जीवनदायिनी के नाम पर नकली दवाएं बांट रही मौत
आजतक
आपने
फैक्ट्रियों
में
नकली
दूध,
नकली
मावा,
नकली
घी-तेल,
नकली
मसालों
को
बनते
हुए
देखा
होगा।
लेकिन
अब
जीवनदायिनी
दवा
भी
बाजार
में
नकली
मिल
रही
है।
नकली
दवाओं
के
सौदागर
बेरोकटोक
मौत
बांट
रहे
है।
परिणाम
रोगियों
की
जान
जोखिम
में
है.
खासकर
कैंसर
जैसी
घातक
बीमारी
की
भी
नकली
और
अवैध
दवाएं
रोगियों
को
जीवनदान
देने
की
जगह
धीरे-धीरे
मौत
की
तरफ
ढकेल
रही
है।
मतलब
साफ
है
चंद
रुपयों
की
मुनाफे
के
चलते
दवा
कंपनियां
आम
जनमानस
के
जीवन
के
साथ
खिलवाड़
कर
रही
है।
जबकि
मरीज
इस
उम्मीद
में
दवा
लेते
हैं
कि
इससे
उनकी
बीमारी
ठीक
होगी।
लेकिन
उन्हें
क्या
पता
जिन
दवाइयों
का
वे
सेवन
कर
रहे
हैं
वे
दवा
नहीं
बल्कि
जहर
के
रूप
में
बाजार
में
बिक
रही
हैं।
विश्व
स्वास्थ्य
संगठन
के
अनुसार,
नकली
दवाइयों
का
एक
बड़ा
हिस्से
पर
कब्जा
है।
सिर
दर्द
और
सर्दी-जुकाम
की
ज्यादातर
दवाएं
या
तो
नकली
हैं
या
फिर
घटिया
किस्म
की।
खाद्य
सुरक्षा
एवं
औषधि
प्रशासन
विभाग
के
आंकड़ों
के
मुताबिक
भारत
के
दवा
बाजार
में
दस
फीसद
से
अधिक
नकली
दवाएं
झोंक
दी
गई
हैं।
38 फीसद
दवाएं
मानकों
के
अनुरूप
न
होने
के
कारण
पर्याप्त
असर
नहीं
करती
हैं।
केंद्रीय
स्वास्थ्य
मंत्रालय
के
निर्देश
पर
नेशनल
इंस्टीट्यूट
ऑफ
बायोलॉजिकल्स
के
एक
सर्वे
में
बाजार
से
ज्यादा
दवाओं
की
खराब
गुणवत्ता
सरकारी
अस्पतालों
में
मिली
सुरेश गांधी
इस धरती पर सबसे खूबसूरत चीज है जिंदगी और जिंदगी में जरूरी होती है, उम्मीद और भरोसा. अगर उम्मीद और भरोसा टूटता है तो हमारी जिंदगी में निराशा आ जाती है. एड्स, कैंसर, हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज, डेंगू आदि ऐसी बीमारी है जिसका नाम सुनकर ही मरीज और उनका परिवार घबरा जाता है. मरीज का तो मनोबल ही टूटने लगता है. लेकिन उन्हें दवा और डॉक्टर से ठीक होने का भरोसा हैं और दुआ, स्वस्थ होने की उम्मीद. लेकिन अब आप सोचिये कि दुआ सच्ची है, डॉक्टर का भरोसा अटूट है पर जब दवा ही नकली है तो क्या होगा? ना तो दुआ काम आएगी, ना ही डॉक्टर की मेहनत रंग लाएगी. मतलब साफ है दवा, जो बीमार व्यक्ति के लिए किसी संजीवनी बूटी की तरह होती है, वो दवा अगर नकली हो तो मरीज के लिए एक जहर की तरह है. लेकिन पैसे की हवस में किसी की जिंदगी तक से खिलवाड़ करने का पूरा सिंडिकेट भारत में चल रहा है। नामी देशी और विदेशी कंपनियों की ब्रैंडेड नकली दवाएं बाजार में धड़ल्ले से बिक रही है, जिसे जनता खरीद रही है। जांच एजेंसियों की मानें तो हिमाचल के मंडी सहित हैदराबाद, पूणे, मुंबई, मेरठ, आगरा, दिल्ली सहित वाराणसी में भी नकली दवाएं बन रही है, जिसे इसके मास्टरमाइंड बाजार में धड़ल्ले से बेच रही है। जबकि नकली दवाओं की बिक्री बेहद गंभीर मामला है, लेकिन ये आसानी से पकड़ में नहीं आ पाता। इसकी वजह है कमजोर निगरानी सिस्टम।
बता दें, देश
