सुविधाएं मिले
तो काशी बने अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल
पर्यटन की दृष्टि
से प्रदेश देश में ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय पटल पर भी काशी को जाना पहचाना जाता
है। क्योंकि यह शहर दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है। जिसे देखने के लिए देश
दुनियाभर से सैलानी और शोधार्थी आते हैं। जैसा कि समय-समय पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी कहते रहते है पर्यटक रोजगार का बड़ा साधन है। लेकिन यह तभी बढ़ेगा जब सुविधाएं हो
और इसके लिए प्रधानमंत्री प्रयासरत भी है। यही वजह है कि काशीवासियों को अब भी अपने
सांसद व प्रधानमंत्री से ढेरों उम्मीदें है। काशीवासी चाहते है कि मोदी ने जिस तरह
काशी को विश्व के अन्य शहरो की तुलना में अंग्रिम पंक्ति में खड़ा करने का बीडा उठाया
है, उसी कड़ी में हर स्तर की सुविधाएं देने में सफल हुए तो काशी का हर युवा, हर नागरिक,
हर व्यापारी के लिए बेरोजगार जैसी समस्या दूर हो जायेगी
सुरेश गांधी
धर्म एवं आस्था
की काशी, वैसे तो बारह ज्योर्तिलिंगों में एक बाबा विश्वनाथ, कलकल बहती गंगे व घाटों
के लिए जानी जाती है लेकिन बुद्ध की प्रथम उपदेश स्थली होने से यहां बौद्ध मतावलंबियों
की बड़ी संख्या खींची चली आती है। पिछले चार-पांच वर्षों से सैलानियों के आने का सिलसिला
रिकार्ड तौर पर बढ़ा है। पर्यटन के लिहाज से ब्रांड बनारस सरताज हो चुका है। या यूं
कहे धार्मिक व शास्त्रीय ज्ञान की निर्बाध परंपराओं का उद्भव व विकास यहां देखा जा
सकता है। कई प्रसिद्ध भारतीय चिंतक, कवि, लेखक, संगीतज्ञ की यह जन्मस्थली है। चार जैन
तीर्थंकरों सुपाश्र्वनाथ, चंद्रप्रभ नाथ, श्रेयांस नाथ व पाश्र्व नाथ के साथ-साथ संत
कबीरदास, तुलसीदास, रविदास व मुंशी प्रेमचंद यहां जन्मे। बुद्ध ने यहीं प्रथम उपदेश
दिया व यहीं बौद्ध संघ की स्थापना हुई। तुलसीदास ने यहीं रामचरित मानस की रचना की।
भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रसिद्ध ‘बनारस घराना‘ के लिए यह नगरी
विशेष रूप से जानी जाती है।
लेकिन अफसोस
है कि बनारस में गंगा, पक्के घाट, सारनाथ और बाबा विश्वनाथ के बाद पर्यटकों को और भी
अधिक रोकने के लिए और प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। यह तभी संभव है जब पर्यटकों के लिहाज
से सुविधाएं विकसित की जाए। मतलब साफ है बनारस में एक से बढ़कर एक ऐतिहासिक महत्व की
पर्यटन थाती मौजूद है जिन्हें सहेजने, संवारने के साथ ही उनकी ऐसी ब्रांडिंग करने की
दरकार है कि पर्यटक वहां खींचे चले आएं।
व्यापारी नेता मनीष गुप्ता की मानें तो वाराणसी
की मूर्त व अमूर्त सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए यहां पर्यटन विकास की अपार संभावनाएं
हैं और यदि निकटवर्ती अन्य पर्यटक स्थलों को भी सम्मिलित कर लिया जाए तो यह स्थल वर्ष
भर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना रह सकता है। शासन प्रशासन द्वारा यदि सुविधाएं
पूरी कर दी जाए तो न केवल पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी बल्कि स्थानीय लोगों
को रोजगार भी मिलेगा।
बुद्ध को श्रीहरि
