Saturday, 16 August 2025

यशोदा के गाल पर कृष्ण का चुम्बन : वात्सल्य और अनुशासन का सबसे श्रेष्ठ चित्र

यशोदा के गाल पर कृष्ण का चुम्बन : वात्सल्य और अनुशासन का सबसे श्रेष्ठ चित्र 

बालकृष्ण का अबोध स्नेह, यशोदा की ममता और अनुशासन का अद्भुत संगम

हर डाँट पर मासूम चुम्बन से मां को समझाते थे लल्ला 

मातृत्व और बाल-लीला का अद्वितीय प्रतीक बनी यह तस्वीर

सुरेश गांधी

वाराणसी.            डाँट में भी ममता, डर में भी अपनापन,

              यशोदा के गाल पर कृष्ण का चुम्बन।

जन्माष्टमी का पर्व केवल भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं की स्मृति भर नहीं, बल्कि मां - बेटे के रिश्ते की दिव्यता का भी उत्सव है। इस उत्सव में संपूर्ण भारत श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में डूब जाता है। मंदिरों से लेकर घर-आंगनों तक हर कहीं रास, लीला और भक्ति का अद्भूत मनोहारी छटा दिखाई देता है। भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण हर भक्त को आनंदित कर देता है। इन्हीं लीलाओं में से एक दृश्य ऐसा है जिसे भक्तगण आज भी सबसे श्रेष्ठ मानते हैं, जब नन्हे कान्हा अपनी मैया यशोदा के गाल को चूमते हैं। यह दृश्य साधारण प्रतीत हो सकता है, परंतु गहराई से देखें तो यह मातृत्व, प्रेम और अनुशासन का अनुपम संगम है। यह दृश्य हमें सिखाता है कि मां का हर कठोर शब्द भी अंततः प्रेम और सुरक्षा का ही रूप होता है। जन्माष्टमी के इस पावन अवसर पर यशोदा और कृष्ण का यह अनुपम दृश्य हर भक्त को स्मरण कराता है, मातृत्व का संसार में कोई विकल्प नहीं है। जी हां, यशोदा मैया के गाल पर नन्हे कृष्ण का चुम्बन, डांट और डर के बीच भी मां के प्रति मासूम निवेदन। जन्माष्टमी का यही संदेश है, मातृत्व का आधार केवल प्रेम है।

केवल मां ही थीं खास

श्रीकृष्ण की शरारतें सबको प्रिय थीं, किंतु अपने घर में वे केवल मां यशोदा को ही चूमा करते थे। नंदबाबा या घर के अन्य किसी सदस्य को यह विशेष स्नेह नहीं मिला। यह अधिकार सिर्फ उनकी मैया के हिस्से आया। वैसे भी श्रीकृष्ण का स्वभाव नटखट था। चोरी से माखन खाना, मटकी फोड़ना और गोपियों को सताना उनकी दिनचर्या का हिस्सा था। ऐसे में यशोदा मैया उन्हें डांट देतीं, जबकि नंदबाबा कभी नहीं डांटते थे। इससे बालकृष्ण मां की डांट से डर जाते। उस कोमल उम्र में जब बोलकर भाव व्यक्त करना कठिन था, तब वे चुपचाप मां का गाल चूम लेते। मानो कह रहे हों, मैया, मुझे इतना मत डाटो। मैं तुमसे डर जाता हूं। मुझे प्रेम से समझाओ। यह दृश्य केवल एक माँ-बेटे का संवाद नहीं, बल्कि मातृत्व और वात्सल्य का अनुपम प्रतीक है। यही कारण है कि इसे कृष्ण लीलाओं की सबसे श्रेष्ठ तस्वीर माना जाता है। जन्माष्टमी के अवसर पर यह प्रसंग हर भक्त को स्मरण कराता है कि श्रीकृष्ण केवल ईश्वर ही नहीं, बल्कि मां यशोदा के नन्हे लल्ला भी थे।

मातृत्व का अद्वितीय प्रतीक

इस मौके पर तेजी से वायरल हो रहे इस चित्र को गुजरात के बड़ोदरा निवासी रेलवे से सेवानिवृत सीनियर ऑफिसर रहे अमृत लाल जायसवाल द्वारा भेजी गई यह तस्वीर यूं तो हजारों कृष्ण चित्रों के बीच एक सामान्य दृश्य प्रतीत होती है, परंतु गहराई से देखने पर यह केवल सबसे सुंदर, बल्कि सबसे श्रेष्ठ तस्वीर सिद्ध होती है। कृष्ण का यह चुम्बन केवल मासूम हरकत नहीं, बल्कि मां के प्रति उनके गहन विश्वास और अटूट स्नेह का प्रतीक है। यह हमें यह सिखाता है, मां का अनुशासन चाहे कठोर लगे, पर उसका आधार सदैव प्रेम ही होता है। यह कथा केवल भक्तों के लिए एक आध्यात्मिक संदेश है, बल्कि हर मां -बेटे के रिश्ते की गहराई को उजागर करने वाली जीवनदृष्टि भी है।

मैया के गाल चुमि, बोले ललना नन्हार,

डांटो मत मैया मुझे, डर लागे अपार।।

कन्हैया का मासूम संदेश

गालों पर चुम्बन धर, बोला नन्हा श्याम,

मैया तुम ही हो मेरी, जीवन की आराम।

डांटो मत यूं रोज़-रोज़, डर जाता हूं मैं,

प्रेम से समझाओ मैया, तुमसे बंधा हूं मैं।

ममता के आंगन में, शरारत भी मधुर है,

मैया तेरा लल्ला, तेरे ही चरणों पर उधर है।

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