श्री काशी विश्वनाथ धाम में अब चावल के आटे का मिलेगा तंदूल महाप्रसादम
विजयादशमी के
शुभ
मौके
पर
इस
विशिष्ट
प्रसाद
को
श्री
काशी
विश्वनाथ
जी
की
भोग
आरती
में
अर्पित
करने
के
बाद
मंदिर
परिसर
में
ही
लगे
स्टालों
से
बिक्री
शुरू
शुरु
हो
गया
है
इस प्रसाद
में
सभी
गुणवत्ता
मानकों
का
अनुपालन
सुनिश्चित
करते
हुए
सनातन,
शास्त्रीय
एवं
परंपरागत
मान्यताओं
का
समावेश
किया
गया
है
दावा : इस
प्रसादम
से
श्रद्धालुओं
को
मंदिर
की
आध्यात्मिक
ऊर्जा
भी
मिलेगी
खास यह
है
कि
प्रसाद
में
श्री
काशी
विश्वनाथ
को
अर्पित
बिल्व
पत्र
का
अंश
भी
होगा
प्रसाद के
निर्माण
में
श्री
काशी
विश्वनाथ
ट्रस्ट
एवं
बनास
डेयरी
(अमूल)
से
समझौता
किया
गया
है
सुरेश गांधी
वाराणसी। श्री काशी विश्वनाथ
मंदिर धाम में अब
चावल के आटे का
महाप्रसादम मिलेगा। शनिवार को विजयादशमी के
शुभ मौके पर इस
विशिष्ट प्रसाद को श्री काशी
विश्वनाथ जी की भोग
आरती में अर्पित किया
गया। इसके बाद श्रद्धालुओं
के लिए मंदिर परिसर
में ही लगे स्टालों
से बिक्री शुरू शुरु हो
गया। इस प्रसाद का
नाम तंदूल महाप्रसादम रखा गया है।
श्री काशी विश्वनाथ ट्रस्ट
द्वारा सभी गुणवत्ता मानकों
का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए सनातन,
शास्त्रीय एवं परंपरागत मान्यताओं
का समावेश कर यह विशिष्ट
प्रसाद तैयार कराया गया है।
श्री काशी विश्वनाथ
ट्रस्ट के मुताबिक विद्वानों
की टीम ने शास्त्रों
के अध्ययन के बाद ही
चावल के आटे, चीनी
और बेल पत्र के
चूर्ण से प्रसाद बनाया
का निर्णय लिया गया है।
जो बेल पत्र बाबा
विश्वनाथ को चढ़ाया जाता
है, उसी का चूर्ण
बनाकर प्रसादम में मिलाया गया
है। प्रसादम बनाने के नियमों का
सख्त रखा गया है।
न्यास द्वारा अपनी गत बैठकों
में निर्णय लिया गया था
कि मंदिर का स्वयं का
निर्मित प्रसाद होना चाहिए। प्रसाद
उन सामग्रियों से बना होना
चाहि,ए जो भगवान
शिव को शास्त्रों में
उल्लेखित वर्णन के अनुसार प्रिय
हैं और उनको अर्पित
किए जाते हैं। इसी
का अनुरोध समूचे देश के श्रद्धालुओं
के द्वारा भी काफी समय
से किया गया था।
इसी क्रम में कुछ
महीनों से काशी और
देश के कई जाने-माने विद्वानों के
द्वारा अलग-अलग शास्त्रों,
पुराणों व ग्रंथों का
अध्ययन के बाद यह
निर्णय लिया गया है।
जिन ग्रंथो और पुराणों का
अध्ययन किया गया है
उनमें शिव महापुराण, शिवर्चना
चंद्रिका, वीर मित्रोदयः, लिंग
पुराण,स्कन्द पुराण आदि सम्मिलित हैं।
इन सबके सार के
रूप में तंडुल, अक्षत
या चावल का प्रसाद
शिव जी को अर्पित
करना सर्वोत्तम बताया गया है। इसके
आधार पर जो प्रसाद
तैयार किया गया है
उसे तंदूल महाप्रसाद का नाम दिया
गया है। तंडुल, अक्षत
या चावल का प्रसाद
शिव जी को अर्पित
करना सर्वोत्तम है।
दावा है कि
इस प्रसादम से श्रद्धालुओं को
मंदिर की आध्यात्मिक ऊर्जा
भी मिलेगी। इस प्रसाद का
विशेष घटक तंदुल या
चावल है, जो शिव
को अत्यंत प्रिय है। साथ ही
इसमें देशी घी का
प्रयोग किया गया है।
इसमें विशेष रूप से उन
बेल पत्रों का उपयोग गया
गया है, जो भगवान
विश्वेश्वर को अर्पित किए
जाते है। इससे मंदिर
की आध्यात्मिक ऊर्जा उसमें समाहित हो जायेगी। वैसे
भी बेल पत्र सनातन
परंपरा में पवित्र माने
जाते हैं और भगवान
शिव की पूजा में
उनका विशेष महत्व है। इसके प्रत्येक
लड्डू में श्री काशी
विश्वनाथ को अर्पित बिल्व
पत्र का अंश होगा
इसलिए प्रत्येक लड्डू श्री काशी विश्वनाथ
को अर्पित होने के समतुल्य
हो जाता है जो
इसकी प्रमुख विशेषता है। बिल्व पत्र
प्रसाद के साथ साथ
