राजनीति की शतरंज में मात खा रहा है राष्ट्रहित?
कांग्रेस पार्टी इन दिनों पाकिस्तान में जबरदस्त ट्रेंड में है. वजह है एक के बाद ऐसे बयान, जो पाकिस्तान को खूब सूट कर रहा है. भला क्यों नहीं? जिस पाकिस्तान को भारतीय जांबाजों ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत उसकी सीमा में घूसकर उसके नौ आतंकी ठेकानों को तहस-नहस कर दिया, उसके करॉची जैसे एअर डिफेंस सिस्टम को चकनाचूर कर दिया। इसकी गवाही खुद आतंकी सरगना मसूद अजहर चीख-चीख कह रहा है, मेरे 14 करीबियों की जगह कॉस मै मारा जाता! इस साहसी सैन्य ऑपरेशन में 100 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया गया, जो वर्षों से भारत के खिलाफ घातक योजनाएं बना रहे थे। इस त्रासदी से जब पाकिस्तान हर मोर्चे पर मारा-मारा फिर रहा था...इंटरनेशनल बेइज्जती झेल रहा था...तब कांग्रेसी नेताओं के ओछी हरकत वाले बयानों ने पाकिस्तान को प्रोपगेंडा फैलाने...फेक नैरेटिव बनाने और भारत के पराक्रम पर सवाल उठाने का मौका दे दिया है. खासतौर से तब जब भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि बात राष्ट्र की सुरक्षा की हो, तो वह चुप नहीं बैठता। सेना के इस ऐतिहासिक पराक्रम ने जहां देशभर में गर्व और आत्मविश्वास की लहर दौड़ा दी, लेकिन धन्य है कांग्रेसी, जो इस पूरे ऑपरेशन को ‘छिटपुट घटना’ बता रहे हैं। एक बार फिर सेना की जांबाती का ‘सबूत’ की मांग रहे है। ठीक उसी तरह जैसे सर्जिकल स्ट्राइक 2016 और बालाकोट एयर स्ट्राइक 2019 के बाद किया गया था। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है “100 आतंकी ढेर, 9 ठिकाने तबाह, फिर भी कांग्रेस को चाहिए सबूत? क्या कांग्रेसी की बेचैनी, ओछी बयानें, दुश्मन का फायदा पहुंचाने के लिए है? क्या कांग्रेस बोल रही है पाकिस्तान की भाषा? क्या राष्ट्रहित पर कांग्रेस को दकियानूसी वाली सियासत सूट करती है?
सुरेश गांधी
फिरहाल, पाकिस्तानी मीडिया में पहले राहुल गांधी की ओर से पूछा गया सवाल ट्रेंड में रहा...जिसमें उन्होंने अपने ही विदेश मंत्री से ये पूछा कि बताइए भारत के कितने लड़ाकू विमान मार गिराए गए हैं....रही सही कसर पवन खेड़ा ने तब पूरी कर दी जब उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर को सिंदूर का सौदा करार दिया...ये एक लाइन...सिंदूर का सौदा...पाकिस्तान के लिए ऑक्सीजन का काम कर गया...पवन खेड़ा का बयान हर पाकिस्तानी मीडिया ने हाथों हाथ लिया और नया प्रोपगेंडा शुरू कर दिया...ऐसे समय में जब भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के डेलीगेशन दुनिया भर में जाकर अपनी बात कहने वाले हैं...उससे पहले अगर अपने ही देश में सेना के शौर्य और पराक्रम पर सवाल पूछा जाएगा...सरकार की नीयत पर सवाल उठाया जाएगा...तो क्या संदेश जाएगा ये समझना मुश्किल नहीं है...एक तरफ जहां कांग्रेस गलत पिच पर बैटिंग कर रही है...तो दूसरी तरफ बीजेपी की तरफ से पोस्टर वॉर के जरिये राहुल गांधी को आसिम मुनीर से कंपेयर किया जा रहा है...असदुद्दीन ओवैसी भी खूब चर्चा में हैं...पाकिस्तान में उनके बयानों से सदमा लगा हुआ है...फर्क यही है कि ओवैसी के बयान पाकिस्तान के नैरेटिव को तोड़ते दिखते हैं...जबकि कांग्रेस के बयान प्रोपगेंडों को हवा देने में मददगार साबित हो रहे हैं...अब सवाल है कि क्या सिंदूर का सौदा दुश्मन को फायदा पहुंचाने का इरादा है...सवाल ये कि भारत ने पाकिस्तान को जब घुसकर मारा है...फिर कांग्रेस को ये सिंदूर का सौदा क्यों नजर आ रहा है...सवाल ये भी कि मोदी से नफरत के चक्कर में कुछ नेता राष्ट्रहित और राष्ट्रविरोध का फर्क भूल गए हैं...
