Thursday, 30 May 2024

वाराणसी : अबकी बार ’फ्लोटिंग वोटों’ से बढ़ेगी जीत की मार्जिन

 
वाराणसी : अबकी बारफ्लोटिंग वोटोंसे बढ़ेगी जीत की मार्जिन

वाराणसी लोकसभा सीट पर जीत का हैट्रिक के लिए पीएम मोदी मैदान में हैं. उनका मुकाबला इसी सीट से हार की हैट्रिक लगा चुके इंडि गठबंधन कांग्रेस के अजय राय बसपा के अतहर जमाल लारी से है। हालांकि, यहां पर मुकाबला एक तरफा दिख रहा है. लड़ाई है तो पिछले सभी रिकार्ड को तोड़ते हुए पीएम मोदी के जीत की मार्जिन बढ़ाने की। इसके लिए खुद पीएम मोदी नामांकन से पहले रोडशो एवं एनडीए घटक दलों के शीर्ष नेताओं के जरिए शक्ति प्रदर्शन कर चुके है। बावजूद इसके सप्ताहभर में बीजेपी के शीर्ष एवं कद्दावर नेता अमित शाह, जेपी नडड्डा, राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर, सीएम योगी आदित्यनाथ, डॉ मोहन यादव, पीयूष गोयल, स्मृति ईरानी, केशव मौर्या, बृजेश पाठक, बीजेपी की फायर ब्रांड नेता माधवी लता सहित दो दर्जन से अधिक कैबिनेट राज्य मंत्रियों ने पूरे बनारस को माठा की तरह मथ डाला। इन लोगों ने हर तबके, हर समाज वर्ग के लोगों की अलग-अलग मीटिंगे कर मतदाताओं को रिझाने की भरपूर कोशिश की गयी। खास बात यह है कि गुजरात बीजेपी अध्यक्ष सीआर पाटिल, जिनके पास 2019 के चुनाव में गुजरात की नवसारी सीट से 6 लाख 89 हजार वोट के अंतर से जीत का रिकार्ड के साथ ही पन्ना प्रमुखों के जन्मदाता भी है, संगठन मंत्री रत्नाकर के साथ वह हर बूथ पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके है। विश्व संवाद केन्द्र, लंका के नागेन्द्र की मानें तो बीजेपी ने इस बार अपने सबसे बड़े नेता को देश के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत का तोहफा 10 लाख से भी अधिक वोट के अंतर से जीत का लक्ष्य रखा है. फिरहाल, कौन दस लाख से जीतेगा, कौन हैट्रिक लगायेगा, कौन किसकी गर्मी शांत करेगा और किसकी जमानत जब्त होगी ये तो 4 जून को पता चलेगा, लेकिन मोदी के प्रमुख प्रतिद्वंदी अजय राय को सपा के खास वोटबैंक का समर्थन एकतरफा मिला तो जीत का मार्जिन घटने से भी इनकार नहीं किया जा सकता 

सुरेश गांधी

लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में सबकी निगाहें पीएम मोदी की वाराणसी सीट पर लगी है. पीएम मोदी जीत की हैट्रिक लगाने के लिए चुनावी रणभूमि में उतरे हैं तो वाराणसी सीट पर हार की हैट्रिक लगा चुके कांग्रेस के अजय राय चौथी बार किस्मत आजमा रहे हैं. अजय राय पिछले तीन लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन इस बार की स्थिति 2009, 2014 और 2019 के चुनाव से अलग है. अजय राय इंडिया गठबंधन से हैं, जिसके चलते सपा से लेकर आम आदमी पार्टी का तक समर्थन है.सपा कांग्रेस गठबंधन होने से इस बार मामला अलग है. यही वजह है कि चुनाव पीएम मोदी बनाम अजय राय के बीच होता दिख रहा है. यह अलग बात है कि इस बार वाराणसी से पीएम मोदी के 10 लाख से अधिक वोटों से जीतने को लेकर बीजेपी ने नारा दिया है. इस नारे के प्रति खुद पीएम मोदी कितने आश्वस्त है इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि जिस वक्त उन्हें अपने संसदीय क्षेत्र में होना चाहिए वह लोकसभा चुनाव प्रचार समाप्त होते ही कन्याकुमारी पहुंच गए। वहां पीएम मोदी, 1 जून तक ध्यान साधना करेंगे। पीएम मोदी उसीध्यान मंडपममें ध्यान करेंगे, जहां स्वामी विवेकानन्द ने ध्यान किया था। बता दें, वाराणसी, जिसे बनारस और काशी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म, बौद्ध धर्म और जैन धर्म में अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है। यह विश्व स्तर पर सबसे पुराने बसे शहरों में से एक है और एक महत्वपूर्ण लोकसभा क्षेत्र है। वर्तमान में भाजपा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाने वाला वाराणसी पार्टी का गढ़ रहा है। वाराणसी संसदीय क्षेत्र में 19.62 लाख मतदाता हैं. इसमें पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं - रोहनिया, वाराणसी उत्तर, वाराणसी दक्षिण, वाराणसी कैंट और सेवापुरी। इन सभी पर बीजेपी का काबिज है। 2011 की जनगणना के अनुसार वाराणसी की आबादी लगभग 37 लाख है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, वाराणसी की स्थापना लगभग 5,000 साल पहले हुई थी और इसका उल्लेख स्कंद पुराण, रामायण, महाभारत और ऋग्वेद जैसे विभिन्न हिंदू धर्मग्रंथों में मिलता है। 2003 को छोड़ 1991 से लगातार इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. यहां 75 फीसदी हिंदू, 20 फीसदी मुस्लिम आबादी है। साथ ही 65 फीसदी आबादी शहरी, 35 फीसदी ग्रामीण है. पीएम के सामने यहां जातीय चक्रव्यूह तोड़ने की चुनौती है. यहां यादव के अलावा 3 लाख ओबीसी मतदाता है. 2 लाख कुर्मी, 2 लाख वैश्य, 1 लाख यादव वोटर और ब्राह्मण, भूमिहार वोटर्स की भी संख्या अच्छी है. बीजेपी ने वाराणसी सीट पर जीत बड़ी करने के लिए विधानसभा और बूथ स्तर तक प्लानिंग की है. पार्टी ने करीब तीन सौ से अधिक पदाधिकारियों और पूर्व पदाधिकारियों की भारी-भरकम फौज विधानसभा स्तर पर प्रचार के लिए उतदी है. अलग-अलग वर्गों को साधने के लिए अलग-अलग नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी गई है तो वहीं पर्ची वितरण से लेकर मॉनिटरिंग तक के काम में भी डेडिटेड टीम लगाई.गई है. विधायक-पूर्व विधायक, पार्षद और संगठन से जुड़े लोगों के साथ ही यूपी के अलग-अलग जिलों, दूसरे राज्यों से आए नेता-कार्यकर्ता भी डोर-टू-डोर कैंपेन जुटे रहे। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ वाराणसी में एक्टिव रहे तो वहीं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी जनसभा को संबोधित कर चुके हैं. दो मुख्यमंत्रियों को छोड़ दें तो पिछले दो दिनों में विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत तीन केंद्रीय मंत्री, डिप्टी सीएम समेत यूपी सरकार के आधा दर्जन मंत्री सार्वजनिक कार्यक्रम कर चुके हैं.

मकसद एक ही था पीएम के पक्ष में समा बनाना। बीते चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि समा बनाने से ही यहां बीजेपी की बंपर जीत होती रही है। ऐसे में बात जब जीत की मार्जिन बढ़ाने की हो तो फ्लोटिंग मतदाताओं की भूमिका अहम हो जाती है। क्योंकि हार जीत का आधार ये फ्लोटिंग वोटर ही बनते हैं। आमतौर पर फ्लोटिंग वोटर स्टार प्रचारकों और अंतिम समय में बने माहौल के हिसाब से अपना मत निर्धारित करते हैं। बीते दो-तीन दिन में जिस तरह से वाराणसी में भाजपा के दिग्गजों ने माठा की तरह काशीवासियों को मथा है उससे माना जा रहा है कि अंतिम समय में मार्जिन बढ़ सकती है। स्टार प्रचारकों के अलावा फ्लोटिंग वोटर अपने मत के सदुपयोग को लेकर भी व्यवहार करते हैं। जीत के अंतर की लड़ाई नरेंद्र मोदी ने 2014 के आम चुनाव में एनडीए की ओर से पीएम उम्मीदवार घोषित होने के बाद वाराणसी सीट से पहली बार चुनाव लड़ा था. तब वह 3 लाख 37 हजार वोट के अंतर से जीते थे. 2014 में उन्होंने वाराणसी के साथ ही गुजरात की वडोदरा सीट से भी चुनाव लड़ा था. वडोदरा से वह 5 लाख 70 हजार वोट के अंतर से चुनाव जीते थे2019 में पीएम मोदी की जीत का अंतर बढ़ा और वह 4 लाख 75 हजार वोट से जीते. 2024 के चुनाव में बीजेपी की रणनीति जीत का अंतर बढ़ने की इस टेंडेंसी को बरकरार रखने की है. बीजेपी ने इस बार अपने सबसे बड़े नेता को देश के चुनावी इतिहास की सबसे बड़ी जीत का तोहफा देने का टारगेट सेट किया है. बीजेपी ने वाराणसी सीट पर 10 लाख से भी अधिक वोट के अंतर से जीत का लक्ष्य रखा है. किसी चुनाव में सबसे अधिक वोट के अंतर से जीत का रिकॉर्ड फिलहाल बीजेपी के ही सीआर पाटिल के नाम दर्ज है. पाटिल 2019 के चुनाव में गुजरात की नवसारी सीट से 6 लाख 89 हजार वोट के अंतर से जीते थे. पार्टी नहीं चाहती कि चुनाव अभियान में किसी तरह का लूपहोल रह जाए और इसका असर जीत के अंतर के रूप में नजर आए.

