Saturday, 23 November 2024

बिहार व दिल्ली में भी गूंजेगा योगी का ’बटेंगे तो कटेंगे’ का नारा

बिहार व दिल्ली में भी गूंजेगा योगी का ’बटेंगे तो कटेंगे का नारा 

15 राज्यों की 48 विधानसभा सीटों सहित लोकसभा की 2 सीटों पर हुए उपचुनाव में जिस तरह के नतीजे आएं हैं, उससे साफ है आगे होने वाले बिहार दिल्ली में भीबटेंगे तो कटेंगेऔरएक रहेंगे तो सेफ रहेंगेके नारे सुनाई देंगे। मतलब साफ है चाहे वो वायनाड हो या झारखंड, जिस तरह से मुस्लिमों ने वोटिंग में दिलचस्पी दिखायी, उससे ठीक उलट महाराष्ट्र यूपी के उपचुनाव में दिखा। हालांकि महाराष्ट्र में लाडली बहना झारखंड में माय योजना ने भी चुनाव को प्रभावित किया है, से इनकार नहीं किया जा सकता। या यूं कहेबटेंगे तो कटेंगेऔरएक रहेंगे तो सेफ रहेंगेने जीत में तुरूप के पत्ते का काम किया है तो महिला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सशक्तिकरण संबंधित योजनाओं का जादू भी सिर चढ़कर बोल रहा है। बता दें, लोकसभा वायनाड सीट के अलावा राजस्थान में 7, पश्चिम बंगाल में 6, असम में 5, पंजाब और बिहार में 4-4 सीटों पर उपचुनाव हुए हैं कर्नाटक और केरल में 3-3 सीटों पर चुनाव हुए हैं। इसके अलावा उत्तराखंड की केदारनाथ सीट भी शामिल हैं 



सुरेश गांधी

फिरहाल, महाराष्ट्र और झारखंड के अलावा यूपी उपचुनाव में कैंपेन के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से दिया गयाबटेंगे तो कटेंगेकैंपेन के आखिर दिन पीएम मोदी काएक रहेंगे तो सेफ रहेंगेका नारे के जादू नतीजों में सिर चढ़कर बोल रहा है. आगे होने वाला बिहार दिल्ली में भी असकी गूंज सुनाई देगी। दरअसल, इसको पॉजिटिव तौर पर बीजेपी लोगों के बीच पहुंचाने में कामयाब रही. बीजेपी ने कहा था कि अलग-अलग धर्मों, जातियों और समुदायों में नहीं बंटना है बल्कि हमें नए भारत के लिए वोट करना है. इसके अलावा, जिस तरह से मदरसे से कुछ फतवे जारी किए गए थे, जिनमें ये कहा गया था कि आप गैर भाजपा दलों के उम्मींदवारों को एकतरफा वोटिंग कीजिए, इसका भी बीजेपी को फायदा मिला है. मतलब साफ है वायनाड, झारखंड महाराष्ट्र आदि इलाकों के नतीजे यह बताने के लिए काफी है जहां-जहां मुस्लिमों ने एकतरफा वोटिंग की, उसका रिएक्शन भी देखने को मिला है। 

हालांकि महाराष्ट्र में महायुति के पक्ष में मराठा आरक्षण लाडली बहिन योजना भी जीत में कारगर भूमिका निभायी है। ये एक बहुत बड़ा मैसेज महायुति धरातल पर पहुंचाने में कामयाब रही. कहीं कहीं इसका फायदा महिलाओं को दिवाली जैसे त्योहारों में भी हुआ है. इसका एक कलेक्टिव इंप्रेशन अगर हम देखें तो महायुति के लिए ये विन-विन सिचुएशन थी. पॉजिटिव सिचुएशन थी. इसी के परिणाम के तौर पर महायुति के इस तरह का चुनाव में फायदा देखने को मिला है. कहा जा सकता है भारत की राजनीति में महिलाओं को फोकस में रखकर बनाई गईं कल्याणकारी योजनाएं अब गेमचेंजर साबित हो रही हैं. महिलाओं के खाते में सीधे नगद ट्रांसफर की जाने वाली स्कीम तो भारत की राजनीति में वोट लेने का एक जांचा-परखा तरीका बन गई है. मध्य प्रदेश में इस योजना की कामयाबी के बाद यही कहानी महाराष्ट्र और झारखंड में भी रिपीट हुई है. या यूं कहे महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कल्याणकारी योजनाएं चुनावी जीत में निर्णायक फैक्टर बन गए हैं. झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव नतीजें ने इस ट्रेंड की पुष्टि की है. इस पैटर्न ने इस बात को रेखांकित किया है कि राजनीतिक परिणामों को आकार देने में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। 

