मिट्टी के दीपक जलाने से घर में आती है सकारात्मक ऊर्जा
‘माटी का
पुतला
रचा
राम
ने...
और,
तूने
ख़ूब
रचा
भगवान
खिलौना
माटी
का...।’
जी
हां,
पुराणों
के
अलावा
शास्त्रों
व
ज्योतिषियों
में
भी
इस
बात
की
सहमती
है,
मिट्टी
से
बने
चाहे
वो
दीये
हो
या
लक्ष्मी-गणेश
सहित
अन्य
वस्तुएं
घर
में
सकारात्मकता
लाती
है।
मिट्टी
से
बनी
चीजें
सबसे
पवित्र
होती
है।
यही
वजह
है
कि
दीपावली
के
दिन
मिट्टी
से
बने
दिए,
लक्ष्मी-गणेश
और
बर्तनों
का
महत्व
होता
है।
इस
दिन
मिट्टी
से
बने
लक्ष्मी
गणेश
की
पूजा
भी
होती
है।
मिट्टी
से
बनी
चीजें
में
रखने
से
हर
तरह
की
परेशानी
दूर
होती
है।
वास्तु
शास्त्र
के
मुताबिक
अलग-अलग
तरह
की
मिट्टी
से
बनी
चीजें
अलग-अलग
तरह
से
घर
में
सकारात्मकता
लेकर
आती
हैं।
घर
में
धन
वैभव
भी
बढ़ती
हैं।
मिट्टी
के
बर्तन
पर्यावरण
के
लिहाज
से
भी
उत्तम
माने
जाते
हैं।
इनकी
आसानी
से
री-साइकिलिंग
हो
जाती
हैं।
यही
वजह
है
कि
पूजा-
पाठ
के
कार्यों
में
मिट्टी
के
करवे
और
बर्तनों
का
इस्तेमाल
किया
जाता
है.
वैसे
भी
मिट्टी,
आकाश,
जल,
वायु,
और
अग्नि
का
प्रतीक
है.
इन्हीं
पंच
तत्वों
से
मानव
सहित
जीव-जन्तुओं
का
निर्माण
हुआ
है.
मान्यता
है
कि
यह
पंच
तत्व
इंसान
के
जीवन
को
खुशहाल
बनाए
रखने
के
लिए
प्रार्थना
करते
हैं.
कहते
हैं
कि
घर
में
मिट्टी
का
दीपक
जलाने
से
घर
में
सकारात्मक
ऊर्जा
का
संचार
होता
है।
अच्छा
हो
कि
इस
दीवाली
में
दीपों
के
सच
की
इस
अनुभूति
के
साथ
एक
दीया
और
जलाएं,
ताकि
इस
मिट्टी
की
देह
दीप
में
आत्मा
की
ज्योति
मुस्करा
सके।
छत
की
मुंडेर
पर
रखे
दीयों
की
बाती
अगले
वर्ष
फिर
जगमग
को
तैयार
रहे,
नई
उम्मींदों
के
साथ...।
सुरेश गांधी
जी हां, मिट्टी
के महत्व ऐसे भी समझा
जा सकता है, जैसे
जिन पंचतत्वों से मनुष्य की
उत्पत्ति हुई है उनमें
मिट्टी ही है जो
उसे स्थूल रूप देती है।
अंत में प्रत्येक जीव
का उसी में विलय
होना है। इसीलिए आत्मा
निकल चुके शरीर को
मिट्टी कहते हैं। आदिमानव
अभिन्न तौर पर मिट्टी
से जुड़ा था। वह
नंगे पांव चलता, उसी
पर बैठता, सोता था और
दुरस्त रहता था। पृथ्वी
में एक विद्युत प्रणाली
है जो मनुष्य के
अंदर मौजूद विद्युत प्रणाली के माकूल है
और मिट्टी भूमंडल की जैव विविधता
संजोए रखती है। वेद-पुराणों में भी इस
बात का जिक्र है,
‘मनुष्य के जीवित रहने
का दारोमदार मिट्टी पर है। इसे
सहेज कर रखेंगे तो
हमारी आवश्यकताओं की आपूर्ति होती
रहेगी और हम सौंदर्य
से सराबोर रहेंगे। इसकी अवहेलना करेंगे
तो हम नष्ट हो
जाएंगे।’ स्वच्छ जल की उपलब्धता
और बाढ़ व सूखे
से बचाव में मिट्टी
की अहम भूमिका है।
