मछलीशहर : ‘जातियता’ के ‘जकड़न’ में ‘मोदी-योगी’ का ‘छौंका’
तापमान भले ही 40 डिग्री से ऊपर हो, लेकिन चुनावी माहौल ठंडा है। गांवों में न चुनाव कार्यालय दिख रहे है न झंडे-बैनर। किसान खेत खलिहानों में फसल निकालने में जुटा है, तो कार्यकर्ता बिना प्रत्याशी के जीत की बाजी अपने पक्ष में करने के लिए हाडतोड मेहनत कर रहे हैं। यह अलग बात है कि पिछली बार मुकाबले से बाहर रहे सपा व बसपा इस बार भी भाजपा को सीधी टक्कर दे रही है। यही वजह है कि कार्यकर्ता हो या आम मतदाता सबकी जीत की गणित जाति ही है और इसी जातियता को तोडने के लिए भाजपाई लोगों में राम मंदिर, योगी बाबा का बुलडोजर, धारा 370 की दुहाई देकर देशभक्ति की अलख यहकर जगा रहे है कि ‘मोदी-योगी है तो सब मुमकिन है’ फिरहाल, मतदाता मौन है, लेकिन मुद्दों की बात करने पर जफर कहते है लोकसभा में स्थानीय मुद्दे ज्यादा मायने नहीं रखते। आम मतदाता राष्ट्रीय सुरक्षा, महंगाई, भ्रष्टाचार, तीन तलाक जैसे मुद्दों पर ही भाजपा, सपा व बसपा की सोच, नीतियों और घोषणाओं को परख रहा है। भाजपा को उम्मींद है कि 2019 में बीपी सरोज भले ही मात्र 182 वोट से जीते सके, लेकिन इस बार नए प्रत्याशी के सहारे दलितों के वोट तो बरसेंगे ही मोदी-योगी की लोकप्रियता और राम मंदिर व देशभक्ति कार्ड के सहारे उसकी नैया पार हो सकती है। बाजी किसके हाथ लगेगी, ये तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन गोपालापुर के प्रदीप जायसवाल कहते है ‘जातियता’ के ‘जकड़न’ में ‘मोदी-योगी’ का ‘छौंका’ इस बार भी लगेगा. संतोष जायसवाल कहते है पिंडरा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों उद्घाटित बनास अमूल डेरी इस क्षेत्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वाचल के लिए रोजगार का बड़ा माध्यम बनेगा
सुरेश गांधी
आजादी के बाद मछलीशहर
के लोग फूलपुर लोकसभा
के लिए 1952 और 1957 तक वोटिंग करते
रहे और 1984 तक कांग्रेस का
कब्जा रहा। लेकिन अब
यहां पार्टी अपने अस्तित्व बचाने
की लड़ाई लड़ रही
है. खास यह है
कि इस क्षेत्र का
प्रतिनिधित्व देश के प्रथम
प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से
लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह
चुके सूरापुर (सुल्तानपुर) के मूल निवासी
श्रीपति मिश्र, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नागेश्वर द्विवेदी, राम मंदिर आंदोलन
के अगुवा स्वामी चिन्मयानंद और राम विलास
वेदांती जैसे दिग्गज नेताओं
ने संसद में नुमाइंदगी
कर चुके है, लेकिन
विकास के नाम पर
नतीजा ’ढाक के तीन
पात’ वाला ही रहा।
2009 में एक बार फिर
चुनाव आयोग की परिसीमन
की कवायद की जद में
यह क्षेत्र आ गया। इस
बार बड़े भौगोलिक बदलाव
के साथ इसे सुरक्षित
लोकसभा क्षेत्र घोषित कर दिया गया।
परिसीमन के बाद इस
क्षेत्र में तत्कालीन सैदपुर
