Saturday, 10 August 2024

बंगलादेश के आतंकी संगठनों पर कब होगी सर्जिकल स्ट्राइक?

बंगलादेश के आतंकी संगठनों पर कब होगी सर्जिकल स्ट्राइक?

बांग्लादेश में गुस्सा तो शेख हसीना के खिलाफ था, तख्ता पलट तो शेख हसीना का हुआ, लेकिन हसीना के विरोधियों और कट्टरपंथियों के गुस्से के शिकार बांग्लादेश के हिंदू परिवार हो रहे हैं. मतलब साफ है बांग्लादेश में आरक्षण विरोधी आंदोलन तो बहाना था, मकसद हिन्दुओं पर हमले का है। उनके घरों-दुकानों में लूटपाट, महिलाओं संग बलातकार सहित उन्हें जिन्दा जलाया जा रहा है. मंदिरों को जमीनदोंज किया जा रहा है। वहां के क्षेत्रीय एजेंसियों की मानें तो इस दंगे में सैकड़ों लोगों की अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. लेकिन बड़ा सवाल तो यही है क्या भारत बांग्लादेश हिंसा पर कुछ नहीं बोल सकता? क्या वहां के जमात--इस्लामी जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक नहीं हो सकती? क्या गाजा की चिंता करने वाले भारतीय सियासतदान बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार की चिंता नहीं कर सकते? क्या बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा पर आवाज नहीं उठाना चाहिए? क्याभय, भ्रम और अफवाह फैलाना वाले सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए? क्या बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रधानमंत्री को बधाई देने वाले वहां के हिंदुओं की सुरक्षा की आवाज नहीं उठा सकते? क्या मुहब्बत की दुकान चलाने की आड़ में हिंदुओं की कत्ल--आम उन्हें रास रहा है? माना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले के विरोध में आवाज उठाई और मोहम्मद यूनुस से उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का भी आग्रह किया, लेकिन उन्हें नहीं भूलना चाहिए वहां के पीएम का अल जजीरा जैसा आंतकी संगठन पर इस अपील का कोई असर नहीं होगा

          सुरेश गांधी

फिरहाल, बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्ता जाने के बाद वहां के हिन्दूओं की सामत गयी हैं। या यूं कहे बांग्लादेश में उथल-पुथल मची हुई है. प्रदर्शनकारी वहां हिंदुओं को भी टारगेट कर रहे हैं. सैकड़ों हिंदू भागकर भारत जाने की नाकाम कोशिशें कर रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में बांग्लादेश के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के लोगों को अपने घरों और कारोबारों को लुटते और आगे के हवाले होते देखा गया। जैसे-तैसे अपनी जान बचाकर वह भारत से लगी सीमा पर ही जमा हो गए हैं। वायरल वीडियों में देखा जा सकता है कि बांग्लादेश के कट्टरपंथी किस तरह खुलेआम लाउडीस्पीकर से धमकी दे रहे है कि हिंदुओं मतांतरण कर मुसलमान बन जाओ नही तो हत्या के बाद लाश को चील कौवों के लायक भी नहीं छोड़ेंगे। वे कहते हैहिंदुओं को शुक्रगुजार होना चाहिए कि अभी उनका सामना हनफी से हो रहा है, कि मलिकी, शैफी या हनबली से।

हाल यह है कि मां बाप के सामने ही बेटियों संग दुष्कर्म किया जा रहा है। वहां के उग्र इस्लामी तथा तालिबानी राजसत्ता कायम करने के मकसद से हिंदुओं पर चौतरफा अत्याचार कर रहे है। मौजूदा समय में सोशल मीडिया पर बांग्लादेश में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार के वीडियो की बाढ़ गई है. कई वीडियो में हिंदुओं को पीटते हुए और मंदिरों में आगजनी करते हुए दिखाया गया है. इस्लामी कट्टरवादी ताकतों ने प्रसिद्ध बांग्लादेशी गायक राहुल आनंद के ढाका के धानमंडी स्थित 140 साल पुराने घर पर हमला किया. इस दौरान उपद्रवियों ने हिंदू गायक के घर में आग लगा दी, जिसमें 3 हजार से अधिक वाद्य यंत्र जलकर राख हो गए. आग लगाने से पहले उनके घर के सामानों को लूटा गया. इस दौरान आंतक फैला रहे लोगों ने घर के फर्नीचर तक उठा ले गए. राहुल आनंद के परिवार ने किसी तरह अज्ञात स्थान पर भागकर अपनी जान बचाई है.