बता दें, 7 मई को सरकार ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकी शिविरों को निशाना बनाया, जिसके बाद पाकिस्तान ने संघर्ष को और बढ़ा दिया. इसके बाद पाकिस्तान ने भारत के कई शहरों में ड्रोन और मिसाइलों से सैन्य और रिहायशी इलाकों को निशाना बनाया है. जवाब में भारत के ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों की रीढ़ तोड़ दी. दोनों ओर से की गई सैन्य कार्रवाइयों पर पूरी दुनिया की नजर थी....22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के रिश्ते रसातल तक पहुंचे हैं. भारत सरकार ने पाकिस्तान को सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार ठहराया है. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर से लेकर ऑल पार्टी डेलिगेशन तक...कांग्रेस लगातार पॉलिटिकल सीजफायर का उल्लंघन कर रही है...सेना के पराक्रम पर सवाल उठा रही है, ऑपरेशन सिंदूर को छिटपुट घटना बात रही है। जबकि आर्मी एअर डिफेंस के महानिदेशक ले. जनरल सुमेर इवान डीकुन्हा ने जो बातें बताईं, उन्हें सुनकर आप चौंक जाएंगे। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान जवाबी कार्रवाई कैसे करेगा, इसकी सटीक सूचना हमारी फौज के पास थी, इसीलिए हर ड्रोन और मिसाइल को नाकाम कर गिरा दिया गया। हमारी फौज को पता था कि पाकिस्तान कितने ड्रोन भेजेगा और कहां से भेजेगा, ये भी पता था कि पाकिस्तान की वायु सेना डर के मारे अपने फाइटर और बमवर्षक विमान नहीं उड़ाएगी। हमारी सेना को पता था कि पाकिस्तान कौन सी मिसाइल से हमला करेगा, कहां निशाना लगाएगा।8 मई से 10 मई
के बीच रोज रात
नौ बजे हमारे आसमान
में पाकिस्तान की तरफ से
भेजे गए सैकड़ों ड्रोन्स
दिखाई देते थे और
फिर हम देखते थे
कि कैसे टिम टिम
करके उन्हें आसमान में तबाह किया
गया, ये कमाल हमारे
एयर डिफेंस ने किया। एक-एक पाकिस्तानी ड्रोन
को चुन-चुनकर सटीक
निशाना लगाकर मार गिराया। इतना
ही नहीं उन्होंने स्पष्ट
शब्दों में ये खुलासा
किया है कि पाकिस्तानी
फौज अपना मुख्यालय भले
ही रावलपिंडी से पेशावर या
अफगानिस्तान या ईरान की
सीमा तक ले जाए,
वह भारत की सेना
की मिसाइल्स की रेंज से
बाहर नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा कि भारतीय
सेना के पास ऐसे
पर्याप्त हथियार हैं जिनसे वह
पाकिस्तान के किसी भी
कोने तक मार कर
सकती है। इसके बावजूद
महाराष्ट्र कांग्रेस विधायक विजय वडेट्टीवार ऑपरेशन
सिंदूर की पारदर्शिता एवं
चीनी ड्रोन और भारतीय मिसाइलों
के इस्तेमाल पर सवाल उठाते
हुए कहते फिर रहे
है कि सरकार को
नुकसान की जानकारी देनी
चाहिए। फिरहाल, लेफ्टिनेंट जनरल डी कुन्हा
की बात सुनकर ये
