‘मुझको अगम स्वर ज्ञान दो, मां सरस्वती! वरदान दो‘
जिस उत्साह के साथ जीवन में परिवर्तन का मनुष्य ने स्वागत किया वही त्योहारों के रूप में परंपरा में शामिल होता गया। बसंत पंचमी ऋतुओं के उसी सुखद परिवर्तन का एक रुप है। इसके कई रंग है। यह प्रकृति के नये श्रृंगार का पर्व है। कला, संगीत, प्रेम और उल्लास का उत्सव है। रंगों का त्योहार होली का आगाज है। लेकिन इन सबके साथ ही यह ज्ञान, संगीत और बुद्धि की आराधना का भी अवसर है। या यूं कहें सरस्वती पूजा का महापर्व। संपूर्ण भारत के अलावा सात समुंदर पार भी बड़े उल्लास के साथ बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है। बसंत पंचमी की पंचमी तिथि की शुरुआत 2 फरवरी को सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 3 फरवरी को सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर होगा. उदयातिथि के अनुसार, तीन फरवरी को बसंत पंचमी के दिन शुभ संयोग (त्रिग्रही योग) बन रहा है. शुभ संयोग के चलते बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विशेष कृपा बरसेगी. इस दिन बुध, गुरु तथा चंद्रमा मिलकर त्रिग्रह योग बना रहे हैं. अमृत काल रात 08 बजकर 24 मिनट से 09 बजकर 53 मिनट तक रहेगा। चूंकि स्नान ब्रह्ममुहूर्त में मान्य है इसलिए वसंती पंचमी का अमृत स्नान 3 फरवरी को किया जाएगा। बसंत पंचमी के दिन पवित्र नदी में स्नान जरूर करना चाहिए। इस दिन माता सरस्वती की विधि विधान पूजा करनी चाहिए। माता के मंत्रों का जाप जरूर करना चाहिए। बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती को हल्दी अवश्य अर्पित करें। इस दिन मां सरस्वती को खीर का भोग अवश्य लगाएं। इस दिन मां सरस्वती को कलम अवश्य अर्पित करते हैं और उसी कलम से अपना जरूरी काम करें
सुरेश गांधी
सरसों की धानी चादर पर पीली छिंट बिखरी पड़ी होती है। फूल झर-झर करते हुए झड़ने लगते है। या यूं कहें पूरी प्रकृति पीली छठा, पीली चादर ओढ़ मदमस्त होकर झूमने लगती है। मौसम सुहाना व खुशनुमा हो जाता है। ‘सरसैया क फुलवा झर लागा, फागुन में बाबा देवर लागा‘, के बोल आबोहवा में तैरने लग जाते हैं और सुनाई देने लगती है बसंत की आहट। इसी के साथ गांवों में अगले 40 दिन की शुरु हो जाती है फाग। छात्र-छात्राएं जुट जाते है परीक्षा की तैयारी में। ऐसे शुभ अवसर को कहते है बसंत पंचमी। बसंत पंचमी का पर्व माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन खास तौर पर मां सरस्वती की पूजा होती है। इस बार इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है क्योंकि इस दिन शुभ संयोग का निर्माण हो रहा है। पौराणिक मान्यता के मुताबिक, बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का जन्म हुआ था। कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने इस दिन मां सरस्वती को प्रकट किया था। मां सरस्वती कमल के फूल पर बैठी हुई और चार हाथों वाली थीं। एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में किताब, तीसरे में माला और चौथे हाथ में वर मुद्रा में थीं। तब ब्रह्मा जी ने उनका नाम ‘सरस्वती’ रखा। इस दिन को विद्या, कला और संगीत की देवी मां सरस्वती का दिन माना जाता है। पूजा करते वक्त मां को पीले रंग के फूल, फल और मिठाई अर्पित करनी चाहिए क्योंकि उन्हें पीला रंग बहुत पसंद है। साथ ही, उन्हें पीले वस्त्र और माला अर्पित करना शुभ होता है। इस दिन से कोई भी कार्य करने के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया हैं। मुख्यतः विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचेयता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है। प्राचीन समय में बसंत पचंमी के दिन लोग मलमल के कपडों को वसंती रंग में रंग कर धारण करते थें। कवि भी इस मौसम में प्रसन्न होकर अपनी लेखनी उठा लेते है। बसंत पंचमी पर्व पर लोग पीले रंग के चावल बनाकर अपने परिवार और रिश्तेदारों के साथ खूब आनंद से खाते हैं।
कहते है सृष्टि
के निर्माण के समय सबसे
पहले महालक्ष्मी देवी प्रकट हुईं।
इन्होंने भगवान शिव, विष्णु एवं
ब्रह्मा जी का आह्वान
किया। जब ये तीनों
देव उपस्थित हुए तो देवी
महालक्ष्मी ने तब तीनों
देवों से अपने-अपने
गुण के अनुसार देवियों
को प्रकट करने का अनुरोध
किया। भगवान शिव ने तमोगुण
से महाकली को प्रकट किया,
भगवान विष्णु ने रजोगुण से
देवी लक्ष्मी को तथा ब्रह्मा
जी ने सत्वगुण से
देवी सरस्वती का आह्वान किया।
जब ये तीनो देवी
प्रकट हुईं तब जिन
देवों ने जिन देवियों
का आह्वान किया था उन्हें
वह देवी सृष्टि संचालन
हेतु महालक्ष्मी ने भेंट किया।
इसके पश्चात स्वयं महालक्ष्मी माता लक्ष्मी के
स्वरूप में समा गईं।
सृष्टि का निर्माण कार्य
पूरा करने के बाद
ब्रह्मा जी ने जब
पाया कि अपनी बनायी
सृष्टि मृत शरीर की
भांति शांत है। इसमें
न तो कोई स्वर
है और न वाणी।
तो अपनी उदासीन सृष्टि
को देखकर ब्रह्मा जी को अच्छा
नहीं लगा। ब्रह्मा जी
भगवान विष्णु के पास गये
और अपनी उदासीन सृष्टि
के विषय में बताया।
ब्रह्मा जी से तब
भगवान विष्णु ने कहा कि
देवी सरस्वती आपकी इस समस्या
का समाधान कर सकती हैं।
आप उनका आह्वान किया
कीजिए। उनकी वीणा के
स्वर से आपकी सृष्टि
में ध्वनि प्रवाहित होने लगेगी। भगवान
विष्णु के कथनानुसार ब्रह्मा
जी ने सरस्वती देवी
का आह्वान किया। सरस्वती माता के प्रकट
होने पर ब्रह्मा जी
ने उन्हें अपनी वीणा से
सृष्टि में स्वर भरने
का अनुरोध किया। माता सरस्वती ने
जैसे ही वीणा के
तारों को छुआ उससे
सा शब्द फूट पड़ा।
यह शब्द संगीत के
सप्तसुरों में प्रथम सुर
है। इस ध्वनि से
ब्रह्मा जी की मूक
सृष्टि में ध्वनि का
संचार होने लगा। हवाओं
को, सागर को, पशु-पक्षियों एवं अन्य जीवों
को वाणी मिल गयी।
नदियों से कलकल की
ध्वनि फूटने लगी। इससे ब्रह्मा
जी अति प्रसन्न हुए
उन्होंने सरस्वती को वाणी की
देवी के नाम से
सम्बोधित करते हुए वागेश्वरी
नाम दिया। सरस्वती माता के हाथों
में वीणा होने के
कारण इन्हें वीणापाणि भी कहा जाता
है।
श्रीकृष्ण ने की सरस्वती की प्रथम पूजा
भगवान श्री कृष्ण ने
