आज से होगा दो दिवसीय सूर्योपासना और भारत का पुनरुत्थान विषयक संगोष्ठी का आयोजन
संगोष्ठी में
देश
के
कोने-कोने
से
आएंगे
विद्वान,
रखेंगे
अपना
विचार
कश्मीर की
भारतीय
अस्मिता
के
पक्षों
को
सामने
लाना
के
अलावा
झूठे
और
विकृत
कथा
प्रसंग
को
चुनौती
देने
में
मार्तंड
के
सूर्य
मंदिर
के
संभावित
जीर्णोद्वार
की
भूमिका
नी
होगी
चर्चा
सुरेश गांधी
वाराणसी। सर्वज्ञपीठ कांची कामकोटिपीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य विजयेन्द्र सरस्वती जी महाराज के
चातुर्मास महोत्सव के अंतर्गत उन्हीं
के सानिध्य में दो दिवसीय 23 एवं
24 सितम्बर को सूर्योपासना और
भारत का पुनरुत्थान विषयक
संगोष्ठी का आयोजन किया
गया है। संगोष्ठी में भारत में सूर्य उपासना के पुनरोदय व
भारत का पुनरुत्थान विषय
पर देश के कोने-कोने
से आएं विद्वान अपना विचार रखेंगे।
जम्मू कश्मीर मंदिर चैतन्य विकास समिति एवं कश्मीर मामलों के जानकार एवं
संगोष्ठी के संयोजक सुशील
पंडित ने पत्रकारों से
बातचीत करते हुए बताया कि संगोष्ठी चेतसिंहि
किला में चल रहे महोत्सव
स्थल पर ही होगा।
संगोष्ठी के अनेक उद्देश्य
हैं। उसमें कश्मीर की भारतीय अस्मिता
के पक्षों को सामने लाना
के अलावा इस पर भी
विचार करना है कि उसे
झूठे और विकृत कथा
प्रसंग को चुनौती देने
में मार्तंड के सूर्य मंदिर
के संभावित जीर्णोद्वार की क्या भूमिका
हो सकती है, जो कश्मीर को
शेष भारत के इतिहास और
संस्कृति से तथाकथित रूप
से अलग मानता है। सुशील पंडित ने बताया कि
संगोष्ठी में भाग लेने देश के जाने-माने
मनीषी काशी आ रहे हैं।
इनमें प्रो कपिल कपूर, प्रो नवजीवन रस्तोगी, प्रो सोमदेव सीतांशु, प्रो योगेंद्र सिंह, प्रो चंद्रशेखर शर्मा, डॉ जनार्दन हेगडे,
स्वामी स्वात्मानंद के अलावा काशी
के विद्वानों में प्रो हृदय रंजन शर्मा, प्रो विजय शंकर शुक्ला, प्रो सदाशिव द्विवेदी, प्रो वशिष्ठ त्रिपाठी आदि शामिल है। इस संगोष्ठी के
पिठाधिपति के रूप में
डॉ शशिशेखर तोशखानी के मार्गदर्शन का
लाभ मिलेगा।
पंडित सुशील ने कहा कि
सूर्य की एक देवता
के रूप में पूजा उपासना सृष्टि के आरंभ से
ही भारतीय जनमानस के धार्मिक सांस्कृतिक
संस्कारों का एक अभिन्न
अंग रही है। सूर्य को विश्व में
जीवन का आदि स्रोत
और पोषणकर्ता मानते हुए उसके प्रति एक गहरा श्रद्धाभाव
यहां के लोगों में
सदा रहा है। उसे एक ऐसी देदीप्यमान
नैसर्गिक शक्ति के रूप में
हम पूजते आए हैं जो
अंधकार को दूर कर
सारे विश्व ब्रह्मांड को अपनी दिव्य
आभा से आलोकित कर
देती है। वेदों की ऋचाओं में
सूर्य को आकाश में
चिर जागृत चक्षु कहकर उसकी स्तृति की गयी है,
जो उस सब का
साक्षी हैजो विश्व ब्रह्मांड में होता रहता है। सूर्य देवता की सार्वजनिक पूजा
की लोकप्रियता और जीवंतता की
इससे बढ़कर और क्या अभिव्यक्ति
हो सकती है कि पूर्व
मध्य युग में पूरे देश में उसके लिए मंदिरों की स्थापना की
गई। इनमें सायद सबसे प्राचीन और सबसे भव्य
सूर्य मंदिर मुल्तान में था जिसे बाद
में महमूद गजनी ने नष्ट कर
दिया। उड़ीसा में 13वीं शताब्दी में निर्मित कोणार्क का विशाल और
भव्य सूर्य मंदिर अपनी स्थापत्य और मूर्ति शिल्पकला
के लिए सारे विश्व में इतना प्रसिद्ध है कि यूनेस्को
ने उसे वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित कर दिया।
मुस्लिम आक्रांताओं ने इस मंदिर
पर भी आक्रमण करके
उसकी मुख्य सूर्य मूर्ति को नष्ट कर
दिया था। गुजरात में मोढेरा का मंदिर भी
देश के सूर्य मंदिरों
के शिल्प गौरव का एक और
उदाहरण है। सूर्य उपासना के मंदिरों की
इसी अद्भुत श्रृंखला में कश्मीर का मार्तंड मंदिर
निर्माण शैली की सुंदरता और
गरिमा का आश्चर्यचकित करने
वाला साक्ष्य प्रस्तुत करता है। इसका निर्माण आठवीं शताब्दी में कश्मीर के सम्राट ललित
आदित्य ने किया, जिन्हें
उतना ही महान कला
और संस्कृति का संरक्षक माना
जाता है जितना एक
महान विजेता। लेकिन इसे 14वीं शताब्दी में बूतकिशन कहे जाने वाले शाहमीरी वंश के धर्मोंन्मादी सुल्तान
सिकंदर ने ध्वस्त किया।
आज यह पूरी तरह
एक भग्नावशेष की अवस्था में
है। मार्तंड के सूर्य मंदिर
के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि
इसका निर्माण संस्कृत शिल्प शास्त्रों में दिए गए नियमों पर
आधारित है और यह
कला और स्थापत्य की
भारतव्यापी हिंदू परंपराओं के साथ कश्मीर
की संबद्धता को दृढ़ता से
रेखांकित करता है। इन शिल्पशास्त्रों में
विष्णु धर्मोत्तर पुराण भी शामिल है
जिसकी रचना कश्मीर में हुई बताई जाती है। भारत में सूर्य उपासना का आज तीव्र
हास्र हुआ है। सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना बंद है और प्रार्थना
के बोल नहीं गुंजते। नए सूर्य मंदिरों
का निर्माण नहीं हो रहा है।
इससे भारत की आध्यात्मिक ऊर्जा
छिन्न हुई है। हाल ही में भारत
के कुछ सुप्रतिष्ठित ज्योतिषाचार्यो ने सावधान किया
है कि यह स्थिति
देश के लिए अमंगलकारी
सिद्ध हो सकती है।
उनके अनुसार देश के भविष्य के
लिए आवश्यक है कि देश
के मंदिरों में सूर्य देवता की उपासना फिर
से जीवंत रूप में आरंभ हो और कश्मीर
मार्तंड जैसे भग्न सूर्य मंदिरों का नया निर्माण
हो। इसी घटना स्थिति की पृष्ठभूमि एवं
कांची काम कोटी पीठासीन शंकराचार्य जगतगुरु शंकर विजेन्द्र सरस्वती जी के संरक्षण
में यह संगोष्ठी आयोजित
है।
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