(सु) लोकसभा क्षेत्र को समाप्त कर
जफराबाद (बयालसी), केराकत (सु), मछलीशहर, मडिय़ाहूं
व वाराणसी जनपद की पिंडरा
विधान सभा को शामिल
किया गया। इस बदलाव
के बाद पहले चुनाव
में सैदपुर के सपा सांसद
रहे तूफानी सरोज चुने गए।
अगले 2014 के चुनाव में
मोदी की सुनामी का
असर रहा कि भाजपा
के रामचरित्र निषाद व 2019 में बीपी सरोज
सांसद बनकर लोकसभा के
सदस्य बने। लेकिन समस्या
जस की तस मुंह
बाएं खड़ी है। इस
सीट के मतदाता दलों
को ताश के पत्तों
की तरह फेंटते रहे
हैं। यह भी कम
दिलचस्प नहीं कि तमाम
मतदाता भाजपा और सपा प्रत्याशियों
का नाम तक भी
नहीं जानना चाहते। इनके लिए लोकतंत्र
के इस सबसे बड़े
समर में उनके लिए
चुनाव-चिह्न ही काफी है।
बड़ागांव के कीं एक दुकान पर गरमा गरम जलेबियों और बेसन मिलाकर तली मिर्च का स्वाद ले रहे जयंत यादव और ललीत वाल्मीकि पटेल मिलते हैं। जयंत कहते हैं, हमारे क्षेत्र में तो इस बार भी कमल के आगे रहने की उम्मीद है। जबकि नेवादा के सफीक अंसारी मानते हैं कि सपा इस बार अच्छी फाइट देंगी। हालांकि, सपा प्रत्याशी की जीत को लेकर वे उतने मुतमईन नहीं, जितना कि भाजपा प्रत्याशी को लेकर बनवारी व सावंत दिखते हैं। मड़ियाहूं बेलवा मार्ग पर ही आगे बढ़ने पर पराउगंज में मनोहर कोयले की भट्ठी में हंसिया और दरांती ढालते हुए मिलते हैं। युवा योगेन्द्र गेहूं काटने के लिए पंजाब जाने की तैयारी में हैं। बताते हैं, हमारे इलाके में बेरोजगारी बड़ी समस्या है। किसी फैक्टरी में काम करने जाएं तो खा-पीकर बमुश्किल 4-5 हजार ही बचा पाते हैं। सियासी चर्चा आगे बढ़ी तो योगेन्द्र के ही साथी जर्नादन मौर्य कहते हैं, तहसील-थानों और कचहरी के भ्रष्टाचार आज भी बदस्तूर जारी है। चुनाव आते-जाते हैं, पर व्यवस्था नहीं बदलती। क्या वोट नहीं देंगे?
जर्नादन कहते हैं-वोट काहे न देंगे। फिर खुद ही सवाल कर डालते हैं-भाजपा के सामने कौन है? बात काटते हुए महेश कश्यप कहते हैं, अगर मुकाबले में सपा ने किसी स्थानीय को उतारा तो इस तरह का सवाल पैदा ही नहीं होगा। खैर, इन सभी की परेशानी का सबब यह है कि हर बार उनका वोट कट जाता है। पर यहां के नेता ध्यान नहीं देते। कठिराव के नंदलाल जायसवाल आपस में बतियाते हुए मिले, तो हम भी उनमें शामिल हो लिए। कहते हैं कि 5 किलो राशन से परिवार नहीं चलता। इस बार जनता परिवर्तन का मूड बना रही है। संजय जायसवाल कहते हैं कि माहौल तो हर तरफ भाजपा का ही दिख रहा है। गुंडागर्दी कम हुई है। हालांकि भ्रष्टाचार इस सरकार में भी कम नहीं हुआ है। मुख्तार हाशमी कहते हैं, इस बार बसपा प्रत्याशी भी मजबूती से लड़ाई में रहेंगे। अपनी बात को पुख्ता करने के लिए वह दलील देते हैं कि आज मतदाता बहुत चालाक हो गए हैं। अपने दिल की बात नहीं बताते हैं। वहीं, मडियाहूं निवासी शर्मीला बताती हैं कि मोदी ने उन्हें क्या नहीं दिया है, मान-सम्मान के साथ सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें ही नहीं अधिकांश महिलाओं को मिला है, इस बार महिला शक्ति मोदी के लिए समर्पित रहेगी।