देखा जाएं तो कुछ ही साल पहले तक कहा जाता रहा कि पुरुषों की तुलना में आधी आबादी के बावजूद महिलाएं कम वोटिंग करती है। इस अंतर को पाटने के लिए शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्य प्रदेश की सरकार ने देश मे पहली बार ऐसी स्कीम लॉन्च की थी जो लड़कियों और महिलाओं पर फोकस थी. इस स्कीम ने एमपी का पॉलिटिकल लैंडस्कैप बदल दिया. पिछले कुछ सालों में कई राज्य सरकारों ने ऐसी कल्याणकारी योजनाओं लागू की है जिसके फोकस में महिलाएं हैं. इनमें शिक्षा और स्वास्थ्य में महिलाओं की बेहतरी के लिए सीधा नगद ट्रांसफर शामिल है. मजेदार बात यह है कि इन योजनाओं को महिलाओं ने हाथों हाथ लिया और बदले में सरकारों जमकर वोट दिया. ऐसे राज्य जहां अगले कुछ महीनों में चुनाव है वहां की सरकारों ने भी ऐसे ही स्कीम लॉन्च किए हैं. इन स्कीम के केंद्र में महिलाओं को सीधा फायदा पहुंचाना शामिल है. महाराष्ट्र के इस चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन ने महिला-केंद्रित पहलों को प्राथमिकता दी

सरकार ने महिला सशक्तिकरण योजना का विस्तार किया, जिसमें महिलाओं की शिक्षा और कौशल विकास के लिए वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किए गए. लाड़की बहिन योजना इस सरकार का ट्रेड मार्क स्कीम बन गई. इस योजना के तहत सरकार हर परिवार की महिला मुखिया को प्रतिमाह 1500 रुपये दे रही है. चुनाव के तुरंत पहले सरकार ने रणनीतिक चाल चलते हुए इस रकम को 2500 तक करने का वादा किया. शिंदे सरकार ने वादा किया कि अगर वे फिर से जीत कर आएंगे तो हर परिवार की मुखिया महिला को हर महहीने 2500 रुपया दिया जाएगा. महिला वोटरों पर शिंदे सरकार का फोकस रंग लाया. इस चुनाव में महिलाएं बढ़ चढ़कर मतदान करने निकलीं. खासकर ग्रामीण और कस्बाई इलाकों में बड़ी संख्या में महिलाएं वोट देने निकलीं और चुनाव के नतीजे बताते हैं कि महिलाओं ने महायुति सरकार को जमकर वोट किया. यही वजह रही कि जिन सीटों पर महा विकास अघाडी महायुति को कांटे की टक्कर दे रही थी वहां भी महायुति ने महिला वोटरों के दम पर बंपर कामयाबी हासिल की.

महाराष्ट्र की कामयाबी झारखंड में भी देखने को मिली. यहां भी महिला केंद्रित योजनाओं का असर देखने को मिला. मइयां सम्मान योजना ने झारखंड की राजनीति में हलचल मचा दी. इस योजना के तहत राज्य सरकार योग्य महिलाओं को हर महीने 1000 रुपये दे रही थी. हेमंत सरकार इस योजना के 4 किश्त महिलाओं के खाते में ट्रांसफर कर.भी चुकी है. इसके अलावा हेमंत सरकार ने स्कूल जाने वाली लड़कियों को मुफ्त साइकिल, सिंगल मदर को नगद सहायता, बेरोजगार महिलाओं को नगद सहायता देने की भी स्कमें शुरू की है. मइयां सम्मान योजना हेमंत सरकार की गुडविल और राजनीति निष्ठा को बढ़ाने में सफल रही. आदिवासी, गरीब और ग्रामीण इलाकों में इन स्कीम की की जबरदस्त चर्चा रही. चुनाव के नतीजे बताते हैं कि इन स्कीम्स का पूरजोर फायदा हेमंत सरकार को मिला और जेएमएम प्रचंड बहुमत के साथ वापसी करने में सफल रही. मतलब साफ है जैसे-जैसे महिलाएं खुद को निर्णायक मतदाता समूह के रूप में स्थापित कर रही हैं, स्त्रियों के प्रति संवेदनशील शासन प्रणाली पर जोर बढ़ने वाला है, जो केवल चुनाव परिणामों को प्रभावित करेगा बल्कि भारत में व्यापक राजनीतिक लैंडस्कैप पर भी असर डालेगा. महिलाओं को सशक्त बनाना अब केवल एक सामाजिक अनिवार्यता नहीं रह गई है, यह भारतीय राजनीति में जीत के लिए रणनीतिक साबित हो रही है।