का अवतार माना जाता है। यहां जैन र्तीथकर भगवान श्रेयांसनाथ का भी स्थान है। ऐसे में
यह स्थल जैन धर्मियों व हिन्दूओं के लिए तीर्थ है।ं सर्वधर्म के अनुरागियों के साथ
ही सैलानी और पुरातत्व व कला-इतिहास के प्रेमी भी आते हैं। विभिन्न प्रांतों और विदेश
से वह दर्शन पूजन या सिर्फ काशी और सारनाथ का वैभव देखने भी चले आते हैं। पर्यटन विभाग
के अनुसार भारत में आने वाले सैलानियों के शेड्यूल में वाराणसी और सारनाथ टूर जरूर
शामिल होता है। इस लिहाज से यह संख्या वाराणसी में प्रतिवर्ष आने वाले पर्यटकों की
40 फीसद तक हो जाती है। पर्यटन विभाग में दर्ज आंकड़ों पर गौर करें तो वाराणसी में हर
साल लगभग 60 लाख पर्यटक आते हैं। इसमें सारनाथ जाने वालों की संख्या लगभग 14 लाख है।
इसके अलावा तमाम ऐसे भी होते हैं जो सरकारी आंकड़ों में नहीं दर्ज हो पाते हैं। हालांकि
यहां पर्यटकों का आना तो वर्ष भर लगा रहता है लेकिन सितंबर से लेकर फरवरी मध्य तक और
खासकर मध्य नवंबर से जनवरी अंत तक खूब भीड़ होती है। गर्मी में दक्षिण भारतीय पर्यटकों
की आवाजाही बढ़ जाती है। लेकिन यदि सुविधाएं मिले ‘जैसा प्रधानमंत्री चाहते है‘
तो
काशी दुनिया का सबसे बड़ा पर्यटकस्थल बन सकता है।
इसके लिए जरुरी
है कि शहर स्वच्छ हो, लेकिन अफसोस है कि प्रधानमंत्री के तमाम प्रयास के बावजूद अब
भी कई इलाकों में सड़कों के किनारे लगे कूड़े की चट्टाने दिखती है। कई ऐसी गलिया है जहां
से नाक पर रुमाल रखे बगैर गुजरना मुश्किल होता है। जबकि मोदी का वादा है कि वाराणसी
को दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर बनायेंगे। मकसद रहा कि शहर स्वच्छ रहेगा तो पर्यटन के
लिहाज से सैलानियों का आकर्षण बढ़ेगा और पर्यटन उद्योग भी फलेगा फूलेगा। माना कुछ घाटों
से लेकर बाहरी इलाके की सड़के कुछ हद तक ठीकठाक हुई है लेकिन गलिया अब उबड़-खाबड़ व जाम
नालियों के चलते बजबजा रही है। कुड़ा उठाने के उचित प्रबंध ही नहीं है। प्रमुख सड़कों
पर उलझी तारों को हटाकर बिजली खंभो के जरिए लाइटें तो लगी है लेकिन प्राचीन गलिया अब
भी अंधेरे में ही है।
कहा जा सकता
है बनारस में सालाना 60 लाख सैलानियों का आगमन होना पर्यटन से जुड़ी सुविधाओं को बौना
साबित कर रहा है। होटल कारोबार से जुड़े लोगों का कहना है कि जिस तरह से सैलानियों की
भीड़ उमडने लगी है शहर में करीब 5000 कमरों की कमी है। लो बजट होटलों के साथ ही तारांकित
होटलों की कमी भी अखरने लगी है। खासकर दक्षिण भारत से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए
तो धर्मशालाओं व सस्ते होटलों की अधिक आवश्यकता है। देव दीपावली, दुर्गापूजा, सावन
आदि सीजनों में काफी दिक्कत होती है।
इसके अलावा बनारस
में पर्यटन पुलिस है ही नहीं। इसके लिए सालों पहले प्रस्ताव बने भी, लेकिन वो फाइले
सचिवालय के आलमारियों में धूल फांक रही है। पर्यटन पुलिस के अभाव में सैलानियों के
साथ होने वाली घटनाओं को लेकर सिविल पुलिस का रवैया ठीक नहीं होता है। पर्यटन पुलिस
न होने से पर्यटकों को भी असहजता होती है। बनारस ऐसा शहर है जहां दुनिया के सभी देशों
से सैलानी आते हैं। टूरिस्ट गाइडों की कमी भी यहां एक बड़ी समस्या है। खासकर गाइडों
