अंबेडकर जयंती पर विशेष : दलित नहीं खुद के उत्थान चाहते है राजनेता
हाल
के
दिनों
में
राजनेताओं
के
लिए
‘रामबाण‘ साबित हो रहे
बाबा
साहेब
डॉ
भीमराव
अंबेडकर
की
जयंती
मनाने
को
लेकर
होड़
मची
है।
कल
तक
जो
उनके
विचारों
को
नहीं
मानते
थे,
वे
आज
सत्ता
की
खातिर
उनके
समर्थकों
से
गलबहियां
कर
रहे
हैं।
पीएम
मोदी
14 अप्रैल
को
अंबेडकर
जंयती
के
मौके
पर
छत्तीसगढ़
के
बीजापुर
से
विश्व
की
सबसे
बड़ी
स्वास्थ्य
योजना-
‘आयुष्मान
भारत
मिशन‘ की शुरुआत करेंगे।
हालांकि
इसके
पहले
भी
मायावती
से
लेकर
कांग्रेसी
नेताओं
ने
भी
बाबा
साहेब
के
नाम
पर
दर्जनों
विकास
योजनाएं
चलाई
है,
लेकिन
दो
चार
प्रतिशत
को
छोड़
दे
तो
आज
भी
दलितों
का
विकास
नहीं
हो
पाया
है।
ऐसे
में
बड़ा
सवाल
तो
यही
है
कि
आखिर
कब
तक
नेता
अंबेडकर
के
नाम
पर
राजनीतिक
रोटी
सेकते
रहेंगे।
या
यूं
कहे
अंबेडकर
एक
आदर्श
या
बस
एक
‘‘प्रतीक‘ है या नेताओं
में
लड़ाई
विचारों
की
है
या
सबकुछ
सिर्फ
और
सिर्फ
उनके
अनुयायियों
के
वोट
लेने
तक
ही
सीमित
है?
सुरेश
गांधी
फिरहाल, हो जो
भी सच तो
यही है कि
महात्मा गांधी के बाद
अगर सबसे कोई
चर्चित व्यक्ति है तो
वह संविधान निर्माता
बाबा साहेब भीम
राव अंबेडकर ही
है। हर राजनीतिक
पर्टिया उनके विरासत
एवं सिद्धांतों को
हथियाने के लिए
पूरी ताकत झोक
रखी है। कोई
उनकी जयंती मनाने
की प्रतिस्पर्धा में
जुटा है तो
कोई उनके नाम
पर नई नई
योजनाओं की घोषणाएं
करने की प्लानिंग
की है। लेकिन
अगर इन नेताओं
की जन्मकुंडली पर
नजर दौड़ाई जाएं
तो सबके सब
उनके विचारों व
आदर्शो के विपरीत
ही अपनी अपनी
ढपली बजा रहे
हैं। बाबा साहेब
के निधन को
60 साल से ज्यादा
हो चुके हैं
लेकिन आज भी
केंद्र और देश
के अधिकांश राज्यों
में सत्तारूढ़ बीजेपी
से लेकर कांग्रेस
जैसे सबसे पुराने
तथा बीएसपी, आरपीआई
जैसे क्षेत्रीय दलों
ने तकरीबन हर
चुनाव में लंबी
लंबी योजनाओं की
घोषणाएं तो की
लेकिन दलित समाज
का उतना उत्थान
नहीं हो सका
जिसकी वे हकदार
थे।
इसकी बड़ी
वजह है राजनेताओं
द्वारा अंबेडकर के आदर्शो
व सिद्धांतों की
लगातार उपेक्षा। ऐसा इसलिए
क्योंकि अंबेडकर का मूल
दर्शन भारत में
जातिविहीन समाज की
स्थापना करना था।
लेकिन राजनेता भारत
को जातियों के
टुकड़ो टुकड़ों में
बांटना ही अपनी
महानता मानते हैं। वोट
की खातिर जातियों
को टुकड़ों टुकड़ों
में बांटने का
ही परिणाम है
जगह जगह जातिय
हिंसा। और यह
हिंसा इतना भवायवह
हो चुका है
कि अब देश
के अलग-अलग
हिस्सों में भीम
राव अंबेडकर की
ही प्रतिमाएं तोड़ी
जा रही है।
मतलब साफ है
चाहे मायावती हो
या कोई और
सबके सब सुविधानंसार
अपने अपने तरीके
से जाति का
ही प्रयोग कर
