आक्रांताओं की क्रूरता से भी ज्यादा खतरनाक है वक्फ बोर्ड के अधिकार
वक्फ
बोर्ड
की
संपत्तियों
को
लेकर
विवाद
नया
नहीं
हैं।
अंग्रेजों
के
शासनकाल
के
दौरान
वक्फ
की
संपत्ति
पर
कब्जे
को
लेकर
विवाद
इतना
बढ़ा
कि
यह
लंदन
स्थित
प्रिवी
काउंसिल
तक
पहुंचा।
इसके
बाद
ब्रिटेन
में
चार
जजों
की
बेंच
बैठी
और
वक्फ
को
अवैध
करार
दे
दिया।
हालांकि
इस
फैसले
को
भारत
में
राज
कर
रही
ब्रतानिया
सरकार
ने
नहीं
माना
था
और
उसी
के
नक्शे
कदम
पर
चल
रही
कांग्रेस
के
रणबांकुरों
या
यूं
कहे
2013 में
बाबरी
मस्जिद
की
शहादत
से
खफा
एकमुस्त
वोटबैंक
को
अपने
पाले
में
लाने
के
लिए
यूपीए
की
सरकार
में
वक्फ
बोर्ड
को
असीमित
अधिकार
दे
दिया।
हाल
यह
हो
गया,
भूमाफिया
या
यूं
कहे
मुस्लिम
आक्रांताओं
की
तर्ज
पर
जिस
खाली
पड़ी
जमीन
पर
वक्फ
बोर्ड
ने
ताक
भर
दिया,
वह
उसके
नाम
हो
गयी।
सीधे
शब्दों
में
कहें
तो
वक्फ
बोर्ड
के
पास
मुस्लिम
चैरिटी
के
नाम
पर
संपत्ति
पर
दावा
करने
के
असीमित
अधिकार
हैं।
वक्फ
मैनेजमेंट
सिस्टम
ऑफ
इंडिया
के
आंकड़ों
के
मुताबिक,
इस
समय
वक्फ
बोर्ड
के
पास
कुल
8,54,509 संपत्तियां हैं जो
आठ
लाख
एकड़
से
ज्यादा
जमीन
पर
फैली
हुई
हैं।
आपको
जानकर
हैरानी
होगी
कि
सेना
और
रेलवे
के
बाद
सबसे
ज्यादा
जमीन
वक्फ
बोर्ड
के
पास
है।
वर्ष
2009 में
वक्फ
बोर्ड
की
संपत्तियां
चार
लाख
एकड़
जमीन
पर
फैली
हुई
थीं।
जो
अब
दोगुनी
से
भी
ज्यादा
हो
गई
हैं।
जबकि
देश
में
जमीनें
उतनी
ही
हैं
जितनी
पहले
थीं।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
वक्फ
बोर्ड
की
जमीनें
सुरसा
के
मुंह
से
भी
ज्यादा
तेजी
से
कैसे
बढ़
रही
हैं?