में नकली और मिलावटी
दवाओं पर रोक लगाने
के लिए औषधि एवं
प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 में दंड और
जुर्माने का प्रविधान है।
इसके अंतर्गत नकली दवाओं से
रोगी की मौत या
गंभीर चोट पर आजीवन
कारावास की सजा है।
मिलावटी या बिना लाइसेंस
दवा बनाने पर पांच साल
की सजा का प्रविधान
है। इस अधिनियम के
अंतर्गत स्थापित केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण
संगठन दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों और चिकित्सा उपकरणों
का राष्ट्रीय नियामक है। भारत के
औषधि महानियंत्रक दवाओं के निर्माण, बिक्री,
आयात और वितरण से
जुड़े मानक निर्धारित करते
हैं। यह राज्यों के
खाद्य एवं औषधि नियामक
प्राधिकरणों के साथ समन्वय
भी स्थापित करता है। राज्य
स्तर पर औषधि नियंत्रक
एवं जिलों में निरीक्षक दवाओं
की गुणवत्ता निर्धारित करने वाली सबसे
अहम कड़ी हैं। इतना
ही नहीं देश के
अलग-अलग राज्यों में
29 दवा परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं। इसके अलावा
आठ केंद्रीय लैब भी स्थापित
हैं। मिलावटी दवाओं पर रोक लगाने
के लिए संसाधनों की
कमी नहीं है। ऐसे
मामलों में राजनीतिक दबाव
से मुक्त होकर नियामक एजेंसियों
द्वारा कार्रवाई किए जाने की
आवश्यकता है। एक साधारण
व्यक्ति के लिए यह
समझ पाना आसान नहीं
कि किसी दवा का
रासायनिक संयोजन क्या है। मरीजों
को दवाओं के बारे में
जरूरी और स्पष्ट जानकारी
भी नहीं दी जाती।
नकली दवा बेचने
वाले दोषियों को 1 वर्ष से
लेकर उम्रकैद तक की सजा
हो सकती है. साथ
ही 10 लाख का जुर्माना
भी लगेगा. इसके बावजूद देश
में नकली दवा का
कारोबार धड़ल्ले से जारी है.
जबकि ड्रग कंट्रोल डिपार्टमेंट
की ये जिम्मेदारी है
कि वह नकली दवाओं
की खरीद फरोख्त करने
वालों को पकड़े। लेकिन
अमूमन ऐसा कम ही
देखने को मिलता है
कि उसने छापेमारी की
हो। अगर नियमित तौर
पर ये डिपार्टमेंट जांच
पड़ताल करे तो नकली
दवाएं बेचने वालों की लगाम कसी
जा सकती है। बेशक,
नकली दवाएं बिकना गंभीर मामला है, क्योंकि ये
मरीजों के लिए जानलेवा
साबित होता है। ऐसे
में जरूरी है निगरानी सिस्टम
को दुरुस्त किया जाए। देखा
जाएं तो कैंसर का
इलाज जितना मुश्किल है, उतना ही
मुश्किल कैंसर के ईलाज और
दवाइयों का खर्च उठाना
होता है क्योंकि कैंसर
में कीमोथीरेपी के लिए दिये
जाने वाले दवाइयों की
कीमत हजारों से लेकर लाखों
रुपये तक होती हैं.
इसी वजह से नकली
दवाइयों के सौदागरों के
लिए कैंसर की नकली दवाइयों
का व्यापार फायदे का सौदा बन
जाता है. जबकि पैसों
के लिए किसी मरीज
की जिंदगी को खतरे में
डालना, हत्या से कम अपराध
नहीं है. लेकिन नकली
दवा माफियाओं के लिए ये
नोट छापने का मौका होता
है. उन्हें मरीज की ज़िंदगी
से कोई मतलब नहीं
रहता. और डरने की
बात तो ये है
कि नकली दवा माफिया
का नेटवर्क पूरे देश में
कैंसर की तरह फैला
हुआ है.
