Friday, 6 September 2024

हे गजबदन गौरी सुत नायक, कृपा करहु इच्छित वरदायक।।

हे गजबदन गौरी सुत नायक, कृपा करहु इच्छित वरदायक।। 

जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। पूजा-पाठ, विधि-विधान, हर मांगलिक-वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम गणपति का सुमिरन करते हैं। श्री गणेश जी की पूजा प्रत्येक शुभ कार्य करने के पूर्व श्री गणेशायनमः का उच्चारण किया जाता है। क्योंकि गणेश जी की आराधना हर प्रकार के विघ्नों के निवारण करने के लिए किया जाता है। गणेश जी विघ्नेश्वर हैं-विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है। पुत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम श्री गणेशाय नमः, श्री सरस्वत्यै नमः, श्री गुरुभ्यो नमः, ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम श्री गणेशाय नमः लिखना चाहिए। वक्रतुंड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।। भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है। यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक है।गणेशका अर्थ है- गणों का स्वामी। हमारे शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां तथा चार अंतःकरण हैं तथा इनके पीछे जो शक्तियां हैं, उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं 

                      सुरेश गांधी

इस साल 7 सितंबर को गणेश चतुर्थी है. पुराणों के मुताबिक गणेश जी का जन्म भादौ की चतुर्थी को दिन के दूसरे प्रहर में हुआ था। उस दिन स्वाति नक्षत्र और अभिजीत मुहूर्त था। ऐसा ही संयोग इस बार 7 सितंबर को है। ज्योतिषियों का कहना है कि सौ साल बाद बन रहा ऐसा योग।इस बार विशिष्ट मुहूर्त के साथ गणेश स्थापना होगी. रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग एवं अभिजीत मुहूर्त में भगवान गणेश की प्रतिमा की स्थापना की जाएगा. चित्र एवं स्वाति नक्षत्र के अभिजीत मुहूर्त के समय संधि काल में होने से इस बार के गणेश वैभव, संतान और सुख संपत्ति देने वाले रहेंगे. “भगवान गणेश की स्थापना का मुहूर्त जो है वह प्रातः 730 से 900 बजे तक और दोपहर में अभिजीत मुहूर्त में 1140 से 1220 के बीच में अति उत्तम है. इसके उपरांत व्यापारियों को 12 से 130 तक और लाभ लेने वाले लोगों को 130 से 300 बजे तक गणेश जी को स्थापित करना चाहिए. वहीं विद्यार्थियों के लिए 3 से 0430 तक गणेश की स्थापना करना अत्यंत शुभ रहेगा. कहते है इन्हीं तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग में मध्याह्न यानी दोपहर में जब सूर्य ठीक सिर के ऊपर होता है, तब देवी पार्वती ने गणपति की मूर्ति बनाई और उसमें शिवजी ने प्राण डाले थे। खास यह है कि इस बार गणेश स्थापना पर शनिवार का संयोग है। इस योग में गणपति के विघ्नेश्वर रूप की पूजा करने से इच्छित फल मिलता है। इस दिन स्थापना के साथ ही पूजा के लिए दिनभर में सिर्फ दो मुहूर्त रहेंगे। वैसे तो दोपहर में ही गणेश जी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। समय नहीं मिल पाए तो किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति स्थापना की जा सकती है। 

पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल की चतुर्थी से देशभर में गणेश चतुर्थी पर्व का शुभारंभ हो जाता है. यह पर्व मुख्य रूप से 10 दिनों तक चलता है. इस दौरान भक्त बप्पा को अपने घर लाते हैं और अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा को विदा कर देते हैं. माना जाता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा को नहीं देखना चाहिए, शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी के दिन किया जाता है. साथ ही इसी दिन बप्पा को श्रद्धापूर्वक विदा किया जाता है. वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा।। अर्थात हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं। बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है। यही वजह है कि गणेश जी का पूजन हर कार्य में पहले किया जाता है ताकि सारे विघ्न दूर हो जाएं। ग्रंथों के अनुसार गणेश जी का जन्म गणेश चतुर्थी को मध्याह्न काल में हुआ था। इसलिए इसी समय गणेशजी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। गणेश चतुर्थी पर गणेश जी की स्थापना और पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है। समृद्धि और सफलता भी मिलती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश धरती पर आकर अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक गणेश चतुर्थी की पूजा की अवधि, जिसमें गणेश जी धरती पर निवास करते हैं, अनंत चतुर्दशी तक चलती है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन किए गए दान, व्रत और शुभ कार्य का कई गुना फल मिलता है और भगवान श्रीगणेश की कृपा प्राप्त होती है। गणेश चतुर्थी के दिन पूजन करने से विद्या, बुद्धि की तथा ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश होता है। वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेश जी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। श्री गणेश जी को देवों में सर्वोपरि स्थान हैं। भगवान गणेश बुद्धि के देवता हैं। गणेशजी का वाहन चूहा है। ऋद्धि सिद्धि गणेशजी की दो पत्नियां हैं। इनका सर्वप्रिय भोग लड्डू हैं। प्राचीन काल में बालकों का विद्या-अध्ययन आज के दिन से ही प्रारम्भ होता था। आज बालक छोटे-छोटे डण्डों को बजाकर खेलते हैं। यही कारण है कि लोकभाषा में इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी और गणेश चौथ के नाम से भी जाना जाता है। गणेश पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी दिन समस्त विघ्न बाधाओं को दूर करने वाले, कृपा के सागर तथा भगवान शंकर और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश जी का आविर्भाव हुआ था।

हर शुभ कार्य में श्री गणेश की पूजा

अक्सर लोग किसी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले संकल्प करते हैं और उस संकल्प को कार्य रूप देते समय कहते हैं कि हमने अमुक कार्य का श्रीगणेश किया। कुछ लोग कार्य का शुभारंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नमः लिखते हैं। यहां तक कि पत्रादि लिखते समय भी ऊँ या श्रीगणेश का नाम अंकित करते हैं। लोगों का विश्वास है कि गणेश के नाम स्मरण मात्र से उनके कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं- इसलिए विनायक के पूजन में विनायको विघ्नराजा-द्वैमातुर गणाधिप स्त्रोत पाठ करने की परिपाटी चल पड़ी है। इसीलिए जगत में शुभ कार्य के लिए शिव-शिवा सुत श्री गणेश की पूजा की जाती है। महादेव तथा पार्वती के परम भक्त भगवान गणेश की आराधना होती रही है। देवताओं में श्रेष्ठ, बुद्धिमान सर्वप्रिय गणेश बबुआ है। भगवान गणेश जगत के आधार देव पौराणिक आख्यानों में माना गया है। वैसे तो जगत में हर कार्य आरंभ के लिए किसी किसी देव की स्तुति का प्रावधान है। भारतवर्ष में भगवान गणेश, चीन में विनायक, यूनान में ओरेनस, इरान में अहुरमजदा और मिश्र में एकटोन की अर्चना काम आरंभ करने से पहले किया जाता है। इस प्रकार की परंपरा हरेक सभ्यता संस्कृति में प्रवाहमान है। हमारे देश के प्राचीन ग्रंथों में देवाधिदेव सुत गणेश को कई विशेषताओं से अभिभूषित किया गया है। पौराणिक ग्रंथों में गणेश की पूजा और उनकी महिमा का उल्लेख है। इनकी महिमा को कई मनीषियों ने अलग-अलग रूप में दर्शाया है। कहा गया है कि शुभ कार्य में पहली स्तुति गणेश की ही की जाती है।  