सुरेश गांधी
वक्फ बोर्ड देश में जहां भी कब्रिस्तान की चारदीवारी करवाता है, उसके आसपास की जमीन को अपनी संपत्ति मानता है। इसी तरह अवैध रूप से बने दरगाहों और मस्जिदों को भी वक्फ बोर्ड धीरे-धीरे अपनी संपत्ति घोषित कर रहा है। सरल भाषा में लोग इसे अतिक्रमण कहते हैं और इस अतिक्रमण पर वक्फ बोर्ड का अधिकार है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक वक्फ बोर्ड जमीन के मामले में रेलवे और कैथोलिक चर्च के बाद तीसरे स्थान पर है। आंकड़ों के मुताबिक वक्फ बोर्ड के पास आठ लाख एकड़ से ज्यादा जमीन है। वर्ष 2009 में यह जमीन चार लाख एकड़ हुआ करती थी, जो कुछ वर्षों में बढ़कर दोगुनी हो गई है। इन जमीनों में ज्यादातर मस्जिद, मदरसा, और कब्रगाह हैं। दिसंबर 2022 तक वक्फ बोर्ड के पास कुल 8,65,644 अचल संपत्तियां थीं।
दरअसल, बंटवारे के बाद पाकिस्तान से जो हिंदू भारत आए, उनकी पाकिस्तान में मौजूद संपत्तियों पर मुसलमानों और पाकिस्तान सरकार का कब्जा था. लेकिन भारत सरकार ने भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों की जमीन वक्फ बोर्ड को दे दी. जिसके बाद साल 1954 में वक्फ बोर्ड एक्ट बनाया गया. लेकिन साल 1995 में वक्फ बोर्ड एक्ट में बदलाव करके वक्फ बोर्ड को जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए गए. जिसके बाद वक्फ बोर्ड की संपत्ति में इजाफा हुआ. आम मुस्लिम, गरीब मुस्लिम महिलाएं, तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के बच्चे, शिया, बोहरा जैसे समुदाय लंबे समय से कानून में बदलाव की मांग कर रहे थे. इन लोगों का कहना था कि वक्फ में आज आम मुसलमानों की जगह ही नहीं है. सिर्फ पावरफुल लोगों के पास ही भूमि है।2018 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष कहा
कि ताजमहल का स्वामित्व सर्वशक्तिमान
(।सउपहीजल) के पास है,
और व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए इसे
सुन्नी वक्फ बोर्ड की
संपत्ति के रूप में
सूचीबद्ध किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा शाहजहां से हस्ताक्षरित दस्तावेज़
प्रस्तुत करने के लिए
कहे जाने पर, इस
निकाय ने दावा किया
कि स्मारक सर्वशक्तिमान का है, और
उनके पास कोई हस्ताक्षरित
दस्तावेज़ नहीं है, लेकिन
उन्हें संपत्ति का अधिकार दिया
जाना चाहिए. 2013 में, इस अधिनियम
में और संशोधन किया
गया, ताकि वक्फ बोर्डों
को किसी की भी
संपत्ति छीनने के असीमित अधिकार
दिए जा सकें, जिसे
किसी भी अदालत में
चुनौती भी नहीं दी
जा सकती. सीधे शब्दों में
कहें तो वक्फ बोर्ड
के पास मुस्लिम दान
के नाम पर संपत्ति
का दावा करने के
असीमित अधिकार हैं. इसका सीधा
मतलब यह था कि
एक धार्मिक निकाय को असीमित अधिकार
दिए गए थे, जिसने
वादी को न्यायपालिका से
न्याय मांगने से भी रोक
दिया. 1954 में पहला वक्फ
आया और 1995 में संशोधन हुआ.
भारत सरकार ने वक्फ बोर्ड
अधिनियम 1954 के तहत भारत
से पाकिस्तान गए मुसलमानों की
जमीन वक्फ बोर्ड को
दे दी.
1991 में बाबरी विध्वंस की भरपाई के लिए 1995 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने वक्फ बोर्ड अधिनियम में बदलाव करके वक्फ बोर्ड. को जमीन अधिग्रहण के असीमित अधिकार दे दिए. इसके बाद 2013 में संशोधन हुआ जो सबसे अहम था. अप्रभावी होने के कारण इसकी कटु आलोचना भी हुई. इसकी वजह से अतिक्रमण, कुप्रबंधन, स्वामित्व से जुड़े विवाद, और पंजीकरण एवं सर्वेक्षण में देरी जैसी गंभीर समस्याएं सामने आई हैं। कांग्रेस सरकार ने मार्च 2014 में लोकसभा से ठीक पहले राष्ट्रीय राजधानी में 123 प्रमुख संपत्तियों को दिल्ली वक्फ बोर्ड को उपहार में दिया. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2014 में राष्ट्रीय वक्फ विकास निगम लिमिटेड के शुभारंभ के दौरान कहा था कि वक्फ बोर्ड के तहत संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय के सामाजिक-आर्थिक विकास और लाभ के लिए कियया जा सकता है.
