Friday, 9 August 2024

घर-घर पूजे गए नागदेवता, शिवालयों में उमड़ी भीड़

घर-घर पूजे गए नागदेवता, शिवालयों में उमड़ी भीड़ 

नाग कुंआ सहित अन्य मेलों में बच्चों ने तरह-तरह के खिलौने खरीदे, झूले का लुत्फ उठाया

अखाड़ों में पहलवानों ने कुश्ती के दांवपेंच दिखाकर वाहवाही लूटी

सुरेश गांधी

वाराणसी। शहर हो या देहात हर घर में पारंपरिक तरीके से नागदेवता की पूजा अर्चना की गई। लोगों ने नाग मंदिरों एवं उनके निवास स्थल वामियों के पास जाकर दूध, घी के दिए रखकर पूजन अर्चन किया। इस दौरान सपेरों द्वारा लाए गए नागदेवता के दर्शन कर उन्हें दूध पिलाया गया। जैतपुरा स्थित नाग कंआ मंदिर में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने दर्शन-पूजन किया। इसके पहले कुछ ने स्नान तो कुछ ने फूलमाला चढ़ाएं। इस मौके पर जगह -जगह लगे मेलों में बच्चों ने तरह-तरह के खिलौने खरीदे, झूले का लुत्फ उठाया तो महिलाओं ने जमकर खरीददारी की। जबकि विभिन्न अखाड़ों में पहलवानों ने कुश्ती के दांवपेंच दिखाकर वाहवाही लूटी। मान्यता है कि नाग देवता की पूजा करने से मानव के सभी कष्टों का निवारण हो जाता है। भोलेनाथ भी अपने भक्तों पर प्रसन्न रहते हैं। 

घरों और मंदिरों में भगवान भोलेनाथ के पूजन के अलावा सुबह-सुबह लोगों ने अपने घरों के बाहर सपेरों द्वारा लाए गए नागदेवता के भी दर्शन किए। सर्प को दूध पिलाया। इसके अलावा नाग के भय से मुक्ति के लिए लोगों ने घरों के दरवाजे के दोनों ओर गोबर जल में घी मिलाकर सर्प की आकृति बनाई। गेंहू, दही, लावा, चना, माला-फूल अर्पित कर उनका पूजन कर भक्तों ने जनकल्याण की कामना की। कई घरों में कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए पूजन, यज्ञ रुद्राभिषेक का आयोजन हुआ। प्राचीन शिवालयों के बाहर सपेरों का जमघट लगा रहा। भक्तों ने नाग का दर्शन कर सपेरों को दक्षिणा दी।

व्यायामशालाओं में दर्जनों पहलवानों ने अपने दांवपेंच दिखाए। इसमें बुजुर्ग, युवा और बच्चे सभी शामिल थे। कई इलाकों में तो सूर्य निकलने के साथ ही सपेरे नागों को लेकर शहर की गलियों में घूमते दिखे। लोगों ने नागदेवता की पूजा की। दूध अर्पित किया। सपेरे को दान दिया। शिवालयों में विशेष पूजा-अर्चना की गई। शिवालयों में सुबह से ही भक्तों का तांता लगा रहा। जल, दूध लाई का प्रसाद नाग देवता को भोग लगाया गया। नागपंचमी पर सर्पपूजा को लेकर पौराणिक कथाओं में ऐसी मान्यताएं है कि नागदेवता को पूजे जाने से सर्पदोष जैसे दोष दूर हो जाते हैं। इसके लिए नागपंचमी का दिन विशेष महत्व वाला होता है। इस दिन भगवान शिव की विशेष कृपा रहती है। यही वजह है कि नागपंचमी के मौके पर भक्तों द्वारा विशेष अनुष्ठान किया जाता है।

श्रद्धा के नाम पर दूध पिलाने की परंपरा वर्षों पुरानी है। लेकिन इसका वैज्ञानिक पहलु कुछ और ही कहता है। नागों में दूध पीने की ग्रंथी नहीं होती। सपेरे नागों को दूध पिलाते हैं जिससे नाग बीमार हो जाते हैं। सांप पूरी तरह से मांसाहारी जीव होता है। घर-घर सांप को दूध पिलाकर सुख समृद्धि की कामना की गई। सावन मास में नागपंचमी का विशेष महत्व है। इस दिन सुख समृद्धि के लिए भगवान शंकर के सांप की पूजा अर्चना की जाती है। यही वजह है कि सुबह लोगों ने घरों की साफ-सफाई कर दूध और लावा चढ़ाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना की। अखाड़ों में जाकर कुश्ती का आनंद उठाया। पेड़ों पर पड़े झूले का युवतियों एवं महिलाओं ने लुत्फ उठाया।

घर खेत या नागों के दिखने वाले स्थानों पर गाय का दूध पीने के लिए रखते हुए मनवांछित फल की कामना की। इसके अलावा दरवाजे पर पहुंचने वाले सपेरों के सर्प का दर्शन भी किया। काशी नगरी में शुक्रवार को नाग पंचमी के अवसर पर प्रमुख अखाड़ों में दंगल प्रतियोगिता के आयोजन हुए। तुलसीघाट स्थित अखाड़े में पहलवानों ने खूब जोर आजमाइश की। जीतने वाले को सम्मानित भी किया गया। इस आयोजन के लिए कई दिनों से तैयारी चल रही थी। दंगल की परंपरा कई वर्षों से चली रही है। दंगल प्रतियोगिता के लिए वाराणसी के ग्रामीण इलाकों में अखाड़े बनाए गए थे। नीदरलैंड के हर्बट ने कहा कि उन्हें देसी दंगल और कुश्ती काफी पसंद है। नागपंचमी के अवसर पर उन्होंने दंगल लड़ा। अस्सी स्थित अखाड़ों में सिर गोवर्धन के पहलवानों ने जोर आजमाइश की। सुबह से ही इन अखाड़ों पर पहलवानों ने कसरत शुरू कर दी थी।

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