निधिवन की वह रात्रि, जब चाँद अमृत बरसाता है और राधा-श्याम रचते हैं रास
वह रात्रि वर्ष की सबसे दीप्तिमान होती है, जब आकाश में पूर्ण चंद्र अपनी अमृतमयी किरणें बरसाता है, और धरती के हर कण में कोई अलौकिक लय उतर आती है। यही है शरद पूर्णिमा की रात्रि, जब कहते हैं कि ब्रजभूमि के निधिवन में स्वयं श्रीकृष्ण अवतरित होकर रास रचते हैं। यह कोई कथा मात्र नहीं, बल्कि आस्था की वह गहराई है, जिसमें भक्ति और रहस्य का संगम होता है। वृंदावन की इस पावन भूमि पर जब चाँदनी अपनी श्वेत चादर बिछाती है, तो लगता है मानो स्वर्ग का अमृत स्वयं पृथ्वी पर उतर आया हो। वृक्षों की शाखाएँ एक-दूसरे से गले मिलती हैं, मानो हर तना एक गोपी बन गया हो, जो अपने श्याम से मिलने को व्याकुल है। इस रात्रि को कोई निधिवन में ठहर नहीं सकता। जब सूर्य ढलता है, मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं, और फिर सब कुछ मौन हो जाता है, केवल चाँद बोलता है, और हवा में गूँजती है मुरली की वह अदृश्य धुन। कहते हैं कि अगली सुबह जब द्वार खुलते हैं, तो कुछ बदल चुका होता है, कहीं खिले पुष्प झुके हैं, कहीं खीर के पात्र खाली मिलते हैं, कहीं रजनीगंधा की गंध अब भी टिकी होती है। यह वही निधिवन है, जहाँ प्रेम धर्म बनता है, और भक्ति स्वयं परमात्मा में विलीन
सुरेश गांधी
जी हां, वर्ष के बारह मास में अनेक पूर्णिमाएँ आती हैं, पर शरद पूर्णिमा वह एकमात्र रात है जब चंद्रमा अपनी सम्पूर्णता में होता है, सौंदर्य, शीतलता और अमृतत्व से भरपूर। कहते हैं इस दिन चंद्रकिरणों में अमृत का संचार होता है। प्रकृति का हर तत्व श्वेतवर्ण धारण कर लेता है, आकाश चाँदी की परतों से ढक जाता है, नदियाँ दूधिया आभा में चमक उठती हैं, और वृंदावन जैसे स्वयं देवभूमि बन जाता है। यही वह रात्रि है जब कहा जाता है, निधिवन में स्वयं श्रीकृष्ण उतरते हैं और राधा सहित असंख्य गोपियों के साथ महान रासलीला रचते हैं। यह कोई साधारण कथा नहीं, बल्कि भक्ति और रहस्य का संगम है, जहाँ भाव, माधुर्य और मोक्ष एक साथ प्रकट होते हैं।
मतलब साफ है निधिवन की यह वही रात्रि है जब चांद अमृत बरसाता है और राधा-श्याम रचते हैं रास. कहते शरद पूर्णिमा की निधिवन लीला के दौरान हर वृक्ष गोपीयां बन जाती है, और हर लता राधा कृष्ण. यह वहीं रात्रि है जब ब्रज में उतरता है स्वर्ग. इसे शरद पूर्णिमा की अद्भुत रासरात्रि भी कहा जाता है. जहाँ प्रेम देवत्व में रूपांतरित हो जाता है.
