बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ अब चांदी के पलंग पर करेंगे रात्रि विश्राम
आधुनिकता और प्राचीनता का संगम है श्री काशी विश्वनाथ धाम। नए कलेवर में इसकी भव्यता देख हर कोई निहाल है। खासकर गर्भगृह से शिखर तक स्वण जड़ित होने के बाद जो भी भक्त मंदिर पहुंच रहा, वो पलक झपाएं बगैर निहारता ही जा रहा है। मंदिर की अद्भुत छटा, रंग-बिरंगी लेजर रोशनी में डूबा बाबा धाम में अब एक और सज्जा की कड़ी जुड़ गयी है। बाबा का गर्भगृह सोने का होने के बाद अब उनके शयन के लिए पलंग-विछावन भी चांदी की होगी। या यूं कहे बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ अब शयन आरती के बाद चांदी की पलंग पर विश्राम करेंगे। यह पलंग 25 किलो के चांदी की है। इसकी कीमत लगभग 12 लाख रुपये बतायी जा रही है। चांदी के इस पलंग को तमिलनाडू के नाटकोट्टाई नगरम क्षेत्रम संस्था ने श्री काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को दान किया है। बता दें, यही सोसायटी प्रतिदिन बाबा के भोग की व्यवस्था देखती है
सुरेश गांधी
फिरहाल सावन के इस पवित्र
महीने में महादेव के इस नवनिर्मित
धाम की भव्यता उनके
भक्तों को खूब भा
रही है, अभिभूत कर रही है।
भक्त काशी विश्वनाथ धाम को यूनेस्को की
विश्व धरोहर सूचि में शामिल कराने की मांग तक
करने लगे है। भला क्यों नहीं, काशी विश्वनाथ मंदिर का पांच सौ
बरस पहले वाला भव्य स्वरूप जो लौट आया
है। काशी विश्वनाथ धाम के बहाने काशी
में इतिहास की एक ऐसी
स्वर्ण मंजूषा निर्मित हुई है जो सालों
साल तक अपनी ऊर्जा
से धर्म-संस्कृति के इस धाम
को रोशन करती रहेगी। आज जिस दिव्य
एवं भव्य काशी विश्वनाथ धाम की सृष्टि हुई
है, वह प्रधानमंत्री मोदी
के मस्तिष्क में पनपा ऐसा विचार था जिसने इतिहास
का कायापलट कर दिया। द्वादश
ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी
विश्वनाथ मंदिर का पुरातन वैभव
इस आधुनिक नवनिर्माण के आलोक में
और भी प्रकाशमान व
गौरवशाली हो उठा है।
काशी विश्वनाथ धाम के जरिये इस
महान तीर्थ को उसकी ऐतिहासिक,
धार्मिक व सांस्कृतिक आभा
के साथ मोक्षदायिनी गंगा से जोड़ने वाले
प्रधानमंत्री मोदी ही हैं। यह
मोदी जी की ही
दृष्टि है कि काशी
विश्वनाथ मंदिर का जो परिसर
पहले 5 हजार वर्गफीट में भी नहीं था,
उस परिसर का दायरा अब
बढ़कर 5 लाख 27 हजार 730 वर्ग फीट तक हो गया
है। मतलब साफ है काशी पुरातनता
को सहेजे आधुनिकता के रंग में
रंग रही है। नित नए विकास के
सोपान को गढ़ रही
है। प्राचीन अंदाज के साथ ही
पांरपरकि अंदाज को कायम रखने
की ही कवायद चल
रही है। उसकी भव्यता में रविवार को एक कड़ी
और जुट गयी है। अब बाबा विश्वनाथ
की शयन आरती भी भव्य और
दिव्य होगी। नाटकोंट्टई नगर क्षेत्रम प्रबंध सोसायटी ने 25 किलों की चांदी का
बिस्तर-विछावन श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर को दान दिया
है।
बता दें, बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के वैभव में
लगातार निखार आ रहा है।
हाल ही में बाबा
विश्वनाथ के मंदिर के
गर्भगृह के अंदर और
बाहर की दीवारों पर
60 किलो सोने की परत चढ़ाई
गई थी। इससे मंदिर की भव्यता देखते
ही बन रही है।
बाबा के धाम में
आने वाला हर भक्त बाबा
के स्वर्णिम मंदिर की आभा देखकर
अभिभूत है। स्वजमीन से आठ फीट
की ऊंचाई तक सोना लगाया
गया है। इसके बाद शिखर से लेकर चौखट
तक पूरी तरह से स्वर्णमयी हो
गया है। लेकिन अब बाबा विश्वनाथ
का पलंग-विछावन भी चांदी की
होगी। या यूं कहे
बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ अब शयन आरती
के बाद चांदी की पलंग पर
विश्राम करेंगे। यह पलंग 25 किलो
के चांदी की है। इसकी
कीमत लगभग 12 लाख रुपये बतायी जा रही है।
चांदी के इस पलंग
को तमिलनाडू के नाटकोट्टाई नगरम
क्षेत्रम संस्था ने श्री काशी
विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को दान किया
है। यही सोसायटी प्रतिदिन बाबा के भोग की
व्यवस्था देखती है.