सूत्रों की मानें तो कैंसर के ट्रीटमेंट में होने वाली कीमोथेरेपी की नकली दवाएं बाजार में ज्यादा है। सूत्रों के मताबिक इसके कारोबारी दवा की शीशी 5000 रुपये में खरीदते और उसमें 100 रुपये की नकली दवा भरकर दवा को 1 से 3 लाख रुपये तक में बेचते है। छापे के दौरान कई ऐसे मामले आए हैं जहां नकली दवा पकड़ी गई है. खास यह है कि आजकल लोग बिना डॉक्टरों की सलाह के मेडिकल स्टोर से दवाएं लाकर खाते हैं. इनमें सर्दी-खांसी या जुकाम की दवाएं ज्यादा होती है। हालांकि फार्मा विशेषज्ञों का कहना है कि दवा असली है या नकली इसकी सही पहचान तो लैब में ही हो सकती है, लेकिन फिर भी कुछ तरीके हैं जो दवा के बारे में जानकारी दे सकते हैं. जब भी आप कोई दवा खरीदकर लाएं तो उसका क्यूआर कोड देख लें. 100 रुपये से अधिक कीमत वाली दवा पर क्यूआर कोड जरूर होता है. जिस दवा पर कोड नहीं है उसको न खरीदें. बिना क्यूआर कोड वाली दवा नकली हो सकती है.
या यूं कहे जब दवा खरीदकर लाएं तो उसका नाम इंटरेनट पर जरूर पढ़ लें. अब देखें कि जो दवा आप खरीदकर लाएं हैं उसकी पैकेजिंग और वर्तनी में कोई गड़बड़ तो नहीं है. पहले जो दवा खाते थे उसकी तुलना में पैकेट के आकार में कोई बदलाव तो नहीं है और कहीं दवा के साइज में कोई अंतर तो नजर नहीं आ रहा है. यह भी देखें कि जो दवाई आप खरीदकर ला रहे हैं वह सील पैक है या फिर नहीं है. अगर सील बंद नहीं है तो फार्मासिस्ट से इसकी जांच कराएं. जो दवा सील पैक नहीं है वह नकली भी हो सकती है. कई बार तो पर्चे पर लिखी दवा का नाम उच्च शिक्षित व्यक्ति भी नहीं पढ़ पाता। इसके लिए नियामकों द्वारा समय-समय पर चिकित्सकों को दवाओं के नाम स्पष्ट अक्षरों में लिखने के निर्देश दिए गए हैं। मरीज को लिखी गई दवाओं में किसका क्या काम है, यदि यह जानकारी चिकित्सक द्वारा मरीज को दी जाए तो आपूर्ति तंत्र में घटिया दवाओं की मौजूदगी थमेगी। इससे चिकित्सक-मरीज के बीच भरोसा भी बढ़ेगा।अच्छी दवा और कंपनी
की जो दवा होती
है वह हमेशा फ़ैक्टरी-निर्मित दिखाई देंगी और उनपर सही
ब्रांड नेम लिखा होगा,
लेकिन आपकी आपकी गोलियां
फटी हुई हैं, उन
पर बुलबुले जैसी कोटिंग है
और वे भुरभुरी हैं,
तो ध्यान दें. ये भी
देखें कि सफेद दवाएं
ज्यादा चमकीली तो नहीं है.
ये संकेत है कि दवा
नकली हो सकती है.
मेडिकल स्टोर से दवा खरीदते
वक्त इस बात का
ध्यान रखें कि असली
दवाओं पर क्यूआर कोड
प्रिंट किया जाता है।
इन दवाओं पर एक खास
तरह का कोड प्रिंट
होता है, जिसमें दवा
के बारे में पूरी
जानकारी और सप्लाई चेन
की पूरी डिलेट दी
गई होती है। ऐसे
में जब भी आप
दवा खरीदें तो ये चेक
कर लें कि आपकी
मेडिसिन पर ये कोड
मौजूद है या नहीं।
हाल में हुए जांच
में 53 दवाओं के सैंपल फेल
होने की खबर आने
के बाद आम लोगों
के मन में डर
बैठ गया है कि
वे जो दवाएं ले
रहे हैं कहीं वे
नकली तो नहीं हैं.