तो साबित हो गया कि
हमारी सेना पूरे विश्व
में सर्वश्रेष्ठ है।
आधुनिक युद्धकला में हमारी बहादुर
फौज का कोई मुकाबला
नहीं। हमारी सेना को प्रधानमंत्री
ने फ्री हैंड दिया
इसीलिए वो खुलकर प्लान
कर पाए और दुश्मन
को तबाह कर पाए।
सबसे बड़ी बात है
कि हमारी सेनाओं की इंटेलिजेंस कमाल
की थी। उन्हें सब
पता था, पाकिस्तान में
मौजूद आतंकी ठिकानों का सही पता
मालूम था। पाकिस्तान कैसे
जवाबी हमले करेगा, ये
भी पता था। ड्रोन
कहां से आएंगे, कितने
आएंगे, ये भी अच्छी
तरह मालूम था। पाकिस्तान डर
के मारे अपने विमान
नहीं उड़ाएगा, इसकी भी सूचना
थी। हमारी सेना का लक्ष्य
था, पहले पाकिस्तान का
एयर डिफेंस सिस्टम उड़ाना, फिर उसके एयरबेस
पर हमला करना। ये
भी भारतीय सेना ने पहले
से प्लान कर लिया था।
हमारी सेना के बड़े
जनरलों को बिलकुल पता
था कि पाकिस्तानी फौज
के जनरल्स का दिमाग कैसे
काम करता है। इसीलिए
भारतीय सेना का हर
हमला सटीक और नियंत्रित
था। एयर डिफेंस सिस्टम
ऐसा था कि पाकिस्तान
के एक-एक ड्रोन,
एक-एक मिसाइल को
नष्ट कर दिया। पुराने
और नए सिस्टम के
सम्मिश्रण से हमारी सेना
ने साबित कर दिया कि
रणनीति बनाने में उससे बेहतर
कोई नहीं। आज पूरे देश
को विश्वास है कि आने
वाले किसी भी खतरे
का मुकाबला करने के लिए
भारतीय सेना पूरी तरह
तैयार है, सक्षम है,
तत्पर है.
जब देश की
बात हो...जब सीमा
पर जवान सीना ताने
खड़ा हो...जब आतंकी
ठिकाने राख हो जाएं......
जब जवान खून बहा
रहे हों...तब कोई कहे
दृ “सबूत दो!” जब
देश आतंक पर विजय
पा रहा हो...तब
कोई बोले “ये तो बस
छिटपुट था!” क्या यही
है राष्ट्रहित? तो फिर क्यों
होती है सियासी तकरार?
जबकि राष्ट्रहित कहता है सेना
के साथ खड़े हो।
आज देश पूछ रहा
है, जब बात भारत
की हो...जब सवाल
सीमा की सुरक्षा का
हो...तो क्या नेता
राष्ट्र से ऊपर अपनी
पार्टी देखेंगे? “राजनीति कल भी होगी,
आज भी है, कल
भी रहेगी... पर अगर राष्ट्र
न रहा तो ये
सियासत किसके लिए?” इस बात को
समझना जरूरी है कि जब
सीमा पर हमारे जवान
अपने प्राणों को दांव पर
लगाकर राष्ट्र की सुरक्षा सुनिश्चित
कर रहे हों, तब
देश के भीतर से
सेना की कार्रवाई पर
सवाल उठाना केवल सेना का
ही नहीं, राष्ट्रीय एकता और आत्मबल
का भी अपमान है।
सबसे चिंताजनक बात यह रही
कि कांग्रेस के बयान और
पाकिस्तान सरकार की प्रतिक्रिया लगभग
एक जैसी थी। पाकिस्तान
के सूचना तंत्र ने कहा कि
भारत की कार्रवाई में
कोई खास नुकसान नहीं
हुआ, और इधर कांग्रेस
कह रही थी कि
“ये तो बस छोटी
सी कार्रवाई थी, प्रमाण दो।“
क्या यह सिर्फ एक
संयोग है? या फिर
यह सोचने का समय है
कि जब सेना लड़
रही होती है, विपक्ष
किसके पक्ष में खड़ा
होता है?
