‘हर घर स्वदेशी, घर-घर आत्मनिर्भर’ का मंत्र लेकर आगे बढ़ रहा भारत
एमएसएमई से
लेकर
शिक्षा
और
कृषि
तक,
मोदी-योगी
सरकार
ने
आत्मनिर्भरता
को
बनाया
जन-जन
का
संकल्प
वोकल फॉर
लोकल
से
लोकल
फॉर
ग्लोबल
की
दिशा
में
कदम
सुरेश गांधी
वाराणसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में चल रहा ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ अब केवल सरकारी योजना नहीं रहा, बल्कि यह एक सांस्कृतिक संकल्प और लोक आंदोलन बन चुका है। शुक्रवार को सर्किट हाउस सभागार में पत्रकारों से बातचीत करते हुए स्टांप एवं न्यायालय शुल्क पंजीयन मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रविन्द्र जायसवाल ने कहा कि सरकार का लक्ष्य है, “हर घर स्वदेशी, घर-घर आत्मनिर्भर।”
उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर भारत केवल आर्थिक सुधार नहीं, बल्कि राष्ट्र की आत्मा से जुड़ा विचार है। “जब हर नागरिक अपने उत्पाद पर गर्व करेगा, तब भारत आत्मनिर्भर नहीं, विश्व नेतृत्व की राह पर होगा.” मंत्री ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के “वोकल फॉर लोकल” के आह्वान को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य की नीति का केंद्र बनाया है। प्रदेश सरकार एक ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की ओर बढ़ रही है। इसके लिए 19 प्रमुख क्षेत्रों में उद्योगों को प्रोत्साहन, टैक्स में छूट और अनुदान जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि कम से कम 25 प्रतिशत सरकारी खरीद एमएसएमई इकाइयों से की जाए। इससे स्थानीय उद्योगों, हस्तशिल्पियों और कारीगरों को नई पहचान मिली है। “वाराणसी जैसे शहरों में लकड़ी के खिलौने, पीतल शिल्प और हैंडलूम उद्योग आत्मनिर्भरता के प्रतीक हैं.”
शास्त्री से मोदी तक, स्वावलंबन की परंपरा को नई दिशा
रविन्द्र जायसवाल ने कहा कि
आत्मनिर्भरता की परंपरा भारत
में नई नहीं है।
“1965 के भारत-पाक युद्ध
के समय लाल बहादुर
शास्त्री जी ने अमेरिका
से लाल गेहूं लेने
से इनकार कर देश को
आत्मनिर्भरता की प्रेरणा दी
थी। उस दौर में
‘जय जवान, जय किसान’ का
नारा केवल शब्द नहीं,
बल्कि स्वावलंबन का सूत्र बना।”
उन्होंने कहा कि आज
वही भावना प्रधानमंत्री मोदी के ‘आत्मनिर्भर
भारत’ में पुनर्जीवित हुई
है। भारत अब 80 करोड़
लोगों को मुफ्त अनाज
दे पा रहा है,
जो आत्मनिर्भरता का सबसे बड़ा
उदाहरण है।
एमएसएमई बना आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था की रीढ़
मंत्री ने कहा कि
देश में छह करोड़
से अधिक एमएसएमई इकाइयां
हैं, जो जीडीपी में
29 प्रतिशत और निर्यात में
50 प्रतिशत से अधिक योगदान
देती हैं। इन्हीं इकाइयों
से 11 करोड़ से ज्यादा
लोगों को रोजगार मिला
है। सरकार ने इस क्षेत्र
को मज़बूती देने के लिए
कई ठोस कदम उठाए
हैं. इसमें 3 लाख करोड़ रुपये
की आपातकालीन कार्यशील पूंजी सुविधा, 20 हजार करोड़ रुपये
की अधीनस्थ ऋण योजना, 50 हजार
करोड़ का फ़ंड ऑफ
फ़ंड्स, और सरकारी विभागों
में 45 दिन में भुगतान
सुनिश्चित करने का प्रावधान।
उन्होंने कहा कि आत्मनिर्भर
भारत अभियान कोई राहत पैकेज
