इंडिया कारपेट एक्सपो में स्टॉल शुल्क 2000 रुपये घटा, निर्यातकों को राहत
निर्यातकों के
लिए
स्वर्णिम
अवसर,
49वें
इंडिया
कारपेट
एक्सपो
की
तैयारियां
शुरू
भदोही में हुई प्रशासनिक समिति की अहम बैठक, तैयारियां
तेज, आज से शुरु होगी स्टॉल बुकिंग
सुरेश गांधी
भदोही. कालीन निर्यातकों के हितों को
ध्यान में रखते हुए
कालीन निर्यात प्रोत्साहन परिषद (सीईपीसी) ने एक बड़ा
कदम उठाया है। आगामी 49वें
इंडिया कारपेट एक्सपो में भाग लेने
वाले निर्यातकों के लिए स्टॉल
बुकिंग शुल्क में प्रति वर्ग
मीटर 2000 रुपये की कमी की
गई है। यह निर्णय
कालीन निर्यातकों की वर्तमान मांग
और वैश्विक बाजार में टैरिफ से
उत्पन्न चुनौतियों को देखते हुए
मंगलवार को परिषद के
क्षेत्रीय कार्यालय, कारपेट एक्सपो मार्ट, भदोही में आयोजित प्रशासनिक
समिति की बैठक में
लिया गया। दावा है
कि यह कदम न
सिर्फ निर्यातकों को प्रोत्साहन देगा
बल्कि इंडिया कारपेट एक्सपो में अधिक भागीदारी
सुनिश्चित करेगा।
बता दें, 49वां इंडिया कारपेट
एक्सपो केवल एक व्यापारिक
प्रदर्शनी नहीं, बल्कि भारतीय कालीन उद्योग की ताकत और
संभावनाओं का प्रतीक है।
परिषद द्वारा शुल्क में की गई
रियायत से निर्यातकों और
बुनकरों का मनोबल बढ़ेगा।
अब यह जिम्मेदारी निर्यातकों
और खरीदारों दोनों की है कि
वे इस अवसर का
पूरा लाभ उठाकर भदोही
की कालीन परंपरा को वैश्विक मानचित्र
पर और अधिक चमकाएं।
सीईपीसी अध्यक्ष वट्टल ने कहा कि
यह फैसला निर्यातकों को राहत देने
और उन्हें वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाए
रखने की दिशा में
एक महत्वपूर्ण कदम है। बैठक
में वैश्विक बाजार में टैरिफ की
चुनौती और निर्यातकों की
वर्तमान मांग पर विस्तार
से चर्चा हुई।
समिति ने माना कि मौजूदा हालात में निर्यातकों को प्रोत्साहन देना बेहद आवश्यक है। इसी क्रम में स्टॉल शुल्क घटाने का निर्णय लिया गया। अध्यक्ष वट्टल ने कहा कि यह निर्णय निर्यातकों के लिए राहत का संदेश है। इससे उनकी लागत घटेगी और एक्सपो में अधिक भागीदारी सुनिश्चित होगी। परिषद की ओर से जानकारी दी गई कि स्टॉल बुकिंग की प्रक्रिया कल से शुरू होगी। सभी निर्यातकों से अपील की गई है कि वे इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं। बैठक की अध्यक्षता परिषद के अध्यक्ष कुलदीप राज वट्टल ने की। इस दौरान समिति के सदस्य रवि पटोदिया, अनिल सिंह, असलम महबूब, संजय गुप्ता, पियूष बरनवाल, रोहित गुप्ता, हुसैन जफ़र हुसैनी, इम्तियाज़ अहमद तथा परिषद की कार्यकारी निदेशक एवं सचिव डा. स्मिता नागर कोटी उपस्थित थीं।
उद्योग के लिए नई ऊर्जा का अवसर
भदोही, मिर्जापुर और वाराणसी का
नाम आते ही कालीन
उद्योग की अनूठी पहचान
सामने आ जाती है।
सदियों पुरानी यह कला न
सिर्फ इस क्षेत्र की
आर्थिक धुरी है, बल्कि
हजारों बुनकर परिवारों की आजीविका का
सहारा भी है। ऐसे
में आगामी 49वें इंडिया कारपेट
एक्सपो को लेकर परिषद
द्वारा लिया गया स्टॉल
शुल्क घटाने का निर्णय केवल
एक प्रशासनिक कदम नहीं, बल्कि
बुनकरों और निर्यातकों के
लिए नई उम्मीद का
प्रतीक है।
