Friday, 12 July 2024

बायोमिट्रिक्स के साथ तीसरी आंख की नजर में हो पठन-पाठन?

बायोमिट्रिक्स के साथ तीसरी आंख की नजर में हो पठन-पाठन?

      अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए शिक्षकों की डिजिटल अटेंडेंस जितना जरुरी है, उससे भी कहीं अधिक स्कूल में होने वाली उनके क्रियाकलापों पर भी ध्यान रखना जरुरी है। यह तभी संभव हो पायेगा, वे तीसरी आंख की निगरानी में हो। यह अलग बात है कि अभी शिक्षक बायोमेट्रिक्स लागू होने पर ही हाय-तौबा करने मचाने लगे है। जबकि बच्चों के अभिभावक सरकार के इस कदम की सराहना कर रहे हैं। देखा जाएं तो अच्छी  शिक्षा के लिए शिक्षक का योग्य होना अति आवश्यक है। इसलिए शिक्षकों की भर्ती के समय सतर्कता बरती जानी चाहिए। साथ ही शिक्षा व्यवस्था में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप का स्वागत करना चाहिए। खासकर शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार के लिए सबसे जरूरी है छात्रों शिक्षकों का स्कूल में निर्धारित समय तक ठहराव होने के साथ ही सीखने सिखाने की प्रक्रिया ठीक तरह से संपन्न हो। विषय अनुसार पर्याप्त शिक्षकों की पदस्थापना सत्रारंभ से पूर्व ही कर दी जाएं। बता दें, स्कूल आने और जाने के दौरान शिक्षकों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए शासन ने ऑनलाइन हाजिरी दर्ज करने के आदेश दिए थे। साथ ही स्कूल के 12 रजिस्टर को डिजिटल करने के भी आदेश दिए थे। पूर्व में राज्य परियोजना निदेशक कंचन वर्मा ने नई व्यवस्था 15 जुलाई से शुरू करने के आदेश दिए, लेकिन दो दिन पहले अचानक निदेशक की ओर से इस आदेश में संशोधन कर दिया गया है। नया आदेश जारी करते हुए यह व्यवस्था आठ जुलाई से ही लागू कर दी गई है। अब परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत समस्त अध्यापकों, कार्मिकों को प्रतिदिन अपनी उपस्थिति विद्यालय आगमन-प्रस्थान का समय सोमवार से डिजिटल उपस्थिति पंजिका में दर्ज करने के लिए कहा गया है। देरी से पहुंचने वाले शिक्षकों के नाम के आगे () यानी अनुपस्थित दर्ज हो जाएगा। नए फरमान से शिक्षकों में खलबली है। इसे लेकर शिक्षक संगठन भी विरोध में हैं

सुरेश गांधी 

फिरहाल, केन्द्र प्रदेश सरकारों की तत्परता से वर्तमान शिक्षा प्रणाली में कुछ हद तक सुधार तो हो रहा है, लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। अब भी शिक्षा के क्षेत्र में खासकर प्राइमरी एजुकेशन में अनेक त्रुटियां व्याप्त हैं। जबकि अगर बच्चे की प्राइमरी शिक्षा मजबूत हो गयी तो आगे अड़चने आयेंगी ही नहीं। इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतरीन बनाने के लिए अध्यापकों के पढ़ाने के तरीकों से लेकर उनके आचरण बच्चों के साथ व्यवहार में बदलाव लाने होंगे। आरंभ से ही विद्यार्थियों की नींव मजबूत करने की दिशा में मेहनत करनी होगी। पाठ्यक्रम में व्यावहारिक जीवन संबंधी जानकारियों को स्थान दिया जाना चाहिए। स्कूलों के निरीक्षण की व्यवस्था के साथ अध्यापकों ककी उपस्थिति से लेकर उनके पठन-पाठन की निगरानी होनी ही चाहिए। मतलब साफ है सरकार द्वारा स्कूलों में अध्यापकों की उपस्थिति शत-प्रतिशत बनाएं रखने के लिए बायोमेट्रिक्स हाजिरी की सराहना तो होनी चाहिए, सरकार को चाहिए कि स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की पठन-पाठन से लेकर बच्चों के साथ उनके बर्ताव की भी निगरानी हो। ऐसा इसलिए क्यों कि अब कई स्कूलों से शिकायत आती है कि बच्चे स्कूल नहीं रहे है। इसमें कई बच्चे अध्यापकों के बर्ताव तो कई उनके शिक्षण शैली से खफा है। इसके अलावा शिक्षा शुल्क, इतना कम हो कि उसे साधारण श्रेणी के लोग भी आसानी से उठा सकें। कहीं कहीं तो शिक्षा के सभी संसाधन मसलन पाठ्यक्रम, भवन, राशि एवं शिक्षक वर्ग उपलब्ध होने के बावजूद गुणवत्ता में कमी का मुख्य कारण भाषा पर विद्यार्थी एवं शिक्षक वर्ग दोनों का ही समुचित अधिकार होना है। भाषा ही सम्प्रेषण का माध्यम है और विषय भी भाषा के द्वारा ही समझाया जा सकता है। भाषा पर अधिकार होगा, तब ही विद्यार्थी विषय विशेष पर अपनी पकड़ बना सकेगा।