नहीं, बल्कि संरचनात्मक सुधारों का रोडमैप है,
जिसने लघु उद्योगों को
आत्मबल और स्थायित्व दिया
है।
नई शिक्षा नीति में भी आत्मनिर्भरता का दर्शन
मंत्री ने कहा कि
नई शिक्षा नीति में अब
विद्यार्थी केवल डिग्री के
लिए नहीं, बल्कि रोजगारोन्मुख कौशल के लिए
पढ़ाई करेंगे। मेजर-माइनर विषयों
की अवधारणा से छात्र स्थानीय
उद्योगों और पारंपरिक कलाओं
से सीधे जुड़ सकेंगे।
उन्होंने कहा, “काशी जैसे शहरों
में शिक्षा को स्थानीय अर्थव्यवस्था
से जोड़ना आत्मनिर्भरता की दिशा में
सबसे बड़ा कदम है।”
कृषि सुधारों से आत्मनिर्भर किसान की परिकल्पना
किसानों के विषय में
उन्होंने कहा कि सरकार
हर वर्ष राज्यवार सर्वेक्षण
कर लागत मूल्य के
आधार पर एमएसपी तय
करती है। साथ ही
बीज, उर्वरक, सिंचाई, भंडारण और कृषि उपकरणों
पर 8 से 9 प्रकार की
सब्सिडी योजनाएं चल रही हैं।
किसान सम्मान निधि और नाबार्ड
सहायता से किसान अब
“उपज बेचने वाला” नहीं बल्कि “उद्योग
संचालक” बन रहा है।
त्योहारों में स्वदेशी का संदेश, बाजारों में आई नई रौनक
मंत्री ने कहा कि
भारत त्योहारों का देश है,
और हर त्योहार स्थानीय
उत्पादों को बढ़ावा देता
है। इसी भावना से
सरकार ने 22 सितंबर को जीएसटी दरों
में कटौती की, ताकि दिवाली,
धनतेरस और करवा चौथ
जैसे त्योहारों में स्वदेशी उत्पादों
की खरीद बढ़े। उन्होंने
कहा, “मिट्टी के दीए, झालर,
सूप, चलनी, ये सिर्फ सामान
नहीं, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की जड़ें
हैं।” सरकार ने कुम्हारों को
मुफ्त मिट्टी उपलब्ध कराने की योजना भी
शुरू की है।
कोरोना काल में जन्मा आत्मनिर्भर भारत अब बना नई आर्थिक शक्ति
मंत्री ने कहा कि
कोविड काल में जब
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला ठप थी, तब
भारत ने अपनी क्षमता
से दुनिया को चौंका दिया।
आज भारत पीपीई किट
का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक
बन चुका है। रक्षा
क्षेत्र में 101 उपकरणों के आयात पर
रोक लगाकर ‘मेक इन इंडिया’
को बल दिया गया।
स्वदेशी तेजस विमान इसका
उदाहरण है, जिसमें 75 प्रतिशत
से अधिक घटक देश
में बने हैं। उन्होंने
कहा, “अब हम ‘मेक
इन इंडिया’ से आगे बढ़कर
‘मेड बाय इंडिया’ की
ओर बढ़ रहे हैं।”
गरीब और श्रमिकों के लिए योजनाएं बनी आत्मनिर्भरता का आधार
सरकार ने गरीब, मजदूर,
रेहड़ी-पटरी वालों और
किसानों को आत्मनिर्भर बनाने
के लिए कई योजनाएं
शुरू की हैं, पीएम
स्वनिधि योजना से छोटे व्यापारियों
को ₹10,000 का ब्याजमुक्त ऋण,
मनरेगा में ₹40,000 करोड़ की अतिरिक्त
राशि, किसान क्रेडिट कार्ड के तहत ₹2 लाख
करोड़ की सहायता, और
एक देश, एक राशन
कार्ड योजना से प्रवासी मजदूरों
को राहत। मंत्री ने कहा कि
अब सरकार का प्रयास है
कि हर नागरिक अपने
स्तर पर आत्मनिर्भरता की
दिशा में योगदान दे।
ट्रैफिक से लेकर ट्रांसफॉर्मेशन तक जनता की भागीदारी जरूरी
वाराणसी शहर की वन-वे ट्रैफिक व्यवस्था
पर भी उन्होंने कहा
कि यातायात सुधार के प्रयास जनता
की सुविधा को ध्यान में
रखकर होने चाहिए। “हम
पत्रकार भी नागरिक हैं,
जाम से जूझते हैं,
इसलिए संवाद और समन्वय जरूरी
है.”
