गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना आत्मा नहीं!
गुरु पूर्णिमा ज्ञान के स्रोत के प्रति कृतज्ञता का उत्सव है। गुरु पूर्णिमा यानी गुरु को नमन करने का दिन है। गुरु पूर्णिमा का पावन महापर्व नई चेतना, नया उल्लास और नई तरक्की का संदेश लेकर शिष्य के समक्ष प्रस्तुत होता है। उसके जीवन में नूतन प्राण फूंकने, आध्यात्मिक कायाकल्प करने व समर्पण को विकसित करने के लिए आषाण माह में पूर्णिमा के दिन इस पावन पर्व का शुभ आगमन होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी रही है। इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। सदा से ही गुरु शिष्य का रिश्ता अनूठा, अनुभव और मधुर रहा है। गुरु के बिना शिष्य का जीवन अधूरा रहता है। उसका आध्यात्मिक विकास गुरु की कृपा से ही संभव हो पाता है । इस बार गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई है। गुरु पूर्णिमा का पर्व आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस साल आषाढ़ पूर्णिमा की तिथि 20 जुलाई को 05ः59 पीएम से प्रारंभ होकर 21 जुलाई को 03ः46 पीएम पर खत्म होगी. जिस तिथि में सूर्योदय होता है, उस दिन वह तिथि मान्य होती है. आषाढ़ पूर्णिमा तिथि में सूर्योदय 21 जुलाई को सुबह 05ः37 ए एम पर होगा. ऐसे में गुरु पूर्णिमा 21 जुलाई रविवार को मनाई जाएगी. गुरु पूर्णिमा के दिन ही स्नान और दान किया जाएगा. उस दिन आप ब्रह्म मुहूर्त में 04ः14 एएम से 04ः55 एएम के बीच स्नान कर सकते हैं. जो इस समय स्नान न कर पाएं, वे सूर्योदय के बाद कर सकते हैं. उसके बाद अपनी क्षमता के अनुसार, चंद्रमा से जुड़ी वस्तुओं का दान करें. खास यह है कि इस साल गुरु पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग का प्रारंभ सुबह में 05 बजकर 37 मिनट से होगा, जो देर रात 12ः14 ए एम तक बना रहेगा. शुभ योगों में सर्वार्थ सिद्धि योग की गणना की जाती है. शुभ कार्यों के लिए यह एक उत्तम योग है. इसके अलावा उस दिन प्रीति योग रात में 9 बजकर 11 मिनट पर लगेगा. उत्तराषाढा नक्षत्र सुबह से लेकर देर रात 12ः14 बजे तक है. चन्द्रमा धनु राशि में सुबह 07ः27 ए एम तक है, उसके बाद मकर राशि में होगा.
सुरेश गांधी
दुनिया के तमाम धर्मों
और समाजों में पथ-प्रदर्शकों
को सबसे ज्यादा अहमियत
दी जाती रही है।
उस व्यक्ति की वंदना की
जाती रही है जो
हमें अपने जीवन के
उद्देश्यों से अवगत कराए।
हमें जीवन की सार्थकता
का बोध कराए, हमारे
जीवन को अर्थपूर्ण बनाए।
उस पथ-प्रदर्शक को
कहीं ईसाई धर्म में
मास्टर कहा गया है
तो इस्लाम में पीर, तो
सनातन धर्म, बौद्ध धर्म और जैन
धर्म में गुरु की
उपमा दी जाती रही
है। समस्त धर्मों में गुरु को
माता-पिता से भी
ऊंचा स्थान मिला है। गुरु
की महानता की वजह से
उन्हें तुलसी ने ‘गुरु शंकर
रुपिणे’ कह कर उनका
मान बढ़ाया है। गुरु की
महत्ता सगुण-निर्गुण में
