बाबा विश्वनाथ संग भक्तों ने खेली होली, रंगों में डूबी काशी
औघड़दानी भूतभावन के राजसी ठाटबाट में बाबा की रजत पालकी देखने उमड़ा आस्थावानों का सैलाब
काशीवासियों सहित देश विदेश से आए भक्तों ने अबीर गुलाल चढ़ाकर बाबा का दर्शन-पूजन किया
सुरेश गांधी
वाराणसी।
द्वापर युग के
सबसे बड़े नायक,
संसार को गीता
का ज्ञान और
जीवन का सत्य
बताने वाले भगवान
श्रीकृष्ण की जन्मस्थली
वृंदावन रंगों से सराबोर
है। ऐसे में
सृष्टि के पालनहार
काशीपुराधिपति भगवान भोलेनाथ की
नगरी भला कैसे
अछूती रह सकती
है। और जब
मौका हो रंगभरा
एकादशी का तो
बात ही कुछ
अलग हो जाती
है। भक्तों के
भक्ति का ही
कमाल है इस
दिन बाबा विश्वनाथ
खुद अपने भक्तों
संग होली खेलते
हैं। शाम पांच
बजे औघड़दानी भूतभावन
के राजसी ठाटबाट
में बाबा की
बरात निकली। गौरी-गणेश के
साथ रजत पालकी
में सवार बाबा
की शोभायात्रा निकली।
महंत आवास
से गर्भगृह और
आसपास की गलियों
तक का इलाका
भक्तों से इस
कदर पटा मानो
पूरे श्रीकाशी विश्वनाथ
मंदिर परिक्षेत्र में
उत्साह -उल्लास का समंदर
लहरा उठा हो।
भक्तों ने भोलेनाथ
को गुलाल से
लाल कर नेग
के तौर पर
होली खेलने और
हुड़दंग मचाने की अनुमति
ली। इसी के
साथ ही भोलेनाथ
की नगरी में
छह दिवसीय होली
उत्सव की शुरूआत
हो गई है। मंदिर के मंहत
आवास पर ब्रह्म
मुहूर्त में बाबा
एवं माता पार्वती
की चल प्रतिमाओं
को पंचामृत स्नान,
षोडशोपचार पूजन, दुग्धाभिषेक के
बाद बाबा को
फलाहार का भोग
लगाकर महाआरती की
गई। इसके बाद
वर-वधू रूप
में उनका श्रृंगार
एवं सिंदूर दान
के बीच कलाकारों
द्वारा मंगलगान किया गया।
शाही पगड़ी लगाए
और सिर पर
सेहरा सजाए बाबा
का सविधि पूजन-अनुष्ठान किया गया।
दोपहर में झांकी
दर्शन जन सामान्य
के लिए खोल
दिए गए। सपरिवार
सजा बाबा दरबार
और भक्तों ने
दर्शन किया।
मंदिर के महंत
डा. कुलपति तिवारी
ने आरती कर
गौरा को ससुराल
के लिए विदा
किया। इसके साथ
ही शहनाई की
तान, शंखनाद व
108 डमरुओं की थाप
से मंदिर परिसर
गूंज उठा। महंत
डॉ. कुलपति तिवारी
के आवास पर
सुबह ही मां
पार्वती के हल्दी
की रस्म पूरी
की गई। महिलाएं
साज-श्रृंगार करने
में जुट गईं।
मंगलगीत गूंजने लगे। मध्याह्न
12 भोग आरती के
दौरान दर्शन का
क्रम रुका रहा।
काशी
विश्वनाथ मंदिर के महंत
डा. कुलपति तिवारी
ने बाबा की
मध्याह्न भोग आरती
की। इस दौरान
हरहर महादेव के
जयघोष से पूरा
परिसर गूंज उठा।
पूजन कक्ष से
लेकर आंगन तक
भक्तगणों ने एक
साथ जयघोष करके
बाबा के सांकेतिक
आगमन पर हर्ष
व्यक्त किया। इसके बाद
पालकी शोभायात्रा के
रुप में निकली।
गौरा का गौना
कराने निकले काशीपुराधिपति
बाबा विश्वनाथ की
रजत सिंहासन वाली
पालकी में बाबा
सपरिवार विराजमान थे।
रास्ते में हर
कोई बाबा को
अबीर गुलाल अर्पित
करता दिखा। मानो
दुल्हन पार्वती के साथ
गृह प्रवेश से
पहले भक्तों की
टोली श्नेग्य लेने
पर उतारू हो।
नेग भी रुपये
पैसे या सोना
चांदी का नहीं,
बाबा की कृपा
का, आशीष का,
जय का, विजय
का। काशीवासियों सहित
देश विदेश से
आए भक्तों ने
अबीर गुलाल चढ़ाकर
बाबा का दर्शन-पूजन किया।
चारों तरफ हर
हर महादेव के
जयकारे के साथ
रंग बरस रहे
थे। कतारबद्ध श्रद्धालु
डमरूनाद कर रहे
थे।
गली हो
सड़क अबीर-गुलाल
से पट कर
लाल हो गईं।
छतों, बारजों, गलियों
के दोनों किनारों
पर कतारबद्ध पुरुषों,
महिलाओं, बच्चों ने गुलाब
की पंखुड़ियां भी
बरसाईं और रंग-बिरंगे गुलाल भी।
विश्वनाथ मंदिर के पूजारी
के साथ अन्य
भक्त पालकी लेकर
चल रहे थे।
गली से जब
डोली गुजरी तो
छतों, बारजों के
अलावा हर कोने
से अबीर-गुलाल
उड़ाए जाने लगे।
स्वर्ण शिखरों वाले मुक्तांगन
का हर कोना
लाल-गुलाल से
पट गया। उस
छटा को निहारने
के लिए लोकतंत्र
के महापर्व के
बावजूद काशी की
धर्मप्राण जनता उमड़
पड़ी थी।
शिव के
वेश में त्रिशूल
लेकर नृत्य करते
भक्त उस मौके
पर चार चांद
लगा रहे थे।
महंत के आवास
से स्वर्ण शिखरों
वाले मुक्तांगन तक
जन सैलाब के
सिर से पैर
तक गुलाल से
रंग जाने से
कोई किसी को
पहचान भी नहीं
पा रहा था।
शिव परिवार की
रजत प्रतिमाओं को
गर्भगृह में स्थापित
किया गया। बाबा
के गौना पर
संगीत संध्या शिवार्चनम
में सुर साज
गूंजे। अब पांच
दिन तक घाटों
से लेकर गलियों
तक होलियाना बहार
छाई रहेगी। लोगों
को एक दूसरे
के साथ जमकर
होली खेलते देखा
जा रहा है।
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