मोकलपुर के अजय कन्नौजिया
कहते है मुददों की
बात करें तो यहां
बिजली कटौती, उबड खाबड़ सडके,
बेरोजगारी, कल कारखानों का
अभाव, उच्चशिक्षा की कमी सहित
समस्याएं कई है। लेकिन
अब जाति व व्यक्ति
आधारित वोट मिलते है।
इसलिए प्रत्याशी की कर्मठता व
योगदान को देखकर ही
वोट करेंगे। पिंडरा के मनोज पटेल
कहते है वास्तव में
यहां जातिवादी राजनीति का गणित चलेगा।
लंबे समय में यहां
कोई बड़ा कल कारखाना
नहीं लगा है। लेकिन
चुनाव के समय मुद्दे
गायब हो जाते है,
जातिवाद ही चलता है।
पटेल बाहुल क्षेत्र होने के चलते
इस सीट पर भाजपा
का पलड़ा भारी रहेगा।
क्योंकि भाजपा से गठबंधन करने
वाली अपना दल की
अनुप्रिया पटेल का समर्थन
है। बनिया, ठाकुर, ब्राह्मण, पासी, मौर्या आदि वोट भाजपा
के पक्ष में जा
सकता है। वैसे भी
चुनाव में राष्ट्रीय नेताओं
और मुद्दों पर ही वोट
डाले जायेंगे। केराकत के मई गांव
में निवासी ब्रह्मराज कहते है 15 साल
गुजर जाने के बाद
भी उनकी टीस बरकार
है। 2004 नाव से नदी
पार करते वक़्त नाव
डूब जाने से पांच
से छह लोगों को
मौत हो गई थी।
वर्तमान में भी यहां
के लोगो को नदी
पार कर जिला मुख्यालय
जाने के लिए नाव
का सहारा लेना पड़ता है
या फिर 30 किमी की अधिक
दूरी तय करनी पड़ती
है। अगर ये पुल
बन जाता है तो
जिला मुख्यालय जाने के लिए
लोगो के मात्र 18 से
20 किमी की दूरी तय
करनी पड़ेगी। बता दें, 15 सितंबर
2011 में तत्कालीन बसपा सरकार में
4 करोड़ 22 लाख की लागत
से नाबार्ड वित्त पोषित योजना के अंतर्गत मई
पसेवा मार्ग पर बसपा सरकार
के मंत्री निसिमुद्दीन सिद्दीकी ने इस पुल
की नींव रखी थी।
जिसका समय भी 18 महीने
निर्धारित किया गया था,
लेकिन पुल का निर्माण
कार्य अधूरा है और काम
पूरी तरह बंद है।
जिससे ग्रामीणों में नाराजगी है।
भाउपुर-गोपालापुर के मो. हादी
बबलू अपने कुछ साथियों
के साथ बैठे हुए
मिलते हैं। बिना झिझके
बताते हैं कि उनका
वोट तो सपा को
ही जाएगा, क्योंकि सपा मुसलमानों के
साथ भेदभाव नहीं करती है।
बसपा की हकीकत भी
मुसलमान समझ चुके हैं।
हांलाकि, उनके साथ ही
बैठे रोशन लाल वर्मा,
कैलाश चंद्र और रूप लाल
कश्यप मोदी सरकार में
मिल रही सुविधाएं गिनाने
लगते हैं। राहुल गुप्ता
और देवांश शर्मा भी उनकी हां
में हां मिलाते हैं।
कहते हैं कि कुछ
समय पहले शारदा नदी
के धनौरा घाट पर पुल
मंजूर होने से आम
लोग काफी अच्छा महसूस
कर रहे हैं।
जातिय समीकरण
इस संसदीय क्षेत्र
का लिंगानुपात प्रदेश के उन चंद
संसदीय क्षेत्रों में शामिल है
जहां महिलाओं की संख्या पुरुषों
से अधिक है. एक
हजार पुरुषों की तुलना में
महिलाओं की संख्या 1,040 है.