ताजा रिपोर्ट के अनुसार, बांग्लादेश के पंचगढ़, दिनाजपुर, बोगुरा, रंगपुर, शेरपुर किशोरगंज, सिराजगंज, मुगरा, नरैल, पश्चिम जशोर, पटुआखली, दक्षिण-पश्चिम खुलना, मध्य नरसिंगड़ी, सतखीरा, तंगैल, फेनी चटगांव, उत्तर-पश्चिम लक्खीपुर और हबीगंज जैसी जगहों पर भीड़ का आतंक जारी है. इन स्थानों पर इस्लामी कट्टरवादी हिंदुओं पर हमले कर रहे हैं और उनकी संपत्तियों को लूट रहे हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में कट्टरपंथी ताकतों की भागीदारी के आसार देखते हुए वहां हिंदुओं का भविष्य और अधिक स्याह नजर आने लगा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि मजहबी कट्टरता सबसे पहले लोकतंत्र को लील जाती है।

वहां के एजेंसी सूत्रों के मुताबिक बांग्लादेश के कुल 64 जिलों में से 45 जिलों के हिंदुओं के घरों, दुकानों या मंदिरों को सिर्फ तहस-नहस किया गया है, बल्कि सैकड़ों लोगों को जिंदा जला दिया गया है। बता दें, 17 करोड़ के मुस्लिम बहुल आबादी वाले बांग्लादेश में हिंदू केवल आठ प्रतिशत (1.35 करोड़) हैं। अल्पसंख्यक हिंदू सेक्युलर मानी जाने वाली शेख हसीना की आवामी लीग पार्टी का ही हमेशा से समर्थन करते आए हैं। यही समर्थन उनके लिए काल बन गया हैं। बढ़ती हिंसा से बांग्लादेश की सीमा के पास रहने वाले हिंदू सीमा की ओर भागकर भारत सरकार से आश्रय देने की गुहार लगा रहे हैं। बांग्लादेश में सेना की शह पर जारी कट्टरपंथियों के उत्पात से हिंदू बेहद घबराए हुए हैं। इस स्थिति से बुरी तरह से आशंकित, बेचैन और भविष्य की अनिश्चितता को लेकर वे डरे हुए है। उनके उपर अपने जान माल का खतरा है।

मध्य जुलाई से शुरू हुए प्रदर्शनों और हाल के दिनों में हिंसा में 500 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. हाल यह है कि वहां के आंतक से त्रस्त होकर शेख हसीना के बाद अब बांग्लादेश में चीफ जस्टिस ओबैदुल हसन ने भी इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे की मांग को लेकर प्रदर्शनकारी छात्रों ने शनिवार सुबह सुप्रीम कोर्ट को घेर लिया था। प्रदर्शनकारी बड़ी तादाद में वहां इकट्ठा हुए थे। छात्रों ने कहा, “अगर जजों ने इस्तीफे नहीं दिए तो हसीना की तरह उन्हें भी कुर्सी से खींचकर उतार देंगे।प्रदर्शनकारी छात्रों ने आरोप लगाए थे कि सुप्रीम कोर्ट के जज हसीना से मिले हुए हैं। ऐसे में बांग्लादेश में रहने वाले हिंदू भारत-बांग्लादेश सीमा परकूचबिहार जिले के कंटीले तारों के दूसरी तरफ एकत्र हो गए हैं. हालात को देखते हुए इलाके में 157 बटालियन के जवानों को तैनात किया गया है. इससे पहले पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में भारत-बांग्लादेश बॉर्डर पर 1 हजार से ज्यादा बांग्लादेशी हिंदू पहुंच गए थे. वे बॉर्डर पार कर भारत आना चाह रहे है.

