फूलपुर : ‘एमवाई’ फैक्टर में ‘जातीय गोलबंदी’ का ‘तड़का’
वोटों
की
किसी
भी
कीमत
पर
गोलबंदी
अगर
लोकतंत्र
के
लिए
घातक
है
तो
जनता
के
मानस
का
बदलना
भी
ठोस
सच्चाई
है।
जनता
का
मानस
कब
बदलेगा,
ये
तो
पता
नहीं,
लेकिन
फूलपुर
में
लू
के
थपेड़ों
के
बीच
’पॉलिटिकल’
हीटवेव
की
बयार
में
जातीय
गोलबंदी,
ध्रुवीकरण
व
तुष्टिकरण
इस
कदर
सिर
चढ़कर
बोल
रही
है
कि
इसकी
आंच
पूरे
पूर्वांचल
में
महसूस
हो
रही
है।
धर्म
एवं
न्याय
की
नगरी
प्रयागराज
से
लगायत
देश
के
प्रथम
प्रधानमंत्री
पं
जवाहर
लाल
नेहरु
की
कर्मभूमि
फूलपुर
भी
इससे
अछूता
नहीं
है।
फूलपुर
के
लोग
इस
बार
किसे
जिताएंगे?
के
सवाल
पर
खुलकर
तो
कोई
नहीं
बोलता,
लेकिन
आलेमऊ
के
सियाराम
यादव
कहते
है
यहां
से
सफलता
उसी
को
मिलती
है
जो
जातीयता
के
सांचे
में
फिट
बैठता
है।
20.47 लाख
मतदाताओं
में
जिसने
पटेल
व
मौर्या
के
अलावा
गैर
यादव
पिछड़ी
जातियों
को
साधा,
उसके
सिर
ही
बंधेगा
जीत
का
सेहरा।
जबकि
बसमहुआ
के
शेख
अब्दुल्लाह
कहते
है
इस
बार
एमवाई
फैक्टर
के
आगे
सारे
हवा
हो
जायेंगे।
इस
धमाचौकड़ी
में
बाजी
किसके
हाथ
लगेगी
इसका
फैसला
तो
4 जून
को
होगा।
लेकिन
जैतवार
डीह
के
तुलसीराम
कहते
है
इस
बार
श्रीराम
मंदिर
लोगों
के
जेहन
में
है
और
ध्रुवीकरण
व
तुष्टिकरण
के
खेल
में
अगर
लोगों
का
राष्ट्रप्रेम
जागा
तो
भगवा
फहरने
से
कोई
रोक
नहीं
सकता।
खास
यह
है
कि
यहां
पर
मुकाबला
बसपा
पृष्ठभूमि
के
प्रत्याशियों
के
बीच
में
है।
मतलब
साफ
है
बसपा
कैडर
के
ये
प्रत्याशी
अगर
दलितों
को
रिझाने
में
सफल
हुए
तो
परिणाम
चौकाने
वाले
हो
सकते
है
सुरेश गांधी
फिरहाल, फूलपुर सीट भारत की
आजादी के बाद से
ही वीवीआईपी सीटों में शामिल रही.
यह कभी कांग्रेस का
सबसे मजबूत गढ़ हुआ करती
थी. देश की राजनीति
में इस सीट का
खास स्थान है. इसकी बड़ी
वजह यह है कि
यह सीट देश के
पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की
राजनीतिक कर्मभूमि रही है. वह
इस सीट से लगातार
तीन बार सांसद चुने
गए थे. देश के
एक अन्य पीएम विश्वनाथ
प्रताप सिंह भी यहां
से सांसद चुने गए, यहीं
से गैंगस्टर अतीक अहमद भी
सांसद बने थे. बीजेपी
के केशव प्रसाद मौर्य
भी सांसद बने. अभी इस
सीट पर बीजेपी का
कब्जा है. इस बार
भी यहां पर कड़े
मुकाबले के आसार हैं.
इस सीट पर साल
1951 से लेकर अब तक
20 बार चुनाव हुआ है. तीन
बार उपचुनाव हो चुके हैं.