द्वारा आरोप लगाए जाते हैं, पर्यटन विभाग उनके लाइसेंस में अड़ंगे लगाता है और कई गाइडों
को नियम की आड़ लेकर अवैध घोषित कर दिया जाता है।
पर्यटन की सकल
घरेलू उत्पाद में महती भूमिका है। विदेशी विनिमय आय की दृष्टि से यह तृतीय स्थान रखता
है। पर्यटन विकास गरीबी निवारण में भी विशेष कारगर साबित हो सकता है। विगत वर्षों में
वाराणसी की पर्यटन क्षमता को देखते हुए भारत व राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं
लागू की गईं। साथ ही आधारभूत संरचना जैसे कि सड़क, रेलवे व हवाई मार्ग को भी दुरुस्त
व विकसित किया गया। स्वदेश दर्शन योजना द्वारा जहां बौद्ध पर्यटक स्थल सारनाथ का समग्र
विकास किया जा रहा है वहीं हृदय योजना अंतर्गत नगर के विरासत क्षेत्रों के विकास, ठोस
अपशिष्ट प्रबंधन, कुंडों, दीवारों आदि के सुधार पर कार्य हुए व जारी हैं।
यूनेस्को सूची
में आने से वाराणसी की ओर संगीत प्रेमियों व पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकेगा। बनारस
घराने की शैली विशेषकर होरी, चैती, टप्पा, दादरा को भी पुनर्जीवित किया जा सकता है।
22 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीनदयाल हस्तकला संकुल को देश को समर्पित
किया। काशी विश्वनाथ मंदिर कारिडोर निर्माण का शिलान्यास हाल ही में प्रधानमंत्री ने
8 मार्च को किया। पर्यटन की दृष्टि से इसकी महत्ता इसलिए भी है कि जहां एक ओर श्रद्धालुओं
को मणिकर्णिका व ललिता घाट से मंदिर तक 25 हजार वर्ग मीटर में फैले 40-40 फीट के दो
कारिडोर होते हुए आवागमन की सुविधा होगी वहीं दूसरी ओर इससे घाटों का विकास भी संभावित
है। ज्ञात हो कि इससे पूर्व 1780 में इंदौर की मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर ने काशी
विश्वनाथ मंदिर व आसपास क्षेत्र का पुनरुद्धार कराया था, जबकि 1853 में सिख नरेश रंजीत
सिंह ने स्वर्ण चादर मंदिर को भेंट की थी।
काशी में सदियों
से मोक्ष प्राप्ति के लिए लोग आते रहे हैं। यह सिलसिला आज भी बरकरार है। इसके लिए यहां
के दो भवनों में रहकर लोग मुक्ति का इंतजार करते हैं। इसको लेकर बढ़े विश्वास से इन
दो भवनों में बुकिंग की प्रतीक्षा सूची बड़ी कर दी है। इसे देखते हुए केंद्र व राज्य
सरकार के काशी विश्वनाथ धाम (कॉरिडोर) प्रोजेक्ट में नए मोक्ष भवन निर्माण का प्रस्ताव
बनाया गया है। यहां महिलाओं और पुरुषों के लिए बराबर कमरे होंगे जहां 50 लोग रह सकेंगे।
वर्तमान में काशी के मोक्ष भवनों में एक में सिर्फ दंपतियों को प्रतीक्षा की अनुमति
देता है, जबकि दूसरे में वे लोग ठहरते हैं जो अंतिम सांसें गिन रहे होते हैं। विश्वनाथ
धाम में प्रस्तावित नए मोक्ष भवन में इस तरह की बाध्यताएं नहीं होंगी। सरकार यदि पास
पड़ोस के जिलों के पर्यटक स्थानों तक पहुंच मार्ग एवं पर्यटकों के लिए आधारभूत सुविधाओं
की व्यवस्था कर देती है तो इस क्षेत्र में विदेशी मुद्रा में बढ़ोत्तरी हो सकती है।
इसके लिए पर्यटन गंतव्यों का विकास करने के साथ नए सर्किट हाउस विकसित किए जाने चाहिए।
इससे रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
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