उनका डर जायज भी
है क्योंकि एक अध्ययन के
मुताबिक देश में बिकने
वाली करीब 25 फीसदी दवाएं नकली हैं. नकली
होने से मतलब है
कि फर्जी कंपनियों द्वारा नामी कंपनियों के
लेबल की नकल कर
इन दवाओं की बाजार में
सप्लाई की जा रही
है. सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन की एक रिपोर्ट
सामने आई है. जिसमें
बताया गया है कि
आम बुखार की दवा पैरासिटामोल
सहित 53 दवाएं ऐसी हैं जिनके
सैंपल लैब जांच में
फेल हो गये. दवाओं
के नाम पर सब-स्टैंडर्ड सॉल्ट बेचे जा रहे
थे. इनमें पेनकिलर डिक्लोफेनेक, एंटीफंगल दवा फ्लुकोनाजोल, विटामिन
डी सप्लीमेंट, बीपी और डायबिटीज
की दवा, एसिड रिफलक्स
आदि शामिल हैं. सभी दवाएं
नामी कंपनियों के लेबल में
आई थीं.जब संबंधित
कंपनियों से स्पष्टीकरण मांगा
तो कंपनियों ने कहा कि
लेबल पर जो बैच
लिखा हुआ है उसका
निर्माण उनके द्वारा नहीं
किया गया है, यानी
उनके नाम पर कोई
फर्जी कंपनी नकली दवा बाजार
में सप्लाई कर रही है.
इतना ही नहीं, रिपोर्ट
में कहा गया है
कि देश में नकली
दवाओं का कारोबार सलाना
33 प्रतिशत की औसत दर
से बढ़ रहा है.
यह 2005 में 67.85 करोड़ डॉलर (30 अरब
रुपये) से बढ़कर 2023 में
80 अरब रुपये पर पहुंच गया
है. रिपोर्ट में यह बताया
गया था कि सरकारी
अस्पतालों में सबसे ज्यादा
38 प्रतिशत दवाएं नकली पाई गई
थीं.
दावा है कि
भारतीय बाजार में बिकने वाली
हर 4 में से 1 दवा
नकली है. वर्ष 2014 में
भारत में नकली दवाओं
का कारोबार सवा चार बिलियन
डॉलर का था. जो
वर्ष 2022 में बढ़कर 17 मिलियन
डॉलर हो चुका है.
वर्ष 2019 में सर्वे रिपोर्ट
में बताया था की दुनिया
में सबसे ज्यादा नकली
दवाइयां भारत में बनती
और बिकती हैं. भारत में
निकलने वाली कुल दवाओं
में 20 प्रतिशत दवाएं नकली होती हैं.
अमानक पाई गई दवाइयों
के मामले तो तब आए
हैं जब पहले से
ही दवाओं की गुणवत्ता तय
करने के लिए कई
सख्त प्रक्रियाएं होती हैं। इनमें
कच्चे माल की जांच
और निर्माण प्रक्रिया का निरीक्षण तक
शामिल होता है। इसके
बावजूद नामी दवा निर्माता
कंपनियों के उत्पाद भी
मानकों पर खरे नहीं
उतरें तो यह माना
जाना चाहिए कि कम लागत
में ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में
ये कंपनियां नैतिकता को ताक पर
रखने लगी है। केन्द्रीय
औषधि नियंत्रण संगठन ने दवाओं की
सुगम आपूर्ति के लिए अमरीका,
ऑस्ट्रेलिया, जापान, कनाडा व यूरोपीय संघ
के कुछ चुनिंदा देशों
से आयातित दवाओं को नियमित नमूना
परीक्षण से छूट दी
है, वहीं देश के
बाजारों में पहुंची दवा
निर्माता कंपनियों की दवाओं में
मिलने वाली यह खोट
हमारी छवि पर विपरीत
असर डालने वाली है। अमानक
दवाइयों को बाजार तक
पहुंचने देने के लिए
जिम्मेदारों पर सख्ती होनी
ही चाहिए। चिंता यह भी कि
नामी कंपनियों की ब्रांड वाली
नकली दवाइयां भी बाजार में
कम नहीं हैं। ताजा
मामले में भी पांच
दवा कंपनियों का कहना है
कि बाजार में उनके ब्रांड
के नाम से नकली
दवाइयां बेची जा रही
हैं। दवा परीक्षण में
किसी भी स्तर पर
लापरवाही अक्षम्य ही है क्योंकि
दवा कारोबार में हेराफेरी का
खेल लोगों की जान का
दुश्मन बन सकता है।
एक अनुमान के मुताबिक जल्द
ही भारतीय दवा बाजार 60.9 अरब
डालर के स्तर को
पार कर जाएगा। ऐसे
में अपने मुनाफे के
लिए लोगों की सेहत से
खिलवाड़ करने वालों पर
समय रहते सख्त कार्रवाई
करनी होगी। नकली दवाओं को
बनाना-बेचना भ्रष्टाचार ही नहीं मानवीय
सेहत के लिए एक
बड़ा खतरा भी है।
ऐसे में नियामकीय व्यवस्था
को मजबूत बनाकर ही नकली और
मिलावटी दवाओं से निजात मिलेगी।
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