भारत में इनके घुसपैठ के प्रयास को बीएसएफ ने रोक रखा है. उन्हें सतकुरा सीमा पर रोक लिया है. बताया जा रहा है कि सीमा के उस पार से आई हिंदू बांग्लादेशियों की भीड़ का आरोप है कि उनके घर-मंदिर जलाए जा रहे हैं. वो भारत में शरण लेने आए हैं. वहीं इसपार भारतीय लोग इस भीड़ से सशंकित हैं. इनका कहना है कि अगर ये लोग भारत में प्रवेश कर गए तो खाने के लाले पड़ जाएंगे. ऐसे में वे नहीं चाहते कि ये बांग्लाशी भारत में आएं. इस पार यानी भारत की ओर भी गांव वालों ने भीड़ जमा ली है. हालांकि बीएसएफ ने बांग्लादेशी हिंदुओं को समझाने का प्रयास किया है कि उन्हें ऐसा नहीं करने नहीं दिया जा सकता।

पीएम मोदी के उठाएं गए कदम इसलिए बेमानी है क्योंकि जब वहां कोई कानून व्यवस्था ही नहीं है तो अधिकारी क्या सचाई बताएंगे या उनकी अपील का क्या असर होगा? मतलब साफ है इस तरह के अपील से वहां के हिंदुओं के जान-माल की रक्षा नहीं की जा सकती है. इसके लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कड़े कदम उठाने होंगें। 1971 जैसा कुछ बड़ा करना होगा। बता दें, 1971 में भारतीय सेना ने मुक्तिवाहिनी को ट्रेनिंग दी, जो बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग करने में काम आया था. वहां के हिंदुओं को बचाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक जैसे कदम उठाने की कार्रवाई करनी पड़ेगी। बांग्लादेश, म्यांमार और भारत के पूर्वी ईसाई बहुल हिस्से को मिलाकर एक ईसाई देश बनाने की सोच को नेस्तनाबूत करना होगा। भारत को खुलकर बंगभूमि अलगाववादी आंदोलन का समर्थन करना होगा। इसके लिए भारत चाहे तो रुस से सीख ले सकता है.

यूक्रेन के डोनस्क और लुहांस्क में जिस तरह रूसी भाषियों की सुरक्षा के लिए सुरक्षित क्षे़ बनाया गया है उसी तरह भारत के निकट बांग्लादेश में हिंदुओं की घनी आबादी वाले क्षेत्र स्थापित किए जाएं. अगर हम यह नहीं कर सके तो बांग्लादेश में घटती हिंदओं की संख्या को विलुप्त होते देखेंगे. यही नहीं संभवतः उनकी सुरक्षा में हमारे समूचे पूर्वोत्तर के भविष्य की सुरक्षा भी हो सकेगी. फिलहाल भारत के लिए कोई मुश्किल नहीं है. क्योंकि भारतीय सेना बांग्लादेश से बहुत ताकतवर है. भारत अब परमाणु संपन्न देश भी है. भारत चाहे तो दबाव बनाकर बांग्लादेश के हिंसाग्रस्त इलाकों में फंसे हिंदुओं और अवामी लीग समर्थकों को वहां से निकाल कर भारतीय सीमा के निकट बांग्लादेशी भूमि पर ही राहत शिविरों मे टिकाया जा सकता है। 

कट्टरपंथियों के अत्याचार से नमशूद्रों को बचाने के लिए ही हरिचंद ठाकुर ने 19वीं सदी के मध्य में फरीदपुर (तत्कालीन पूर्वी बंगाल) में मतुआ पंथ की स्थापना की थी। मतुआ यानी जो मानवतावादी मतवाले हैं। कट्टरपंथियों के अत्याचार से बचने के लिए गुरुचंद ठाकुर के पौत्र प्रमथ रंजन विश्वास 1948 में बंगाल के बनगांव गए थे। उन्होंने बंगाल में मतुआ धर्म महासंघ को संगठित किया। मतुआ धर्म महासंघ बंगाल में अपने डेढ़ करोड़ अनुयायियों के साथ आज भी नमशूद्र शरणार्थियों के लिए संघर्षरत है। विभाजन के समय कट्टरपंथियों के अत्याचार रोकने के लिए ही जोगेंद्र नाथ मंडल पाकिस्तान सरकार में शामिल हुए। जब पाकिस्तान में कानून एवं श्रम मंत्री बनने के बाद भी वह अत्याचार नहीं रोक पाए तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया। 