   देखा जाएं तो पीएम मोदी ने 14 मई को वाराणसी सीट से बीजेपी उम्मीदवार के रूप में पर्चा भरा था. तब भी बीजेपी और एनडीए ने शक्ति प्रदर्शन किया था. पीएम मोदी के नॉमिनेशन में बीजेपी और एनडीए की सरकार वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ ही गठबंधन में शामिल घटक दलों के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी पहुंचे थे. एलजेपीआर के अध्यक्ष चिराग पासवन, सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर, आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी, टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू समेत एनडीए के कई कद्दावर नेता पीएम मोदी के नामांकन में शामिल थे. वैसे भी जब जीतने से बड़ी चुनौती जीत को बड़ा करना हो। जब हर दूसरी बात में जाति-धर्म का जिक्र करने वाले पूर्वांचल जैसे इलाके में चुनाव जाति-धर्म से परे हो जाएं। वोटबैंक, क्षेत्रवाद, परिवारवाद का जिक्र तक करे। और अपने रिकॉर्ड को तोड़ना ही अर्जुन सा लक्ष्य हो। तो ये पॉलिटिकल कहानी सचमुच काशी की ही हो सकती है। देश में यह भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट है। यहां चुनौती, तनाव, कोशिश, कवायद सबका सब जीत का मार्जिन बढ़ाने की है। ये आज की पॉलिटिक्स और इस लोकसभा चुनाव में किसी सीट का एकतरफा हो जाने का सबसे बड़ा लिटमस टेस्ट भी है। इसकी बड़ी वजह कहते हैं भाजपा के पास संगठन, कार्यकर्ताओं की फौज और पन्ना प्रमुखों के जरिए हर बूथ मतदाता तक पहुंच है। जो अन्य के पास नहीं है। 

खास बात यह है कि सपा कांग्रेस साथ होने से मुस्लिम वोट तो नहीं बंटेंगे, लेकिन अगर मुख्तार अंसारी मामले को लेकर मुसलमानों का जमीर जागा और बसपा के अतहर जमाल लारी के प्रति धार्मिक प्यार उमड़ा तो विखराव होने से इनकार भी नहीं किया जा सकता। सपा को पिछली बार 1.95 लाख (18.4 प्रतिशत) वोट मिले थे और कांग्रेस को 1.52 लाख (14.48 प्रतिशत) अगर इतने भी वोट मिल जाते हैं तो 3.5 लाख करीब वोट विपक्ष के हिस्से आएंगे। पीएम मोदी को 6.74 लाख वोट मिले थे जो कुल वोट का 63.6 प्रतिशत था। अगर यदि निकाय चुनाव की वोटिंग पर नजर दौडाएं तो तमाम विरोध के बावजूद पिछले के मुकाबले जीत का अंदर दुगुना हो गया था। बीजेपी के इससे इतर बड़ा वोटबैंक आश्रम मठ मंदिरों से जुड़े लोग भी है जहां 500 मठ और मंदिरों में दस हजार से ज्यादा लोग मोक्ष पाने काशी में रहते हैं और यहां के मुमुक्षु भवन और वृद्धाश्रम में रहते हैं। शहर में दक्षिण भारत की अच्छी खासी आबादी है। तेलगु और तमिल मिलाकर 2 लाख वोटर हैं और कन्नड और मलयालम 50 हजार। बिहार के 2 लाख से ज्यादा आबादी है। बंगाली, गुजराती, मारवाड़ी, मराठी वोटर भी बल्क वोटर का हिस्सा हैं। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकापर्ण के बाद ये पहला चुनाव है। वहीं राममंदिर का पॉलिटिकल फायदा अयोध्या से थोड़ा ही कम काशी के हिस्से आएगा। धर्म के इस एंगल का ठीक ठीक असर इस सीट पर होगा। पहली बार काशी में महिलाओं के लिए सम्मेलन हुआ। वो इतना बड़ा था जितना किसी पार्टी ने कहीं नहीं किया। इसका संचालन, प्रबंधन सब का सब महिलाओं के हाथ था। आधी आबादी को साधने का ये ब्रह्मास्त्र माना जा रहा है। इसके बाद प्रचार के लिए आखिरी हफ्ते में काशी को पॉलिटिकल टूरिज्म का डेस्टिनेशन बना दिया। भरपल्ले मिनिस्टर गलियों में चाय पीते, योगा करते, धर्म बटोरते दिखे। कमजोर विपक्ष भी नहीं था। डिम्पल-प्रियंका-राहुल-अखिलेश चारों को काशी यात्रा करवा दी।

