Tuesday, 22 October 2024

गुरु-पुष्य नक्षत्र में बनेगा खरीदारी का महासंयोग, 31 को दीवाली

गुरु-पुष्य नक्षत्र में बनेगा खरीदारी का महासंयोग, 31 को दीवाली 

कल है महामुहूर्त, सर्वार्थ सिद्ध और गुरु का त्रिकोण योग

सुरेश गांधी

वाराणसी। सनातन धर्म धर्म के प्रमुख पर्वो में से एक है दीवाली। इसे पूरे देश में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस बार दिवाली 31 अक्टूबर को है। इस दिन चतुर्दशी तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 3 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। दीवाली हमेशा अमावस्या के दिन मनाई जाती है। ज्योतिषाचार्योके मुताबिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर, गुरुवार को दोपहर 2 बजकर 40 मिनट से शुरू हो रही है। इस वजह से  दिवाली 31 अक्टूबर को ही मनाई जाएगी। दीवाली के त्यौहार पर अमावस्या तिथि रात में होनी चाहिए, जो 1 नवंबर, 2024 को शाम में नहीं है। ऐसे में दिवाली का त्यौहार 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। दीपावली के पहले महामुहूर्त का विशेष महत्व होता है, जिसमें विभिन्न शुभ योग और नक्षत्र एकत्रित होते हैं। 

इस साल 24 अक्टूबर को गुरु पुष्य नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग है, जो कि समृद्धि और सफलता के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी पूजन, दीप जलाने और घर की साफ-सफाई पर ध्यान देना चाहिए। ये उपाय आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और समृद्धि लाने में सहायक हो सकते हैं। 24 अक्टूबर को गुरु पुष्य नक्षत्र होने से यह दिन विशेष महत्व रखता है। पुष्य नक्षत्र को सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस दिन गुरु का प्रभाव अधिक होता है, जो कि ज्ञान, शिक्षा और धन का कारक होता है। जो लोग नया काम शुरू करने या कोई निवेश करने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए यह विशेष दिन बहुत महत्वपूर्ण है। ज्योतिष शास्त्र में पुष्य नक्षत्र को बहुत ही शुभ और समृद्धि प्रदान करने वाला माना जाता है। इसे खरीदारी के लिए महा-मुहूर्त भी कहा जाता है।

31 अक्टूबर को दोपहर 323 बजे अमावस्या लग रही है। इस दिन अमावस्या पूरी रात है। इस दिन लक्ष्मी पूजन के लिए वृषभ और सिंह लग्न का शुभ समय उपलब्ध रहेगा। ज्योतिषियों का कहना है कि प्रदोष काल और मध्य रात्रि में अमावस्या होने के कारण दिवाली 31 अक्टूबर को होगी। जबकि 1 नवंबर को प्रदोष काल कुछ ही मिनटों का है क्योंकि इस दिन अमावस्या सूर्यास्त के बाद समाप्त हो जाएगी, जिसके कारण अमावस्या तिथि पर लक्ष्मी पूजन का समय नहीं मिलेगा। दिवाली में रात्रि व्यापिनी अमावस्या का महत्व है। मान्यता है कि अमावस्या की रात को माता लक्ष्मी धरती पर आती हैं और भक्तों के घर जाती हैं। काशी के पंचांगों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर को दोपहर 312 बजे से 1 नवंबर को शाम 513 बजे तक रहेगी। दिवाली पर लक्ष्मी पूजा का सबसे अच्छा समय सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल और स्थिर लग्न में है।

भगवान गणेश, देवी सरस्वती और महाकाली की भी पूजा की जाती है। ये सभी मुहूर्त 31 अक्टूबर को ही मिलेंगे। 31 अक्टूबर को दीपावली पूजन का पहला मुहूर्त प्रदोष काल में शाम 536 से 615 बजे तक रहेगा। स्थिर लग्न में वृषभ लग्न का मुहूर्त शाम 628 से 824 बजे तक और सिंह लग्न का मुहूर्त दोपहर 1256 से 310 बजे तक रहेगा। 1 नवंबर को तो पर्व पूजन सही रहेगा और ही दीपावली। वहीं दृक पंचांग के अनुसार, लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त 1 नवंबर को भी रहेगा और इस दिन ही दीपावली मनाई जाएगी। दीवाली का सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है. यह पर्व आशा और सकारात्मकता का प्रतीक है, जो विभिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों को एकत्रित करता है. इस अवसर को जीवंत सजावट, आतिशबाजी और सामुदायिक भोज के माध्यम से मनाया जाता है, जो एकता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं. यह अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दीवाली पांच दिनों तक मनाया जाता है, जिनमें से प्रत्येक दिन की अपनी अनूठी रीति-रिवाज़ और महत्व होता है.

