गुरु-पुष्य, सर्वार्थ व अमृत सिद्धि योग में अहोई माता पूरी करेंगी हर अरमान
सनातन
में
अहोई
अष्टमी
का
व्रत
बहुत
महत्वपूर्ण
होता
है.
कार्तिक
मास
कृष्ण
पक्ष
की
अष्टमी
तिथि
का
व्रत
विधि
विधान
से
करने
पर
इसका
संपूर्ण
फल
प्राप्त
होता
है.
यह
व्रत
दीपावली
से
7 दिन
पहले
रखने
का
विधान
होता
है.
अहोई
अष्टमी
24 अक्टूबर
गुरुवार
को
है.
खास
यह
है
कि
संतान
की
सुरक्षा
और
सुखी
जीवन
के
लिए
रखा
जाने
वाला
अहोई
अष्टमी
व्रत
इस
बार
5 शुभ
संयोग
में
है.
उस
दिन
गुरु
पुष्य
योग,
सर्वार्थ
सिद्धि
योग,
साध्य
योग,
अमृत
सिद्धि
योग
और
पुष्य
नक्षत्र
का
सुंदर
संयोग
बना
है.
गुरु
पुष्य
योग
में
आप
सोना,
मकान,
वाहन
आदि
खरीद
सकते
हैं,
वहीं
सर्वार्थ
सिद्धि
योग
में
आपके
किए
गए
कार्य
सफल
सिद्ध
होते
हैं.
अहोई
अष्टमी
के
दिन
अहोई
माता
की
पूजा
करते
हैं.
उनकी
कृपा
से
संतान
सुरक्षित
रहती
है
और
उसका
जीवन
सुखमय
होता
है.
यह
व्रत
सूर्योदय
से
लेकर
तारों
के
निकलने
तक
रखा
जाता
है.
ज्योतिषियों
का
कहना
है
कि
गुरु
पुष्य
योग
यदि
किसी
पर्व
के
दौरान
आता
है,
तो
उस
पर्व
का
महत्व
कई
गुना
बढ़
जाता
है.
अहोई
का
व्रत
24 अक्टूबर
को
प्रातः
1ः19
से
प्रारंभ
होकर
रात
को
चंद्रोदय
होने
तक
विधि
विधान
से
किया
जाएगा.
24 अक्टूबर
को
सूर्योदय
सुबह
6ः28
पर
होगा
और
रात
में
चंद्रोदय
11ः55
पर
होगा
सुरेश गांधी
सनातन धर्म धर्म के
प्रमुख पर्वो में से एक
है दीवाली। इसे पूरे देश
में बड़े उत्साह के
साथ मनाया जाता है। इस
बार दिवाली 31 अक्टूबर को है। इस
दिन चतुर्दशी तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर
31 मिनट तक रहेगी। दीवाली
हमेशा अमावस्या के दिन मनाई
जाती है। ज्योतिषाचार्योके मुताबिक
अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर, गुरुवार को दोपहर 2 बजकर
40 मिनट से शुरू हो
रही है। इस वजह
से दिवाली
31 अक्टूबर को ही मनाई
जाएगी। दीवाली के त्यौहार पर
अमावस्या तिथि रात में
होनी चाहिए, जो 1 नवंबर, 2024 को
शाम में नहीं है।
ऐसे में दिवाली का
त्यौहार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
दीपावली के पहले महामुहूर्त
का विशेष महत्व होता है, जिसमें
विभिन्न शुभ योग और
नक्षत्र एकत्रित होते हैं। खास
यह है कि इस
साल 24 अक्टूबर को गुरु पुष्य
नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि
योग का संयोग है,
जो कि समृद्धि और
सफलता के लिए अत्यंत
शुभ माना जाता है।
इस दिन विशेष रूप
से लक्ष्मी पूजन, दीप जलाने और
घर की साफ-सफाई
पर ध्यान देना चाहिए। ये
उपाय आपके जीवन में
सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने
में सहायक हो सकते हैं।
24 अक्टूबर को गुरु पुष्य
नक्षत्र होने से यह
दिन विशेष महत्व रखता है। पुष्य
नक्षत्र को सुख और
समृद्धि का प्रतीक माना
जाता है। इस दिन
गुरु का प्रभाव अधिक
होता है, जो कि
ज्ञान, शिक्षा और धन का
कारक होता है। जो
लोग नया काम शुरू
करने या कोई निवेश
करने की योजना बना
रहे हैं, उनके लिए
यह विशेष दिन बहुत महत्वपूर्ण
है। ज्योतिष शास्त्र में पुष्य नक्षत्र
को बहुत ही शुभ
और समृद्धि प्रदान करने वाला माना
जाता है। इसे खरीदारी
के लिए महा-मुहूर्त
भी कहा जाता है।
खासकर इस दिन अहोई
अष्टमी का व्रत गुरु
पुष्य योग में होने
के कारण अहोई माता
का आशीर्वाद मिलेगा. साथ ही गुरु
बृहस्पति की कृपा से
धन संपत्ति की वृद्धि, संतान
सुख और हर कार्य
में सफलता भी मिलेगी. संतान
का स्वास्थ्य बेहतर होगा और उनके
उज्जवल भविष्य के लिए गुरु
बृहस्पति आशीर्वाद प्रदान करेंगे. जो महिलाएं इस
दिन व्रत रख पूजा-पाठ नहीं कर
सकती हैं, वो पूजा
जरूर करें. इससे अहोई माता
का आशीर्वाद मिलेगा. साथ ही बच्चों
पर भगवान की कृपा बनी
रहेगी. इस व्रत में
अन्न, जल, फल आदि
का सेवन नहीं करते
हैं. इस वजह से
यह निर्जला व्रत होता है.तारों को देखकर व्रत
को पूरा करते हैं
और पारण किया जाता
है. इस व्रत में
शाम को पूजा स्थान
पर अहोई माता की
8 कोनों वाली एक पुतली
बनाई जाती है. उसमें
फिर रंग भरते हैं.