जगतगंज के जयदेव यादव ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का तोहफा देने के लिए पीएम मोदी की सराहना करते हुए कहा इससे पर्यटन को काफी बढ़ावा मिला है. बड़ी बाजार के बुनकर रफीक अहमद ने पीएम मोदी को अपनाब्रांड एंबेसडरबताते हुए कहा, सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ अभी भी छोटे स्तर के बुनकरों तक नहीं पहुंचा है. सोनारपुरा के रमेश कश्यप् का कहना है किअबकी बार 10 लाख पार. यह हमारे लिए बदला चुकाने का समय है और काशी इसे वोटों से चुकाएगी. मुझे यकीन है कि पीएम मोदी 10 लाख वोटों के अंतर से जीतेंगे.’ लंका के परमजीत तिवारी का कहना है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में काशी में ऐसा परिवर्तन नहीं देखा है. केवल काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, बल्कि घाटों का कायाकल्प, घाट यात्रा, क्रूज पर्यटन भी पीएम मोदी के नेतृत्व में ही किया गया है. मुझे यकीन है कि लोग इस सब पर विचार करेंगे और उन्हें फिर से सत्ता में लाएंगे. सुंदरपुर के जनार्दन पटेल ने कहा कि बुनियादी ढांचे के विकास कार्यों के अलावा, पीएम ने काशी को कनेक्टिविटी दी है. उन्होंने वंदे भारत जैसी प्रीमियम ट्रेनों को बेड़े में शामिल किया है और रेलवे स्टेशन का कायाकल्प सोने पर सुहागा है. अस्सी घाट की नम्रता मौर्या ने कहा कि भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूए) की स्थापना से लोगों को परिवहन का एक और साधन मिल गया है. आईडब्ल्यूए मोदी सरकार का एक और बड़ा कदम है, खासकर उन किसानों के लिए जिन्हें शुरुआत में अपनी उपज को बाजार तक ले जाने में समस्याओं का सामना करना पड़ता था. आने वाले दिनों में, किसान जलमार्ग का विकल्प चुन सकते हैं, जो अपनी उपज को बाजारों तक पहुंचाने का सबसे तेज़ तरीका है. इसके अलावा, लोग पुलों के निर्माण और शहर की सड़कों के चौड़ीकरण से भी खुश दिखे, इससे यातायात में कमी आई है. बीएचयू के डॉ नामवर दुबे का कहना है किवास्तव में पीएम मोदी ने सबसे बड़े मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया है, लेकिन स्थानीय मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है.’ कुछ लोग बढ़ती महंगाई से नाखुश हैं. सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. पेपर लीक को लेकर युवा आक्रोशित है। इन मुद्दो पर भी ध्यान देने की जरुरत है। छात्र रमाकांत सिंह का कहना है किपेपर लीक पर कार्रवाई करते हए योगी ने जो कदम उठाएं वह सराहनीय है, लेकिन इस पर शत प्रतिशत रोक लगनी चाहिए, जो युवाओं की जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं.” मदनपुरा के मो शाहिद अली ने कहा, “पीएम मोदी ने काशी को टूरिज्म के मैप पर ला दिया है. पर्यटन क्षेत्र में तेजी आई है और पर्यटकों की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है. काशी की यात्रा के दौरान औसतन हर दूसरा व्यक्ति एक बनारसी साड़ी खरीदता है. मुझे यकीन है कि बढ़ी हुई ग्राहक संख्या काशी के बुनकरों को बड़ा पुश देगी.

कौन है अजय राय

पीएम मोदी के खिलाफ दो बार और वाराणसी लोकसभा सीट पर तीन बार चुनाव लड़ चुके अजय राय हर बार तीसरे नंबर पर रहे थे, लेकिन इस बार उनकेनंबर अच्छे सकते हैं. इसकी वजह है कि सपा-कांग्रेस का गठबंधन और इंडिया गठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार हैं. ऐसे में इस बार अजय राय का सीधा मुकाबला पीएम मोदी से है. अजय राय ने अपना सियासी सफर बीजेपी से शुरू किया था. एबीवीपी से लेकर संघ तक से जुड़े रहे और 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन का हिस्सा रहे. बीजेपी में रहते हुए अजय राय तीन बार विधायक रहे. इसके बाद 2009 में बीजेपी छोड़कर सपा का दामन थाम लिया और 2012 में कांग्रेस में शामिल हो गए. सपा से लेकर कांग्रेस में रहते हुए वाराणसी लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रहे हैं. अजय राय इन दिनों उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं और पीएम मोदी के खिलाफ वाराणसी से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं, लेकिन पहली बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. 2009 से लगातार वाराणसी सीट से अजय राय किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन जीत तो दूर की बात है, तीसरे से नंबर दो पर भी नहीं सके. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में अजय राय बीजेपी से टिकट मांग रहे थे, लेकिन डॉ मुरली मनोहर जोशी के उम्मीदवार बनाए जाने के चलते उन्होंने पार्टी को छोड़ दिया. बीजेपी से अलग होकर समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और वारसाणी से चुनावी मैदान में उतर गए. 2009 में वाराणसी सीट पर बीजेपी से मुरली मनोहर जोशी, सपा से अजय राय और बसपा से मुख्तार अंसारी के बीच मुकाबला हुआ था. मुरली मनोहर जोशी को 203122 वोट मिले थे तो मुख्तार अंसारी को 18,591 वोट हासिल हुआ था. अजय राय 123874 वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे थे. यह चुनाव मुरली मनोहर जोशी ने करीब 18 हजार से मुख्तार अंसारी को हराया था.