जिसमें सबसे ज्यादा सात
बार कांग्रेस और पांच बार
सपा ने जीत हासिल
की. वहीं, भाजपा दो बार और
बसपा ने एक बार
जीत दर्ज की है.
वर्तमान में इस सीट
से बीजेपी की केशरी देवी
पटेल सांसद हैं. इस सीट
पर एक बार फिर
अपनी विजय पताका फहराने
के लिए सभी दलों
ने मशक्कत शुरू कर दी
है।
अयोध्या में रामलला मंदिर
और कश्मीर में धारा 370 की
समाप्ति के रूप में
चरम पर पहुंचा राजनीतिक
और धार्मिक चेतना से उपजा ज्वार
अब भी फुफकार मार
रहा है। बावजूद इसके
बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, महंगाई, शोषण जैसे मुद्दे
स्थायी होते हुए भी
सत्ता परिवर्तन के लिए निर्णायक
कारक सिद्ध होते नहीं दिख
रहे है। जबकि भारत
जैसे लोकतंत्र में ये स्थायी
लेकिन आनुषांगिक मुद्दे रहते आएं हैं।
कोई जज्बाती मुद्दे का तड़का ही
सामान्यतः चुनाव जिताऊ सिद्ध होता है और
भाजपा ऐसे मुद्दे की
खोज और गढ़न में
माहिर हो चुकी है।
छठे चरण के चुनाव
में 25 मई को फूलपुर
में वोटिंग होगी। नामांकन के साथ प्रत्याशी
जीत-हार के समीकरण
भी बनाने लगे हैं। देखा
जाएं तो फूलपुर में
निर्णायक भूमिका निभाने वाले पिछड़ों पर
सभी दलों की निगाहें
है। यही वजह है
कि इस सीट पर
पिछड़ों में भी चुनाव
को कुर्मी बनाम अदर बैकवर्ड
बनाने की जोड़तोड़ शुरू
हो गई है। जातीय
आकड़ों के मुताबिक यहां
कुल मतदाताओं की संख्या 20.47 लाख
से अधिक है। इनमें
सबसे अधिक तीन लाख
से ज्यादा कुर्मी मतदाता हैं। यादव मतदाताओं
की संख्या भी दो लाख
से अधिक है। वहीं,
पिछड़ी जाति के अन्य
मतदाताओं की संख्या तीन
लाख से अधिक है।
करीब ढाई लाख मुस्लिम
व ढाई लाख से
अधिक अनुसूचित जाति के मतदाता
भी हैं। अगड़ी जातियों
में ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब
दो लाख है। शहर
की दोनों विधानसभा क्षेत्रों शहर उत्तरी एवं
पश्चिमी में कायस्थ मतदाताओं
की संख्या भी दो लाख
से अधिक है। इसी
जातीय समीकरण को देखते हुए
भाजपा ने प्रवीण पटेल
को उम्मीदवार बनाया है। जबकि सपा
ने यादव व मुस्लिम
मतदाताओं के साथ अन्य
पिछड़ी जातियों के ध्रुवीकरण को
ध्यान में रखते हुए
अमर नाथ मौर्य को
व बसपा ने जगन्नाथ
पाल को प्रत्याशी बनाया
है। खास यह है
कि इन तीनों प्रत्याशियों
ने अपनी राजनीतिक पारी
बसपा से ही शुरु
की है।
बता दे, प्रवीण
पटेल ने बसपा से
राजनीति की शुरुवात की
थी और 2017 में बसपा से
भाजपा में शामिल हो
गए। एक तरह से
प्रवीण अपने पिता महेंद्र
प्रताप पटेल की राजनीतिक
विरासत को आगे बढ़ा
रहे हैं। महेंद्र प्रताप
झूसी विधानसभा क्षेत्र से 1984, 1989 व 1991 में विधायक चुने
गए थे। ये जनता
पार्टी व कांग्रेस से
जुड़े रहे। वर्ष 2007 में
प्रवीण बसपा से फूलपुर
विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने
गए। लेकिन अखिलेश जहर में 2012 में
उन्हें हार का सामना
करना पड़ा। इस हार
का बदला लेने 2017 में
प्रवीण मोदी-योगी रथ
पर सवार होकर 2017 में
व 2022 में फूलपुर के
विधायक चुने गए। उनके
बढ़ते कद को देखते
हुए भाजपा हाईकमान ने सीटिंग सांसद
केशरी देवी पटेल का
टिकट काटकर उन्हें प्रत्याशी बनाया है। भाजपा को
उम्मींद है कि पटेल,
मौर्या सहित अन्य पिछड़ी
जातियों के सहारे इस