इस पलंग को बाबा विश्वनाथ
के जलाभिषेक के बाद शयन
आरती के चक्त संस्था
द्वारा अर्पित किया गया। मंदिर के मुख्य पुजारी
श्रीकांत मिश्रा ने बताया कि
राजराजेश्वर काशीपुराधिपति का रजत पलंग
करीब 15 वर्ष बाद भक्त के सहयोग से
बदला गया है। बाबा विश्वनाथ शयन आरती के बाद अब
इसी नए रजत पलंग
पर ही रात्रि विश्राम
करेंगे। यह नया पलंग
25 किलो चांदी से बना है।
इसे एक दक्षिण भारतीय
श्रद्धालु ने श्रीकाशी विश्वनाथ
मंदिर प्रबंधन को दान किया
है। नंदवनम परिसर में तीन दिवसीय महारुद्र यज्ञ की पूर्णाहुति में
इसे बाबा दरबार में रखा गया। इस पलंग-विछावन
को तमिलनाडु के मदुरई निवासी
शिवभक्त ए एन सुब्बा
ने बाबा श्री काशी विश्वनाथ के रात्रि विश्राम
के लिये चांदी का नया आसन
तैयार किया है।
श्री काशी नाटकोंट्टई नगर क्षेत्रम् प्रबंध सोसाइटी का सिगरा-रथयात्रा मार्ग पर बगीचा है। बीते 300 साल से इसी बगीचे के बेलपत्र बाबा विश्वनाथ को चढ़ाए जाते हैं। यही संस्था बाबा विश्वनाथ की रोजाना होने वाली आरती की व्यवस्था भी करती है। इसके अलावा बाबा विश्वनाथ धाम के अन्नक्षेत्र में श्रद्धालुओं के फ्री प्रसाद की जो व्यवस्था शुरू की गई है, उसका जिम्मा भी इसी सोसाइटी के पास है। वाराणसी के सिगरा स्थित शिक्रा अन्ना मलईयार नंदवनम परिसर में गो पूजन के साथ महारुद्र यज्ञ का श्री गणेश किया गया. साथ ही नंदवनम् में विश्व कल्याण के लिए आयोजित तीन दिवसीय महारुद्र यज्ञ में देश और विदेशों से भक्त आए हुए हैं. इस यज्ञ के लिए 1008 कलश में गंगाजल लाया गया है. यज्ञ का शुभारंभ विनायक मंदिर के मुख्य पुजारी शिवाचार्य डॉ पिच्चई कूड़कर द्वारा गो पूजन के साथ किया गया. साथ ही दक्षिण भारत के 108 वैदिकों द्वारा श्रीसूक्त के मंत्रों की 1 लाख 8 आहुतियां की गईं. रविवार को यज्ञ पूरा होने के बाद कलश यात्रा से अभिमंत्रित गंगाजल से बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक किया गया। इसके बाद पलंग को बाबा श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन को अर्पित किया गया। बाबा का धाम जबसे भव्य हुआ है उसके बाद से न सिर्फ श्रद्धालुओं की संख्या बल्कि चढ़ावा राशि में भी लगातार वृद्धि हो रही है। श्रद्धालु अपनी-अपनी क्षमता के मुताबिक दान भी दे रहे हैं। इसी काराण अब तक के इतिहास में इस वित्तीय वर्ष में रिकार्ड चढ़ावा मंदिर में चढ़ा है। यही नहीं, पिछले दिनों गुप्त दान में मिले करीब 60 किलो सोने से मंदिर के गर्भगृह और बाहरी दीवारों को स्वर्ण मंडित किया गया है।
ब्रह्मांड रूप में विराजमान हैं बाबा विश्वनाथ
कहा जाता है कि काशी
भगवान शिव के त्रिशूल पर
टिकी है। दूर-दूर से लोग यहां
बाबा विश्वनाथ के दर्शन के
लिए आते हैं। काशी को सबसे पवित्र
शहरों में से एक माना
जाता है। मान्यता है कि भगवान
विश्वनाथ यहां ब्रह्मांड के स्वामी के
रूप में निवास करते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है।
ये ज्योतिर्लिंग मंदिर गंगा नदी के पश्चिम घाट
पर स्थित है। काशी को भगवान शिव
और माता पार्वती का सबसे प्रिय
स्थान माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक काशी
में बाबा विश्वनाथ के दर्शन मात्र
से ही पापों से
मुक्ति मिल जाती है और मृत्यु