वृंदावन की
पावन भूमि, जहाँ हर वृक्ष,
हर कण में “राधे-श्याम” की ध्वनि व्याप्त
है, वहीं स्थित है
निधिवन। दिन के समय
यह स्थान भक्तों के लिए खुला
रहता है, परंतु सूर्यास्त
होते ही मंदिर के
कपाट बंद कर दिए
जाते हैं। कारण : इस
स्थान से जुड़ा वह
अद्भुत विश्वास, जो इसे रहस्य
के साथ पवित्रता का
चरम केंद्र बनाता है।
यहां के संत
और सेवायत कहते हैं, शरद
पूर्णिमा की रात को
श्रीकृष्ण स्वयं राधा और गोपियों
के संग रास रचते
हैं। कहा जाता है
कि रात में यहां
कोई भी रुक नहीं
सकता। जो रुका, वह
या तो पागल हो
गया या फिर सुबह
तक इस संसार में
नहीं रहा। सुबह जब
द्वार खुलते हैं, तो दृश्य
कुछ बदला हुआ होता
है, कहीं खीर के
पात्र खाली मिलते हैं,
कहीं फूल बिखरे होते
हैं, कहीं बिस्तर हिले
हुए। कोई कहता है,
यह कथा मात्र है,
कोई कहता है, यह
साक्षात लीला का अवशेष।
पर आस्था और अनुभव के
बीच की रेखा यहां
मिट जाती है। निधिवन
की सबसे अद्भुत विशेषता
यह है कि यहाँ
के सभी वृक्ष जोड़े
में खड़े हैं, जैसे
एक-दूसरे से आलिंगनबद्ध हों।
शरद पूर्णिमा का चाँद : अमृत का प्रतीक
शास्त्रों में कहा गया
है कि शरद पूर्णिमा
की रात्रि में चंद्रमा अपनी
सोलह कलाओं सहित प्रकट होता
है। यही कारण है
कि इस रात को
“कोजागरी पूर्णिमा” या “कौमुदी उत्सव”
भी कहा जाता है।
माना जाता है कि
इस दिन चंद्रकिरणों में
अमृत तत्व प्रवाहित होता
है। भक्त इसीलिए खीर
बनाकर खुले आकाश तले
रखते हैं, ताकि चंद्रकिरणें
उसे स्पर्श करें और वह
अमृतमयी बन जाए। परंतु
वृंदावन में यह खीर
केवल भोजन नहीं, भक्ति
का प्रतीक बन जाती है।
यहाँ यह खीर श्रीकृष्ण
के लिए बनाई जाती
है, जिसे “मधुर रस” का
रूप माना जाता है।
कहा जाता है कि
निधिवन के भीतर रखी
खीर प्रातःकाल तक अदृश्य हो
जाती है या कहें,
“स्वीकार” कर ली जाती
है। भक्त मानते हैं
कि यह स्वयं राधा-कृष्ण का प्रसाद है।
रास : प्रेम का ब्रह्मानंद
“तत्रोपगायन् महिषीरनुस्मरन्त्यः
कृष्णानुवृत्त्याः परमं समाधिम्।”
अर्थात, रास के समय
हर गोपी ने स्वयं
को कृष्ण में विलीन पाया,
और कृष्ण ने स्वयं को
प्रत्येक गोपी में। यह
लीला भौतिक नहीं, आध्यात्मिक है, यह उस
“अद्वैत” का प्रतीक है
जहाँ प्रेम ही परमात्मा बन
जाता है। शरद पूर्णिमा
की वह रात्रि इसी
अद्वैत का उत्सव है।
उस रात, जब चंद्रमा
का शीतल प्रकाश वृंदावन
पर उतरता है, तो कहा
जाता है, समय ठहर
जाता है। हवा की
गति धीमी पड़ जाती
है, पक्षी मौन हो जाते
हैं, और निधिवन के
हर पत्ते पर एक अदृश्य
कंपन उठता है, मानो
रास आरंभ हो चुका
हो।
आत्मा को भिगो देती है
राधा का प्रेम, कृष्ण की करुणा
आस्था, रहस्य और आधुनिकता का संगम
आज जब भक्ति
भी आयोजन बन गई है,
तब भी शरद पूर्णिमा
का यह पर्व अपनी
निर्मलता में अबाध खड़ा
है। निधिवन के द्वार आज
भी सूर्यास्त पर बंद हो
जाते हैं। ब्रजवासी आज
भी खीर बनाकर चाँदनी
में रखते हैं। यात्रालु
आज भी उस हवा
को सुनने की प्रतीक्षा करते
हैं कृ जिसमें मुरली
की अनदेखी तान तैरती है।
आस्था विज्ञान की कसौटी पर
नहीं टिकी होती, वह
मन की कसौटी पर
टिकी होती है कृ
और यही निधिवन की
पहचान है।
वृंदावन से काशी तक : शरद
पूर्णिमा का सांस्कृतिक स्वर
शरद पूर्णिमा केवल
वृंदावन की नहीं, संपूर्ण
भारत की आत्मा का
पर्व है। काशी के
घाटों पर इस दिन
गंगाजल में चाँदनी का
प्रतिबिंब अद्भुत लगता है, भक्त
खीर बनाकर चंद्रप्रभा में रखते हैं,
और मानते हैं कि यह
अमृतमयी रात्रि जीवन में शांति
लाएगी। गुजरात में इसे कोजागरी
पूर्णिमा कहा जाता है,
“कौन जाग रहा है?”