बार भी यहां से
भगवा लहरायेगा। यह अलग बात
है कि सपा इस
चुनाव को कुर्मी बनाम
अदर बैकवर्ड बनाने में जुट गयी
है। सपा ने अमरनाथ
मौर्या को अपना उम्मींदवार
बनाया है। अमरनाथ का
भी नाता लंबे समय
तक बसपा से रहा
है। 2002 में शहर पश्चिम
से बसपा के टिकट
पर विधानसभा का चुनाव भी
लड़ चुके हैं। हालांकि
वे जीत नहीं सके
थे।
2022 में वह सपा
में शामिल हो गए और
शहर पश्चिम से सपा ने
उन्हें टिकट भी दिया
था, लेकिन नामांकन की अंतिम दिन
रिचा सिंह को टिकट
दे दिया, जिस कारण अमरनाथ
मौर्या चुनावी दंगल से बाहर
हो गए थे। उनके
इस त्याग को देखते हुए
सपा ने उन्हें इस
बार लोकसभा का प्रत्याशी बनाया
है। बसपा से घोषित
जगन्नाथ पाल कैडरवेस के
नेता है और 1996 में
तत्कालीन बसपा सुप्रीमो काशीराम
के चुनाव में मतगणना एजेंट
के रूप में कार्य
कर चुके हैं। ग्राम
पंचायत अमरशापुर के 10 वर्ष तक प्रधान
भी रहे है। इसके
अलावा बसपा के विभिन्न
पदों पर रहते हुए
वर्तमान में प्रयागराज मंडल
का प्रभारी के तौर पर
दायित्व निभा रहे है।
वैसे भी फूलपुर सीट
पर पिछड़ों की निर्णायक भूमिका
रहती है। इनमें भी
कुर्मी मतदाताओं की बड़ी भूमिका
होती है। 1977 में कमला बहुगुणा
जीती थी। इसके बाद
12 चुनाव हुए और 11 बार
पिछड़ी जाति के उम्मींदवार
विजयी रहे। अगड़ी जाति
से कपिलमुनि करवरिया की जीत हुई
है। इसके अलावा 2004 में
अतीक अहमद की जीत
हुई थी तो 2014 में
केशव मौर्य जीते थे। शेष
9 चुनावों में भी कुर्मी
उम्मीदवार ही संसद पहुंचने
में सफल रहे। इसी
समीकरण को देखते हुए
भाजपा ने प्रवीण पटेल
को उम्मींदवार बनाया है। वहीं सपा
ने यादव मुस्लिम मतदादाताओं
के साथ अन्य पिछड़ी
जातियों के ध्रुवीकरण को
ध्यान में रखते हुए
अमरनाथ मौर्य को प्रत्याशी बनाया
है।
2014 व 2019 के परिणाम
फूलपुर लोकसभा क्षेत्र पांच विधानसभा फाफामऊ,
सोराव, फूलपुर, इलाहाबाद पश्चिमी और इलाहाबाद उत्तरी
शामिल है। इनमें सोराव
में सपा का कब्जा
है। अन्य चार सीटों
पर भाजपा के विधायक हैं।
मोदी लहर में 2014 में
इस सीट पर भाजपा
के केशव प्रसाद मौर्य
जीत हासिल की थी। 2019 के
लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी
की केशरी देवी पटेल ने
171,968 वोटों के अंतर से
सीट जीती। केशरी देवी पटेल को
56.00 फीसदी वोट शेयर के
साथ 544,701 वोट मिले और
उन्होंने एसपी के पंधारी
यादव को हराया, जिन्हें
372,733 वोट (38.07 फीसदी) मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव
में, बीजेपी के केशव प्रसाद
मौर्य ने सीट जीती
और उन्हें 52.43 फीसदी वोट शेयर के
साथ 503,564 वोट मिले। सपा
उम्मीदवार धर्म राज सिंह
पटेल को 195,256 वोट (20.33 फीसदी) मिले और वह
उपविजेता रहे। केशव प्रसाद
मौर्य ने धर्म राज
सिंह पटेल को 308,308 वोटों
के अंतर से हराया।
2018 के उपचुनाव में सपा के
नागेंद्र पटेल को 3,42,922 वोट
मिले, जबकि बीजेपी के
कौशलेंद्र पटेल 2,83,462 वोट और निर्दलीय
उम्मीदवार अतीक अहमद को
48,094 वोट मिले. वहीं 2014 के लोकसभा चुनाव
में बीजेपी के केशव मौर्य
ने 5,03,564 वोट हासिल किए
जबकि सपा के धर्मराज
सिंह पटेल को 1,95,256 वोट
मिले, वहीं कांग्रेस के
मोहम्मद कैफ को 58,127 वोट
मिले थे.