कुल मतदाता

वाराणसी सीट पर पांच विधानसभा क्षेत्र रोहनिया, सेवापुरी, शहर दक्षिणी, शहर उत्तरी और कैंट हैं। इस बार चुनाव में कुल 19,62,948 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनमें 31,538 ऐसे युवा मतदाता हैं जो पहली बार लोकसभा के चुनाव में वोटर होंगे। इसके अलावा 25,984 ऐसे मतदाता हैं, जिनकी उम्र 80 साल या उससे अधिक है। इस सीट पर 10,65,485 पुरुष और 8,97,328 महिला मतदाता हैं। थर्ड जेंडर वोटर्स की संख्या 135 है। आंकड़ों की बात करें तो रोहनिया विधानसभा क्षेत्र में 4,12,612 मतदाता हैं। इनमें पुरुष मतदाता 2,26,220 और महिला मतदाता 1,86,365 हैं। थर्ड जेंडर वोटर 27 हैं। सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र में 1,91,259 पुरुष और 1,63,034 महिला वोटर्स हैं। यहां थर्ड जेंडर वोटर्स की संख्या 20 है। इस प्रकार इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 3,54,323 है। शहर दक्षिणी में कुल 3,11,213 मतदाता हैं। इनमें पुरुष 1,70,068, महिला 1,41,118 और थर्ड जेंडर 27 हैं। शहर उत्तरी विधानसभा में कुल 4,31,051 मतदाता हैं। इनमें पुरुषों की संख्या 2,34,182 और महिला वोटरों की संख्या 1,96,826 है। यहां सबसे अधिक 43 थर्ड जेंडर वोटर्स हैं। सर्वाधित मतदाता कैंट विधानसभा में हैं। इनकी कुल संख्या 4,53,749 है। यहां 2,43,746 पुरुष और 2,09,985 महिला मतदाता हैं। यहां सबसे कम केवल 18 थर्ड जेंडर वोटर हैं।

जातीय समीकरण

वाराणसी लोकसभा में शहर उत्तरी, दक्षिणी, कैंट, रोहनिया सेवापरी विधानसभा शामिल हैं. इन विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की भागीदारी बड़ी है. 2024 के लोकसभा चुनाव में यह युवा मतदाता विनिंग फैक्टर साबित हो सकते हैं. कहा जाता है कि यूथ का मूड जिस ओर होगा हवा की बयार भी उसी और वह चलती है. जातिगत लिहाज से इस सीट पर सवर्ण वोट बैंक असरदायक माना जाता है. नरेंद्र मोदी के प्रत्याशी हो जाने के बाद 2014 में जिस तरह से तस्वीर बदली, वह किसी से छुपी नहीं है. बीजेपी को वैश्य, बनियों और व्यापारियों की पार्टी मानी जाता है. वैश्य मतदाताओं की संख्या यहां पर लगभग साढ़े चार लाख के बीच है, जो सबसे ज्यादा है. लगभग ढाई लाख ब्राह्मण मतदाता हैं. तीन लाख के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं. सवा लाख के आसपास भूमिहार मतदाता हैं. राजपूत मतदाताओं की संख्या भी एक लाख के आस पास है. यहां पर यादव मतदाताओं की संख्या ढेड़ लाख के आसपास है. पटेल बिरादरी जो कुर्मी बहुल क्षेत्र माना जाता है, उनकी संख्या भी दो लाख है. वाराणसी में चौरसिया मतदाताओं की संख्या अभी 80,000 से ऊपर है और लगभग 80,000 से 90,000 के बीच में दलित मतदाता भी हैं. इसके अलावा अन्य पिछड़ी जातियां हैं. जो किसी एक प्रत्याशी पर वोट कर दें तो जीत तय की जा सकती है. इनकी भी संख्या 70,000 से ऊपर है. आकड़े बताते हैं कि छोटी-छोटी जातियों के वोट बैंक बड़े मायने रखते हैं. 2014 एवं 2019 में बीजेपी के साथ अपना दल जैसे क्षेत्रीय छोटी पार्टियों का गठजोड़ उसकी कामयाबी की बड़ी वजह थी. लेकिन इस बार चुनौती बड़ी है. यह चुनौती मोदी को खुद अपने रिकार्ड तोड़ने की चुनौती है. कांग्रेस अपना दल के दूसरे गुट के सहारे कुर्मी वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में है. ब्राह्मण और अति पिछड़ी जातियों पर भी उसकी नजर है. ऐसे में इस बार रिकार्ड तोड़ पाना उतनी आसान नहीं रहने वाली. खास यह है कि रोहनिया और सेवापुरी विधानसभा सीट पटेल बहुल मानी जाती है। सेवापुरी से भाजपा विधायक नीलरतन पटेल और रोहनिया से अपना दल एस के विधायक सुनील पटेल हैं।

लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम

वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 6,74,664 लाख वोट पाकर जीत हासिल की है। उन्होंने 4,79,505 लाख से ज्यादा के मार्जिन से जीत दर्ज की है। यहां से समाजवादी पार्टी की शालिनी यादव 195159 वोट पाकर दूसरे स्थान पर रही हैं। जबकि कांग्रेस के अजय राय 152548 लाख वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे हैं। 2024 में कांग्रेस सपा साथ लड़ेंगी। यह अलग बात है कि सपा कांग्रेस के वोट मिलाकर 3,47,707 के मुकाबले मोदी 3,26,957 वोट से आगे है। मतलब साफ है सपा कांग्रेस गठबंधन भी मोदी की लोकप्रियता के आगे बौने ही साबित होने वाले है। खासतौर से तब जब बनारस ही नहीं पूरे देश में मोदी सुनामी बह रही हो। वाराणसी व्यापार मंडल के अध्यक्ष अजीत सिंह बग्गा की मानें तो इस बार मोदी दस लाख से भी अधिक वोट पाकर अपना ही रिकार्ड तोड़ेंगे। एक सर्वे की माने तो वाराणसी के 19.39 लाख मतदाताओं में 87 फीसदी मतदाता का झकाव मोदी की ओर ही है।  जबकि अन्य दलों में 13 फीसदी ही रुचि रखते है।

नरेंद्र मोदी : भाजपा : 6,74,664 वोट

शालिनी यादव : सपा : 1,95,159 वोट

हार का अंतर : 4,79,505

वोट प्रतिशत : 57

पुरुष मतदाता : 10,27,113

महिला मतदाता : 8,29,560

कुल मतदाता : 1856791

लोकसभा चुनाव 2014 के परिणाम

वर्ष 2014 में वाराणसी लोकसभा क्षेत्र से नरेंद्र मोदी को 5,81,022 वोट मिले। जबकि आप के अरविंद केजरीवाल को 3,71,784 वोटों से हराया। निकटतम प्रतिद्वंद्वी की पार्टी आप थी। 2014 में कुल 58.35 प्रतिशत वोट पड़े। जबकि अजय राय सहित चुनाव मैदान में उतरे 42 में 40 लोगों की जमानत जब्त हो गई। अजय राय को 2014 में सिर्फ 75,614 वोट मिले थे। जबकि बसपा के विजय प्रकाश जायसवाल            को 60,579 सपा के कैलाश चौरसिया         को 45,291 वोट मिले। 2019 में भी अजय राय को 1,52,548 वोट मिले और उनका मत प्रतिशत बढ़ा, लेकिन हार का अंतर भी बढ़ा. इस बार सपा और कांग्रेस गठबंधन के तहत कांग्रेस ने एक बार फिर अजय राय को मोदी के मकाबले उतारा है. अजय राय वर्तमान में यूपी कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं. इसके अलावा अजय राय पांच बार के विधायक रहे हैं. वह 1996, 2002 और 2007 में वाकी कोलासला विधानसभा सीट से भाजपा विधायक रहे हैं. अजय राय ने 2007 में भाजपा छोड़ने के बाद 2009 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कोलासला में उपचुनाव जीता और चौथी बार विधायक बने. फिर 2012 में उन्होंने वाराणसी की पिंडरा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर पांचवीं बार विधायक बने. उसके बाद से उन्होंने विधानसभा और लोकसभा के जितने भी चुनाव लड़े, सबमें हार का सामना किया.

शंकर प्रसाद जायसवाल रघुनाथ लगा चुके है जीत की हैट्रिक

स्वतंत्रता के बाद इस सीट से दो सांसद ही ऐसे रहे जो तीन-तीन बार संसद में पहुंचे। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रघुनाथ सिंह को मैदान में उतारा। बड़े जमींदार परिवार से होने के बावजूद रघुनाथ सिंह जनता के बीच काफी लोकप्रिय थे। वह 1952, 1957 और 1962 में लगातार यहां से सांसद बने। इसी तरह तीन बार वाराणसी सीट से शंकर प्रसाद जायसवाल सांसद चुने गए है। श्रीराम मंदिर आंदोलन के बाद 1991 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां से पूर्व पुलिस अधिकारी और जन्मभूमि कारसेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाले श्रीशचंद दीक्षित को मैदान में उतारा। श्रीशचंद ने सीट जीतकर भाजपा की झोली में डाल दी। इसके बाद भाजपा ने 1996 में यहां से शंकर प्रसाद जायसवाल को मैदान में उतारा। उन्होंने पार्टी को निराश नहीं करते हुए 1996, 1998 और 1999 में वाराणसी सीट का प्रतिनिधित्व किया।