रहे है। चुनाव
के समय जब
उम्मींदवारों से प्रतिवेदन
मंगाएं जाते है
तो उसकी जाति
ही प्रमुखता से
देखी जाती है।
नेता भी साक्षात्कार
के समय उसके
जाति को ही
केन्द्र मानकर उम्मीदवारी का
मुल्यांकन करते हैं।
कहा जा सकता
है जबतक जातिप्रथा
की बयार बहती
रहेगी वक्त वक्त
पर देश की
राष्ट्र विरोधी श क्तियां
देश को आंदोलन
की आग में
झोकने से बाज
नहीं आयेगी।
बता दें,
राजनीति में अगर
सबसे ज्यादा अगर
किसी ने जातियता
का दंश झेला
है तो वह
14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश
के एक दलित
परिवार में जन्मे
अंबेडकर ही थे।
असाधारण प्रतिभा के होने
के बावजूद जिंदगी
भर उन्हें अस्पृश्यता
का ही सामना
करना पड़ा। बचपन
में स्कूल जाने
से लेकर 1923 में
जब वे विदेश
से उच्च शिक्षा
ग्रहण भारत लौटे
तब भी उन्हें
जातियता का ही
जहर घूट घूट
कर पीना पड़ा।
तभी से बाबा
साहेब ने दलितों
को बराबरी का
हक दिलाने को
अपने जीवन का
एकमात्र लक्ष्य बना लिया।
उन्होंने कई किताबें
लिखीं और हिंदू
धर्म की कुरीतियों
पर प्रहार किया।
इस दौरान कुछ
ऐसी घटनाएं भी
घटीं जिसके चलते
उन्हें ऊंची जातियों
का तगड़ा विरोध
झेलना पड़ा। लेकिन
खुशी है कि
देर से ही
सही अब उनके
सपनों के भारत
को साकार देने
के लिए प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने
बीड़ा उठाया है।
मोदी लगातार अंबेडकर
के नाम के
साथ सकारात्मक माहौल
बनाने की कोशिश
करते दिखाई दे
रहे हैं। देशभर
में दलितों को
लेकर मचे राजनीतिक
संग्राम के बीच
मोदी 14 अप्रैल को अंबेडकर
जयंती के दिन
गरीबों व दलितों
की हितैषी साबित
करने के लिए
एक नई पहल
करेंगे। अंबेडकर जयंती के
दिन से सरकार
इस साल के
बजट में घोषित
सबसे चर्चित स्वास्थ्य
योजना ‘आयुष्मान भारत‘ की शुरुआत
करेगी। कहा जा
रहा है कि
इस योजना से
देश के 10 करोड़
परिवारों के लिए
5 लाख रुपये का
बीमा कवर दिया
जाएगा। इस योजना
से कुल 10.74 करोड़
परिवारों को लाभ
मिलेगा। इस योजना
का लाभ गरीबों
और वंचितों को
मिलने के दावे
किए जा रहे
हैं। योजना के
तहत लाभार्थियों की
पहचान सामाजिक-आर्थिक
जाति जनगणना के
आंकड़ों के आधार
पर होगी। सूत्रों
की मानें तो
2019 के लोकसभा चुनाव के
लिहाज से यह
योजना बहुत ही
महत्वपूर्ण मानी जा
रही है।
मोदी खुद
समय समय पर
जताते हैं कि
डॉ अंबेडकर के
योगदान व उनकी
महानता की कांग्रेस
राज में उपेक्षा
ही हुई है।
यहां तक कि
मोदी देश के
दूसरे सबसे प्रभावी
दलित नेता जगजीवन
राम की भी
कांग्रेस द्वारा उपेक्षा करने
का आरोप लगा
चुके हैं। मोदी
ने पिछले ही
महीने 21 मार्च को नयी
दिल्ली में बाबा
साहेब डॉ भीमराव
अंबेडकर राष्ट्रीय स्मारक का