इसलिए मिट्टी से बनी कुछ
चीजों को घर के
लिए बहुत ही शुभ
माना जाता है. क्योंकि
जब मिट्टी से किसी चीज
को बनाया जाता है तो
पहले मिट्टी को पानी में
गलाया जाता है जो
भूमि तत्व और जल
तत्व का प्रतीक होता
है. इसके बाद इसे
विशेष आकृति देकर धूप और
हवा में सुखाया जाता
है, जो आकाश और
वायु तत्व का प्रतीक
है. इसके बाद आखिर
में मिट्टी से बनी वस्तु
को आग में तपाकर
मजबूत किया जाता है,
यह अग्नि तत्व का प्रतीक
है. यही कारण है
कि सनातन में मिट्टी के
बनी चीजों को शुद्ध माना
जाता है और पूजा-पाठ में इसका
इस्तेमाल किया जाता है.
मिट्टी को स्वास्थ्य के साथ-साथ वास्तु के हिसाब से भी शुभ माना गया है. मिट्टी के घड़े में पानी भरकर रखने से घर में सुख-समृद्धि आती है. घर में फूल-पौधे मिट्टी के गमले में लगाने से घर की निगेटिव एनर्जी दूर होती है और घर में सुख-शांति का वास होता है. मिट्टी से बनी देवी-देवताओं की मूर्ति के पूजन से देवतागण खुश होते है। पूजा के लिए सजाए थाल में मिट्टी रखने की परम्परा रही है। राज्याभिषेक जैसे आयोजनों में सप्तमृदा या दशमृदा का सम्भार के रूप में संग्रह करने का संदर्भ हमें मत्स्यपुराण, राज्याभिषेक पद्धति आदि में मिलता है। मिट्टी काया को चमकाने वाली ही नहीं, स्वेद आदि जन्य व्याधियों का निराकरण करने वाली भी है। उसके इन गुणों को उत्तर सैंधवकाल में जान लिया गया था और उसके प्रयोग के हमारे समाज में धार्मिक और आनुष्ठानिक दृष्टि भी बढ़े। मिट्टी से स्नान की शास्त्रीय विधि रही है। वह्निपुराण में कहा गया है कि मृदा से दो बार गुह्यांग को, शरीर के अधोभाग को तीन, काया को छह और पांवों तथा कमर को तीन-तीन बार एवं हाथों को दो-दो बार मलकर धोना चाहिए। इसके बाद उचित विधि से दो बार आचमन और सम्मार्जन करना चाहिए। इस तरह मिट्टी का प्रयोग करते हुए मृदा मंत्र को बोलने का निर्देश मिलता है। मिट्टी हमारे आरम्भिक गृहों का मुख्य संसाधन रही है। उसके अनेकविध उपयोगों के साक्ष्य हमारे विविध शास्त्र देते हैं।
मिट्टी
से सम्पृक्त आरम्भिक मनुष्यों के जीवन में
बालकों के लिए मिट्टी
के खिलौने तैयार किए जाते थे।
सिंधुघाटी में जब एक
जैसे मृदा चक्र प्राप्त
हुए तो कल्पना की
गई कि यदि इन्हें
बीच में किसी छड़
से जोड़ दिया जाए
तो मिट्टी की गाड़ी बन
जाएगी। इन्हीं पर आधारित नाम
है मृच्छकटिकम यानी मिट्टी की
गाड़ी, मिट्टी का शकट या
छकड़ा। बच्चों के खिलौनों को
लेकर सियारामशरण गुप्त द्वारा रचित कविता है-‘मैं तो वही
खिलौना लूंगा’ जिसमें राजकुमार और छोटे से
घर का बालक आपस
में एक-दूसरे के
खिलौने मांगते हैं। राजकुमार उस