ही नहीं, नास्तिक, न्याय और सांख्य परंपरा
में भी उतनी ही
रही है। यहां तक
अवैदिक बौद्ध, सिख और जैन
परंपराओं में भी गुरु
को ईश्वर तुल्य स्थान दिया गया है।
इसकी वजह यह है
कि गुरु ज्ञान का
स्रोत है। बिना ज्ञान
के मनुष्य पशु के समान
है। माता-पिता जन्म
तो देते हैं, लेकिन
ज्ञान लब्ध और लक्ष्य
से परिपूर्ण बनाने का कार्य गुरु
ही करता है। वही
हमें ईश्वर से परिचय कराता
है और प्रकाश रूपी
ईश्वर की तरफ ले
जाता है। गुरु के
आशीर्वाद से ही विद्यार्थी
को विद्या आती है। उसके
हृदय की अज्ञानता का
अन्धकार दूर होता है।
गुरु का आशीर्वाद
ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी,
ज्ञानवर्धक और मंगल करने
वाला होता है। संसार
की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा
से ही प्राप्त होती
हैं और गुरु के
आशीर्वाद से ही दी
हुई विद्या सिद्ध और सफल होती
है। फिरहाल, दुनिया के आरंभ से
ही शैक्षणिक ज्ञान आधार एवं साधना
करने और हर मनुष्य
के उद्देश्य गुरु शिष्य परंपरा
का जन्म हुआ। शिष्य
को अंधकार से बचाकर प्रकाश
की ओर ले जाने
वाला ही गुरु कहलाता
है। भारतीय संस्कृति में गुरु का
स्थान ईश्वर से ऊपर माना
गया है। इस दिन
अपने गुरु का आशीर्वाद
प्राप्त कर उनका सम्मान
करना चाहिए। इससे जीवन के
सभी दुख दूर होते
हैं। इस समय पर
अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त
करना चाहिए। सच्चे गुरु का आशीर्वचन
मिलना भी सौभाग्य की
बात है। जिस किसी
ने गुरु की महत्ता
को समझा, परखा व अनुशरण
किया है उसे जरुर
ईश्वर का साक्षात दर्शन
कर लिया होगा। वैसे
भी भारत में गुरु-शिष्य की महान परंपरा
रही है। ऋषि संदीपन
और शिष्य भगवान कृष्ण, विश्वामित्र और श्री राम,
द्रोणाचार्य और अर्जुन के
बारे में सब जानते
हैं, लेकिन ऋषि धौम्य के
शिष्यों आरुणि, उद्दालक और उपमन्यु को
जो स्थान अपने गुरु की
सेवा से मिला, वह
सनातन धर्म में सर्वोत्कृष्ट
है। सूफी इस्लाम में
भी जिन महान गुरु-शिष्यों की परंपरा भारत
में प्रसिद्ध रही है वे
हैं : मोइनुद्दीन चिश्ती और उनके शिष्य
कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, काकी के शिष्य
निजामुद्दीन औलिया, औलिया के शिष्य अमीर
खुसरो। अमीर खुसरो की
गुरु भक्ति के बारे में
तो कहा जाता है
कि वह अपने गुरु
निजामुद्दीन औलिया के निधन से
इतने व्यथित हो गए थे
कि उनके साथ ही
यह कहते हुए चल
बसे कि ‘गोरी सोवै
सेज पर, मुख पर
डारे केस, चल खुसरो
घर आपने, अब रैन भई
चहुं देस।’ गुरु पूर्णिमा पर
जिस किसी ने भी
सच्चे मन से गुरु
का दर्शन पूजन कर लिया
उसे जरुर मिलेगी गुरु
की कृपा। उसे मिल जायेगा
धन-दौलत का आर्शीवाद।
इस दिन माता-पिता
की सेवा करने वालों
से भी परमात्मा प्रसन्न
होते हैं। हालांकि गुरु
एवं माता पिता की
सेवा गुरुपूर्णिमा ही नहीं हर
रोज करनी चाहिए। लेकिन
गुरु पूर्णिमा पर भक्तों की
झोली भरते है गुरुजन।
धर्म जीवन में तभी
सुख दे सकता है,