उत्तर प्रदेश मे 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों से साफ हो गया है कि योगी आदित्यनाथ का कद बढ़ा है। क्योकि उनके लिए यह चुनाव जीवन मरण का भी प्रश्न बन गया था. लोकसभा चुनावों में जिस तरह की फजीहत बीजेपी और योगी को सहनी पड़ी थी अब शायद उपचुनावों के परिणाम उस शॉक से पार्टी बाहर निकल सके. योगी ने लोकसभा चुनावों के तुरन्त बाद ही ठान लिया था कि उपचुनावों की सभी सीटें जीतनी हैं और उन्होंने यह कर दिखाया. इसकी बड़ी वजह रही पार्टी की अंदरूनी कलह का असर इन चुनावों में नही्ं दिखना. सभी ने एकजुट होकर जमकर प्रचार किया. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनाव के अंतिम हफ्ते मे योगी ने 5 दिन में 15 रैली की. योगी सरकार ने नौ सीटों पर सरकार के 30 मंत्रियों की टीम-30 को मैदान में उतारा था. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी सभी नौ सीटों पर एक-एक चुनावी सभा को संबोधित किया. उनका पूरा जोर फूलपुर और मझवां सीट पर रहा है.

उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने भी उपचुनाव में नौ सीटों पर एक-एक रैली की. दूसरी ओर आरएसएस भी इस बार पूरे जोर शोर के साथ बीजेपी प्रत्याशियों के प्रचार में लगा हुआ था. लोकसभा चुनावों के दौरान आरएसएस की नामौजूदगी का नतीजा रहा कि बीजेपी को बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ा था। अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने बटेंगे कटेंगे के बदले में मुस्लिमों को एकजुट रहने का आह्वान करते हुए इस नारे को खिल्ली समझ कर इसका खूब मजाक उड़ाया. ये केवल अपने कोर वोटर्स को खुश करने के लिए किया गया पर उल्टा पड़ गया. दूसरी ओर योगी आदित्यनाथ ने लगातार कानून व्यवस्था और बेरोजगारी पर अपने को फोकस रखा. पुलिस की वैकेंसी आई और परीक्षा हुआ उसका रिजल्ट भी आया. छात्रों की मांग पर एक परीक्षा को कैंसल किया गया तो नॉर्मलाइजेश पर रोक भी लगाई गई.

योगी आदित्यनाथ तमाम आलोचनाओं के बाद भी बुलडोजर न्याय और एनकाउंट न्याय पर अडिग रहे. जो उनकी यूएसपी बन चुकी है. जाहिर है कि योगी आदित्यनाथ की यही शैली लोगों को पसंद आती है. देखा जाएं तो अखिलेश केपीडीएपर बीजेपी का ओबीसी फर्स्ट भारी पड़ गया। 2027 में भी योगी की इसी लाइन पर राजनीति आगे बढ़ेगी. अब बीजेपी अपने ओबीसी फर्स्ट फॉर्मूले को और आगे बढ़ाएगी. टिकटों के बंटवारे में अखिलेश ने मुस्लिम कार्ड खेला है तो वहीं बीजेपी ने ओबीसी पर दांव लगा दिया. बीजेपी ने सबसे ज्यादा 5 उम्मीदवार ओबीसी उतारे. जबकि एक दलित और 3 अगड़ी जाति के हैं.जबकि सपा ने सबसे ज्यादा 4 उम्मीदवार मुस्लिम उतारे। इसके अलावा ओबीसी 3, दलित 2 उम्मीदवार रहे। जबकि अगड़ी जाति को एक भी टिकट नहीं दिया। टिकट बंटवारे में यह संदेश गया कि सपा मुस्लिम परस्त पार्टी है. जिस ओबीसी जाति जनगणना को लेकर विपक्ष बीजेपी को घेर रहा है वहां बीजेपी ने ओबीसी पर ही दांव लगा दिया. संदेश गया कि अखिलेश पीडीए में ओबीसी को मुस्लिम से बैलेंस कर रहे हैं. योगी ने कहा, ‘ये जीत डबल इंजन सरकार की सुरक्षा-सुशासन एवं जनकल्याणकारी नीतियों तथा समर्पित कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम का सुफल है।

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