दिल्ली में आॅनलाइन
शिलान्यास किया था।
उस दौरान उन्होंने
खुद को आंबेडकरभक्त
बताया था और
बाबा साहेब की
तुलना मार्टिन लूथर
किंग से की
थी। मोदी ने
इसी दिन 14 अप्रैल
(यानी आज) एनडीए
सरकार द्वारा आंबेडकर
जयंती पर होने
वाले भव्य कार्यक्रमों
की रूपरेखा का
एलान किया था।
मोदी सरकार ने
पिछले साल संसद
में शीत सत्र
के दौरान बाबा
साहेब द्वारा रचित
भारतीय संविधान पर चर्चा
का आयोजन किया
था, जिसमें बोलते
हुए मोदी ने
डॉ आंबेडकर की
महानता का जिक्र
करते हुए कहा
था कि अपनी
बात रखने के
लिए भी उस
महापुरुष का संदर्भ
लेना होता है
और सामने वाले
की आलोचना के
लिए उनके संदर्भ
की ही जरूरत
पड़ती है। यह
अलग बात है
कि हाल में
दलितों के मुद्दे
पर विपक्ष मोदी
सरकार और बीजेपी
की घेराबंदी कर
रहा है। अनुसूचित
जाति अनुसूचित जनजाति
एक्ट में बदलाव
वाले सुप्रीम कोर्ट
के फैसले के
बाद खासकर दलितों
में मौजूदा सरकार
के प्रति नाराजगी
देखने को मिल
रही है। जिसका
असर 2 अप्रैल को
भारत बंद के
दौरान भी देखने
को मिला।
हालांकि, सरकार दलितों
के विरोध के
बाद बैकफुट पर
आ गई है
और उसने सुप्रीम
कोर्ट में पुनर्विचार
याचिका दायर की
है। दूसरी तरफ
यूपी जैसे बीजेपी
शासित राज्य में
भीम राव अंबेडकर
की प्रतिमाओं को
तोड़ने की घटनाएं
भी विपक्ष को
बीजेपी को घेरने
का मौका दे
रही हैं। इतना
ही नहीं बीजेपी
के अपने सांसद
और केंद्र सरकार
में सहयोगी दल
और उनके दलित
नेता भी कानून
में बदलाव और
आरक्षण जैसे मुद्दों
पर बहस के
दौरान मोदी सरकार
से दूर खड़े
नजर आ रहे
हैं। यही वजह
है कि 2019 के
लोकसभा चुनाव से पहले
बीजेपी और मोदी
सरकार दलितों के
गुस्से को शांत
करने का हर
मुमकिन प्रयास करते नजर
आ रहे हैं।
फिलहाल सरकार ने स्वास्थ्य
बीमा योजना के
बजाय ‘आयुष्मान भारत‘ के तहत घोषित
वेलनेस सेंटर पर अपना
ध्यान लगाया है।
बजट में ‘आयुष्मान
भारत‘ योजना के तहत
यह घोषणा भी
की गई थी
की सरकार 2022 तक
पूरे देश में
डेढ़ लाख वेलनेस
सेंटर की स्थापना
करेगी जो सबको
अपने घर के
करीब मुफ्त स्वास्थ्य
सेवा मुहैया कराने
की दिशा में
पहला कदम होगा।
योजना को लॉन्च
करने के लिए
देश के सबसे
पिछड़े और गरीब
जिलों में से
एक छत्तीसगढ़ के
बीजापुर जिले का
चुनाव किया गया
है। मोदी इस
जिले में जाने
वाले देश के
पहले प्रधानमंत्री होंगे।
गौर करने की
बात यह भी
है कि इसी
साल के अंत
में छत्तीसगढ़ में
विधानसभा के चुनाव
भी होने हैं।
देशभर में सबसे
पिछड़े 115 ऐसे जिले
चुने गए हैं
जो विकास के
मामले में देश
के बाकी हिस्सों
से काफी पीछे
छूट गए हैं।
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