गणेश चतुर्थी की कथा

कथानुसार एक बार मां पार्वती स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसका नाम गणेश रखा. फिर उसे अपना द्वारपाल बना कर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश देकर स्नान करने चली गई. थोड़ी देर बाद भगवान शिव आए और द्वार के अन्दर प्रवेश करना चाहा तो गणेश ने उन्हें अन्दर जाने से रोक दिया. इस पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से गणेश के सिर को काट दिया और द्वार के अन्दर चले गए. जब मां पार्वती ने पुत्र गणेश जी का कटा हुआ सिर देखा तो अत्यंत क्रोधित हो गई. तब ब्रह्मा, विष्णु सहित सभी देवताओं ने उनकी स्तुति कर उनको शांत किया और  भोलेनाथ से बालक गणेश को जिंदा करने का अनुरोध किया. महामृत्युंजय रुद्र उनके अनुरोध को स्वीकारते हुए एक गज के कटे हुए मस्तक को श्री गणेश के धड़ से जोड़कर उन्हें पुनर्जीवित कर दिया. इस तरह से मां गौरी को अपना पुत्र वापस मिल गया और उनका क्रोध भी शांत हो गया। दूसरी कथा के अनुसार श्रीगणेश की जन्म की कथा भी निराली है और दूसरी कथा के अनुसार वराहपुराण के अनुसार भगवान शिव पंचतत्वों से बड़ी तल्लीनता से गणेश का निर्माण कर रहे थे. इस कारण गणेश अत्यंत रूपवान विशिष्ट बन रहे थे. आकर्षण का केंद्र बन जाने के भय से सारे देवताओं में खलबली मच गई. इस भय को भांप शिवजी ने बालक गणेश का पेट बड़ा कर दिया और सिर को गज..का रूप दे दिया.

21 संख्या प्रिय है गणेश जी का

श्री गणेश को, लाल रंग के वस्त्र लाल रंग के पुष्प और चंदन विशेष प्रिय हैं। श्री गणेश को 21 की संख्या प्रिय है इसलिए उनके 21 नामों से विशेष पूजा अर्चना की जाती है। यहां उनके ये 21 नाम और हर नाम के साथ अर्पित की जाने वाली वस्तु का विवरण प्रस्तुत है। नाम वस्तु सुमुखाय नमः शमी पत्र, गणाधीशाय नमः भृंगराज, उमापुत्राय नमः विल्वपत्र, गजमुखाय नमः दूर्वादल, लम्बोदराय नमः बेर का पत्र, हर पुत्राय नमः धतूरे का पत्र, शूर्पकर्णाय नमः तुलसी का पत्र, वक्रतुण्डाय नमः सेम का पत्र, गुहाग्रजाय नमः अपामार्ग, एकदन्ताय नमः भटकटैया, हेरम्बाय नमः सिंदूर वृक्ष अथवा सिंदूर चूर्ण, चतुर्होत्रे नमः तेज पत्र, सर्वेश्वराय नमः अगस्त का पत्र, विकटाय नमः कनेर का पत्र, हेमतुण्डाय नमः कदली (केला) का पत्र, विनायकाय नमः अर्क (आक) पत्र, कपिलाय नमः अर्जुन पत्र, वटवे नमः देवरारु का पत्र, भालचंद्राय नमः महुए का पत्र, सुराग्रजाय नमः गान्धारी वृक्ष का पत्र, सिद्धि विनायकाय नमः केतकी का पत्र विशेष है।