सबसे हाईप्रोफाइल सीट

देश की सबसे हाईप्रोफाइल लोकसभा सीट वाराणसी से सांसद देश के पीएम नरेंद्र दामोदार दास मोदी हैं। साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान करके सबको चौंका दिया था। नरेंद्र मोदी ने यहां रिकार्ड मतों से जीत दर्ज कर की थी। देश की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी में तकरीबन 19 लाख 62 हजार मतदाता हैं, जिनमें लगभग 82 प्रतिशत हिंदू, 16 प्रतिशत मुसलमान हैं, हिंदुओं में 12 फ़ीसदी अनुसूचित जाति और एक बड़ा तबका पिछड़ी जाति से संबंध रखने वाले मतदाताओं का भी है। साल 2014 से पहले यहां विकास के कामों की गति धीमी थी लेकिन केंद्र में सरकार बनने के बाद से अब तक बनारस के लिए तकरीबन 315 बड़ी परियोजनाएं स्वीकृत हुईं हैं, जिनमें से अब तक लगभग 279 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं। विकास के पथ पर चल रहा ये शहर स्वच्छ और सुंदर दिखने की पूरी कोशिश में लगा हुआ है।

रिकार्ड बनाने की चुनौती

इस बार पीएम मोदी के निशाने पर तीन रेकॉर्ड हैं। पहला रेकॉर्ड है वाराणसी सीट से जीत की हैट्रिक। इससे पहले दो सांसद ही यहां से जीत की हैट्रिक लगा सके हैं। इसके अलावा मोदी, पूर्व प्रधानमंत्रियों जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की तरह यूपी के एक निर्वाचन क्षेत्र से तीन चुनाव जीतने के रेकॉर्ड की बराबरी कर सकते हैं। बतौर प्रधानमंत्री नेहरू फूलपुर लोकसभा सीट से लगातार तीन चुनाव जीते थे, जबकि इंदिरा ने भी रायबरेली से यही रिकॉर्ड बनाया था। हालांकि, इंदिरा रायबरेली से जीत की हैट्रिक नहीं लगा सकी थीं।

सपा-बसपा का खाता नहीं खुल पाया

बनारस शहर संस्कृतियों के संगम के लिए जाना जाता है। देशभर की संस्कृतियां काशी में रच-बसी हैं। अलग सोच और अलग अंदाज में जीने वाले बनारसियों ने सबसे ज्यादा लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा कांग्रेस और भाजपा का साथ दिया है। यहां से सात-सात बार भाजपा और कांग्रेस उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। बनारस यूपी की उन लोकसभा सीटों में एक है, जहां सपा या बसपा ने कभी जीत हासिल नहीं की। माफिया मुख्तार अंसारी ने बसपा के सिंबल पर 2009 में और अतीक अहमद ने 2019 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर किस्मत आजमाई थी, लेकिन जनता ने दोनों को नकार दिया था।

विकास के दावे, 45 हजार करोड़ के हुए काम 

जिसने काशी का दिल जीता, काशी उसी की हो गई। बाबा विश्वनाथ की नगरी ऐसी ही निराली है।मुझे तो मां गंगा ने बुलाया है’, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान पर काशी फिदा हो गई थी। काशी के घाटों पर उनके फावड़ा लेकर उतरने का दृश्य तो याद ही होगा। काशी को क्योटो बनाने के दावे के साथ यहां से सांसद बने पीएम नरेंद्र मोदी के कई काम अब सुर्खियों में हैं। देखा जाएं तो 22 फरवरी को 43वीं बार वाराणसी पहुंचे पीएम मोदी ने यूपी की 80 सीटें जीतने वाला भाषण दी, वो लोगों के दिलों दिमाग पर छा गया है। वैसे भी जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में पूर्वांचल की वाराणसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान किया तो ये सबकी नजरों में गई. मोदी ने गंगा की सफाई से लेकर घाटों की दुर्दशा तक को दूर करके काशी को क्योटो बनाने का भरपूर प्रयास किया. मोदी के प्रयासों से काशी बदली भी, इसे हम नहीं हर कोई कहता फिर रहा हैं। अबकी बार मोदी का मकाबला किससे होगा, यह तो अभी तय नहीं है. लेकिन ये जरूर है कि जिस तरह से 2014 2019 में बीजेपी के प्रत्याशी नरेंद्र मोदी के पक्ष में जनता ने वोट दिया, और जीत के बाद वाराणसी में विकास की धारा बही, उससे जनता का मिजाज मोदी के पक्ष में ही जाता दिख रहा है. ‘हर हर मोदी, घर घर मोदीका नारा इस बार भी बीजेपी के लिए संजीवनी की तरह दिख रहा है. वाराणसी में मोदी की लहर के आगे सभी विपक्षी दल एक होकर बीजेपी को रोकने का प्रयास करेंगे. लेकिन ये रथ रुकेगा या थमेगा, इसका फैसला तो जनता जनार्दन ही करेगी. दस साल में पीएम मोदी ने बतौर सांसद अपने संसदीय क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं को मजबूत करने पर जोर दिया। उन्होंने अपनी सांसद निधि का पैसा पानी के प्रबंधन, सुचारू बिजली आपूर्ति, बेहतर सड़कों और दिव्यांगों के कल्याण पर खर्च किया है। खुद प्रधानमंत्री ने अपने दस साल के कार्यों का लेखा-जोखा बताया। इन दस सालों में 45000 करोड़ से भी अधिक के विकास काम करा चुके है। इसमें सड़कों के जाल सेतुओं का निर्माण हो या अन्नदाताओं के लिए खजाना खोलने की बात हो। इन सभी चीजों को इस रिपोर्ट कार्ड में रखा गया है। बिजली के तारों में उलझी काशी को व्यवस्थित करने पर किए गए कार्यों को भी इसमें अंकित किया गया है। रेलवे के कायाकल्प पर ज्यादा फोकस मोदी ने 10 साल में रेल को रफ्तार देने की बात कही थी। आधुनिकीकरण और सुंदरीकरण के लिए कार्य किया गया। इसका नवीनतम उदाहरण बनारस रेलवे स्टेशन है। जिसका उल्लेख वह कईबार कर चुके हैं। लोहता-भदोही-जंघई रेल मार्ग का दोहरीकरण, वाराणसी-प्रयागराज सेक्शन का विद्युतीकरण कार्य, देश की पहली वंदेभारत समेत 12 नई ट्रेनों की सौगात काशी को मिली है। डेडीकेटेड फ्रेट काडीडोर, बलिया-गाजीपुर खंड, औड़िहार-गाजीपुर, भटनी-औड़िहार सेक्शन का विद्युतीकरण आदि का विकास हुआ। सड़कों का भी फैला है जाल तंग गलियों के रूप में पहचान रखने वाले बनारस में फ्लाइओवर सड़कों के चौड़ीकरण पर काम हुआ है। इसमें वाराणसी से जौनपुर, फुलवरिया फोरलेन, राजातालाब से हड़िया, भदोही-कपसेठी-बाबतपुर, भोजूबीर-सिंधोरा, अदलपुरा चुनार-भिखारीपुर मार्ग, कैंट-पड़ाव, वाराणसी-गोरखपुर, वाराणसी रिंग रोड फेज एक दो समेत कई मार्ग हैं। जिसका मोदी ने अपने रिपोर्ट कार्ड में जिक्र किया है। वाराणसी और उसके आसपास सड़कों का जाल फैला हुआ है। फ्लाईओवर भी राह आसान कर रहे हैं। तो वहीं, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर देश ही नहीं दुनिया में चर्चा का विषय है।