गीता के 10वें अध्याय
में कहा है, छः
ऋतुओं में वसंत उनका
ऋतु है। वसंत मेरा
रुप है। यह ऋतु
मुझे सबसे अधिक प्रिय
है। यही कारण है,
भगवान श्रीकृष्ण की जन्म नगरी
मथुरा और भगवान श्रीकृष्ण
से जुडे अन्य स्थलों
में बसंत पंचमी का
पर्व विशेष रुप से मनाया
जाता है। मां सरस्वती
की प्रथम पूजा श्रीकृष्ण और
ब्रह्माजी ने ही की
है। देवी सरस्वती ने
जब श्रीकृष्ण को देखा, तो
उनके रूप पर मोहित
हो गईं और पति
के रूप में पाने
की इच्छा करने लगीं। भगवान
कृष्ण को इस बात
का पता चलने पर
उन्होंने कहा कि वे
तो राधा के प्रति
समर्पित हैं। परंतु सरस्वती
को प्रसन्न करने के लिए
श्रीकृष्ण ने वरदान दिया
कि प्रत्येक विद्या की इच्छा रखने
वाला माघ मास की
शुक्ल पंचमी को तुम्हारा पूजन
करेगा। यह वरदान देने
के बाद स्वयं श्रीकृष्ण
ने पहले देवी की
पूजा की।
ब्रह्मा ने की सरस्वती पूजा
मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेयपुराण, स्कंदपुराण तथा अन्य ग्रंथों
में भी देवी सरस्वती
की महिमा का वर्णन किया
गया है। इन धर्मग्रंथों
में देवी सरस्वती को
सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंसवाहिनी आदि
नामों से संबोधित किया
गया है। दुर्गा सप्तशती
में मां आदिशक्ति के
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपों
का वर्णन और महात्म्य बताया
गया है। कहते हैं
देवी वर प्राप्त करने
के लिए कुंभकर्ण ने
दस हजार वर्षों तक
गोवर्ण में घोर तपस्या
की। जब ब्रह्मा वर
देने को तैयार हुए,
तो देवों ने निवेदन किया
कि आप इसको वर
तो दे रहे हैं,
लेकिन यह आसुरी प्रवृत्ति
का है और अपने
ज्ञान और शक्ति का
कभी भी दुरुपयोग कर
सकता है। तब ब्रह्मा
ने सरस्वती का स्मरण किया।
सरस्वती राक्षस की जीभ पर
सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से
कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से
कहा- मैं कई वर्षों
तक सोता रहूं, यही
मेरी इच्छा है। इस तरह
त्रेता युग में कुंभकर्ण
सोता ही रहा और
जब जागा तो भगवान
श्रीराम उसकी मुक्ति का
कारण बना।
शक्ति के रूप में भी मां सरस्वती
मत्स्यपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, मार्कण्डेयपुराण, स्कंदपुराण तथा अन्य ग्रंथों
में भी देवी सरस्वती
की महिमा का वर्णन किया
गया है। इन धर्मग्रंथों
में देवी सरस्वती को
सतरूपा, शारदा, वीणापाणि, वाग्देवी, भारती, प्रज्ञापारमिता, वागीश्वरी तथा हंसवाहिनी आदि
नामों से संबोधित किया
गया है। दुर्गा सप्तशती
में मां आदिशक्ति के
महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती रूपों
का वर्णन और महात्म्य बताया
गया है।
कुंभकर्ण की निद्रा का कारण बनीं सरस्वती
कहते हैं देवी
वर प्राप्त करने के लिए
कुंभकर्ण ने दस हजार
वर्षों तक गोवर्ण में
घोर तपस्या की। जब ब्रह्मा
वर देने को तैयार
हुए, तो देवों ने
निवेदन किया कि आप
इसको वर तो दे
रहे हैं, लेकिन यह
आसुरी प्रवृत्ति का है और
अपने ज्ञान और शक्ति का
कभी भी दुरुपयोग कर
सकता है। तब ब्रह्मा
ने सरस्वती का स्मरण किया.