कहने का अभिप्राय यह है कि शिक्षा पर हर बच्चे का पूरा अधिकार है, लेकिन सभी को गुणवत्तापूर्ण  शिक्षा नहीं मिलती। हर बच्चे तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पहुंचाने के लिए सरकारी विद्यालयों को आगे आना होगा। कई गांवों और शहरों में छोटे-छोटे सरकारी स्कूल हैं, जो सिर्फ नाम मात्र के लिए चल रहे हैं। इन स्कूलों को बंद करके हर शहर-कस्बे में मॉडल स्कूल खोले जाने चाहिए। इन विद्यालयों में शिक्षकों की कमी नहीं होनी चाहिए। सरकारी शिक्षकों को अन्य कामों में भी ज्यादा व्यस्त रखा जाता है, जिसका असर सीधे पढ़ाई पर पड़ता है, सरकार को इस मसले पर भी ध्यान देने की जरुरत है। मतलब साफ है वर्तमान शिक्षा को विकासोन्मुखी तथा व्यावसायोन्मुखी बनाना होगा, ताकि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सके। शिक्षा प्राप्त करके बच्चे आत्मविश्वास से भरे नागरिक बन सकें। स्कूलों में बेसिक कंप्यूटर  शिक्षा अनिवार्य करें। खेलकूद गतिविधियां नियमित रूप से जारी रहें। सप्ताह में पांच दिन पाठ्यक्रम से अतिरिक्त गतिविधि भी लगातार जारी रखें। भारत गांवों का देश है। इसलिए शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए गांवों से शुरुआत की जाएं। सरकारी हो या प्राइवेट शिक्षक पूरी तरह प्रशिक्षित हो। वह विषय का ज्ञाता तो हो ही, छात्रों को विषय समझाने में भी निपुण हो। इसके अलावा पाठ्य सामग्री मुफ्त में उपलब्ध हो। शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार के लिए शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्यों से मुक्त किया जाए तथा शिक्षकों को समय पर उपयुक्त संसाधन उपलब्ध करवाए जाएं, जिससे शिक्षक उनका सदुपयोग कर सकें। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करके विद्यार्थियों को किताबी कीड़ा बनाकर उनको ठीक तरह से शिक्षित करना चाहिए। पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए, जिसे शिक्षक और बच्चे दोनों बोझ समझें, उसे भलीभांति पढ़ें। शिक्षा के लिए बनाई गई आधुनिक तकनीकों को सरकारी स्कूल और निजी स्कूल दोनो से जोडऩा होगा। शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए दो चीजें आवश्यक हैं।

पहली पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अपडेट किया जाए और दूसरा कौशल आधारित शिक्षा पर ध्यान दिया जाएं। पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अपडेट करने से विद्यार्थियों को समय के साथ बदलते हुए परिवर्तन का ध्यान रहेगा। कौशल आधारित शिक्षा से उनमें नए कौशल का निर्माण होगा और शिक्षा रोजगारोन्मुखी होगी। शैक्षिक गुणवत्ता में सुधार के लिए शिक्षा में जीवन मूल्यों और रोजगारपरक व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष जोर देना होगा। हमें विद्यालय के आधारभूत संरचनात्मक ढांचे को आधुनिक सुविधा युक्त बनाने के साथ-साथ शिक्षकों को बेहतर शिक्षण विधियों का व्यावहारिक स्तर पर भी प्रशिक्षण देना होगा। हमें शिक्षा के क्षेत्र में और अधिक नवाचार और तकनीकों का उपयोग करना चाहिए ताकि पढ़ाई बच्चों के लिए रोचक और समझने में आसान हो सके। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने सरकारी स्कूलों के सभी शिक्षकों और कर्मचारियों की हाजिरी को लेकर आदेश जारी किया है. इस आदेश के बाद शिक्षकों ने ऑनलाइन हाजिरी का विरोध शुरू कर दिया है. जबकि सोशल मीडिया से लेकर हर प्लेटफार्म पर सरकार के इस कदम की सराहना की जा रही है। आदेश के मुताबिक डिजिटल अटेंडेंस को लेकर सरकार सख्त है. इसको लेकर जारी आदेश में कहा गया है कि तीन दिन तक ऑनलाइन हाजिरी दर्ज कराने वालों का वेतन रोक दिया जाएगा. डिजिटल अटेंडेंस दर्ज कराना विभागीय आदेश की अवहेलना मानी जाएगी. ऐसी स्थिति में अनुशासनात्मक कार्रवाई होगी. माना जा रहा है कि इस तरह की सख्ती से शिक्षा क्षेत्र में अनुशासन और कार्यप्रणाली में सुधार होगा और सकारात्मक बदलाव आएंगे. वहीं इस मामले पर राजनीति भी तभी तेज हो गई है. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं. जबकि डिजिटल अटेंडेंस शिक्षकों और छात्रों दोनों के लिए फायदेमंद है. भले ही इसे व्यावहारिक नहीं कहा जा रहा है, लेकिन इससे केवल समय की बचत होती है, बल्कि स्कूल की व्यवस्था को बनाए रखने में भी मदद मिलती है. शिक्षकों को राहत देने के लिए पहले से शेड्यूलिंग की जा सकती है और यह डिजिटल तरीके से ही संभव है. वहीं, शिक्षकों का कहना है कि स्कूल दूर-दराज होने के कारण समय पर पहुंचना मुश्किल होता है, ऐसे में डिजिटल अटेंडेंस से उनका अब्सेंट लग जाएगा।