उसके पास ही सेई
या साही और उसके
बच्चों के भी चित्र
बनाते हैं. यदि आप
ये चित्र नहीं बना सकती
हैं तो मार्केट से
अहोई माता की तस्वीर
लेकर पूजा स्थान पर
रख सकती हैं. अहोई
माता को 8 पूड़ी, 8 मालपुएं,
दूध, चावल का भोग
लगाते हैं. अहोई अष्टमी
की कथा सुनते समय
व्रती को गेहूं के
7 दाने रखने चाहिए. कथा
सुनने के बाद उन
गेहूं को अहोई माता
के चरणों में अर्पित करते
हैं. अहोई अष्टमी की
पूजा के समापन पर
चांदी के दो मोती
एक धागे में पिरोकर
व्रती को पहनना चाहिए.
आप चाहें तो चांदी की
जगह माती की माला
भी पहन सकती हैं.
कहते है इस
दिन विधिपूर्वक अहोई माता की
पूजा करने से मां
बनने की इच्छा पूरी
होती है और सूनी
गोद भी भर जाती
है. इस दिन कुछ
विशेष ज्योतिषीय उपाय किए जाते
हैं, जिनसे शीघ्र संतान सुख की प्राप्ति
संभव होती है. इस
दिन अहोई माता को
श्रृंगार का सामान अर्पित
करें ताकि आप सदा
सुहागन बनी रहें. इसके
पश्चात मां गौरी के
मंत्रों का जाप करना
न भूलें. इस प्रक्रिया से
हर महिला को अखंड सौभाग्य
का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यदि
आप संतान सुख से वंचित
हैं, तो इस दिन
तुलसी का पौधा लगाएं
और उसके समक्ष घी
का दीपक जलाएं. इसके
लिए तुलसी माता की 11 बार
परिक्रमा करें. ऐसा करने से
आपके सुख-सौभाग्य में
वृद्धि होती है. अहोई अष्टमी के
दिन पति-पत्नी मिलकर
मां अहोई को सफेद
फूल अर्पित करें और शाम
को तारों को अर्घ्य देकर
पूजा करें. मान्यता है कि इस
प्रकार से अहोई माता
प्रसन्न होती हैं और
सुखी संतान का आशीर्वाद देती
हैं. अहोई अष्टमी के
अवसर पर संध्या समय
पीपल के वृक्ष के
नीचे तेल के 5 दीपक
जलाना चाहिए. इस प्रक्रिया के
दौरान अपने मन में
इच्छाएं व्यक्त करते हुए पीपल
की परिक्रमा करें. इस उपाय से
अहोई माता भक्तों की
सभी इच्छाओं को पूर्ण करने
में प्रसन्न होती हैं. इस
दिन अहोई माता की
पूजा के समय दूध-भात का भोग
लगाकर लाल फूल अर्पित
करना आवश्यक है. लाल फूल
को हाथ में लेकर
अपनी संतान के लिए शुभकामनाएं
दें. पूजा समाप्त होने
के बाद अपने हाथ
से संतान को दूध-भात
का भोग खिलाएं और
उसी लाल फूल को
उसे देकर सुरक्षित रखने
के लिए कहें. इस
उपाय से माता अहोई
का आशीर्वाद हमेशा उस पर बना
रहेगा.