सरस्वती राक्षस की जीभ पर
सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से
कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से
कहा- मैं कई वर्षों
तक सोता रहूं, यही
मेरी इच्छा है। इस तरह
त्रेता युग में कुंभकर्ण
सोता ही रहा और
जब जागा तो भगवान
श्रीराम उसकी मुक्ति का
कारण बने।
मां सरस्वती के विभिन्न स्वरूप
विष्णुधर्मोत्तर पुराण में वाग्देवी को
चार भुजायुक्त और आभूषणों से
सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंद
पुराण में सरस्वती जटा-जूटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए,
कमलासन पर सुशोभित, नील
ग्रीवा वाली व तीन
नेत्रों वाली कही गई
हैं। रूप मंडन में
वाग्देवी का शांत, सौम्य
वर्णन मिलता है। दुर्गा सप्तशती
में भी सरस्वती के
विभिन्न स्वरूपों का वर्णन मिलता
है। शास्त्रों में वर्णित है
कि वसंत पंचमी के
दिन ही शिव जी
ने मां पार्वती को
धन और सम्पन्नता की
अधिष्ठात्री देवी होने का
वरदान दिया था। उनके
इस वरदान से मां पार्वती
का स्वरूप नीले रंग का
हो गया और वे
‘नील सरस्वती’ कहलायीं। शास्त्रों में वर्णित है
कि वसंत पंचमी के
दिन नील सरस्वती का
पूजन करने से धन
और सम्पन्नता से सम्बंधित समस्याओं
का समाधान होता है। वसंत
पंचमी की संध्याकाल में
सरस्वती पूजा करने से
और गौ सेवा करने
से धन वृद्धि होती
है।
बसंत पंचमी को पृथ्वीराज ने की आत्मबलिदान
वसंत पंचमी का
दिन हमें पृथ्वीराज चौहान
की भी याद दिलाता
है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गौरी को 16 बार
पराजित किया और उदारता
दिखाते हुए हर बार
जीवित छोड़ दिया, पर
जब 17वीं बार वे
पराजित हुए, तो मोहम्मद
गौरी ने उन्हें नहीं
छोड़ा। वह उन्हें अपने
साथ अफगानिस्तान ले गया और
उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके
बाद की घटना तो
जगप्रसिद्ध ही है। गौरी
ने मृत्युदंड देने से पूर्व
उनके शब्दभेदी बाण का कमाल
देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि
चंदबरदाई के परामर्श पर
गौरी ने ऊंचे स्थान
पर बैठकर तवे पर चोट
मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने
पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज,
अंगुल अष्ट प्रमाण। ता
ऊपर सुल्तान है, मत चूको
चौहान।। पृथ्वीराज चौहान ने इस बार
भूल नहीं की। उन्होंने
तवे पर हुई चोट
और चंदबरदाई के संकेत से
अनुमान लगाकर जो बाण मारा,
वह गौरी के सीने
में जा धंसा। इसके
बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने
भी एक दूसरे के
पेट में छुरा भौंककर
आत्मबलिदान दे दिया। (1192 ई)
यह घटना भी वसंत
पंचमी वाले दिन ही
हुई थी।
जब सिर कलम किया बीर हकीकत का
वसंत पंचमी का
लाहौर निवासी वीर हकीकत से
भी गहरा संबंध है।
एक दिन जब मुल्ला
जी किसी काम से
विद्यालय छोड़कर चले गये, तो
सब बच्चे खेलने लगे, पर वह
पढ़ता रहा। जब अन्य
बच्चों ने उसे छेड़ा,
तो दुर्गा मां की सौगंध
दी। मुस्लिम बालकों ने दुर्गा मां
की हंसी उड़ाई। हकीकत
ने कहा कि यदि
में तुम्हारी बीबी फातिमा के
बारे में कुछ कहूं,
तो तुम्हें कैसा लगेगा? बस
फिर क्या था, मुल्ला
जी के आते ही
उन शरारती छात्रों ने शिकायत कर
दी कि इसने बीबी
फातिमा को गाली दी
है। फिर तो बात
बढ़ते हुए काजी तक
जा पहुंची। मुस्लिम शासन में वही
निर्णय हुआ, जिसकी अपेक्षा
