ऑपरेशन सिन्दूर सिर्फ एक शुरुआत है, अंत नहीं!
“डू ऑर डाई अंतिम विकल्प होता है, लेकिन लम्बी रेस जीतने के लिए कभी-कभी दो कदम पीछे हटना पड़ता है। ऑपरेशन ’सिन्दूर’ कोई अंत नहीं, बल्कि एक सख्त सन्देश है. पाकिस्तान में भारी तबाही के बाद स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि यदि दोबारा आतंकी हमलों की हिमाकत की गई, तो अगली बार परिणाम और भी भयावह होंगे।“ जी हां ऑपरेशन-सिन्दूर भारत की सहनशीलता नहीं, उसकी शक्ति का प्रतीक है। सीजफायर शांति की पहल है, कायरता नहीं। अगर फिर आतंकी हमले की हिमाकत की गई, तो जवाब पहले से कई गुना ज़्यादा विनाशकारी होगा। इसे पीएम मोदी ने भी स्पष्ट किया है. मतलब साफ है ऑपरेशन सिन्दूर : रणनीति, संयम और संकल्प का प्रतीक है। “शांति की चेतावनी है... अगली बार सन्नाटा होगा!“ “सिन्दूर से शुरू हुआ संदेश, अब आग बनकर गिरेगा!“ “सीजफायर नहीं, ये साइलेंट अलार्म है!“ “भारत चुप है... लेकिन हथियार बोलेगा!“ “अगर फिर बढ़े कदम आतंक की ओर, तबाही की लकीर खींची जाएगी!“ “ऑपरेशन सिन्दूर : अबकी बार माफ़ नहीं!“ “पीछे हटना हमारी रणनीति है, हार नहीं! नई दिल्ली से आखिरी चेतावनी : अगला प्रहार निर्णायक होगा!“ कहा जा सकता है ऑपरेशन सिन्दूर कोई अंत नहीं हैं. यह केवल शुरुआत है एक ऐसे युग की, जहां भारत संयम को कमजोरी नहीं, बल्कि ताकत के रूप में प्रस्तुत करता है। अगर पाकिस्तान या कोई अन्य दुश्मन यह सोचता है कि भारत शांति की तलाश में है, तो वह सही है, परन्तु भारत अब उस शांति की कीमत अपने बलिदान से नहीं, दुश्मन के विनाश से वसूलने के लिए तैयार है
सुरेश गांधी
अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्। आत्मतुल्यबलं शत्रुः विनयेन बलेन वा।। अर्थात चाणक्य भी कहते है, मनुष्य को अपने शत्रु के बारे में पता होना बहुत जरूरी है. क्योंकि शत्रु कमजोर है या बलशाली इसका पता होने पर ही उसके खिलाफ नीति बनाई जा सकती है. अगर दुश्मन आपसे ज्यादा शक्तिशाली है तो उसे हराने के लिए व्यक्ति को उसके अनुकूल आचरण करना चाहिए. वहीं, अगर दुश्मन का स्वभाव दुष्ट है. वो छल करने वाला है तो उसे हराने के लिए उसके विरूद्ध यानी उसके विपरीत आचरण करना चाहिए. वैसे भी “डू ऑर डाई“ का नारा भारत के स्वतंत्रता संग्राम की नींव रहा है, या यूं कहे “डू ऑर डाई“ : का नारा किसी भी संकट की घड़ी में अंतिम विकल्प होता है, जब पीछे हटने की कोई गुंजाइश नहीं बचती। परंतु युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बुद्धि और रणनीति से भी लड़े जाते हैं। खासकर तब जब बदलते वैश्विक और कूटनीतिक परिदृश्य का हों, ऐसे केवल बल से नहीं, बल्कि धैर्य, बुद्धिमत्ता और रणनीति से भी विजय हासिल की जाती है।
यही कारण
है कि लम्बी रेस
जीतने के लिए कभी-कभी दो कदम
पीछे हटना पड़ता है.