कुल मतदाता
कुल
मतदाता 20,47,477 है। उनमें से
9,07,850 पुरुष वोटर हैं। महिला
मतदाताओं की संख्या 11,02,413 हैं।
थर्ड जेंडर के मतदाता 214 हैं।
कांग्रेसियों को अब भी नेहरु परिवार से उम्मींदे
दरअसल, प्रयागराज नेहरू गांधी खानदान का पैतृक शहर
है. यहीं पर आनंद
भवन और स्वराज भवन
भी है. देश की
आजादी के आन्दोलनों में
आनंद भवन और स्वराज
भवन की बड़ी भूमिका
थी. यहां पर देश
की आजादी के आंदोलन के
कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए. लेकिन
पिछले कई दशकों से
प्रयागराज कांग्रेस के केंद्र में
नहीं रहा है. यही
वजह है कि पिछले
तीन दशक से ज्यादा
समय से अपना वजूद
तलाश रही कांग्रेस बार-बार राहुल गांधी,
सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी
को प्रयागराज से चुनाव लड़ाकर
उसे पुनर्जीवित करना चाहती है.
कांग्रेस के नेताओं और
कार्यकर्ताओं को भरोसा है
कि अगर प्रयागराज को
कांग्रेस केंद्र में रखती है
और गांधी खानदान का कोई शख्स
प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा
सीट से चुनाव लड़ता
है, तो इसका फायदा
कांग्रेस पार्टी को पूरे प्रदेश
में मिल सकता है.
दो ही नेता लगा सके है जीत की हैट्रिक
पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के
बाद पहली बार 1952 में
हुए लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय
सीट को अपनी कर्मभूमि
के लिए चुना और
वह लगातार 1952, 1957 और 1962 में यहां से
सांसद निर्वाचित हुए. नेहरू के
धुर-विरोधी रहे समाजवादी नेता
डॉ. राम मनोहर लोहिया
1962 में फूलपुर लोकसभा सीट से उनके
सामने चुनावी मैदान में उतरे, लेकिन
वो जीत नहीं सके.
अब तक सिर्फ दो
ही ऐसे नेता हैं
जो इस सीट से
हैट्रिक बना पाए हैं.
पहले जवाहरलाल नेहरू और दूसरे हैं
रामपूजन पटेल जो 1984, 1989 और
1991 में इस सीट से
सांसद रहे. 1964 में नेहरू के
निधन के बाद उनकी
बहन विजय लक्ष्मी पंडित
फूलपुर से उतरीं और
जीत दर्ज कर सांसद
बनीं. 1977 में आपातकाल के
दौर में कांग्रेस के
हाथों से ये सीट
खिसक गई.