एक्सपो की तैयारियां तेज
इंडिया कारपेट एक्सपो को सफल बनाने
के लिए तैयारियां भी
तेज कर दी गई
हैं। परिषद की ओर से
बताया गया कि एक्सपो
मार्ट को पूरी तरह
संचालित करने की कवायद
शुरू हो चुकी है।
प्रतिभागियों और खरीदारों के
लिए सभी जरूरी सुविधाएं
उपलब्ध कराने की दिशा में
काम किया जा रहा
है। परिषद का दावा है
कि इस आयोजन से
न केवल भदोही, बल्कि
पूरे पूर्वांचल और भारत के
कालीन उद्योग को अंतरराष्ट्रीय बाजार
में और मजबूती मिलेगी।
वैश्विक चुनौतियों के बीच राहत
पिछले कुछ वर्षों में
भारतीय कालीन उद्योग को कई चुनौतियों
का सामना करना पड़ा है।
अमेरिका और यूरोप जैसे
प्रमुख बाजारों में टैरिफ बढ़ने
से निर्यात प्रभावित हुआ है। दूसरी
ओर, चीन, तुर्की और
ईरान जैसे देशों से
बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने भी भारतीय
निर्यातकों के लिए दबाव
बढ़ाया है। ऐसे समय
में जब लागत और
मुनाफे का संतुलन बिगड़
रहा हो, तब स्टॉल
शुल्क में कमी जैसे
कदम उद्योग को तत्काल राहत
प्रदान करते हैं।
विदेशी खरीदारों के लिए भरोसेमंद मंच
इंडिया कारपेट एक्सपो अब केवल व्यापारिक
आयोजन नहीं रह गया
है। यह भारतीय कालीनों
के लिए विश्व बाजार
से सीधा संवाद स्थापित
करने का मंच बन
चुका है। पिछले साल
इसमें 35 देशों से 350 खरीदार आए थे और
करोड़ों रुपये के ऑर्डर निर्यातकों
को मिले थे। इस
बार लगभग 400 से अधिक खरीदारों
के आने की उम्मीद
है। यह न सिर्फ
भदोही बल्कि पूरे भारत के
कालीन उद्योग को वैश्विक बाजार
में मजबूती देने का अवसर
है।
सामाजिक-आर्थिक असर
भदोही और आसपास के
जिलों में लाखों लोग
कालीन बुनाई से जुड़े हुए
हैं। इनमें बड़ी संख्या में
महिलाएं और ग्रामीण कारीगर
शामिल हैं। जब निर्यात
बढ़ता है तो इन
परिवारों तक सीधी आमदनी
पहुंचती है। एक्सपो से
मिलने वाले नए ऑर्डर
बुनकरों की रोज़गार गारंटी
बनते हैं। परिषद का
यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण है
क्योंकि यह सीधे तौर
पर बुनकर समाज की खुशहाली
से जुड़ा हुआ है।
आगे की राह
हालांकि केवल स्टॉल शुल्क
घटाने भर से उद्योग
की सभी समस्याओं का
समाधान नहीं होगा। भारतीय
कालीन उद्योग को लंबे समय
तक प्रतिस्पर्धा में टिके रहने
के लिए डिज़ाइन नवाचार,
डिजिटल मार्केटिंग, गुणवत्ता मानक और सरकारी
सहयोग की भी उतनी
ही जरूरत है। यदि सरकार
निर्यातकों को लॉजिस्टिक और
टैरिफ संबंधी चुनौतियों से राहत दिलाने
में सक्रिय भूमिका निभाए, तो कालीन उद्योग
पुनः अपनी सुनहरी ऊँचाइयों
तक पहुंच सकता है।
उद्योग की उम्मीदें
ज्ञात हो कि भदोही,
मिर्जापुर और वाराणसी क्षेत्र
को कालीन उद्योग की रीढ़ कहा
जाता है। यहां के
कालीनों की अंतरराष्ट्रीय स्तर
पर विशेष पहचान है। हाल के
वर्षों में बढ़ते टैरिफ
और विदेशी बाजार में उतार-चढ़ाव
ने इस उद्योग को
प्रभावित किया है। ऐसे
में इंडिया कारपेट एक्सपो जैसे आयोजन उद्योग
के लिए नई ऊर्जा
का काम करते हैं।
परिषद को उम्मीद है
कि इस बार का
आयोजन निर्यातकों के लिए नए
ऑर्डर और नए बाजार
का रास्ता खोलेगा।
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