स्वरों की आधारशिला पर खडा हुआ रागों का महल
संकट मोचन
संगीत
समारोह
तीसरी
निशा
सुरेश गांधी
वाराणसी. हनुमज्जयन्ती पर संकट मोचन
मंदिर प्रांगण में आयोजित संकट
मोचन संगीत समारोह की तीसरी निशा
में देश के मूर्धन्य
कलासाधकों ने अपनी कला
साधना से उपस्थित संगीत
रसिकों को मंत्रमुग्ध कर
दिया। 102वें वर्ष पर
आयोजित संगीत महाकुंभ की सबसे बडी
विशेषता रही कि करीब
20 नव प्रवेशी कलाकारों ने भागीदारी निभायी
और इस मंच से
अपने आपको स्थापित कर
लिया। विश्व का एकमात्र यही
एक ऐसा मंच है
जहां से कलाकारों को
आईएसआई मार्क मिलता है और आगे
चल पड़ते हैं।
तीसरी निशा का श्री गणेश हुआ कर्नाटक शैली में शास्त्रीय व फ्यूजन संगीत के महामिलन से श्री यू राजेश ने मैण्डोलिन में जहां कर्नाटक शैली परिवेशन किया, वहीं प्रो. विश्व्म्भरनाथ मिश्र ने पखावज पर उत्तर भारतीय संगीत को सहेजा और पं. शिवमणि ने तमाम औजार, हथियार के माध्यम से फ्यूजन का तडका लगाया। लेकिन विश्व को एक बहुत बडा नाम है अत: सब लाजमी है। लोगों ने त्रिबन्दी का जी भरकर लुत्फ उठाया। दूसरी प्रस्तुति में सौरव-गौरव मिश्र ने कथक नृत्य की शुरूआत कर कथक की पारम्परिक शैली का प्रदर्शन कर प्रस्तुति को विराम दिया। इनके साथ तबले पर उस्ताद अकरम खां, बोल पढंत पर पं. रविशंकर मिश्रा, पखावज पर उदयशंकर मिश्रा, गायन में मोहित साहनी, सारंगी पर अनीश मिश्रा व सितार पर मितेश मिश्रा ने साथ निभाया।
अगली प्रस्तुति में मोहन वीणा के पर्याय बन चुके विश्वविख्यात मोहन वीणा वादक पं. विश्व मोहन भट्ट और सात्विक वीणा वादक पं. सलील भट्ट ने राग जोग की अवतारणा कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इन्होंने राग जोग में आलापचारी के पश्चात विलम्बित, मध्य व द्रुत लय की गतकारी तीन ताल निबद्ध बजाया। इन्होंने वादन का समापन रामधुन से किया। इनके साथ तबले पर श्री हिमांशु महंत ने लाजवाब भागीदारी निभायी।अगली प्रस्तुति बंगलुरू से पधारे श्री ओंकार हवलदार के कंठ से फूट पडा राग आभोगी कन्हाडा के स्वर अत्यन्त मधुर स्वर, चैनदारी से परिपूर्ण गायकी, सुन श्रोताओं को भाव विभोर होते देखा। इन्होने राग आभोगी में एक ताल व तीन ताल में बंदिश गाने के पश्चात एक भजन से गायन को विराम दिया। इनके साथ तबले पर श्री दत्ता एम.जी व संवादिनी पर श्री समीर हवलदार ने गायन के अनुकूल सहभागिता कर प्रस्तुति को प्रभावी बना दिया। पांचवीं प्रस्तुति मं चेन्नई से पधारी सुश्री दीपिका वरदराजन ने अपनी गायन से एक समां बांध दिया। जितनी सुरिली कंठस्वर, उतनी ही सुरीली प्रस्तुति। ऐसा लगा मंदिर के प्रांगण में स्वर भ्रमण कर रहा है। इन्होंने राग बागेश्री में तीन बंदिशें क्रमश: एक ताल, तीन ताल व द्रुत एक ताल में गाकर प्रथम अध्याय को विराम देकर एक भजन हनुमान लला तुम प्यारे लला से गायन को पूर्ण विराम लगाया। इनके साथ श्री श्रुतिशील उद्धव ने तबले पर तथा श्री मोहित साहनी ने संवादिनी पर लाजवाब सहभागिता किया।
अगली प्रस्तुति में
विख्यात संतूर वादक पं. अभय
रुस्तम सोपोरी ने संतूर पर
रागत विभाष की अवतारणा कर
एक अलग रस का
संचार कर दिया। आलाप
में भी का गंभीर
स्वर, गतकारी में तमाम लयकारियां,
जो सोपोरी बाज की विशेषता
है। श्रोताओं ने तहेदिल से
स्वीकार किया। इनके साथ तबले
पर विख्यात तबला वादक पं.
संजू सहाय ने क्या
खूब युगलबंदी की। इसके पश्चात
गया से पधारे श्री
राजेंद्र सेजवार ने गायन प्रस्तुत
किया। इन्होंने राग नटभैरव में
ख्याल गायन के बाद
एक ठुमरी से प्रस्तुति को
विराम दिया। इनके साथ पं.
कुबेरनाथ मिश्र ने तबले पर,
संवादिनी पर पं. धर्मनाथ
मिश्र व सारंगी पर
संदीप मिश्र ने साथ दिया।
अंत में दिल्ली से
पधारे पं. हरीश तिवारी
ने राग भटियार में
ख्याल गायकी के पश्चात भजन
से गायन को विराम
दिया। इनका गायन यादगार
रहा। इनके साथ तबले
पर पं. मिथिवलेश झा
ने, पं. विनय मिश्र
ने संवादिनी पर साथ दिया।
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