इतिहास

साल 1951-52 में जब पहली बार देश में आम चुनाव हुए थे तो वाराणसी में तीन लोकसभा सीटें थी. ये सीट...बनारस मध्य, बनारस पूर्व और बनारस-मिर्जापुर थी. साल 1952 आम चुनाव में इस इलाके से रघुनाथ सिंह और त्रिभुवन नारायण सिंह ने जीत हासिल की थी. साल 1957 और .साल 1962 आम चुनाव में वाराणसी सीट से कांग्रेस नेता रघुनाथ सिंह सांसद चुने गए. साल 1967 में सीपीएम के सत्य नारायण सिंह ने चुनाव जीता. लेकिन साल 1971 मे.कांग्रेस के राजाराम शास्त्री सांसद बने. साल 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में इस सीट से जनता दल के उम्मीदवार चंद्रशेखर ने जीत हासिल की थी. 1980 आम चुनमें एक बार फिर यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई. इस सीट से कमलापति त्रिपाठी ने जीत हासिल की. लेकिन 1984 में कांग्रेस ने उम्मीदवार बदल दिया और श्यामलल यादव को मैदान में उतारा. इस बार श्यामलाल यादव सांसद चुने गए. लेकिन साल 1989 में पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री को जनता दल नेमैदान में उतारा और उन्होंने जीत हासिल की. साल 1991 में बीजेपी के शिरीष चंद्र दीक्षित ने जीत हासिल की. इसके बाद लगातार तीन चुनाव साल 1996, 1998 और 1999 में बीजेपी के शंकर प्रसाद जायसवाल सांसद चुने गए. साल 2004 में कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने जीत हासिल की और साल 2009 में बीजेपी के मुरली मनोहर जोशी कोजीत मिली. साल 2014 से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस सीट का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

कब कौन रहा सांसद

1952       रघुनाथ सिंह : कांग्रेस

1957       रघुनाथ सिंह : कांग्रेस

1962       रघुनाथ सिंह : कांग्रेस

1967       सत्यनारायण सिंह : भाकपा

1971       राजाराम शास्त्री : कांग्रेस

1977       चंद्रशेखर : जनता पार्टी

1980       कमलापति त्रिपाठी : कांग्रेस (इंदिरा)

1984       श्यामलाल यादव : कांग्रेस

1989       अनिल कुमार शास्त्री :         जनता दल

1991       शिरीषचंद्र दीक्षित : भाजपा

1996       शंकर प्रसाद जायसवालः भाजपा

1998       शंकर प्रसाद जायसवाल : भाजपा

1999       शंकर प्रसाद जायसवाल : भाजपा

2004       डॉ. राजेश कुमार मिश्रा : कांग्रेस

2009       डॉ. मुरली मनोहर जोशीः भाजपा

2014       नरेंद्र मोदीः भाजपा

2019       नरेंद्र मोदी             भाजपा

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