मिट्टी के खिलौने को
चाहता है और छोटे
घर का बालक राजकुमार
के खिलौनों के लिए मचल
पड़ता है। वराह मिहिर
की बृहत्संहिता, समाससंहिता, मयूरचित्रम जो नारदमुनि का
ग्रंथ है, कश्यप मुनि
की काश्यप संहिता, इसके अलावा मेघमाला,
गागभड्डली, डंगभड्डली, वर्षाज्ञानम्, कृषि पराशर ऐसे
बहुत ग्रंथ हैं जिनमें आता
है कि यदि बच्चे
वर्षाकाल में मिट्टी के
घर बनाते हों, रेत के
घर बनाते हों तो बारिश
होती है। वहीं यदि
चिड़िया धूल में नहाए
तो भी बारिश होती
है, लेकिन यदि चिड़िया पानी
में नहाए तो बारिश
चली जाती है।
दीपावली में एक बार
फिर दिया और बाती
का मिलन होगा। लोगों
के घर आंगन मिट्टी
के दिए से रोशन
होंगे। दीपावली के नजदीक आते
ही माटी की कला
के माहिर कुम्हार के चाक रफ्तार
तेज हो गई है.
पूरा परिवार मिट्टी के दीये व
खिलौने बनाने में लगा है।
सबको इस बार अच्छी
बिक्री की उम्मीद है।
इस बार उनकी दीपावली
भी रोशन रहे, के
लिए माता-पिता के
साथ बच्चे भी हाथ बटा
रहे हैं। कोई मिट्टी
गुथ रहा है तो
किसी के हाथ चाक
पर मिट्टी के बर्तनों को
आकर दे रहे हैं।
दीपक और पूजा-पाठ
के लिए मिट्टी का
कलश, खिलौने आदि बनाने में
रात-दिन एक किए
हुए हैं। महाकवि निराला
ने भी ‘वीणावादिनी पर
दे‘ में यही प्रार्थना
की है - कलुषय भेद
तक हर प्रकाश भर
जगमग कर दें‘।
देखा जाय तो स्वाधीन
भारत में लक्ष्मी का
प्रकाश कुछ गिनी-चुनी
मुंडेरों पर केंद्रित हो
गया है। लक्ष्मी सीमित
तिजोरियों में कैद हो
गई है। लक्ष्मी के
शुभ प्रकाश को सचमुच उलूक
पर बिठा दिया गया
है। उजाला बिखेरने वाले दीये खुद
सिसक रहें हैं और
बाती अपनी बेबसी पर
रो रही है। लेकिन
जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी ने वोकल फॉर
लोकल का नारा दिया
है, लोगों में जागरुकता बढ़ी
है। लोग का रुझान
मिट्टी के दीए की
ओर बढ़ा है। लेकिन
मोदी ही क्यों इस
दीपोत्सव के पावन पर
हमें भी प्रण करना
चाहिए कि लक्ष्यों की
प्राप्ति तमसो मा ज्योतिर्गमय
के मूलमंत्र से ही संभव
है। अर्थात ‘अंधेरे से उजाले की
ओर जाओ‘ यह उपनिषद
की आज्ञा है। क्योंकि अंधेरे
पर उजाले, दुष्चरित्रता पर सच्चरित्रता, अज्ञान
पर ज्ञान की और निराशा
पर आशा की जीत
का त्योहार है दीवाली। हर
दिल को रोशन करने
का संदेश लेकर आती है
दीवाली।
इस त्योहार पर
भव्य प्रकाश व्यवस्था और झिलमिल झालरों
से पट जाता है
देश का कोना कोना।
पर जिस दीये से
प्रकाश पर्व प्रारंभ हुआ,
वहीं इनके बीच टिमटिम
करता तलाश रहा है
अपना वजूद। लेकिन इस दीवाली हम
अगर मिट्टी के दीये रोशन
करें तो पट सकती
है खाईं। क्योंकि मिट्टी के जगमगाते दीयों