2011 की जनगणना के अनुसार, मछलीशहर
तहसील की आबादी 7,36,209 है,
जिसमें महिलाओं की संख्या 3,75,252 व
पुरुषों की संख्या 7,36,209 है।
यहां की साक्षरता दर
70.81 फीसदी है. जातिगत समीकरण
में इस संसदीय क्षेत्र
में 22.7 फीसदी आबादी (166,766) अनुसूचित जाति की है,
जबकि अनुसूचित जनजाति यहां की कुल
आबादी का 0.1 फीसदी (625) ही है. धार्मिक
आधार पर 90.61 फीसदी आबादी हिंदुओं की है, जबकि
मुस्लिम समाज के 8.9 फीसदी
हैं. जातिय आंकड़ों के मुताबिक यादव
2,01,867, अनुसूचित जाति 2,48,005, ब्राह्मण 1,70989, क्षत्रिय 2,42,164, वैश्य 64,764, कायस्थ 91,452, मुस्लिम 89,322 व अन्य 3,41,799 है।
2019 का जनोदश
2019 के लोकसभा चुनाव
में बीजेपी के बीपी सरोज
ने जीत हासिल की
है, उन्हें 4,88,397 वोट मिले थे.
जबकि बसपा के त्रिभुवन
राम 4,88,216 वोटों के साथ दूसरे
स्थान पर रहे और
एसबीएसपी के राजनाथ 11,223 वोटों
के साथ तीसरे स्थान
पर रहे थे. बीपी
सरोज ने यह मुकाबला
भले ही जीत लिया
लेकिन उन्हें जीत के लिए
बेहद संघर्ष करना पड़ा था.
उन्हें महज 181 मतों के अंतर
से जीत मिली थी.
पीएम मोदी के संसदीय
सीट वाराणसी के पिंडरा विधानसभा
से लीड मिली, जिसके
कारण वे जीत पाएं।
हालांकि टीराम भी बीजेपी में
शामिल हो गए और
वाराणसी की अजगरा सीट
से विधायक भी है.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव
में भाजपा के रामचरित्र निषाद
जीते थे. रामचरित्र निषाद
ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी
सपा के भोलानाथ को
1,72,155 मतों के अंतर से
हराया था. रामचरित्र को
43.91 फीसदी जबकि भोलानाथ को
26.66 फीसदी वोट मिले थे.
बाद में बीपी सरोज
बसपा छोड़ बीजेपी में
आ गए थे।
कुल मतदाता
इस संसदीय क्षेत्र
में कुल मतदाता 10,34,925 है।
जिसमें 5,11,790 पुरुष व 5,20,320 महिला वोटर हैं। जबकि
थर्ड जेंडर के मतदाता की
संख्या 90 हैं। 2019 में कुल मतदान
प्रतिशत 55.99 फीसदी था।
कब कौन जीता
पहली बार 1962 में
मछलीशहर लोकसभा सीट के रूप
में उभरी. इस लोकसभा सीट
को जौनपुर जिले के मछलीशहर,
मड़ियाहू, जफराबाद, केराकत के साथ ही
वाराणसी जिले की पिंडरा
विधानसभा को मिलाकर गठन
किया गया. अनुसूचित जाति
के लिए मछलीशहर और
केराकत विधानसभा को आरक्षित किया
गया है. साल 1962 में
यहां के पहले कांग्रेस के गणपत ने
चुनाव लड़कर जनसंघ के
महादेव को मात दी
थी. 1977 में कांग्रेस जीत
से रोकने के लिए भारतीय
लोकदल के राजकेशर सिंह
उतरे और जीत भी
गए. कांग्रेस के नागेश्वर दिवेदी
को हराया, हालांकि एक दशक से
यहां पर कांग्रेस की
जीत होती रही. कांग्रेस
से श्रीपति मिश्र 1984 में आखीरी बार
सांसद चुने गए. लोकदल
के शिव शरण की
हार हुई। खास यह
है कि जब देश
में राम मंदिर मुद्दा
उफान पर था तब
यहां बीजेपी हारी थी. साल
1989 के चुनाव में कांग्रेस के
श्रीपति मिश्रा को जनता दल
के शिवशरण वर्मा ने मात दिया.