जब धर्म करने वाले
में असहाय एवं निर्बल के
प्रति दया कि भावना
हो। सत्य का मार्ग
दिखाने वाला ही सर्वश्रेष्ठ
गुरु होता है। क्योंकि
पूर्णिमा के चंद्रमा की
तरह हैं होते है
गुरु। यही वजह है
कि गुरु के त्याग
और तप को समर्पित
है गुरु पूर्णिमा।
हर वक्त गुरु करते है रक्षा
शास्त्रों मे ऐसा कहा
गया है कि अगर
आपको ईश्वर श्राप दे देते हैं
तो आपके गुरु ही
आपकी रक्षा कर सकते हैं,
लेकिन अगर आपको आपके
गुरु ने श्राप दे
दिया तो भगवान भी
आपकी रक्षा नही कर सकते
हैं और न उस
पाप से आपको बचा
सकते हैं। गुरु की
महिमा सिर्फ पौराणिक काल में ही
नहीं थी, कबीर ने
भी गुरु की महिमा
का गान किया है।
कबीर कहते हैं - गुरु
गोविन्द दोऊ खड़े, काके
लागूं पाय। बलिहारी गुरु
आपनो, गोविंद दियो बताय।। शास्त्रों
में ’गु“ का अर्थ
बताया गया है- अंधकार
या मूल अज्ञान और
’रु“ का अर्थ किया
गया है- उसका निरोधक।
गुरु को गुरु इसलिए
कहा जाता है कि
वह अज्ञान तिमिर का ज्ञानांजन-शलाका
से निवारण कर देता है।
अर्थात अंधकार को हटाकर प्रकाश
की ओर ले जाने
वाले को ’गुरु“ कहा
जाता है। ’अज्ञान तिमिरांधश्च
ज्ञानांजन शलाकया, चक्षुन्मीलितम तस्मै श्री गुरुवै नमः।“
गुरु तथा देवता में
समानता के लिए एक
श्लोक में कहा गया
है कि जैसी भक्ति
की आवश्यकता देवता के लिए है
वैसी ही गुरु के
लिए भी। बल्कि सद्गुरु
की कृपा से ईश्वर
का साक्षात्कार भी संभव है।
गुरु की कृपा के
अभाव में कुछ भी
संभव नहीं है। गुरु
आत्मा-परमात्मा के मध्य का
संबंध होता है। गुरू
से जुड़कर ही जीव अपनी
जिज्ञासाओं को समाप्त करने
में सक्षम होता है तथा
उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है।
हम तो साध्य हैं
किंतु गुरू वह शक्ति
है जो हमारे भितर
भक्ति के भाव को
आलौकिक करके उसमे शक्ति
के संचार का अर्थ अनुभव
कराती है और ईश्वर
से हमारा मिलन संभव हो
पाता है।
हर संकट का निदान है गुरु
परमात्मा को देख पाना
गुरू के द्वारा संभव
हो पाता है। यहां
गुरु की भूमिका सिर्फ
शिक्षा तक ही सीमित
नहीं है। गुरु व्यक्ति
को जीवन के हर
संकट से बाहर निकलने
का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी
है। गुरु से जुड़कर
ही जीव अपनी जिज्ञासाओं
को शांत करने में
सक्षम होता है तथा
उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है।
हम तो साध्य हैं
किंतु गुरु वह शक्ति
है जो हमारे भीतर
भक्ति के भाव को
आलौकिक करके उसमे शक्ति
के संचार का अनुभव कराती
है और ईश्वर से
हमारा मिलन संभव हो
पाता है। गुरु व्यक्ति
को अंधकार से प्रकाश में
ले जाने का कार्य
करता है, सरल शब्दों
में गुरु को ज्ञान
का पुंज कहा जा
सकता है। आज भी
इस तथ्य का महत्व
कम नहीं है। विद्यालयों
और शिक्षण संस्थाओं में विद्यार्थियों द्वारा
आज भी इस दिन
गुरू को सम्मानित किया
जाता है। मंदिरों में
पूजा होती है, पवित्र
नदियों में स्नान होते
हैं, जगह जगह भंडारे
