हर सांस में तिरंगे की महक, हर कतरे में बलिदान की गाथा...
15 अगस्त का सूरज हमें यह याद दिलाने आता है कि हर सांस, हर कतरा उन शहीदों का है जिन्होंने हमारे लिए सबकुछ कुर्बान कर दिया। तिरंगा केवल लहरता नहीं, यह हमें पुकारता है कि अपने देश के लिए, अपने लोगों के लिए, अपने मूल्यों के लिए हमेशा खड़े रहो। मतलब साफ है यह तिरंगा सिर्फ लहरता नहीं, यह हमें याद दिलाता है कि हमारी आज़ादी की कीमत केवल कुछ समय पहले हमारे पूर्वजों ने अपने खून से चुकाई थी। हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी, ताकि हम अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकें और आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर और समृद्ध भारत दे सकें। हमारे स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों के बलिदान की गाथाएं हमारे दिलों में हमेशा ताजगी बनाए रखेंगी। या यूं कहे हमारी हर सांस में तिरंगे की महक और हर कतरे में शहीदों की कहानी बसनी चाहिए। यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। अगर हम हर दिन अपने कर्मों से उनका नाम रोशन करें, तभी यह स्वतंत्रता दिवस सच्चे अर्थों में मनाया जाएगा
सुरेश गांधी
जी हां, 15 अगस्त, केवल एक तारीख नहीं, बल्कि इतिहास की धड़कनों में बसने वाला वह दिन है जब हमारी आत्मा, हमारी पहचान और हमारा गर्व एक स्वर में गूंजते हैं। यह वह दिन है जब हम सुबह की पहली किरण के साथ तिरंगे की छांव में जागते हैं, जब हवा में कहीं दूर से आती राष्ट्रगान की गूंज कानों में पड़ते ही रग-रग में बिजली सी दौड़ जाती है। यह वह दिन है जब हमारा सीना गर्व से तन जाता है, और आंखें अनायास ही उन शहीदों की याद में भीग जाती हैं जिन्होंने अपने खून से इस मिट्टी को आज़ाद किया। इस दिन का हर पल हमें यह याद दिलाता है कि हमारी स्वतंत्रता सहज नहीं, बल्कि अनगिनत बलिदानों, संघर्षों और त्याग की नींव पर टिकी है।
आज हम खुलकर
बोलते हैं, लिखते हैं,
सपने देखते हैं। लेकिन यह
सब तब संभव हो
पाया है, जब किसी
ने अपनी जवानी, अपना
घर, अपना परिवार, और
यहां तक कि अपना
जीवन देश के नाम
कर दिया। अगर हम भ्रष्टाचार,
सामाजिक विभाजन और उदासीनता को
जगह देते हैं, तो
यह उन 90,000 से अधिक स्वतंत्रता
सेनानियों की कुर्बानी का
अपमान होगा, जो सीधे बलिदान
की राह पर चले
गए। हजारों अंडमान की सेलुलर जेल
में अमानवीय यातनाओं के बीच शहीद
हुए। यह ऋण केवल
संख्याओं से नहीं चुकाया
जा सकता। यह ऋण हमारे
व्यवहार, हमारी निष्ठा और हमारे कर्म
से चुकाया जाएगा।
हम जो आज़ादी जी रहे हैं, वह केवल मतदान का अधिकार या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भर नहीं है। यह एक भरोसा है, कि हम अपने भविष्य का रास्ता खुद तय करेंगे। लेकिन क्या हम सच में उस भरोसे के काबिल बने हैं? क्या हमारे निर्णय, हमारी नीतियां, और हमारा आचरण उस बलिदान का सम्मान करते हैं? खास तौर से तब यह सवाल बड़ा हो जाता है जब हम भ्रष्टाचार से समझौता करते हैं, समाज में विभाजन की आग को हवा देते हैं, या अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं. ऐसा करके हम कहीं न कहीं उन शहीदों की आत्मा को आहत करते हैं जिन्होंने हमें यह दिन दिया। बता दें, यह लड़ाई केवल मोर्चे पर नहीं लड़ी गई, यह लड़ाई किसानों के खेतों में, मजदूरों के कारखानों में, लेखकों के कलम में, और माताओं के आंसुओं में भी लड़ी गई।
मतलब साफ है आज हम जब इस स्वतंत्रता का उत्सव मनाते हैं, तो यह सिर्फ खुशियों का नहीं, बल्कि हमारी जिम्मेदारियों का भी दिन है।
यह हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपने देश की एकता, अखंडता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करनी चाहिए। संविधान के आदर्शों का पालन करना, सामाजिक समानता और शिक्षा को बढ़ावा देना, प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा करना, आने वाली पीढ़ी को आज़ादी का महत्व सिखाना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है.