नौ अक्टूबर, 1950 को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली खान को भेजे त्यागपत्र में मंडल ने लिखा था कि पूर्वी पाकिस्तान में हिंदुओं पर मुस्लिम कट्टरपंथियों के जैसे हमले बढ़ते जा रहे हैं, उससे उनका मंत्री पद पर बने रहना संभव नहीं है। उन्होंने यह भी लिखा था कि देश विभाजन के बाद 50 लाख हिंदू पलायन करने को विवश हुए हैं। यह अलग बात है कि हिंदुओं का पलायन उसके बाद भी थमा नहीं। कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों के अत्याचार से तंग आकर 1974 से 1991 के बीच रोज औसतन 475 लोग यानी हर साल एक लाख 73 हजार 375 हिंदू हमेशा के लिए बांग्लादेश छोड़ने को बाध्य हुए। यदि उनका पलायन नहीं हुआ होता तो आज बांग्लादेश में हिंदू नागरिकों की आबादी सवा तीन करोड़ होती। सांप्रदायिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक हमले, नौकरियों में भेदभाव, दमनकारी शत्रु अर्पित संपत्ति कानून और देवोत्तर संपत्ति पर कब्जे ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को कहीं का नहीं छोड़ा है।

भारत से हसीन के रहे अच्छे संबंध

देखा जाएं तो बांग्लादेश की सेना हो या खालिदा जिया, सबको है भारत की जरूरत इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि शेख हसीना भारत के प्रति पूर्ण समर्पित थीं. चीन और अमेरिका के दबाव में भी उन्होंने कोई ऐसा काम नहीं किया जो भारत के हितों के विपरीत जाता. पूर्वोत्तर के आतंकवाद को पस्त करने में भी शेख हसीना ने मोदी सरकार की बहुत मदद की. पूर्वोत्तर के तमाम आतंकी संगठनों के ट्रेनिंग ककैंप, जो बांग्लादेश में चल रहे थे, उन्हें खत्म करने में उन्होंने मदद की. कई कुख्यात आतंकियों को भारत को बांग्लादेश ने सौंप कर आतंकवाद पर लगाम लगाने काम किया. जाहिर है कि अभी कुछ साल अवामी लीग फिर से सत्ता में आने से रही. बीएनपी की खालिदा जिया शुरू से ही पाकिस्तान और अमेरिका समर्थक रही हैं

उनकी पूरी राजनीति भारत विरोध पर टिकी रही है. इसलिए ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए की वो भारत विरोधी रणनीति पर ही काम करेंगी. पर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में कुछ भी अससंभव नहीं है. अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से ऐसा महसूस किया जा रहा था कि भारत के लिए परेशानी और बढ़ेगी. पर आज भारत अपने पड़ोसियों में सबसे ज्यादा निश्चिंत शायद अफगानिस्तान से ही है. इसी तरह से अगर भविष्य में खालिदा जिया अगर सत्ता में आती हैं तो उनकी भी मजबूरी होगी भारत से रिश्ते सुधारना होगा. अगर सैन्य शासन कंटीन्यू होता है तो उसे भी भारतीय समर्थन की जरूरत होगी. दूसरी तरफ जिले के लिहाज से देंखे तो बांग्लादेश के चार जिले ऐसे हैं जहां की आबादी 20 फीसदी से अधिक है. ढ़ाका डिवीजन के गोपालगंज जिले में हिंदुओ की आबादी 26 फीसदी है, वहीं खुलना जिले में 20 फीसदी से अधिक हिंदू रहते हैं. रंगपुर डिवीजन के ठाकुरगांव जिले में 22 फीसदी हिंदू निवास करते हैं. स्यालहाट के मौलवी बाजार जिले में 24 फीसदी हैं.

 

 

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