होते हैं और मेलों
का आयोजन किया जाता है।
पहले विद्यार्थी आश्रम में निवास करके
गुरू से शिक्षा ग्रहण
करते थे तथा गुरू
के समक्ष अपना समस्त बलिदान
करने की भावना भी
रखते थे, तभी तो
एकलव्य जैसे शिष्य का
उदाहरण गुरू के प्रति
आदर भाव एवं अगाध
श्रद्धा का प्रतीक बना
जिसने गुरू को अपना
अंगुठा देने में क्षण
भर की भी देर
नहीं की।
गुरु की महत्ता महाभारत दिखती है
महर्षि व्यास का यदि अवतार
न होता और यदि
उन्होंने महाभारत की रचना न
की होती तो भारत
विश्व गुरु नहीं कहलाता।
महर्षि व्यास ने चारों वेदों
पर भाष्य लिखा जिससे वेद
विद्या लोकोपकारी हुई। महाभारत के
संदर्भ में व्यास जी
ने लिखा कि जो
भारत में नहीं वह
महाभारत में नहीं, जो
महाभारत में नहीं वह
भारत में नहीं। यह
महाभारत के विषयों की
विविधता को स्पष्ट करता
है। वस्तुतः महाभारत का प्रादुर्भाव न
होता तो भारत को
कला संस्कृति ज्ञान के क्षेत्र में
विश्व स्तर पर यह
पहचान नहीं मिलती। मतलब
साफ है हर इंसान
के जीवन में गुरु
का बहुत महत्व होता
है. कहते हैं कि
’बिना गुरू के ज्ञान
कहां’ यानी बिना गुरु
के हम इस दूनिया
में कुछ भी नहीं
सीख सकते हैं. सभी
धर्म के लोग अपने
गुरु की पूजा करने
के लिए साल में
एक विशेष दिन निर्धारित किए
हैं और उस दिन
अपने गुरु की पूजा
कर उन्हें दान-दक्षिणा देते
हैं. गुरु मतलब गु
का अर्थ अंधकार और
रु का अर्थ है
प्रकाश यानी जो हमें
अंधकार से प्रकाश की
तरफ ले जाता है
उसे गुरु कहते हैं.
गुरु हमें हर उस
जानकारी से रुबरु करवाते
हैं, जिनका हमें ज्ञान नहीं
होता है. हमारा भारत
देश पूरे विश्व में
अपनी संस्कृति, आचरण व शिष्टाचार
से जाना जाता है।
यहां पर माता-पिता
और गुरु को भगवान
का रूप समझा जाता
है। इसके लिए दो
दोहा भी बेहद प्रचलित
है- ‘गुरू को पारस
जानिए, करे लौह को
स्वर्ण। शिष्य और गुरू जगत
में, केवल दो ही
वर्ण।।’ गुरुब्रर्ह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै
श्री गुरवे नमः।। अर्थात गुरु ब्रह्मा है,
गुरु विष्णु है, गुरु ही
शंकर है व गुरु
ही साक्षात परब्रह्म है और उन्हीं
सद्गुरु को हम प्रणाम
करते हैं। गुरु को
भगवान इसलिए माना जाता है
क्योंकि गुरु ही हमें
संसार रूपी भव सागर
को पार करने में
हमारी मदद करते हैं।
गुरु से हमें ज्ञान
प्राप्त होता है और
उनके द्वारा दिखाए गए मार्ग पर
चलने से मोक्ष की
प्राप्ति होती है। गुरु
पूर्णिमा का पर्व आषाढ़
शुक्ल पूर्णिमा को आयोजित होता
है। इस दिन वेदव्यासजी
का जन्म हुआ था।
इनको प्रथम गुरु की उपाधि
प्रदान की गई है,
क्योंकि ये मानव जाति
के कल्याण के लिए वेदों
का ज्ञान प्रदान किए थे।
गुरुओं की पूजा का विशेष महत्व है
गुरु पूर्णिमा के
दिन गुरुओं की पूजा करने
का विशेष महत्व है। आत्मज्ञान और
कर्तव्य बताने वाले गुरू के
प्रति आस्था प्रकट करने का पर्व
है गुरू पूर्णिमा। जीवन
में जो भी सुख,
संपन्नता, ज्ञान, विवेक, सहिष्णुता यह सब गुरु