केवल ताकत इकट्ठा करने
के लिए ही नहीं,
बल्कि दुश्मन की हर चाल
को समझने और उसके खिलाफ
निर्णायक प्रहार करने के लिए
भी। लेकिन भारत, जो एक ओर
महात्मा गांधी के अहिंसा सिद्धांत
का अनुयायी है, वहीं दूसरी
ओर चाणक्य की राजनीतिक चतुराई
का भी अनुसरण करता
है। यही संतुलन उसे
एक जिम्मेदार लेकिन दृढ़ राष्ट्र बनाता
है।
“ऑपरेशन सिन्दूर“ एक सीमित लेकिन अत्यधिक प्रभावशाली सैन्य कार्रवाई, जिसका लक्ष्य था पाकिस्तान के आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को ध्वस्त करना। भारत की खुफिया एजेंसियों ने यह प्रमाणित किया था कि सीमा पार से लगातार आतंकी गतिविधियां संचालित हो रही थीं, जिनका उद्देश्य भारतीय क्षेत्रों में अस्थिरता फैलाना था। ऑपरेशन के दौरान कम-से-कम 12 आतंकी ठिकाने नष्ट किए गए और 100 से अधिक आतंकवादियों के मारे जाने की पुष्टि हुई। यह महज जवाब नहीं था, यह एक निर्णायक चेतावनी थी।
यह कहना गलत होगा कि ऑपरेशन के बाद भारत ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के दबाव में एकतरफा सीजफायर की घोषणा की। कई आलोचकों ने इसे नरमी की निशानी माना, लेकिन यह एक रणनीतिक कदम था, “दो कदम पीछे“ हटना, ताकि अगली बार छलांग और लंबी हो। यह चेतावनी साफ थी : “यदि फिर से सीमा पार से आतंक का प्रयास किया गया, तो भारत का जवाब और भी व्यापक, गहरा और निर्णायक होगा।“ इतिहास गवाह है : भारत सहनशील जरुर है, लेकिन निर्बल नहीं. भारत ने 1999 में कारगिल में, 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के ज़रिए यह स्पष्ट किया है कि उसकी सहनशक्ति की एक सीमा है। हर बार जब पाकिस्तान ने भारत की अखंडता को चुनौती दी, उसे मुंहतोड़ जवाब मिला। भारत की रणनीतिक नीति अब रक्षात्मक नहीं, निवारक और निर्णायक है। “पहले हमला न करना” भारत की संस्कृति हो सकती है, लेकिन “प्रभावी प्रतिशोध” अब उसका राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषणों में बार-बार दोहराया हैः “शांति की बात उन्हीं के साथ संभव है, जो शांति में विश्वास करते हैं।”दुनिया ने देखा है कि भारत अब संयम की आड़ में पीछे हटने वाला नहीं रहा। पुलवामा हो या बालाकोट, सर्जिकल स्ट्राइक हो या गलवान, भारत ने हर बार यह साबित किया है कि वह सहनशील जरूर है, लेकिन अब मौन नहीं रहेगा। नया भारत न केवल जवाब देगा, बल्कि ऐसा जवाब देगा कि दुश्मन सदियों तक याद रखेगा। आज भारत एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहां उसका आत्मविश्वास चरम पर है।
सेना सशक्त है, नेतृत्व स्पष्ट है और जनता जागरूक। भारत अब ना तो किसी से डरता है, ना किसी के दबाव में आता है। यह भारत विजय का युग है। यह भारत निर्भय का युग है। “घर में घुस कर मारेगा“ अब केवल एक नारा नहीं, बल्कि भारत की नई सामरिक संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। यह संदेश केवल दुश्मनों के लिए नहीं, बल्कि हर भारतीय के लिए है कि वह गर्व से कह सके :“मेरा भारत बदल रहा है, आगे बढ़ रहा है और अब कोई उसे झुका नहीं सकता!“ “नया भारतः शांति चाहता है, पर जवाब देना जानता है“. “घर में घुसकर मारेगा : भारत की नई रणनीति है“. “मोदी की लकीर : जहां से दुश्मन का अंत शुरू होता है“. “नापाक मंसूबों का काल है : नया भारत“. “भारत निर्भय, भारत विजय : आ गया है न्यू नॉर्मल“. “सीमा पर नहीं, अब निर्णायक युद्ध सोच और नीति का है भारत“. “लक्ष्मण रेखा पार की?