ऐसे उजागर होगी अध्यापकों का फर्जीवाड़ा

दरअसल, पहले यूपी में बड़े पैमाने पर फर्जी टीचर पढ़ा रहे थे। नौकरी पाने के लिए टीचर कई तरह की जालसाजी कर रहे है। पूरे मामले की जांच मुख्यमंत्री ने साल 2019 में यूपी एसटीएफ को दी। एसटीएफ ने करीब 1500 टीचर्स के खिलाफ कारवाई भी की। जांच में पता चला कि एक ही वख्त में एक टीचर अलग अलग जिलों में कई सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहा है। 2021 में योगी सरकार ने प्रेरणा एप लांच किया। सरकार का कहना है कि डिजिटल हाज़िरी से स्कूलों में गड़बड़ी रुकेगी। सभी टीचर्स को टाइम से स्कूल आना और जाना होगा, जिस टीचर को नौकरी मिली है उसी को पढ़ाना होगा और इससे बच्चों को बेहतर शिक्षा दी जा सकेगी। इसके अलावा परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में लगातार 30 दिन से ज्यादा अनुपस्थित छात्र जिनके किसी परीक्षा में 35 प्रतिशत से कम अंक हैं तो उन्हेंआउट आफ स्कूलविद्यार्थी की श्रेणी में रखा जाएगा.  शासन ने आउट ऑफ स्कूल की परिभाषा में बदलाव करते हुए स्कूलों के बच्चों के लिए विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिए हैं. अगर किसी स्टूडेंट के 35 फ़ीसदी से कम नंबर हैं तो उनके शैक्षिक स्तर में सुधार के लिए अतरिक्त कक्षाएं चलाई जाएंगी. इसके अलावा अभिभावकों की भी काउंसिलिंग होगी. बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. एमकेएस सुंदरम के अनुसार 6 से 14 साल का कोई भी बालक बालिका नामांकित नहीं तो बिना विद्यालय का माना जाएगा. बिना कारण 3 दिन अनुपस्थित रहने पर अभिभावक से संपर्क कर स्कूल बुलाया जाएगा. 6 दिन या उससे अधिक अनुपस्थिति रहने पर प्रधानाध्यापक घर जाकर निरीक्षण करेंगे. शिक्षा विभाग द्वारा जारी दिशा निर्देश के मुताबिक अगर छात्र 6 महीने में लगातार 15 दिन गैरहाजिर रहता है तो दूसरी तिमाही की अभिभावक-शिक्षक मीटिंग में पेरेंट्स की काउंसिलिंग की जाएगी. ऐसे ही शिक्षा सत्र के 9 महीनों में कोई स्टूडेंट लगातार 21 दिन अनुपस्थित है तो तीसरी तिमाही की बैठक में अभिभावकों को चेतावनी दी जाएगी. इसके बाद फिर 30 दिन से ज्यादा अनुपस्थित होने पर किसी भी सतत मूल्यांकन या परीक्षा में उसके 35 फीसदी से कम नंबर हैं तो उसे स्कूल नहीं आने वाले छात्र की श्रेणी में गिना जाएगा.  ऐसे छात्रों के शैक्षिक स्तर में सुधार के लिए विशेष क्लासेज चलाई जाएंगी.