की कृपा से ही
प्राप्त होता है। गुरु
पूर्णिमा का संबंध गुरु
तत्व से है। गुरु
का अर्थ है कि
जो हमें अंधकार से
प्रकाश की ओर ले
जाए। यानी अज्ञान से
ज्ञान की ओर। अब
जो तत्व हमें ज्ञानवान
बनाता है वह पूजनीय
और वंदनीय होगा। गुरु तत्त्व किसी
भी रूप में हम
लोगों के सामने आ
सकता है। एक उदाहरण
लेते हैं कि अगर
हम लोग किसी अनजान
शहर में यात्रा कर
रहे हैं, साथ ही
हमें मार्ग नहीं पता है
तो मोबाईल में नेवीगेशन खोलते
हैं और वह हमको
रास्ता दिखाता है। यह नेवीगेशन
उस समय गुरु की
भूमिका निभाता है। यही गुरु
तत्व है। एक और
उदाहरण से समझते हैं-
कहीं मार्ग में जाते समय
एक बालक हमको इशारा
करके बताता है कि आगे
रास्ता बंद है तो
उस समय वह बालक
भी गुरु तत्व की
भूमिका निभा रहा है।
गुरु पूर्णिमा पर केवल शिक्षक
ही नहीं, बल्कि माता-पिता, बड़े
भाई-बहन या किसी
सम्माननीय व्यक्ति को गुरु मानकर
उनकी भी पूजा की
जा सकती है। इस
पर्व को अंधविश्वासों के
आधार पर नहीं बल्कि
श्रद्धा के साथ मनाना
चाहिए। बता दें, गुरुओं
की पूजा करना इसलिए
भी जरूरी है क्योंकि उनकी
कृपा से व्यक्ति कुछ
भी हासिल कर पाता है।
गुरुओं के बिना किसी
भी व्यक्ति को ज्ञान की
प्राप्ति नहीं हो सकती
है। इस वजह से
गुरुओं को भगवान से
भी ऊपर का दर्जा
प्राप्त है। इस दिन
केवल गुरु ही नहीं
बल्कि घर में अपने
बड़ों जैसे माता-पिता,
भाई-बहन आदि का
आशीर्वाद लिया जाता है।
सामान्यतः हम लोग शिक्षा
प्रदान करने वाले को
ही गुरु समझते हैं,
परन्तु वास्तव में ज्ञान देने
वाला शिक्षक बहुत आंशिक अर्थों
में गुरु होता है।
जन्म जन्मान्तर के संस्कारों से
मुक्त कराके जो व्यक्ति या
सत्ता ईश्वर तक पहुंचा सकती
हो, ऐसी सत्ता ही
गुरु हो सकती है।
हिंदू धर्म में गुरु
होने की तमाम शर्तें
बताई गई हैं, जिसमें
से प्रमुख 13 शर्तें निम्न प्रकार से है। इसमें
शांत, दान्त, कुलीन, विनीत, शुद्धवेषवाह, शुद्धाचारी, सुप्रतिष्ठित, शुचिर्दक्ष, सुबुद्धि, आश्रमी, ध्याननिष्ठ, तंत्र-मंत्र, विशारद, निग्रह-अनुग्रह आदि प्रमुख है।
मतलब साफ है सर्वश्रेष्ठ
गुरु वही होता है
जो सत्य का मार्ग
दिखाए। मानव मात्र के
कल्याण के लिए प्रेरित
करे। शास्त्रों में भी गुरु
अज्ञान के अंधकार को
दूर करके ज्ञान का
प्रकाश देने वाला कहा
गया है। गुरु के
ज्ञान और दिखाए गए
मार्ग पर चलकर व्यक्ति
मोक्ष को प्राप्त करता
है। ’’तमसो मा ज्योतिगर्मय“
अंधकार की बजाय प्रकाश
की ओर ले जाना
ही गुरुत्व है। आगम-निगम-पुराण का निरंतर संपादन
ही व्यास रूपी सद्गुरु शिष्य
को परमपिता परमात्मा से साक्षात्कार का
माध्यम है। जिससे सारूप्य
मुक्ति मिलती है, तभी कहा
गया- ’’सा विद्या या
विमुक्तये।“ आज विश्वस्तर पर
जितनी भी समस्याएं दिखाई
दे रही हैं, उनका
मूल कारण है गुरु-शिष्य परंपरा का टूटना। श्रद्धावाल्लभते
ज्ञानंम।
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