औषधीय रूप में भी
प्रसाद ग्रहण करने वालों को
लाभ पहुंचाएगा।
श्री काशी विश्वनाथ
ट्रस्ट द्वारा प्रसाद निर्माण की पूरी प्रक्रिया
हेतु बनास डेयरी (अमूल)
वाराणसी से समझौता किया
गया है, जिसमें मंदिर
ट्रस्ट द्वारा उपलब्ध करवाई गई रेसिपी का
प्रसाद बनास डेयरी वाराणसी
द्वारा अपनी पिंडरा वाराणसी
स्थित फैक्ट्री में निर्मित किया
जाएगा। बनास डेयरी वाराणसी
में पूर्व से ही मिठाई
बनाने की यूनिट व
मशीन मौजूद हैं जिसमें लाल
पेडा, लौंग लता, रसगुल्ला
आदि मिठाई निर्मित की जाती हैं।
इसी प्रकार की एक मशीन
लाइन तंदूल महा प्रसाद के
लिए भी संरक्षित कर
दी गई है। बनास
डेयरी वाराणसी के द्वारा प्रसाद
हेतु सभी सर्टिफिकेशन और
एफएसएसएआई के मानकों के
अनुसार सर्टिफिकेशन करवा लिए गए
हैं। इसके सभी टेस्टिंग
के मानक पूर्ण करने
के उपरांत प्रसाद का निर्माण प्रारंभ
किया गया है। प्रसाद
निर्माण में जो देशी
घी प्रयुक्त होगा वह भी
उत्तर प्रदेश के दुग्ध उत्पादकों
के द्वारा दिए गए दूध
से ही निर्मित होगा।
प्रसाद निर्माण की पूरी प्रक्रिया
फ़ूड सेफ्टी के उच्चतम मानदंडों
के अनुपालन के साथ साथ
शास्त्रीय परिवेश में संपन्न की
जाय यह भी सुनिश्चित
किया गया है। इस
आशय से न्यास द्वारा
फैक्ट्री की 24 बाई 7 सीसीटीवी सर्विलांस की फीड, कार्मिकों
के सनातनी परंपरा की पृष्ठभूमि, सनातन
धर्म मे श्रद्धा, शिवजी
के दर्शन के पश्चात् ही
प्रसाद निर्माण की प्रक्रिया में
प्रतिभाग किया जाय इत्यादि
का ट्रस्ट व बनास डेयरी
के समझौते के नियमों में
समावेश किया गया है।
इस प्रक्रिया के पालन हेतु
उच्चतम हाइजीन के मानकों की
मॉनिटरिंग की जाएगी।
गुणवत्ता को रखेंगे ख्याल
इसकी निर्माण सामग्री,
पोषण, कैलोरी तथा शेल्फ लाइफ
आदि जानकारी बाहरी डिब्बे पर दी जाएगी।
प्रसिद्ध सहकारी क्षेत्र के उपक्रम, बनास
डेयरी की विनिर्माण फैसिलिटी
में उत्पादित यह प्रसाद किसानों
के सहकारी क्षेत्र के ही मार्केटिंग
फेडरेशन अमूल के नेटवर्क
के माध्यम से वितरित किया
जाएगा ताकि उसकी नकल
या मिलावट ना की जा
सके। प्रथमतः इसका विक्रय केवल
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर
परिसर में स्थित अमूल
के विशेष काउंटरों के माध्यम से
ही होगा, कुछ माह के
उपरांत इसे वाराणसी के
अन्य अमूल आउटलेट पर
भी विक्रय हेतु उपलब्ध करवाया
जाएगा। उत्पादन एवं विपणन हेतु
अनुबंधित दोनों ही संस्थान वाराणसी
तथा उत्तर प्रदेश में पूर्व से
ही सक्रिय हैं। इन दोनों
ही संस्थानों में बड़ी संख्या
में उत्तर प्रदेश के और विशेष
रूप से काशी के
दुग्ध उत्पादक, कृषक एवं व्यवसायी
स्टेक होल्डर के रूप में
सम्बद्ध हैं। इस प्रकार
इस प्रसाद के निर्माण एवं
वितरण में जन साझेदारी
को भी सम्मिलित किया
जाना सुनिश्चित किया गया है।
यह साझेदारी प्रसाद की उच्च गुणवत्ता
और प्रामाणिकता को और भी
सुनिश्चित करेगी। इस प्रकार यह
प्रसाद सर्वोत्तम सामग्री और सनातन आचार
का पालन करते हुए
बनाया जाएगा तथा विस्तृत परीक्षण
के पश्चात् ही प्रतिदिन मंदिर
में उपलब्ध होगा। मंदिर प्रबंधन की शर्तों के मुताबिक, प्रसादम बनाने में सिर्फ हिंदू कारीगर ही लगाए जाएंगे। धार्मिक मान्यता और नियमों के हिसाब से ही प्रसादम बनेगा। प्रसादम बनाने से पहले कारीगरों को स्नान करना अनिवार्य रहेगा। यह मामला ऐसे समय में सामने आया है, जब तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसादम की गुणवत्ता और उसमें मिलावट की जांच चल रही है।
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