साथ ही हमारी यह भी जिम्मेदारी है, बलिदान के योग्य बनना, स्वतंत्रता को बनाए रखना, उसे सार्थक बनाना और आगे बढ़ाना. अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का पालन करें। लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें।
समाज में समानता, शिक्षा
और भाईचारे को बढ़ावा दें।
और सबसे जरूरी, आने
वाली पीढ़ी को यह
बताएं कि यह आज़ादी
मुफ्त में नहीं मिली,
इसके पीछे लाखों बलिदानों
का इतिहास है।
आजादी के अमर प्रहरी
यह थीम हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता कोई विरासत में मिली संपत्ति नहीं, बल्कि एक जीवित धरोहर है जिसे हर पीढ़ी को अपनी निष्ठा और साहस से सुरक्षित रखना है।
इस बार ‘हर घर तिरंगा’ अभियान केवल सजावट के लिए नहीं, बल्कि संकल्प के लिए है - संकल्प कि हम एकजुट रहेंगे, और हर चुनौती का सामना उसी साहस से करेंगे जैसे हमारे पूर्वजों ने किया। वे पूर्वज, जिन्होंने आजादी के लिए यातनाएं झेली।
या यूं कहे
भारत की आज़ादी का
संघर्ष कोई त्वरित जीत
नहीं थी, बल्कि यह
एक लंबी, कठिन और पीड़ादायक
यात्रा थी। भारत की
स्वतंत्रता कोई एक दिन
या एक घटना का
परिणाम नहीं थी। यह
लगभग दो शताब्दियों के
संघर्ष का फल था,
जिसमें हर वर्ग और
हर समाज ने अपना
योगदान दिया।
1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम
जलियांवाला बाग कांड
काकोरी कांड और अन्य क्रांतिकारी आंदोलन
9 अगस्त 1925 को काकोरी कांड ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ क्रांतिकारी युवा संघर्ष का नया अध्याय लिखा। पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक उल्लाह खान, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र लाहिड़ी जैसे वीरों ने काकोरी ट्रेन को लूटने की योजना बनाई। इन वीरों के बलिदान ने पूरे देश को जागरूक किया और देश में क्रांति की नई लहर शुरू की। 1930 का दांडी मार्च, 1931 का भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का फांसी चढ़ना, हमारे बुजुर्गो की आत्मा को हिलाकर रख दिया, जो आजादी की लड़ाई का हिस्सा बने.