थी। आदेश हो गया
कि या तो हकीकत
मुसलमान बन जाये, अन्यथा
उसे मृत्युदंड दिया जायेगा। हकीकत
ने यह स्वीकार नहीं
किया। परिणामतः उसे तलवार के
घाट उतारने का फरमान जारी
हो गया। कहते हैं
उसके भोले मुख को
देखकर जल्लाद के हाथ से
तलवार गिर गयी। हकीकत
ने तलवार उसके हाथ में
दी और कहा कि
जब मैं बच्चा होकर
अपने धर्म का पालन
कर रहा हूं, तो
तुम बड़े होकर अपने
धर्म से क्यों विमुख
हो रहे हो? इस
पर जल्लाद ने दिल मजबूत
कर तलवार चला दी, पर
उस वीर का शीश
धरती पर नहीं गिरा।
वह आकाश मार्ग से
सीधा स्वर्ग चला गया। यह
घटना वसंत पंचमी (23.2.1734) को ही
हुई थी। पाकिस्तान यद्यपि
मुस्लिम देश है, पर
हकीकत के आकाशगामी शीश
की याद में वहां
वसंत पंचमी पर पतंगें उड़ाई
जाती है। हकीकत लाहौर
का निवासी था। अतः पतंगबाजी
का सर्वाधिक जोर लाहौर में
रहता है।
ज्योतिष में बसंत पंचमी
सूर्य के कुंभ राशि
में प्रवेश के साथ ही
रति-काम महोत्सव आरंभ
हो जाता है। समूचा
वातावरण पुष्पों की सुगंध और
भौंरों की गूंज से
भरा होता है। मधुमक्खियों
की टोली पराग से
शहद लेती दिखाई देती
है, इसलिए इस माह को
मधुमास भी कहा जाता
है। प्रकृति काममय हो जाती है।
बसंत के इस मौसम
पर ग्रहों में सर्वाधिक विद्वान
‘शुक्र’ का प्रभाव रहता
है। शुक्र भी काम और
सौंदर्य के कारक हैं,
इसलिए रति-काम महोत्सव
की यह अवधि कामो-द्दीपक होती है। अधिकतर
महिलाएं इन्हीं दिनों गर्भधारण करती हैं। जन्मकुण्डली
का पंचम भाव-विद्या
का नैसर्गिक भाव है। इसी
भाव की ग्रह-स्थितियों
पर व्यक्ति का अध्ययन निर्भर
करता है। यह भाव
दूषित या पापाक्रांत हो,
तो व्यक्ति की शिक्षा अधूरी
रह जाती है। इस
भाव से प्रभावित लोग
मां सरस्वती के प्राकटच्य पर्व
माघ शुक्ल पंचमी (बसंत पंचमी) पर
उनकी पूजा-अर्चना कर
इच्छित कामयाबी हासिल कर सकते हैं।
इसके लिए माता का
ध्यान कर पढ़ाई करें,
उसके बाद गणेश नमन
और फिर मन्त्र जाप
करें।
या
कुन्देन्दु
तुषारहार
धवला,
या
शुभ्र
वस्त्रावृता!
या
वीणावरदंडमंडितकरा,
या
श्वेत
पद्मासना!!
या
ब्रह्मास्च्युत
शंकर
प्रभृतिर्भिरदेवाः
सदाबंदिताः
सा
मां
पातु
सरस्वती
देवी,
या
निशेष
जाड़यापहा!!
शुक्लां
ब्रह्मविचार
सार
परमामाद्यां
जगद्व्यापिनीं
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां
जाड्यान्धकारापहाम्।
हस्ते
स्फटिकमालिकां
विदधतीं
पद्मासने
संस्थिताम्
वन्दे
तां
परमेश्वरीं
भगवतीं
बुद्धिप्रदां
शारदाम्।।
अर्थात सरस्वती वाणी एवं ज्ञान
की देवी है। ज्ञान
को संसार में सभी चीजों
से श्रेष्ठ कहा गया है।
इस आधार पर देवी
सरस्वती सभी से श्रेष्ठ
हैं। कहा जाता है
कि जहां सरस्वती का
वास होता है वहां
लक्ष्मी एवं काली माता
भी विराजमान रहती हैं। इसका
प्रमाण है माता वैष्णो
का दरबार जहां सरस्वती, लक्ष्मी,
काली ये तीनों महाशक्तियां
साथ में निवास करती
हैं। जिस प्रकार माता
दुर्गा की पूजा का
नवरात्र में महत्व है
उसी प्रकार बसंत पंचमी के
दिन सरस्वती पूजन का महत्व
है। बसन्त पंचमी के दिन भगवान
श्रीहरि विष्णु, श्री कृ्ष्ण-राधा
व शिक्षा की देवी माता
सरस्वती की पूजा पीले
फूल, गुलाल, अर्घ्य, धूप, दीप, आदि
द्वारा की जा जाती
है। पूजा में पीले
व मीठे चावल व
पीले हलुवे का श्रद्धा से
भोग लगाकर, स्वयं इनका सेवन करने
की परम्परा है।
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