पूजन विधि

गणपति की पूजा बहुत ही आसान है। श्री गणेश पत्र-पुष्प एवं हरी दूब से प्रसन्न हो जाते हैं। गणेश जी का जन्म दोपहर को हुआ। अतः मध्याह्न में ही गणेश पूजन करना चाहिए। इस दिन रविवार या मंगलवार होने पर यह तिथि विशेष फलदायी हो जाती है। गणेश पूजा के दौरान गणेशजी की प्रतिमा पर चंदन मिश्रण, केसरिया मिश्रण, इत्र, हल्दी, कुमकुम, अबीर, गुलाल, फूलों की माला खासकर गेंदे के फूलों की माला और बेल पत्र को चढ़ाया जाता है। धूपबत्ती जलाये जाते है और नारियल, फल और तांबूल भी अर्पित किया जाता है। पूजा के अंत में भक्त भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी और विष्णु भगवान की आरती की जाती है और प्रसाद को भगवान सभी लोगों में बांट कर स्वयं भी ग्रहण करना चाहिए। गणाधिपतये नमः, विघ्ननाशाय नमः, ईशपुत्राय नमः, सर्वासिद्धिप्रदाय नमः, एकदंताय नमः, कुमार गुरवे नमः, मूषक वाहनाय नमः, उमा पुत्राय नमः, विनायकाय नमः, ईशवक्त्राय नमः का जप करने अंत में सभी नामों का एक साथ क्रम में उच्चारण करके बची हुई दूर्वा चढ़ाना विशेष फलदायी है। इसी तरह 21 लड्डू भी चढ़ाएं। इनमें से पांच प्रतिमा के पास छोड़ दें,पांच ब्राह्मणों को और शेष प्रसाद के रूप में परिवार में वितरित कर दें। श्री गणेश पूजा श्री गणेश पांच उदाŸ तत्वों के मिश्रित स्वरूप हैं। ये पांच तत्व इस प्रकार हैं- आनंद मंगल, सौर्य साहस, कृषि, वाणिज्य व्यवसाय, बुद्धि। गणेश जी की गणना पंचदेवों में भी होती है। हमारे समस्त कार्यों में शास्त्रीय प्रमाणों के अनुसार पंचदेवों की आराधना विश्व विख्यात है। ज्योतिष के अनुसार जल तत्व राशि वाले लोग अगर श्री गणेश की उपासना करें तो सिद्धि शीघ्र प्राप्त होगी।

उत्सव के रुप में होता है गणेश विसर्जन

गणेशगज के सिर वाले शिव पार्वती के पुत्र, सुख, समृद्धि मंगल के प्रतीक भगवान श्री गणेश जी की मूर्ति विशेष तौर से पंडालों में सजाई जाती है। कई लोग अपने घरों में भी गणेश जी की मूर्ति स्थापित करते है। रोज सुबह-शाम भगवान श्रीगणेशजी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। जिसके बाद अनंत चैदस वाले दिन प्रतिमा का जल में विसर्जन कर दिया जाता है। सामर्थ्य होने पर मूर्ति को डेढ़ अथवा तीन दिन के बाद भी विसर्जित किया जा सकता है। पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए भगवान गणेश का आह्वान किया था। महर्षि व्यास श्लोक बोलते गए और गणपति भगवान बिना रुके 10 दिनों तक महाभारत को लिपिबद्ध लिखते गए। इन दस दिनों में भगवान गणेश पर धूल मिट्टी की परत जम गई। वहीं 10 दिन बाद यानी की अनंत चतुर्दशी पर बप्पा ने सरस्वती नदी में स्नान कर खुद को साफ किया। इस दिन के बाद से ही दस दिन तक गणेश उत्सव मनाया जाने लगा। भारत में गणेश चतुर्थी के उत्सव के लिए विभिन्न कलाकृतियाँ और पृष्ठभूमियों के लोग एक साथ आते हैं। भक्त अपने नए प्रयास, शिक्षा और नई शुरुआत में सफलता के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। उन्हें आशीर्वाद मिलता है कि हर नया काम उनकी पूजा करने के बाद ही शुरू होगा अन्यथा वह काम करना कभी अच्छा नहीं मानेगा। इसलिए आज तक भक्त पहले अपनी पूजा करते हैं और फिर जीवन में नए उद्यम शुरू करते हैं।