को जलाने और उन्हें एक
एक कर पंक्ति में
सजाने की खुशी के
आगे बेजान लगती है बल्व
और झिलमिल झालरों से रोशनी। दीवाली
का अर्थ प्रत्येक हृदय
में समझ उत्पंन करना,
प्रत्येक घर में जीवन
ज्योति प्रज्जवलित करना और प्रत्येक
चेहरे पर मुस्कान लाना
है। दीवाली का शाब्दिक अर्थ
दीयों की कतार है।
ठीक इसी तरह हमारे
जीवन में भी अनेक
पक्ष और स्तर होते
हैं। इन सभी को
प्रकाशित करना महत्वपूर्ण हैं,
क्योंकि अगर हमारे जीवन
का एक पक्ष भी
अंधकार में है, तो
हम संपूर्णता में जीवन की
अभिव्यक्ति नहीं कर सकते
हैं। दीवाली पर जलने वाले
दीयों की कतार हमें
इस बात का स्मरण
कराती है कि जीवन
के हरेक पक्ष को
हमारे ध्यान की आवश्यकता होती
हैं। दीवाली वास्तव में आनंदोत्सव ही
तो है। दरिद्रता केवल
धन की ही नहीं,
सुख के साधनों की
नहीं बल्कि मन में घिरी
संकीर्णता, स्वार्थ, कलुष रुपी दरिद्रता
भी दूर होगी, तो
जीवन आनंद से सराबोर
हो उठता है। दीवाली
पर घर-घर में
जगमगाते दीये इसी आनंद
की अभिव्यक्ति हैं। इसी उम्मींद
के साथ शहरी क्षेत्र
से लेकर सुदूर ग्रामीण
इलाकों तक कुम्हार चाक
पर काम करते देखे
गए। कई कुम्हारों ने
पूछे जाने पर बताया
कि दुर्गापूजा के पूर्व उनका
काम कुछ मंदा पड़
गया था। लेकिन नवरात्र
में मिट्टी के बने बर्तनों
की मांग बाजार में
बढ़ने के कारण वे
लोग लगातार काम कर रहे
हैं। कुम्हारों का कहना है
कि मिट्टी के बर्तनों की
मांग पर्व, त्योहारों में अचानक बढ़
जाती है। खासकर दीपावली
से लेकर छठ तक
मिट्टी के बर्तनों की
मांग काफी रहती है।
ऐसे में दिन रात
एक कर मिट्टी के
बर्तन को बनाने का
कार्य किया जा रहा
है। इस कार्य में
कुम्हार तथा उनके पूरे
परिवार के लोग बर्तन
बनाने के साथ ही
उन्हें सुखाने व आग में
पकाने आदि का कार्य
कर रहे हैं। उत्तर
प्रदेश की योगी आदित्यनाथ
सरकार कुम्हारों के लिए माटी
कला बोर्ड के जरिए मिट्टी
के बर्तनों को विलुप्त होने
से बचाने और उन्हें रोजगार
देने का प्रयास कर
रही है. इसके लिए
अब कुम्हारों को प्रशिक्षित कर
सस्ता ऋण मुहैया कराया
जाएगा. सरकार प्लास्टिक पर पूरी तरह
प्रतिबंधित लगाने के बाद मिट्टी
के बर्तनों को बढ़ावा रही
है. माटी कला से
जुड़े कामगारों को प्रशिक्षित कर
उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा
है। उनके पास मिट्टी
बनाने का कोई इंतजाम
है या नहीं है,
का पता कर उन्हें
पट्टा दिला जा रहा
है। कुम्हारों को टूलकिट भी
प्रदान किया जा रहा
है। कुम्हारों के उत्पादों की
मार्केटिंग में भी सरकार
पूरा सहयोग कर रही है।
No comments:
Post a Comment