भारत की आत्मा स्वदेशी में बसती है
रविन्द्र जायसवाल ने कहा, “आत्मनिर्भर
भारत केवल नीति नहीं,
यह नई राष्ट्रीय चेतना
है। जब हर घर
में स्वदेशी की ज्योति जलेगी,
तब भारत विश्व में
आत्मनिर्भरता का दीपक बनकर
जगमगाएगा।” आत्मनिर्भर भारत की यह
अवधारणा अब केवल आर्थिक
या औद्योगिक नीतियों का हिस्सा नहीं
रही, बल्कि यह भारत के
सामाजिक, सांस्कृतिक और नैतिक पुनरुत्थान
की नींव बन चुकी
है। प्रधानमंत्री से लेकर ग्राम
पंचायत तक, ‘स्वदेशी’ अब
केवल उत्पादन नहीं बल्कि ‘राष्ट्रीय
आत्मा’ का पर्याय बनता
जा रहा है।
आत्मनिर्भर भारत की 5 प्रमुख उपलब्धियाँ
उद्योगों
में
आत्मनिर्भरता
: घरेलू विनिर्माण और आयात प्रतिस्थापन
को बढ़ावा, जिससे आर्थिक सुरक्षा मजबूत हुई।
एमएसएमई
सशक्तिकरण
: छोटे और मध्यम उद्यमों
को आसान ऋण, तकनीकी
मदद और डिजिटल प्लेटफॉर्म
के जरिए समर्थित किया
गया।
स्टार्टअप
इंडिया
: नवाचार और रोजगार के
अवसर बढ़ाए, देश में स्टार्टअप
इकोसिस्टम को वैश्विक स्तर
पर प्रतिस्पर्धी बनाया।
कृषि
और
ग्रामीण
विकास
: किसानों के लिए नई
तकनीक, मंडी सुधार और
मूल्य संवर्धन योजनाएं लागू की गईं।
विदेशी
निवेश
और
निर्यात
संवर्धन
: मेक इन इंडिया और
निर्यात संवर्धन नीतियों के जरिए भारत
को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में मजबूत बनाया
गया।
एमएसएमई की भूमिका एक नजर में
रोजगार
सृजन
: देश में लाखों युवाओं
को स्थायी और अस्थायी रोजगार
प्रदान करते हैं।
आर्थिक
विविधता
: विभिन्न क्षेत्रीय उद्योगों और उत्पादों के
माध्यम से अर्थव्यवस्था में
विविधता लाते हैं।
स्थानीय
संसाधनों
का
उपयोग
: कच्चे माल और स्थानीय
श्रम का अधिकतम उपयोग
करके लागत-कुशल उत्पादन
सुनिश्चित करते हैं।
नवाचार
और
उद्यमिता
: छोटे उद्योग अक्सर नए विचार और
उत्पाद विकसित कर बड़े उद्योगों
को प्रेरित करते हैं।
विदेशी
व्यापार
: निर्यात को बढ़ावा देकर
भारत के व्यापार संतुलन
और विदेशी मुद्रा संग्रह में योगदान।



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