कैसी है सरकार की तैयारी

यूपी सरकार ने स्कूलों को डिजिटल अटेंडेंस के लिए 2,09,863 टैबलेट दिए हैं, जिससे राज्य के 6 लाख 9 हज़ार टीचरों को डिजिटल हाज़िरी लगानी होगी। या यूं कहे 1 लाख 32 हज़ार स्कूलों में हाजिरी लगेगी। अभी 1 करोड़ 80 लाख बच्चे इन स्कूलों में पढ़ते हैं। डिजिटल हाज़िरी क्लास 1 से 8 तक के सरकारी स्कूलों में लगनी है। अभी सरकार ने क्लास 1 से 5 तक के स्कूलों को टैबलेट और कुछ स्कूलों में सिम दिए है। जिससे टीचरों को 1 अप्रैल से 30 सितंबर तक सुबह 745 से 8 बजे तक स्कूल आने पर और दोपहर 215 से 230 तक छुट्टी पर डिजिटल हाज़िरी देनी होगी। 1 अक्टूबर से सरकारी स्कूल का टाइम बदल जाएगा और तब  845 से 9 बजे तक सुबह और दोपहर 315 से 330 तक छुट्टी पर डिजिटल हाज़िरी लगानी होगी। अगर टीचर की डिजिटल हाज़िरी समय पर नहीं होगी तो टीचर एब्सेंट माना जाएगा। हालांकि बेसिक शिक्षा विभाग ने विरोध को देखते हुए सुबह 745 से 8 बजे वाले समय में आधे घंटे की छूट दी थी।

विरोध की वजह

सरकार का ये आदेश 8 जुलाई से लागू हो गया है लेकिन पूरे यूपी के में टीचर डिजिटल हाज़िरी नहीं लगा रहे, काली पट्टी बांधकर विरोध कर रहे है। टीचर्स का कहना है कि सरकार पहले ये आदेश बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर लागू करें। टीचर्स एसोसिएशन का कहना है कि कई स्कूल में जाने की सड़क नहीं, करीब 30 फीसदी स्कूल में जाने की सड़क ठीक है और 60 फीसदी स्कूल में जाने के लिए सरकारी ट्रांसपोर्ट नहीं है। इसकी वजह से कई बार टीचर देर से स्कूल पहुंचते हैं। टीचर्स की छुट्टी कम है, सिर्फ 14 सीएल है जबकि अधिकारियों को 14, 31, 12 सेकेंड सैटरडे की छुट्टी मिलती है। इसके अलावा, स्कूलों की व्यवस्था ठीक नहीं है, सफाई करने वाला नहीं है, टीचरों को खुद स्कूल की सफाई करनी होती है, स्कूल में दिन दिन भर बिजली नहीं आती। ऐसे में पहले स्कूलों को बुनियादी सुविधा देने चाहिए तब डिजिटल हाज़िरी हो। वहीं, स्कूलों में दिन भर लाइट नहीं आती, नेटवर्क की समस्या रहती है ऐसे में डिजिटल हाज़िरी कैसे होगी? बच्चों की डिजिटल हाज़िरी में ही बहुत टाइम लगेगा।

सरकार का तर्क

सरकार ने भी अपना तर्क दिया है। सरकार ने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए कदम उठाया गया है। टीचरों को टाइम से स्कूल पहुंचना चाहिए। इससे टीचर्स के साथ साथ स्कूल में चल रही बाकी योजनाओं पर भी नज़र रखी जाएगी। स्कूल में 12 रजिस्टर होते है जिनमें बच्चों का डिटेल, बच्चों को मिलने वाले मिड-डे मील, ड्रेस, कापी किताब सब का डीटेल होते है। अब ये सब डिजिटल फीड करना होगा। जब बच्चों का एडमिशन स्कूल में होगा तब उनका पूरा ब्यौरा डिजिटल दर्ज करना होगा।

कैसे लगेगी हाज़िरी?

अभी टीचर रजिस्टर में हाजिरी (अटेंडेंस) लगाते हैं, आने जाने का टाइम लिखते हैं। महीने के आखिर में पूरा डिटेल बेसिक शिक्षा विभाग भेजता है। अब टैबलेट के सामने टीचर को अपना चेहरा लाना होगा तब अटेंडेंस होगी। टेबलेट और स्मार्टफोन को ज़ियोफेसिंग से पहचाना जाएगा तब हाज़िरी लगेगी।

सुझाव

शिक्षा विभाग के मुताबिक, अगर किसी स्कूल की बायोमेट्रिक मशीन खराब है, तो वहां के शिक्षकों को टैब के रूप में दूसरा ऑप्शन भी दिया गया है. टैब के ज़रिये शिक्षक हाज़िरी अपडेट कर सकते हैं. यही नहीं, शिक्षक स्मार्टफोन में अटेंडेंस एप का इस्तेमाल भी कर सकते हैं. हालांकि एक स्मार्टफोन से सिर्फ एक शिक्षक की ही अटेंडेंस अपडेट होगी।

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