूमि रही चंदौली
चंदौली संसदीय क्षेत्र बड़े-बड़े दिग्गजों
की जन्मभूमि रही है। पंडित
कमला त्रिपाठी का जन्म स्थान
और राजनैतिक कर्मभूमि भी रही तो
मौजूदा केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ
सिंह की जन्मभूमि रही।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की इस पुण्य
स्थली पर बड़े नेताओं
की मौजूदगी के बावजूद चंदौली
काफी पिछड़ा हुआ जिला है।
पंडित कमला पति त्रिपाठी
जब प्रदेश के मुख्यमंत्री थे
तो उन्होंने यहां नहरों का
जाल बिछाया था। उसी समय
लोग धान की खेती
करने के लिए प्रेरित
हुए। मौजूदा समय में दो
लाख 43 हजार 501 कृषि क्षेत्र में
करीब 65 फीसदी हिस्से में धान की
खेती होती है। बता
दें, 2011 की जनगणना के
अनुसार यहां कुल जनसंख्या
1,952,756 है। इसमें 1,017,905 पुरुष व 934,851 महिलाएं है। इसमें 88 फीसदी
हिंदू, 11 फीसदी मुस्लिम बाकी अन्य जातियां
है। अनुसूचित जाति की आबादी
4,46,786 है। जबकि अनुसूचित जनजाति
ं की आबादी 41,725 है।
लिंगानुपात देखा जाए तो
यहां पर प्रति 1,000 पुरुषों
पर 918 महिलाएं हैं। इस जिले
की साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत
से ज्यादा है। 71.48 फीसदी आबादी यहां साक्षर है
जिसमें 81.72 फीसदी पुरुष और 60.35 फीसदी महिलाएं शामिल हैं।
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