अब परिणाम भुगतो!“ वाला भारत है. विदेश मंत्रालय (एमइए) के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने भी साफ किया है कि ’आप निश्चित रूप से इस बात की सराहना करेंगे कि 10 मई की सुबह, हमने पाकिस्तान वायु सेना के प्रमुख ठिकानों पर बेहद प्रभावी हमला किया था. यही कारण था कि वे गोलीबारी और सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए तैयार थे. मैं स्पष्ट कर दूं- यह भारतीय हथियारों की ताकत थी जिसने पाकिस्तान को अपनी गोलीबारी रोकने के लिए मजबूर किया. जहां तक अन्य देशों के साथ बातचीत का सवाल है, भारत का संदेश स्पष्ट और सुसंगत था और जो संदेश हम सार्वजनिक मंचों से दे रहे थे, वही संदेश निजी बातचीत में भी दिया गया.’ ’यह संदेश था कि भारत 22 अप्रैल के आतंकवादी हमले का जवाब आतंकवादी ढांचे को निशाना बनाकर देगा. अगर पाकिस्तानी सशस्त्र बल गोलीबारी करते हैं, तो भारतीय सशस्त्र बल जवाबी गोलीबारी करेंगे. अगर पाकिस्तान रुक जाता है, तो भारत भी रुक जाएगा. यह संदेश ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत के समय पाकिस्तानी पक्ष को दिया गया था, जिस पर पाकिस्तानी पक्ष ने ध्यान नहीं दिया. यह स्वाभाविक है कि हमसे यह बात सुनने वाले कई विदेशी नेताओं ने इसे अपने अपने पाकिस्तानी समकक्षों के साथ साझा किया होगा.’हमारे जांबाज जवानों पर देश को गर्व है
हमारे देश की सेना
में शामिल देश की नारी
शक्ति ने जिस प्रकार
से ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया
है, उसने उन महिलाओं
के जख्मों पर शीतल मरहम
लगाया है जिन्होंने अपने
प्रियजनों को आतंकवादी हमले
में खोया है। यह
सिर्फ एक शुरुआत है।
जांबाजी के ऐसे प्रदर्शनों
से निश्चित ही हमारी सेना
आतंकवाद को समूल नष्ट
कर देगी। पाकिस्तान द्वारा पहलगाम हमला का भारत
ने, जो जवाब दिया,
वह काबिले तारीफ है जिस तरह
से ड्रोन हमले को भारत
के एयर डिफेंस सिस्टम
ने आसमान मे ही तबाह
किया उससे कई देशों
को सबक भी मिला
और देश के लोगों
को इस पर गर्व
है। हम सैनिको के
साहस और शौर्य को
सलाम करते हैं। पूरे
देशवासियों को नाज है
हमारी सेना पर और
उनके परिवार पर, जिन्होंने अपने
प्रियजनों को देश की
सेवा के लिए भेजा
है। हमारे दिलों में उन सभी
के लिए अथाह सम्मान
है. ऑपरेशन सिंदूर के तहत हमारी
तीनों सेनाओं के तालमेल, सूझ
बूझ और सटीक निशाने
का कमाल है। हर
भारतीय नागरिक को अपने सैनिकों
पर गर्व होकर उनकी
हर सांस सैनिकों और
उनके परिवार के साथ है।
पाकिस्तान को बदलना होगा रवैया
जंग टलती रहे तो बेहतर है
भारत-पाकिस्तान के
युद्ध के बीच सीजफायर
सुकून का कार्य है।
सीमावर्ती जिलों में युद्ध के
दौरान मिसाइल एवं ड्रोन अटैक
से आमजन की सांसें
थम गई थी। क्योंकि
युद्ध कभी सुखद समाचार
लेकर नहीं आता है
जितना हो सके युद्ध
को टालना चाहिए। सीजफायर की सूचना जैसे
गर्मी में बारिश की
बूंदों की तरह सुकून
का काम किया। पहलगाम
हमले के जवाबी कार्रवाई
के रूप में भारत
द्वारा जवाब देना उचित
और सराहनीय कदम ही कहा
जा सकता है। युद्ध
कोई अच्छी बात नहीं है
इससे दोनों देशों का नुकसान ही
होना था। परंतु भारतीयों
को पीओके न हासिल कर
पाना हमेशा मलाल ही रहेगा.
वैसे भी “युद्ध विराम“
सुनते ही हमारे मन
में एक राहत की
भावना जन्म लेती है.
जैसे अब रक्तपात थम
जाएगा, बंदूकें शांत हो जाएँगी,
और सैनिक घर लौटेंगे। लेकिन
यह केवल एक पक्ष
है। युद्ध विराम के पीछे जो
राजनीतिक चालें, मानसिक संग्राम, और भावनात्मक उथल-पुथल छुपी होती
है, वह अक्सर अनकही
रह जाती है। “ऑपरेशन
सिंदूर“ का सीजफायर इसी
पृष्ठभूमि का एक हिस्सा
हैं. जहाँ युद्ध केवल
सीमा पर नहीं, आत्मा
और चेतना के भीतर भी
लड़ा जाता है। “ऑपरेशन
सिंदूर“ एक काल्पनिक या
प्रतीकात्मक नाम है, जो
उस संघर्ष को दर्शाता है
जो किसी सैनिक की
पत्नी, माँ, या बहन
हर रोज़ झेलती है।
सिंदूर यहाँ केवल सौभाग्य
का नहीं, बल्कि बलिदान, प्रतीक्षा और हौसले का
प्रतीक है। जब सैनिक
युद्ध में जाते हैं,
तब उनके पीछे छूट
जाते हैं ऐसे रिश्ते
जो हर दिन एक
अनदेखे संग्राम में उलझे रहते
हैं। “ऑपरेशन सिंदूर“ और “युद्ध विराम“
जैसे शब्द हमें याद
दिलाते हैं कि शांति
कोई तात्कालिक स्थिति नहीं, बल्कि एक सतत प्रक्रिया
है। जब तक सैनिकों
के मन में अशांति
है, जब तक शहीदों
की विधवाओं के सवाल अनुत्तरित
हैं, तब तक कोई
भी युद्धविराम पूर्ण नहीं।
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