इतिहास
1952 के आम चुनाव
से पहले फूलपुर सीट
इलाहाबाद ईस्ट कम जौनपुर
वेस्ट कहलाती थी। विधानसभा क्षेत्र
और डेमोग्राफी इस संसदीय क्षेत्र
में चार विधानसभा क्षेत्र
है। इसमें शहर का दो
तिहाई हिस्सा और गंगापार का
क्षेत्र आता है। इलाहाबाद
विश्वविद्यालय, एमएनएनआइटी जैसे प्रसिद्ध शिक्षण
संस्थान और आनंद भवन
जैसे ऐतिहासिक स्थल इस संसदीय
क्षेत्र में आते हैं।
फूलपुर इलाहाबाद से करीब 30 किमी
दूर है। यहां रेलवे
स्टेशन है जो वाराणसी
गोरखपुर को जोड़ती है।
फूलपुर एक कस्बा है।
यहां पर आबादी अधिक
है। यहां पर स्टेशन
के सामने एक पुराना रानी
का महल स्थित है।
इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोआपरेटिव लिमिटेड कंपनी भी फूलपुर में
ही है। द न्यू
यमुना ब्रिज, इलाहाबाद म्यूजियम यहां के प्रमुख
पर्यटन स्थल हैं। शैक्षिण
संस्थानों में इलाहाबाद सेंट्रल
यूनिवर्सिटी यहां का प्रमुख
शैक्षिण संस्थान है। कुंभ के
चलते विकास के काफी अधिक
काम हुए हैं। रेलवे
ओवरब्रिज, अंडरब्रिज और बड़े पैमाने
पर सड़कों के चौड़ीकरण, हाइवे
निर्माण और सौंदर्यीकरण का
काम हुआ है। हालांकि
ग्रामीण अंचल में विकास
की रफ्तार धीमी है। बेरोजगारी,
बाढ़ और औद्योगिक विकास
में पिछड़ापन प्रमुख मुद्दा हो सकता है,
लेकिन जाति धर्म अहम
होता है जीत हार।
कब कौन रहा सांसद
पंडित जवाहर लाल नेहरु पहले
चुनाव यानी 1951-52 से लेकर 1962 तक
फूलपुर लोकसभा सीट से सांसद
रहे. पंडित नेहरु के निधन के
बाद इस सीट पर
पहली बार 1964 में उपचुनाव हुआ,
जिसमें कांग्रेस की विजय लक्ष्मी
पंडित ने जीत हासिल
की और सांसद बनी.
1967 में विजय लक्ष्मी पंडित
ने फिर चुनाव जीता.
कार्यकाल के दौरान उनका
निधन हो गया. जिसके
बाद 1969 में उपचुनाव हुआ,
जिसमें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से जनेश्वर मिश्रा
ने जीत दर्ज की.
इसके बाद 1971 में विश्व नाथ
प्रताप सिंह, 1977 में राम पूजन
पटेल, 1980 में प्रो. बी.डी. सिंह जीते.
इसके बाद राम पूजन
पटेल ने लगातार तीन
बार 1984, 1989 और 1991 में इस सीट
पर जीत दर्ज की.
वहीं 1996 में जंग बहादुर
पटेल, 1999 में धर्मराज पटेल,
2004 में सपा से अतीक
अहमद और 2009 में बसपा से
कपिलमुनि करवरिया ने इस संसदीय
क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.
हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव
की मोदी लहर में
भाजपा का खाता खुला.
केशव प्रसाद मौर्या यहां से सांसद
चुने गए. हालांकि, 2017 के
विधानसभा चुनाव में बीजेपी की
प्रचंड जीत के बाद
केशव प्रसाद मौर्या को डिप्टी सीएम
बनाया गया. उनके इस्तीफे
से फूलपुर सीट खाली हुई.
इसके बाद उपचुनाव हुए,
जिसमें सपा के नागेंद्र
सिंह पटेल ने जीत
हासिल की. उन्होंने भाजपा
के कौशलेंद्र सिंह पटेल को
हराया था। इसके बाद
2019 के लोकसभा चुनाव यह सीट फिर
बीजेपी के खाते में
आ गई. यहां की
जनता ने कमल का
बटन दबाते हुए केशरी देवी
पटेल को अपना सांसद
चुना.
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