के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती
है। वैसे तो ये पूरा
जगत शिवमय है। क्योंकि शिव ही इस जगत
के आधार हैं। लेकिन काशी के कण-कण
में देवत्व की बात कही
जाती है। यहां बाबा विश्वनाथ के चमत्कार की
ढेरों कहानियां भरी पड़ी हैं। कहते है जब पृथ्वी
का निर्माण हुआ था तब प्रकाश
की पहली किरण काशी की ही धरती
पर पड़ी थी। तभी से काशी ज्ञान
तथा आध्यात्म का केंद्र माना
जाता है। धर्मग्रन्थों और पुराणों में
भी काशी को मोक्ष की
नगरी कहा गया है, जो अनंतकाल से
बाबा विश्वनाथ के भक्तों के
जयकारों से गूंजती आयी
है। कहते हे सावन में
यहां आकर भोले भंडारी के दर्शन कर
जिसने भी रूद्राभिषेक कर
लिया, उसकी सभी मुरादें हो जाती हैं।
जीवन धन्य हो जाता है।
गंगा में स्नान करने मात्र से सभी पाप
धुल जाते हैं। उसके लिए मोक्ष के द्वार खुल
जाते हैं। यहां आने भर से ही
भक्तों की पीड़ा दूर
हो जाती है। तन-मन को
असीम शांति मिलती है। क्योंकि यहां स्वयं भगवान शिव माता पार्वती संग विराजते हैं।
मुगलों ने कई बार तोड़ा
भारत में आने वाली चीनी यात्री ह्वेनसांग, जिसने हमारे देश के इतिहास के
बारे में काफी प्रमाणिक जानकारी लिख रखी है, ने खुद काशी
विश्वनाथ मंदिर के तोड़े जाने
का उल्लेख आपने दस्तावेजों में किया है. अन्य इतिहासकारों
के लिखे अनुसार 1194 ई. में मोहम्मद
गोरी ने इस मंदिर
को लूटने के बाद तोड़
दिया था. इसे बाद में फिर से कुछ प्रयासों
से निर्मित किया गया, पर 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद
शाह ने इस पर
धावा बोलकर मंदिर को फिर से
तोड़ दिया. 138 साल बाद बाबा विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की फिर से
सुध ली गई और
1585 ईस्वी में अकबर के नवरत्नों में
से एक राजा टोडरमल
मंदिर ने इसके जीर्णाद्धार
में रूचि दिखाई। मंदिर की भव्यता के
समक्ष इसके आगे और भी बड़े
खतरे पैदा होते रहे. मुगल वंश के एक और
बादशाह जहांगीर के बेटे शाहजहां
को भी इस मंदिर
की प्रसिद्धि रास नहीं आई और सन
1632 में उसने भी इसे तोड़ने
का फरमान जारी कर दिया. उसने
इसे तोड़ने अपने सिपहसालार सहित सैनिक भी भेज दिए
थे. उन्होंने काशी विश्वनाथ के आासपास के
63 मंदिरों को तोड़ दिया.
जब बाबा विश्वनाथ के केंद्रीय मंदिर
को तोड़ने वह लोग आगे
बढ़े तो काशी विश्वनाथ
के भक्त उनसे टक्कर लेने आगे खड़े हो गए. इस
प्रतिरोध के कारण उन्हें
केंद्रीय मंदिर तोड़े बिना ही जाना पड़ा.
बाद में शाहजहां के बेटे औरंगजेब
ने अपने पिता के कदमों पर
चलते हुए इस मंदिर पर
सबसे बड़ा प्रहार किया. कट्टरवाद से ग्रस्त इस
शासक ने 18 अप्रैल 1669 को काशी विश्वनाथ
मंदिर को ढहाने का
फरमान जारी किया. उसके फरमान को तामील करते
हुए पांच महीनों में ही 2 सितंबर 1669 तक मंदिर को
तोड़ दिया और औरंगजेब को
उसकी मंशा पूरी होने की जानकारी भेज
दी गई. औरंगजेब के इस काले
कारनामे का उल्लेख शाकी
मुस्तइद खान की लिखी किताब
मस्सिरे आलमगिरी में स्पष्ट मिलता है. पुराने आर्काइव को संजोने वाली
कोलकाता की एशियाटिक लाइब्रेरी
में औरंगजेब का उस समय
जारी किया गया फरमान आज भी रखा
हुआ है और काशी
विश्वनाथ मंदिर पर हुए हमले
की याद दिलाता है।
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