खरीदारी के लिए महासंयोग

दीपावली के पहले महामुहूर्त में गुरु पुष्य नक्षत्र और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग विशेष महत्व रखता है। यह समय समृद्धि और शुभता के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। गुरु का त्रिकोण योग भी धन, स्वास्थ्य और समृद्धि को आकर्षित करने के लिए उत्तम होता है। इस दिन पूजा-पाठ और दीप जलाने से आपको विशेष लाभ मिल सकता है। आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर इस वर्ष 24 अक्टूबर, गुरुवार को गुरु पुष्य नक्षत्र का दुर्लभ संयोग बन रहा है। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है। 24 अक्टूबर को गुरु पुष्य नक्षत्र के साथ सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है, जो इस दिन को और भी खास बनाता है। सर्वार्थ सिद्धि योग का अर्थ है कि इस दिन शुरू किए गए सभी काम सफल होते हैं। नया व्यवसाय या कारोबार शुरू करने के लिए यह दिन बहुत ही शुभ है। अगर कोई नई योजना या प्रोजेक्ट पहले से बना हुआ है, तो उसे इसी दिन शुरू करना सबसे अच्छा रहेगा। नया प्रतिष्ठान स्थापित करने और दुकान या ऑफिस खोलने के लिए भी यह शुभ समय है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार शनि इस समय कुंभ राशि में और बृहस्पति वृष राशि में गोचर कर रहे हैं। पुष्य नक्षत्र के दिन इन ग्रहों की युति विशेष लाभकारी रहेगी। शनि का केन्द्र योग स्थायित्व प्रदान करता है। वहीं बृहस्पति का त्रिकोण योग भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति का कारक है। इस दिन सोना, चांदी, लोहा और वाहन खरीदना शुभ माना जाता है। इसके साथ ही भूमि, भवन और व्यापारिक प्रतिष्ठान जैसे निवेश में स्थायित्व और समृद्धि की प्रबल संभावना है।

29 अक्टूबर धनतेरस

30 अक्टूबर नरक चतुर्दशी

31 अक्टूबर दीपावली

2 नवंबर अन्नकूट और गोवर्धन पूजा

3 नवंबर यम द्वितीया, भाई दूज, चित्रगुप्त पूजा

धनतेरस

दीवाली का उत्सव 29 अक्टूबर, मंगलवार को धनतेरस के दिन प्रारंभ होगा. इसके बाद 30 अक्टूबर को नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है, मनाई जाएगी. धनतेरस (पहला दिन) दीवाली की शुरुआत का प्रतीक है और यह धन और समृद्धि की पूजा के लिए समर्पित है. इस दिन लोग भगवान धन्वंतरि जो आरोग्य के देवता हैं का भी आराधना करते  है. लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, नए बर्तन या सोना खरीदते हैं, और अपने जीवन में समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए दीये जलाते हैं.

नरक चतुर्दशी

नरक चतुर्दशी (छोटी दिवाली) (दूसरा दिन) भगवान कृष्ण की राक्षस नरकासुर पर जीत की याद दिलाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. सुबह की रस्मों में सुगंधित तेल लगाना और शुद्ध स्नान करना शामिल है. ऐसा माना जाता है कि इससे पाप धुल जाते हैं.  लक्ष्मी पूजा (मुख्य दिवाली दिवस) (तीसरा दिन) त्योहार का सबसे महत्वपूर्ण दिन, धन और समृद्धि के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए समर्पित है. परिवार शाम को लक्ष्मी पूजा करते हैं, अपने घरों को दीयों और मोमबत्तियों से रोशन करते हैं. इस दिन परिवार और दोस्तों के बीच उपहार और मिठाइयों का आदान-प्रदान भी होता है. गोवर्धन पूजा (दिन 4) इंद्र के प्रकोप से ग्रामीणों की रक्षा के लिए भगवान कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने का जश्न मनाया जाता है.

गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा एक प्रमुख हिंदू उत्सव है जो भगवान कृष्ण को समर्पित है. यह कार्तिक महीने केशुक्ल पक्षके पहले चंद्र दिवस पर मनाया जाता है, जो विक्रम संवत कैलेंडर में पहले दिन के रूप में जाना जाता है. इस दिन भगवान कृष्ण और गोवर्धन की विशेष पूजा की जाती है. कहा जाता है कि इसी दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र देवता को पराजित किया था, जिसके कारण इस दिन को गोवर्धन पूजा के नाम से जाना जाता है. इसके अतिरिक्त, इस दिन को अन्नकूट या अन्नकूट पूजा के रूप में भी जाना जाता है. इस वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 1 नवंबर 2024 को शाम 616 बजे से प्रारंभ हो रही है, और इसका समापन 2 नवंबर को रात 821 बजे होगा. इस प्रकार, उदयातिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा का उत्सव 2 नवंबर को मनाया जाएगा. इस दिन का पहला शुभ मुहूर्त सुबह 0534 बजे से लेकर 0846 बजे तक रहेगा. इस अवधि में पूजा करने का कुल समय 02 घंटे और 12 मिनट होगा. इसके अतिरिक्त, गोवर्धन पूजा का दूसरा शुभ मुहूर्त शाम 0323 बजे से लेकर 0535 बजे तक रहेगा, जिसमें पूजा के लिए कुल समय 02 घंटे और 12 मिनट निर्धारित है.

 

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