विधवा कर्मचारी का आंसुओं में डूबा इस्तीफा
काशी विद्यापीठ
के
कुलपति
पर
अभद्र
भाषा,
दबाव
और
पक्षपात
के
गंभीर
आरोप
अब जरूरत
है
निष्पक्ष
जांच
और
कड़े
कदम
की,
ताकि
विश्वविद्यालय
की
प्रतिष्ठा
और
पीड़िता
का
न्याय,
दोनों
सुरक्षित
रह
सकें
सुरेश गांधी
वाराणसी. महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे
प्रतिष्ठित संस्थान की गरिमा तब
आहत होती है जब
वहां एक विधवा कर्मचारी
को अभद्र भाषा, धमकियों और दबाव के
बीच इस्तीफा देना पड़ता है।
कुलपति का पद विश्वविद्यालय
की मर्यादा और शुचिता का
प्रतीक है, लेकिन यदि
वह किसी अतिथि प्रवक्ता
को बचाने के लिए अपने
कर्तव्य की सीमाएं लांघते
हैं, तो यह प्रशासनिक
विफलता की स्पष्ट मिसाल
है। अब जब मामला
राजभवन तक पहुंच चुका
है, तो जरूरत है
निष्पक्ष जांच और कड़े
कदम की। यह सिर्फ
शिखा बंसल का मामला
नहीं, बल्कि पूरे विद्यापीठ की
साख और नैतिकता का
प्रश्न है।
बता दें, महात्मा
गांधी काशी विद्यापीठ में
कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी
पर लगाए गए आरोपों
ने विश्वविद्यालय के वातावरण को
हिला कर रख दिया
है। विश्वविद्यालय की वरिष्ठ सहायक
(जनरल एडमिनिस्ट्रेशन) शिखा बंसल, जो
दिवंगत प्रोफेसर की विधवा हैं,
ने कुलपति द्वारा अभद्र भाषा और दुर्व्यवहार
से आहत होकर 19 अगस्त
को अपना इस्तीफा सौंप
दिया। इस्तीफा अब तक स्वीकार
नहीं हुआ है, लेकिन
पीड़िता पर लगातार दबाव
और धमकियों का सिलसिला जारी
है। भय और अपमान
से टूटी शिखा बंसल
घर छोड़कर अज्ञात स्थान पर जाने को
मजबूर हो गई हैं।
विवाद की जड़ : अतिथि प्रवक्ता डॉ. रमेश सिंह
कैंपस में उठे सवालों
की डोर पत्रकारिता एवं
जनसंचार विभाग से जुड़ी है।
11 अगस्त को हुए अतिथि
प्रवक्ता पद के इंटरैक्शन
में डॉ. रमेश कुमार
सिंह भी शामिल हुए
थे। आरोप है कि
वे खुद को कुलपति
का करीबी बताते हैं और उनके
नाम पर धन उगाही
तक करते हैं। इतना
ही नहीं, गोपनीय विभाग की सूची में
उन्हें सहायक कुलानुशासक के रूप में
दर्ज भी कर दिया
गया, जबकि नवीनीकरण प्रक्रिया
पूरी नहीं हुई थी।
डॉ. रमेश ने शिखा
बंसल पर परिणाम समय
से पहले बताने का
दबाव बनाया। मना करने पर
धमकी दी और सीधे
कुलपति के पास शिकायत
करने पहुंच गए।
कक्ष में हुआ अपमान
सूत्रों के अनुसार, कुलपति
कक्ष में शिखा बंसल
को बुलाकर उन्हें डांटा गया और अपमानजनक
भाषा का प्रयोग हुआ।
मौके पर मौजूद रमेश
सिंह ने भी अपशब्द
कहे और नौकरी छोड़ने
तक की धमकी दी।
कुलपति ने तंज कसते
हुए कहा, कुछ आता-जाता नहीं, मृतक
आश्रित में नौकरी मिल
गई है तो बहुत
काबिल बन रही हो।
आहत शिखा बंसल ने
उसी समय इस्तीफा भेज
दिया। इस्तीफे में कुलपति की
अभद्र भाषा का उल्लेख
भी है।
दबाव और धमकी से टूटी हिम्मत
इस्तीफे के बाद शिखा
बंसल पर इस्तीफा वापस
लेने का दबाव डाला
गया। बढ़ते भय और
धमकियों के चलते उन्होंने
अपना घर छोड़ दिया।
राजभवन तक गूंजी चर्चा
विश्वविद्यालय में डॉ. रमेश
सिंह और कुलपति के
संबंधों की चर्चा अब
कैंपस की दीवारें लांघकर
लखनऊ राजभवन तक जा पहुंची
है। सूत्रों का कहना है
कि कभी भी कुलपति
को तलब किया जा
सकता है। खास बात
यह है कि यह
अतिथि प्रवक्ता कुलपति के गले की
फांस बन गया है.
डॉ. रमेश सिंह पर
धन उगाही और दबाव बनाने
के भी आरोप लग
रहे है। कई प्रोफेसर
और कर्मचारी इस घटनाक्रम की
दबी जबान में चर्चा
कर रहे हैं। हालांकि
मामला तूल पकड़ता देख
कुलपति अब रमेश को
पहचानने से इनकार कर
रहे हैं. लेकिन कैंपस
में दोनों की नजदीकियों की
गूंज तेज।
निष्पक्ष जांच और कड़े कदम उम्मींद
फिरहाल, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसे
प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में यदि किसी
विधवा कर्मचारी को अपमान और
धमकियों के बीच इस्तीफा
देना पड़े, तो यह
केवल व्यक्तिगत अन्याय नहीं, बल्कि पूरे संस्थान की
साख पर प्रश्नचिह्न है।
कुलपति यदि अतिथि प्रवक्ता
को बचाने के लिए अपनी
गरिमा तक दांव पर
लगा रहे हैं, तो
यह प्रशासनिक पतन की स्पष्ट
तस्वीर है। राजभवन तक
पहुंची यह चर्चा बताती
है कि मामला सामान्य
नहीं रहा। अब जरूरत
है निष्पक्ष जांच और कड़े
कदम की, ताकि विश्वविद्यालय
की प्रतिष्ठा और पीड़िता का
न्याय, दोनों सुरक्षित रह सकें।
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