यहां जिक्र करना जरुरी है कि ’वक्फ’ अरबी भाषा के ’वकुफा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है ठहरना. वक्फ का मतलब, दरअसल उन संपत्तियों से है जो इस्लामी कानून के तहत विशेष रूप से धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित हैं. इस्लाम में ये एक तरह का धर्मार्थ बंदोबस्त है. वक्फ उस जायदाद को कहते हैं, जो इस्लाम को मानने वाले दान करते हैं. ये चल-अचल दोनों तरह की हो सकती है. ये दौलत वक्फ बोर्ड के तहत आती है. जैसे ही संबंधित संपत्ति का स्वामित्व बदलता है तो यह माना जाता है कि यह संपत्ति मालिक से अल्लाह को हस्तांतरित हो गई है. इसके साथ ही यह अपरिवर्तनीय हो जाता है. ‘एक बार वक्फ, हमेशा एक वक्फ’ का सिद्धांत यहां लागू होता है, यानि- एक बार जब किसी संपत्ति को वक्फ घोषित कर दिया जाता है, तो वह हमेशा वैसी ही रहती है.
इस काले कानून
यानी वक्फ बोर्ड अधिनियम
में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार बड़े
संशोधन करने के लिए
तैयार है. केंद्रीय मंत्रिमंडल
ने अधिनियम में लगभग 40 संशोधनों
को मंजूरी दे दी है,
जिसे वक्फ बोर्ड की
शक्तियों को फिर से
परिभाषित करने की दिशा
में अहम कदम माना
जा रहा है. कहा
जा रहा है कि
केंद्र सरकार वक्फ़ बोर्ड की
किसी भी संपत्ति को
“वक्फ संपत्ति“ बनाने की शक्तियों पर
अंकुश लगाना चाहती है. 40 प्रस्तावित संशोधनों के अनुसार वक्फ़
बोर्डों द्वारा संपत्तियों पर किए गए
दावों का अनिवार्य रूप
से सत्यापन किया जाएगा. सरकार
के इस कदम का
मुस्लिम परर्सनल लॉ बोर्ड ने
विरोध किया है और
कहा है कि वक्फ
बोर्ड की कानूनी स्थिति
और शक्तियों में किसी भी
तरह का हस्तक्षेप बर्दाश्त
नहीं किया जाएगा। जबकि
केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों में किसी भी
संपत्ति के वक्फ बोर्ड
से संबंधित होने पर न्यायिक
जांच होगी. इसके अतिरिक्त इस
तरह की संपत्ति के
मूल्यांकन के लिए जिला
कलेक्टरों के पास रजिस्ट्रेशन
कराना होगा. ऐसा माना जा
रहा है की नए
नियमों के अनुसार महिलाओं
को भी वक्फ बोर्ड
में शामिल होने का अधिकार
मिलेगा. इसके साथ ही
इस संसोधन कानून को सरकार नया
नाम भी दे सकती
है. रिपोर्ट्स की मानें तो
संशोधन विधेयक के माध्यम से
सरकार गरीब एवं वंचित
मुसलमानों के हित में
कार्य करने जा रही
है. यह अलग बात
है कि सांसद असदुद्दीन
ओवैसी इस ऐक्ट में
संशोधन को लेकर खफा
हैं। उनका है कि
केंद्र सरकार वक्फ बोर्ड की
ऑटोनमी छीनना चाहती है और उसमें
दखल देना चाहती है.
उन्होंने कहा कि यह
धर्म की स्वतंत्रता के
खिलाफ है. उन्होंने कहा
कि बीजेपी हमेशा से इस बोर्ड
और वक्फ की संपत्तियों
के खिलाफ रही हैं और
उनका हिंदुत्व का अजेंडा है.
भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष
देश में वक्फ एक्ट
जैसा धार्मिक कानून कैसे लागू हो
गया? सवाल यह है
कि हिंदू, ईसाई और सिखों
के लिए ऐसा कोई
एक्ट क्यों नहीं है? सिर्फ
मुसलमानों के लिए ही
क्यों? विडंबना देखिए कि साल 1991 में
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट
बना जो कहता है
कि देश की आजादी
के समय जो धार्मिक
स्थल थे, उन्हें वैसे
ही बरकरार रखा जाएगा। वहीं,
1995 में वक्फ एक्ट लागू
होता है जो देशभर
के वक्फ बोर्ड को
किसी भी संपत्ति पर
अपना हक जताने का
अधिकार देता है और
इसके खिलाफ पीड़ित पक्ष देश की
किसी भी अदालत में
अपील भी नहीं कर
सकता। यह सुनकर अजीब
लगता है कि धर्मनिरपेक्ष
देश में ऐसा कानून
है, जबकि किसी मुस्लिम
देश में ऐसा कोई
कानून नहीं है। तुर्की,
लीबिया, मिस्र, सूडान, लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और इराक जैसे
मुस्लिम देशों में न तो
वक्फ बोर्ड है और न
ही वक्फ कानून। भारत
में भी वक्फ कानून
के लिए कोई जगह
नहीं होनी चाहिए। सरकार
को वक्फ कानून को
निरस्त कर देना चाहिए
क्योंकि यह स्पष्ट रूप
से असंवैधानिक है। उत्तर प्रदेश
में वक्फ की संपत्तियों
की जांच होगी। राज्य
सरकार ने इसके आदेश
जारी कर दिए। इस
सर्वे को एक महीने
में पूरा करने के
लिए कहा गया है।
इसके लिए उत्तर प्रदेश
सरकार ने वक्फ बोर्ड
से जुड़ा 33 साल पुराना आदेश
रद्द कर दिया है।
ये आदेश सात अप्रैल
1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जारी किया
था।
सरकार सात अप्रैल 1989 के बाद वक्फ सम्पत्ति के रूप में दर्ज सभी मामलों का पुर्नपरीक्षण भी करवाएगी। दरअसल, सात अप्रैल, 1989 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक आदेश जारी किया था। इसमें कहा गया था कि यदि सामान्य संपत्ति बंजर, भीटा, ऊसर आदि भूमि का इस्तेमाल वक्फ के रूप में किया जा रहा हो तो उसे वक्फ संपत्ति के रूप में ही दर्ज कर दिया जाए। इसके बाद उसका सीमांकन किया जाए। इस आदेश के चलते प्रदेश में लाखों हेक्टेयर बंजर, भीटा, ऊसर भूमि वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज कर ली गईं। प्रदेश सरकार का कहना है कि संपत्तियों के स्वरूप अथवा प्रबंधन में किया गया परिवर्तन राजस्व कानूनों के विपरीत है।
बीते दिनों राजस्व परिषद के प्रमुख सचिव
सुधीर गर्ग ने 33 साल
पुराने आदेश को समाप्त
कर दस्तावेजों को दुरुस्त करने
के निर्देश दिए थे। अब
अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ अनुभाग
के उप सचिव शकील
अहमद सिद्दीकी ने सभी मंडलायुक्तों
और जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर
इस तरह के सभी
भूखंडों की सूचना एक
माह में मांगी है।
साथ ही अभिलेखों को
भी दुरुस्त करने के निर्देश
दिए हैं। उप सचिव
का कहना है कि
शासन द्वारा एक बार फिर
से उत्तर प्रदेश मुस्लिम वक्फ अधिनियम 1960 को
लागू करते हुए वक्फ
बोर्ड की सभी संपत्तियों
का रिकॉर्ड मेंटेन किया जाएगा। ऐसी
संपत्तियों के रिकॉर्ड में
कब्रिस्तान, मस्जिद, ईदगाह जैसी स्थिति में
सही दर्ज है या
नहीं, इन सबका अवलोकन
किया जाएगा।
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