साल 1991 में शिवशरण ने
बीजेपी के राजकेशर सिंह
मात दिया. 1996 में बीजेपी के
राम विलास वेदांती की जीत हुई.
1998 में सपा के हरवंश
सिंह को बीजेपी के
स्वामी चिन्मयानंद ने हराया था.
बसपा ने साल 2004 में
उमाकांत यादव को चुनावी
मैदान में उतारा, उन्होंने
सपा के सीएम सिंह
को मात दी. इस
तरह इस सीट पर
पार्टी का खाता खुल
पाया. साल 2009 में सीट सुरक्षित
हो चुकी थी और
तब सपा के तूफानी
सरोज ने जीत हासिल
की और बसपा के
कमलाकांत गौतम को हार
का स्वाद चखना पड़ा. साल
2014 में मोदी लहर थी
और बीजेपी से रामचरित्र निषाद
को इसका लाभ हुआ
और उन्होंने बसपा के बीपी
सरोज को मात दी.
साल 2019 के चुनाव में
बीजेपी के रामचरित्र निषाद
सपा जॉइन किया और
बसपा के बीपी सरोज
ने बीजेपी का दामन थाम
लिया.
1962 महादेव जनसंघ
1967 नागेश्वर
द्विवेदी कांग्रेस
1971 नागेश्वर
द्विवेदी कांग्रेस
1977 राजकेशर
सिंह जनता पार्टी
1980 शिवशरण
वर्मा जनता पार्टी
(एस)
1984 श्रीपति मिश्र कांग्रेस
1989 शिवशरण वर्मा जनता दल
1991 शिवशरण वर्मा जनता दल
1996 डा. वेदांती भाजपा
1998 चिन्मयानंद भाजपा
1999 सीएन सिंह सपा
2004 उमाकांत यादव बसपा
2009 तूफानी सरोज सपा
2014 रामचरित्र निषाद भाजपा
इतिहास
जौनपुर जिले में शामिल
मछलीशहर यूपी के 80 संसदीय
क्षेत्रों में से एक
है। इस क्षेत्र को
व्यापार के लिहाज से
प्रदेश का अहम क्षेत्र
माना जाता है। इसे
तहसील का दर्जा प्राप्त
है। पश्चिम में प्रतापगढ़, रायबरेली
और लखनऊ को मछलीशहर
से जोड़ता है। जबकि पूर्वी
तरफ से जौनपुर और
वाराणसी से जुड़ा हुआ
है। मछलीशहर सुरक्षित लोकसभा सीट है, जिसके
अंदर पांच विधानसभाएं मछलीशहर,
मरियाहू, जाफराबाद, केराकत और पिंडरा हैं.
जिसमें 2 सीट अनुसूचित जाति
के लिए रिजर्व है.
संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ
मछलीशहर विधानसभा क्षेत्र भी अनुसूचित जाति
के लिए आरक्षित है।
यहां सपा का कब्जा
रहा है. यह क्षेत्र
पिछड़ा व दलित बाहुल्य
है। पिछड़ों में यादवों की
संख्या अन्य के मुकाबले
बहुत अधिक है. इस
सीट पर पहली बार
1962 में चुनाव हुआ था। कांग्रेस
को यहां पर जीत
मिली थी. कांग्रेस के
टिकट पर चुने गए
गनपत राम यहां से
पहले सांसद चुने गए.
