मोदी युग में अब घाटी में दिखेगा स्वर्ग का नजारा
अनुच्छेद 370 हटाने की सिफारिश, 35ए हटाया गया
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का दो भागों में बंटवारा कर दिया गया है.
अब जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश होगा.
लद्दाख बिना विधानसभा का केंद्रशासित प्रदेश होगा.
धारा 370 एक काला अध्याय था, जिसको हटाने की सिफारिश गृहमंत्री अमित शाह ने की है
सुरेश गांधी
जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लिया है. इस सिलसिले में गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बड़ा ऐलान करते हुए जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का संकल्प पेश किया.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे. इसके साथ ही आर्टिकल 35-ए को भी हटा दिया गया है. अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक भी सदन में पेश किया है. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का दो भागों में बंटवारा कर दिया है. जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश होगा. लद्दाख बिना विधानसभा का केंद्रशासित प्रदेश होगा. बता दें, अनुच्छेद 35ए राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को लागू किया। तत्कालीन सरकार ने धारा 370 की ताकत इस्तेमाल की थी.अब तक जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 35ए, धारा 370 का हिस्सा था। राष्ट्रपति से पास होने के बाद संविधान में इसे जोड़ दिया गया था। इसके चलते जम्मू कश्मीर में बाहरी राज्यों के लोग संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। 14 मई 1954 को राज्य में रहने वाले लोग ही वहां के नागरिक माने गए। 1954 से 10 साल पहले से रहने वाले लोगों को नागरिक माना गया। वहां के लड़की की बाहरी से शादी करने पर राज्य की नागरिकता से जुड़े अधिकार खत्म हो जाते हैं. शादी करने पर लड़की के बच्चों के भी जम्मू-कश्मीर में अधिकार नहीं माने जाते.
35ए को हटाने की मांग इसलिए की जा रही थी कि इस अनुच्छेद को संसद के जरिए लागू नहीं किया गया है। इस अनुच्छेद की वजह से शरणार्थी अधिकार से वंचित हैं। पाक के शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर की नागरिकता नहीं है। इनमें 80 फीसदी लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय के हैं। जम्मू कश्मीर में शादी करने वाली महिलाओं से भेदभाव जारी था। भारतीय नागरिकों के साथ जम्मू कश्मीर में भेदभाव होता है। जम्मू कश्मीर में संविधान से मिले अधिकार खत्म हो जाते हैं। संविधान सभा से संसद की कार्यवाही तक बिल का जिक्र नहीं है। अनुच्छेद 35ए के लिए संविधान संशोधन लाने का भी जिक्र नहीं है। धारा 370 पर विवाद इसलिए है क्योंकि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है। झंडा भी अलग है। वहां राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है। देश के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते हैं। संसद जम्मू-कश्मीर को लेकर सीमित क्षेत्र में ही कानून बना सकती है। रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर केंद्र के कानून वहां पर लागू नहीं होते। केंद्र का कानून लागू करने के लिये विधानसभा से सहमति ज़रूरी थी। वित्तीय आपातकाल के लिये संविधान की धारा 360 वहां पर लागू नहीं मानी जाती। धारा 356 लागू नहीं है, राष्ट्रपति राज्य का संविधान बर्खास्त नहीं कर सकते। कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता। जम्मू कश्मीर में 1976 का शहरी भूमि कानून लागू नहीं होता है। धारा 370 की वजह से कश्मीर में कोई कानून लागू नहीं होता। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष नहीं, 6 वर्ष होता है।
अमित शाह की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि लद्दाख के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया जाए, ताकि यहां रहने वाले लोग अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें. अब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है, लेकिन यहां विधानसभा नहीं होगी. रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर को अलग से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. देश की राजधानी दिल्ली की तरह जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी.
संसद में अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में ये गलत धारणा है कि अनुच्छेद-370 की वजह से कश्मीर भारत के साथ है. अमित शाह ने कहा कि कश्मीर भारत के विलय पत्र की वजह से है जिसपर 1947 में हस्ताक्षर किया गया था. गृह मंत्री ने कहा कि वोट बैंक की वजह से विगत दिनों में इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया, लेकिन हमारे पास इच्छा शक्ति है और हम वोट बैंक की परवाह नहीं करते हैं. अमित शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 को हटाने में अब एक सेकेंड की भी देरी नहीं करनी चाहिए. अमित शाह ने कहा कि वे इस मुद्दे पर डिबेट और बहस के लिए तैयार हैं.
अनुच्छेद 370 हटाने की सिफारिश, 35ए हटाया गया
इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का दो भागों में बंटवारा कर दिया गया है.
अब जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश होगा.
लद्दाख बिना विधानसभा का केंद्रशासित प्रदेश होगा.
धारा 370 एक काला अध्याय था, जिसको हटाने की सिफारिश गृहमंत्री अमित शाह ने की है
सुरेश गांधी
जम्मू-कश्मीर पर मोदी सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लिया है. इस सिलसिले में गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बड़ा ऐलान करते हुए जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का संकल्प पेश किया.
उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे. इसके साथ ही आर्टिकल 35-ए को भी हटा दिया गया है. अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक भी सदन में पेश किया है. इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर का दो भागों में बंटवारा कर दिया है. जम्मू-कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश होगा. लद्दाख बिना विधानसभा का केंद्रशासित प्रदेश होगा. बता दें, अनुच्छेद 35ए राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 14 मई 1954 को लागू किया। तत्कालीन सरकार ने धारा 370 की ताकत इस्तेमाल की थी.अब तक जम्मू कश्मीर में लागू अनुच्छेद 35ए, धारा 370 का हिस्सा था। राष्ट्रपति से पास होने के बाद संविधान में इसे जोड़ दिया गया था। इसके चलते जम्मू कश्मीर में बाहरी राज्यों के लोग संपत्ति नहीं खरीद सकते थे। 14 मई 1954 को राज्य में रहने वाले लोग ही वहां के नागरिक माने गए। 1954 से 10 साल पहले से रहने वाले लोगों को नागरिक माना गया। वहां के लड़की की बाहरी से शादी करने पर राज्य की नागरिकता से जुड़े अधिकार खत्म हो जाते हैं. शादी करने पर लड़की के बच्चों के भी जम्मू-कश्मीर में अधिकार नहीं माने जाते.
35ए को हटाने की मांग इसलिए की जा रही थी कि इस अनुच्छेद को संसद के जरिए लागू नहीं किया गया है। इस अनुच्छेद की वजह से शरणार्थी अधिकार से वंचित हैं। पाक के शरणार्थियों को जम्मू कश्मीर की नागरिकता नहीं है। इनमें 80 फीसदी लोग पिछड़े और दलित हिंदू समुदाय के हैं। जम्मू कश्मीर में शादी करने वाली महिलाओं से भेदभाव जारी था। भारतीय नागरिकों के साथ जम्मू कश्मीर में भेदभाव होता है। जम्मू कश्मीर में संविधान से मिले अधिकार खत्म हो जाते हैं। संविधान सभा से संसद की कार्यवाही तक बिल का जिक्र नहीं है। अनुच्छेद 35ए के लिए संविधान संशोधन लाने का भी जिक्र नहीं है। धारा 370 पर विवाद इसलिए है क्योंकि जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता है। झंडा भी अलग है। वहां राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है। देश के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेश जम्मू-कश्मीर में मान्य नहीं होते हैं। संसद जम्मू-कश्मीर को लेकर सीमित क्षेत्र में ही कानून बना सकती है। रक्षा, विदेश, संचार छोड़कर केंद्र के कानून वहां पर लागू नहीं होते। केंद्र का कानून लागू करने के लिये विधानसभा से सहमति ज़रूरी थी। वित्तीय आपातकाल के लिये संविधान की धारा 360 वहां पर लागू नहीं मानी जाती। धारा 356 लागू नहीं है, राष्ट्रपति राज्य का संविधान बर्खास्त नहीं कर सकते। कश्मीर में हिन्दू-सिख अल्पसंख्यकों को 16 फीसदी आरक्षण नहीं मिलता। जम्मू कश्मीर में 1976 का शहरी भूमि कानून लागू नहीं होता है। धारा 370 की वजह से कश्मीर में कोई कानून लागू नहीं होता। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष नहीं, 6 वर्ष होता है।
अमित शाह की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि लद्दाख के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि लद्दाख को केंद्र शासित राज्य का दर्जा दिया जाए, ताकि यहां रहने वाले लोग अपने लक्ष्यों को हासिल कर सकें. अब लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है, लेकिन यहां विधानसभा नहीं होगी. रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर को अलग से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है. देश की राजधानी दिल्ली की तरह जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी.
संसद में अमित शाह ने कहा कि कश्मीर में ये गलत धारणा है कि अनुच्छेद-370 की वजह से कश्मीर भारत के साथ है. अमित शाह ने कहा कि कश्मीर भारत के विलय पत्र की वजह से है जिसपर 1947 में हस्ताक्षर किया गया था. गृह मंत्री ने कहा कि वोट बैंक की वजह से विगत दिनों में इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया, लेकिन हमारे पास इच्छा शक्ति है और हम वोट बैंक की परवाह नहीं करते हैं. अमित शाह ने कहा कि अनुच्छेद-370 को हटाने में अब एक सेकेंड की भी देरी नहीं करनी चाहिए. अमित शाह ने कहा कि वे इस मुद्दे पर डिबेट और बहस के लिए तैयार हैं.
जम्मू कश्मीर से धारा 370 के खंड (1) को छोड़कर अन्य सभी प्रावधान हटाने का सरकार का फैसला स्वागत योग्य है इसको हटाने से जो लोग हताश हैं वही लोग कश्मीर को इसी धारा की आड़ में लूट रहे थे जिनकी दुकाने अब बंद हो जाएगी, निश्चित ही यह फैसला कश्मीर, कश्मीरियों व देश के लिए हितकर साबित होगा।
ReplyDelete#जय_हिंद🇮🇳🇮🇳🇮🇳