नहीं करने चाहिए चद्र दर्शन

गणेश चतुर्थी के दिन यदि चंद्रमा के दर्शन भूलकर भी नहीं करने चाहिए। ऐसा करना बहुत ही अशुभ संकेत माना जाता है। इस जिन यदि कोई चंद्रमा के दर्शन कर लेता है तो उसे अपने जीवन में कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मिथ्या दोष लगने पर आपके जीवन में कई सारी दिक्कतें आने लगती हैं। साथ ही इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से आप पर कोई कलंक, झूठा आरोप आदि लग सकता है। प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है। जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए। गणेश चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन निषेध माना गया है। इस दिन चंद्र दर्शन से कलंक का दोष लगता है। परंपरानुसार रात में चंद्र दर्शन से रोकने के लिए एक-दूसरे के घर पर पथराव किया जाता है। पथराव के कारण लोग बाहर नहीं निकलते है और चंद्र दर्शन से बच जाते है। ज्योतिष राजेश मिश्र ने बताया कि हस्त नक्षत्र में ही गणेशजी का जन्म हुआ था। गणेशजी को प्रथम पूजनीय होने के कारण किसी भी दिन पूजा जा सकता है। गौरी के दिन गणेशजी की स्थापना होने से गणेश चतुर्थी जनहित कारक रहेगी। भद्रा होने के बावजूद स्थापना पर असर नहीं है।

गणेश परिक्रमा

शिवपुराण में है कि देवताओं में इस बात को लेकर विवाद छिड़ा कि प्रथम पूज्य कौन होगा. तय हुआ कि जो  ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सबसे पहले वापस जाएगा, वह प्रथम पूज्य होगा. सभी देवता गण अपनी सवारी पर सवार होकर ब्रह्मांड की परिक्रमा करने निकल पड़े. गणेश जी का भारी-भरकम शरीर और उसमें भी चूहे की सवारी, उस रेस को कैसे जीत सकते थे. उन्होंने दार्शनिक अधिष्ठान से इसकी युक्ति निकाली. अपने मां-पिता यानी महादेव-पार्वती की परिक्रमा कर सबसे पहले नियत स्थान पर पहुंच गए. गणेश जी को प्रथम पूज्य घोषित कर दिया गया. ब्रह्मांड की परिक्रमा की जगह केवल माता-पिता की परिक्रमा कर सफल होने के कारण सफलता का शॉर्टकट चाहने वाले लोगों के लिए यह कहानी आदर्श बन गई है.  बिना उचित मेधा और मेहनत के अधिक सफलता चाहने वालों के लिए गणेश परिक्रमा की धुरी की तलाश चाहत बन गई है. धुरी के स्थान पर मां-पिता या महादेव-पार्वती की जगह सियासत या किसी भी क्षेत्र में सफलता दिलाने वालों को बैठाया जाना ऐसे लोगों के लिए आम हो गया है. जहां तक गणेश परिक्रमा की कहानी का तात्पर्य है, यह बुद्धिमता सिखाती है, चालबाजी नहीं. यहां साफ संदेश है कि माता-पिता की भक्ति को प्रधानता देने वाला प्रथम पूज्य हुआ. यह एक निःस्वार्थ भावना थी. अगर कोई चुनाव में टिकट लेने या नौकरी में तरक्की पाने के लिए चमचागिरी हेतु गणेश परिक्रमा का बहाना ढूंढ़ता है तो भगवान उस व्यक्ति को सुबुद्धि दे. दूसरी ओर, गणेश जी ऋद्धि और सिद्धि के देवता हैं. यानी शुभ और पूर्णता के. ऐसा बिना पुरुषार्थ के संभव नहीं है. उसमें भी गणेश जी की पूरी गाथा पुरुषार्थ और पराक्रम से भरी है. मतलब साफ है गणेश परिक्रमा का चमचागिरी से कोई लेना-देना नहीं है. फिर भी चमचागिरी करने को गणेश परिक्रमा के नाम पर जिस क्षेत्र में सबसे अधिक आवश्यक बताया जाता है, वह क्षेत्र सियासत है. आम जन से लेकर शीर्ष पर  पहुंचे राजनेताओं के बीच ऐसे उदाहरण भी दिए जाते है. सियासत में गणेश परिक्रमा कही जाने वाली चमचागिरी को साधने के लिए जातीय ध्रुवों से लेकर पैसे समेत अलग-अलग हथकंडे आजमाए जाते हैं. अनादि और अनंत ईश्वर के लिए क्या यह संभव है कि उन्हें भविष्य का ज्ञान नहीं रहा होगा. दरअसल समस्या गणेश परिक्रमा का मनमाफिक अर्थ ग्रहण करने वालों की है. इस आख्यान के जरिये भगवान गणेश ने मातृ-पितृ भक्ति को सर्वोपरि मानने का संदेश दिया है. इसे सही अर्थों में ग्रहण करने के बजाय अपने मां-बाप को वृद्धाश्रम में पहुंचाकर सियासत में सफलता के लिए कुछ खास नेताओं को अपना बाप मानकर परिक्रमा करने वाले अगर गणेश परिक्रमा का तर्क देते हैं तो उनकी बुद्धि पर तरस ही खाना चाहिए.

शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी तिथि की शुरुआत 6 सितंबर को दोपहर में 301 से शुरू होगी और उसके बाद 7 सितंबर को शाम 537 पर समाप्त होगी. उदयातिथि के अनुसार गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर को मनाया जाएगा. उदयातिथि के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन यानि 7 सितंबर को गणेश जी की मूर्ति स्थापना की जाएगी. पंचांग के अनुसार. मूर्ति स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 4 मिनट से दोपहर 1 बजकर 34 मिनट तक रहेगा. इसके अनुसार मूर्ति स्थापना के लिए कुल 2 घंटे 30 मिनट का समय रहेगा.

गणेश चतुर्थी पूजा विधि

शुद्धताः पूजा स्थल और मूर्ति को साफ-सुथरा रखें.

दिशाः मूर्ति को उत्तर या पूर्व दिशा में स्थापित करें.

आसनः मूर्ति को एक साफ आसन पर स्थापित करें.

स्नानः मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराएं.

वस्त्रः मूर्ति को साफ और नए वस्त्र पहनाएं.

शृंगारः मूर्ति को सिंदूर, रोली, चंदन आदि से श्रृंगार करें.

अर्चनाः मूर्ति की पूजा के लिए धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें.

मंत्र जापः गणेश मंत्र का जाप करें.

विसर्जनः गणेश चतुर्थी के अंतिम दिन विधि-विधान से मूर्ति का विसर्जन करें.

विसर्जन से पहले मूर्ति को अपनी जगह से भूलकर भी नहीं हटाना चाहिए

गणेश मूर्ति स्थापना के नियम

गणेश उत्सव के दौरान गणेश जी की मूर्ति के सामने रोजाना सुबह शाम दीपक जलाएं और पूजा करें.

गणेश जी जितने दिन आपके घर में या चौक चौराहों पर रखते हैं तो कम से कम दिन में तीन बार भोग लगाएं.

गणपति बप्पा को आप अपने घर में स्थापित करते हैं तो सात्विक भोजन करें.

गणेश चतुर्थी के दिन पूजा करें और व्रत करें.

भगवान गणेश को मोदक का भोग जरूर लगाए.

गणेश जी की मूर्ति सही दिशा देखकर स्थापित करें और रोजाना उसे स्थान को गंगाजल से पवित्र करें.

गणेश जी की पूजा में साफ सफाई और पवित्रता का खास ध्यान रखें.

गणेश चतुर्थी का महत्व

भगवान गणेश को सभी प्रकार के विघ्नों को दूर करने वाले माना जाता है. इस दिन उनकी पूजा करने से सभी बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में सफलता मिलती है. गणेश चतुर्थी को नए कार्यों की शुरुआत करने के लिए शुभ माना जाता है. भगवान गणेश को ज्ञान और बुद्धि के देवता माना जाता है. इस दिन उनकी पूजा करने से बुद्धि में वृद्धि होती है. गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश से सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. यह पर्व लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक एकता को बढ़ावा देता है. गणेश चतुर्थी के पीछे कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं जो इस पर्व को और अधिक महत्वपूर्ण बनाती हैं.

 

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