दिग्गज नेता भी नहीं करा पाएं विकास
आजादी के बाद से
इस क्षेत्र के भूगोल व
इतिहास में नए-नए
बदलाव के साथ प्रयोग
तो खूब हुए लेकिन
समूचे क्षेत्र में विकास के
पैमाने की कसौटी पर
कसने पर महज झुनझुना
ही नजर आता है।
इस क्षेत्र का कुछ हिस्सा
पहले इलाहाबाद जिले की फूलपुर
सीट से जुड़ा था
जहां से देश के
पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल
नेहरू का सीधा ताल्लुक
रहा। इस अति पिछड़े
क्षेत्र के उत्थान के
लिए उन्होंने मुंगराबादशाहपुर, मछलीशहर व जौनपुर के
लिए रेल लाइन बिछाने
की कार्य योजना तो बनाई लेकिन
वह महत्वाकांक्षी सोच उनके निधन
के साथ ही सियासी
गलियारे में गुम हो
गई। प्रधानमंत्री के क्षेत्र से
जुड़े होने के बावजूद
विकास की किरण तक
नजर न आने के
कारण ’नाम बड़े दर्शन
थोड़े’ की कहावत चरितार्थ
हो उठी। यह क्षेत्र
कालांतर में सामान्य लोकसभा
क्षेत्र के रूप में
अस्तित्व में आया। तब
इसे जौनपुर जनपद की तीन
खुटहन, मछलीशहर और गढ़वारा व
प्रतापगढ़ जनपद की दो
विधानसभाओं पट्टी और बीरापुर को
शामिल किया गया। इसी
क्षेत्र से प्रदेश के
मुख्यमंत्री रह चुके सूरापुर
(सुल्तानपुर जनपद) के मूल निवासी
श्रीपति मिश्र भी यहां से
सांसद रहे लेकिन कांग्रेसी
खेमे के इस बड़े
नाम ने भी क्षेत्र
को विकास की कोई बड़ी
पहचान दिलाने की जहमत नहीं
उठाई। इसी क्षेत्र से
कांग्रेसी दिग्गज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नागेश्वर द्विवेदी, राम मंदिर आंदोलन
के अगुवा स्वामी चिन्मयानंद और राम विलास
वेदांती जैसे दिग्गज नेताओं
ने संसद में नुमाइंदगी
तो की लेकिन विकास
के नाम पर नतीजा
’ढाक के तीन पात’
वाला ही रहा। 2009 में
एक बार फिर चुनाव
आयोग की परिसीमन की
कवायद की जद में
यह क्षेत्र आ गया। इस
बार बड़े भौगोलिक बदलाव
के साथ इसे सुरक्षित
लोकसभा क्षेत्र घोषित कर दिया गया।
परिसीमन के बाद इस
क्षेत्र में तत्कालीन सैदपुर
(सु) लोकसभा क्षेत्र को समाप्त कर
जफराबाद (बयालसी), केराकत (सु), मछलीशहर, मडिय़ाहूं
व वाराणसी जनपद की पिंडरा
विधान सभा को शामिल
किया गया। इस बदलाव
के बाद पहले चुनाव
में सैदपुर के सपा सांसद
रहे तूफानी सरोज चुने गए।
अगले 2014 के चुनाव में
मोदी की सुनामी का
असर रहा कि भाजपा
के रामचरित्र निषाद सांसद बनकर लोकसभा के
सदस्य बने। इनके कार्यकाल
में भी क्षेत्र को
रेल लाइन की सौगात
मिलने के दावे पर
दावे तो खूब हुए
लेकिन नतीजा फिर वही ’सिफर’
ही रहा।
विधानसभा क्षेत्र पुरूष महिला
मड़ियाहूं 166524 146226
मछलीशहर 198401 174042
जफराबाद 195900 173868
केराकत 203468 193519
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