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
महात्मा गांधी के नेतृत्व में
भारत छोड़ो आंदोलन ने
ब्रिटिश साम्राज्य को अंतिम चेतावनी
दी। यह आंदोलन न
केवल व्यापक था, बल्कि यह
अहिंसात्मक तरीके से अंग्रेजों के
खिलाफ एक ठोस विरोध
था। पूरे देश में
महात्मा गांधी और उनके समर्थकों
के नेतृत्व में लाखों लोग
इस आंदोलन में शामिल हुए
और ब्रिटिश शासन के खिलाफ
जन आंदोलन को मजबूती दी।
ये सब हमारे इतिहास
के ऐसे मोड़ हैं
जहां पूरी कौम एक
स्वर में गरजी, “अंग्रेज़ो,
भारत छोड़ो!“ कहा जा सकता
है शहीद भगत सिंह,
राजगुरु, सुखदेव, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभभाई
पटेल और महात्मा गांधी
की प्रेरक भूमिका ने आज़ादी को
दिशा दी।
दुर्लभ तथ्य : जो किताबों में नहीं मिलते
तिरंगे का पहला सार्वजनिक
प्रदर्शन 1906 में कोलकाता के
पारसी बागान स्क्वायर में हुआ था।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा गठित
आज़ाद हिंद फ़ौज में
लगभग 15 फीसदी महिलाएं थीं। अंडमान की
सेलुलर जेल में बंद
क्रांतिकारियों को ‘काले पानी’
की सज़ा के तहत
नारियल के रेशों से
रस्सी बनाने और तेल निकालने
का कठोर काम कराया
जाता था। काकोरी कांड
(1925) में अंग्रेज़ी खजाने की लूट का
पूरा पैसा स्वतंत्रता संग्राम
के लिए इस्तेमाल हुआ।
तिरंगा के रंगों का संदेश
देशभक्ति केवल शब्द नहीं,
यह वह अहसास है
जो आपकी हर सांस
में बसता है। शहीद
भगत सिंह ने कहा
था, “मरने के बाद
भी जिनकी याद आए, वही
सच्चे देशभक्त हैं।“ तिरंगा केवल एक झंडा
नहीं, यह हमारी आत्मा
का आईना है। केसरिया
: साहस और बलिदान की
लौ है, सफेद : सत्य
और शांति की राह है
व हरा : विश्वास और उन्नति का
संकल्प है. जबकि अशोक
चक्र : सतत प्रगति का
प्रतीक है, क्योंकि ठहरना
हमारी फितरत नहीं। 15 अगस्त 1947 को जब पंडित
नेहरू ने लाल किले
पर यह तिरंगा फहराया,
तो केवल भारत ही
नहीं, पूरी दुनिया ने
देखा कि सदियों की
गुलामी के बाद भी
हमारी आत्मा टूटी नहीं, बल्कि
और मज़बूत हुई है।
कृतज्ञता का पर्व
जब भी हम
15 अगस्त का दिन आते
हुए देखते हैं, तब हमारे
दिलों में सिर्फ गर्व
और खुशी नहीं, बल्कि
एक गहरी कृतज्ञता भी
महसूस होती है। यह
दिन सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है, बल्कि
यह हमारे राष्ट्र के हर एक
नागरिक को याद दिलाता
है कि जो हम
आज़ादी और सम्मान की
साँसें ले रहे हैं,
वह हमारे पूर्वजों के अनगिनत बलिदानों
की कीमत पर है।
हर वर्ष जब तिरंगा
लहराता है और राष्ट्रगान
की गूंज आसमान में
फैलती है, तो हम
यह समझते हैं कि यह
उत्सव केवल आज़ादी के
पलों का नहीं, बल्कि
उन संघर्षों और बलिदानों का
प्रतीक है जो हमें
स्वतंत्रता दिलाने में कामयाब रहे।
स्वतंत्रता दिवस हमें यह
याद दिलाने के लिए आता
है कि आज़ादी की
कीमत खून से चुकाई
गई थी। हमें यह
संकल्प लेना होगा कि
हम न केवल इसे
सुरक्षित रखेंगे, बल्कि इसे और समृद्ध
करेंगे। हमारी हर सांस, हर
कतरा, उनके बलिदान की
अमानत है, जिसने हमें
आज यह स्वतंत्र आकाश
और खुली हवा में
जीवन जीने का अधिकार
दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी का 13 से 15 अगस्त तक हर घर
तिरंगा अभियान हमें एक बार
फिर याद दिलाता है
कि देशभक्ति केवल शब्दों में
नहीं, कर्म में भी
झलकनी चाहिए। तिरंगा हर घर पर
तभी सजेगा, जब वह हर
दिल में बसा हो।
त्याग, तपस्या और बलिदान से
मिली यह आज़ादी हमारी
सबसे बड़ी पूंजी है,
इसे संभालना, संवारना और आगे बढ़ाना
ही हमारा सच्चा राष्ट्रधर्म है।
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