31 अक्टूबर को दोपहर 3ः23
बजे अमावस्या लग रही है।
इस दिन अमावस्या पूरी
रात है। इस दिन
लक्ष्मी पूजन के लिए
वृषभ और सिंह लग्न
का शुभ समय उपलब्ध
रहेगा। ज्योतिषियों का कहना है
कि प्रदोष काल और मध्य
रात्रि में अमावस्या होने
के कारण दिवाली 31 अक्टूबर
को होगी। जबकि 1 नवंबर को प्रदोष काल
कुछ ही मिनटों का
है क्योंकि इस दिन अमावस्या
सूर्यास्त के बाद समाप्त
हो जाएगी, जिसके कारण अमावस्या तिथि
पर लक्ष्मी पूजन का समय
नहीं मिलेगा। दिवाली में रात्रि व्यापिनी
अमावस्या का महत्व है।
मान्यता है कि अमावस्या
की रात को माता
लक्ष्मी धरती पर आती
हैं और भक्तों के
घर जाती हैं। काशी
के पंचांगों के अनुसार कार्तिक
मास की अमावस्या तिथि
31 अक्टूबर को दोपहर 3ः12
बजे से 1 नवंबर को
शाम 5ः13 बजे तक
रहेगी। दिवाली पर लक्ष्मी पूजा
का सबसे अच्छा समय
सूर्यास्त के बाद प्रदोष
काल और स्थिर लग्न
में है।
भगवान गणेश, देवी सरस्वती और
महाकाली की भी पूजा
की जाती है। ये
सभी मुहूर्त 31 अक्टूबर को ही मिलेंगे।
31 अक्टूबर को दीपावली पूजन
का पहला मुहूर्त प्रदोष
काल में शाम 5ः36
से 6ः15 बजे तक
रहेगा। स्थिर लग्न में वृषभ
लग्न का मुहूर्त शाम
6ः28 से 8ः24 बजे
तक और सिंह लग्न
का मुहूर्त दोपहर 12ः56 से 3ः10
बजे तक रहेगा। 1 नवंबर
को न तो पर्व
पूजन सही रहेगा और
न ही दीपावली। वहीं
दृक पंचांग के अनुसार, लक्ष्मी
पूजन का शुभ मुहूर्त
1 नवंबर को भी रहेगा
और इस दिन ही
दीपावली मनाई जाएगी। दीवाली
का सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है. यह पर्व
आशा और सकारात्मकता का
प्रतीक है, जो विभिन्न
पृष्ठभूमियों के लोगों को
एकत्रित करता है. इस
अवसर को जीवंत सजावट,
आतिशबाजी और सामुदायिक भोज
के माध्यम से मनाया जाता
है, जो एकता की
भावना को प्रोत्साहित करते
हैं. यह अंधकार पर
प्रकाश और बुराई पर
अच्छाई की जीत का
प्रतीक है. दीवाली पांच
दिनों तक मनाया जाता
है, जिनमें से प्रत्येक दिन
की अपनी अनूठी रीति-रिवाज़ और महत्व होता
है.
खरीदारी के लिए महासंयोग
दीपावली के पहले महामुहूर्त
में गुरु पुष्य नक्षत्र
और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग
विशेष महत्व रखता है। यह
समय समृद्धि और शुभता के
लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है।
गुरु का त्रिकोण योग
भी धन, स्वास्थ्य और
समृद्धि को आकर्षित करने
के लिए उत्तम होता
है। इस दिन पूजा-पाठ और दीप
जलाने से आपको विशेष
लाभ मिल सकता है।
आपके जीवन में सकारात्मक
ऊर्जा का संचार होगा।
कार्तिक मास के कृष्ण
पक्ष की अष्टमी तिथि
पर इस वर्ष 24 अक्टूबर,
गुरुवार को गुरु पुष्य
नक्षत्र का दुर्लभ संयोग
बन रहा है। इसे
अत्यंत शुभ माना जाता
है। 24 अक्टूबर को गुरु पुष्य
नक्षत्र के साथ सर्वार्थ
सिद्धि योग भी बन
रहा है, जो इस
दिन को और भी
खास बनाता है। सर्वार्थ सिद्धि
योग का अर्थ है
कि इस दिन शुरू
किए गए सभी काम
सफल होते हैं। नया
व्यवसाय या कारोबार शुरू
करने के लिए यह
दिन बहुत ही शुभ
है। अगर कोई नई
योजना या प्रोजेक्ट पहले
से बना हुआ है,
तो उसे इसी दिन
शुरू करना सबसे अच्छा
रहेगा। नया प्रतिष्ठान स्थापित
करने और दुकान या
ऑफिस खोलने के लिए भी
यह शुभ समय है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार
शनि इस समय कुंभ
राशि में और बृहस्पति
वृष राशि में गोचर
कर रहे हैं। पुष्य