यह प्रश्न स्वयं लक्ष्मी पूछती हैं। महाराष्ट्र में
इसे कोजागिरी के नाम से
जाना जाता है, जहाँ
लोग दूध पीकर जागरण
करते हैं। पर वृंदावन
की निधिवन रात्रि में यह पर्व
केवल जागरण नहीं, प्रेम और लीला का
पुनर्जागरण है।
निधिवन का मौन, जो सब कह देता है
कभी-कभी मौन
सबसे गहरी वाणी होता
है। निधिवन में रात का
मौन केवल शांति नहीं,
साक्ष्य है। वह बताता
है कि दिव्यता को
देखने की नहीं, महसूस
करने की आवश्यकता है।
यहाँ जो आँखों से
देखना चाहता है, वह रहस्य
नहीं पा सकता; जो
हृदय से अनुभव करता
है, वही रास को
समझ सकता है। कहा
जाता है कि रात
के तीसरे प्रहर में जब हवा
का एक झोंका निधिवन
से गुजरता है, तो उसमें
कोई अनकही गंध होती है,
मुरली की, फूलों की,
या शायद उस प्रेम
की, जो सृष्टि का
मूल है।
चाँदनी में डूबा प्रेम का दर्शन
रात्रि के गहनतम क्षण
में जब आकाश में
चंद्रमा बिल्कुल गोल, उज्जवल और
श्वेतमय हो उठता है,
तब निधिवन के ऊपर मानो
अमृत बरसता है। वह चाँद
किसी दीप की तरह
नहीं, बल्कि स्वयं प्रेम का प्रतीक लगता
हैकृनिर्मल, निष्कलंक, पूर्ण। उस चंद्रप्रभा में
खड़े होकर जब कोई
भक्त “श्याम” का नाम लेता
है, तो ऐसा लगता
है कि वृक्ष भी
झूम उठे हैं। वह
क्षण भक्ति का है, वह
क्षण सृष्टि का है, वह
क्षण अमरता का है।
काव्य और लोकगीतों में शरद पूर्णिमा
भारतीय काव्य परंपरा में शरद पूर्णिमा
को सौंदर्य, प्रेम और शांति का
पर्व कहा गया है।
जयदेव की गीतगोविंद से
लेकर सूरदास और रसखान तक,
सबने इस रात्रि को
अपनी पंक्तियों में अमर कर
दिया। सूरदास लिखते हैं, “शरद चाँदनी रजनी
में, रच्यो रास अपार। वृंदावन
में कृष्ण नाचे, गोपि संग सदा
साकार।।” रसखान के शब्दों में,
“जहाँ स्याम खेले बंसी, वहाँ
हर रज पावन होय।
निधिवन की लता हिले,
राधे नाम की लय
होय।।” इन पंक्तियों में
वह माधुर्य झलकता है जो शरद
पूर्णिमा की आत्मा हैकृप्रेम
जो केवल अनुभूति है,
दृश्य नहीं।
वैज्ञानिक दृष्टि और आध्यात्मिक आयाम
कुछ वैज्ञानिकों का
कहना है कि निधिवन
की मिट्टी और वृक्षों में
प्राकृतिक ऊर्जा का असामान्य स्तर
पाया जाता है। यहाँ
की हवा में तुलसी
और केसर की गंध
स्थायी रहती है, जिससे
वातावरण में ऑक्सीजन की
मात्रा अधिक होती है।
पर भक्तों के लिए यह
भौतिक तर्क नहीं, अलौकिक
संकेत हैं। वे कहते
हैं, “जहाँ कृष्ण का
नाम गूँजता है, वहाँ स्वयं
प्रकृति भी भक्ति का
रूप धारण कर लेती
है।” शरद पूर्णिमा इसी
का प्रतीक है, जहाँ प्रकृति,
मानव और परमात्मा एक
ही लय में बंध
जाते हैं।








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