नक्षत्र के दिन इन
ग्रहों की युति विशेष
लाभकारी रहेगी। शनि का केन्द्र
योग स्थायित्व प्रदान करता है। वहीं
बृहस्पति का त्रिकोण योग
भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति
का कारक है। इस
दिन सोना, चांदी, लोहा और वाहन
खरीदना शुभ माना जाता
है। इसके साथ ही
भूमि, भवन और व्यापारिक
प्रतिष्ठान जैसे निवेश में
स्थायित्व और समृद्धि की
प्रबल संभावना है।
29 अक्टूबर धनतेरस
30 अक्टूबर नरक
चतुर्दशी
31 अक्टूबर दीपावली
2 नवंबर अन्नकूट
और
गोवर्धन
पूजा
3 नवंबर यम
द्वितीया,
भाई
दूज,
चित्रगुप्त
पूजा
धनतेरस
दीवाली का उत्सव 29 अक्टूबर,
मंगलवार को धनतेरस के
दिन प्रारंभ होगा. इसके बाद 30 अक्टूबर
को नरक चतुर्दशी, जिसे
छोटी दिवाली के नाम से
भी जाना जाता है,
मनाई जाएगी. धनतेरस (पहला दिन) दीवाली
की शुरुआत का प्रतीक है
और यह धन और
समृद्धि की पूजा के
लिए समर्पित है. इस दिन
लोग भगवान धन्वंतरि जो आरोग्य के
देवता हैं का भी
आराधना करते है.
लोग अपने घरों की
सफाई करते हैं, नए
बर्तन या सोना खरीदते
हैं, और अपने जीवन
में समृद्धि को आमंत्रित करने
के लिए दीये जलाते
हैं.
नरक चतुर्दशी
नरक चतुर्दशी (छोटी
दिवाली) (दूसरा दिन) भगवान कृष्ण
की राक्षस नरकासुर पर जीत की
याद दिलाता है, जो बुराई
पर अच्छाई की जीत का
प्रतीक है. सुबह की
रस्मों में सुगंधित तेल
लगाना और शुद्ध स्नान
करना शामिल है. ऐसा माना
जाता है कि इससे
पाप धुल जाते हैं. लक्ष्मी
पूजा (मुख्य दिवाली दिवस) (तीसरा दिन) त्योहार का
सबसे महत्वपूर्ण दिन, धन और
समृद्धि के लिए देवी
लक्ष्मी की पूजा करने
के लिए समर्पित है.
परिवार शाम को लक्ष्मी
पूजा करते हैं, अपने
घरों को दीयों और
मोमबत्तियों से रोशन करते
हैं. इस दिन परिवार
और दोस्तों के बीच उपहार
और मिठाइयों का आदान-प्रदान
भी होता है. गोवर्धन
पूजा (दिन 4) इंद्र के प्रकोप से
ग्रामीणों की रक्षा के
लिए भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने का
जश्न मनाया जाता है.
गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा एक प्रमुख
हिंदू उत्सव है जो भगवान
कृष्ण को समर्पित है.
यह कार्तिक महीने के “शुक्ल पक्ष“
के पहले चंद्र दिवस
पर मनाया जाता है, जो
विक्रम संवत कैलेंडर में
पहले दिन के रूप
में जाना जाता है.
इस दिन भगवान कृष्ण
और गोवर्धन की विशेष पूजा
की जाती है. कहा
जाता है कि इसी
दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र देवता
को पराजित किया था, जिसके
कारण इस दिन को
गोवर्धन पूजा के नाम
से जाना जाता है.
इसके अतिरिक्त, इस दिन को
अन्नकूट या अन्नकूट पूजा
के रूप में भी
जाना जाता है. इस
वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल
पक्ष की प्रतिपदा तिथि
1 नवंबर 2024 को शाम 6ः16
बजे से प्रारंभ हो
रही है, और इसका
समापन 2 नवंबर को रात 8ः21
बजे होगा. इस प्रकार, उदयातिथि
के अनुसार गोवर्धन पूजा का उत्सव
2 नवंबर को मनाया जाएगा.
इस दिन का पहला
शुभ मुहूर्त सुबह 05ः34 बजे से
लेकर 08ः46 बजे तक
रहेगा. इस अवधि में
पूजा करने का कुल
समय 02 घंटे और 12 मिनट
होगा. इसके अतिरिक्त, गोवर्धन
पूजा का दूसरा शुभ
मुहूर्त शाम 03ः23 बजे से
लेकर 05ः35 बजे तक
रहेगा, जिसमें पूजा के लिए
कुल समय 02 घंटे और 12 मिनट
निर्धारित है.
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