इस पूरे प्रकरण ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, क्या भारत में अब राष्ट्रहित, राजनीति की जंग में पिछड़ता जा रहा है? कांग्रेस का तर्क हो सकता है कि विपक्ष का काम सवाल उठाना है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये सवाल उस समय उठने चाहिए जब जवानों की जान खतरे में हो, जब सीमा पर जंग जैसा माहौल हो, और जब देश को एकजुटता की सबसे ज्यादा जरूरत हो? इससे अंतरराष्ट्रीय मंच पर क्या संदेश जाएगा? सवाल यह है कि कल यही राजनीतिक दल जब अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे, तो वे आखिर क्या कहेंगे? क्या वो कहेंगे कि “हमारी सेना की कार्रवाई में कुछ खास नहीं हुआ“? या फिर कहेंगे “हमें तो अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला“? इससे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान नहीं होगा क्या? क्या इससे पाकिस्तान जैसे देशों को प्रचार करने का अवसर नहीं मिलेगा? इतिहास गवाह है... यह पहली बार नहीं है कि कांग्रेस ने सेना की कार्रवाई पर भरोसा जताने की बजाय प्रमाण मांगे हों, 2016 में में भी सर्जिकल स्ट्राइक व 2019 में बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद और अब 2025 में ऑपरेशन सिन्दूर के बाद सबूत मांगे जा रहे है। इन कांग्रेसियो को कौन समझाएं राजनीति एक लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन राष्ट्र उसकी नींव है। अगर नींव को ही कमजोर कर दिया जाए, तो ऊपर की संरचना कभी स्थिर नहीं रह सकती। आज आवश्यकता है एकता की, संयम की और सशक्त समर्थन की। जब जवान बंदूक लेकर सीमा पर खड़ा है, तब हमें कलम और माइक से उसका हौसला बढ़ाना चाहिए, न कि उसके बलिदान पर सवाल खड़ा करना चाहिए।
कांग्रेस द्वारा इसे ’छिटपुट घटना’
कहे जाने पर यह
सवाल उठना लाजमी है
कि क्या विपक्ष देश
की एकजुटता को कमजोर कर
रहा है या सिर्फ
राजनीतिक समीक्षा कर रहा है।
यदि कांग्रेस और पाकिस्तान सरकार
दोनों एक जैसी बात
कर रहे हैं, तो
यह राजनीतिक तौर पर कांग्रेस
के लिए नुकसानदेह हो
सकता है। लेकिन इसका
मतलब यह नहीं कि
कांग्रेस पाकिस्तान के साथ ’सुर
मिला’ रही है, जब
तक यह आरोप तथ्यों
से पुष्ट न हो। हर
असहमति को देशविरोधी कहना
लोकतंत्र की सेहत के
लिए ठीक नहीं। वहीं,
विपक्ष को भी संवेदनशील
मामलों में सोच-समझकर
बयान देने चाहिए। यह
सवाल आज हर राष्ट्रवादी
भारतीय के मन में
है। जब पूरा देश
सेना के पराक्रम पर
गर्व कर रहा है,
तब विपक्ष की “सबूत मांगने“
वाली राजनीति अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत
को कमज़ोर साबित करने का हथियार
बन सकती है।
भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने पाकिस्तानी खुफिया
एजेंसी आईएसआई से जुड़े करीब
12 संदिग्धों की गिरफ्तारी से
साफ है कि देश
की सुरक्षा को खतरा सिर्फ
सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं
बल्कि घर में बैठे
भेदिए से भी है।
खासकर तब जब कांग्रेस
से दो कदम आगे
बढ़कर कई राज्यों के
कुछ भटके युवा सोशल
मीडिया के जरिए देश
की संवेदनशील जानकारियां दुश्मनों तक पहुंचा रहे
हैं। चिंता की बात है
कि अपने खतरनाक मंसूबों
को पूरा करने के
लिए सोशल मीडिया को
यह लोग हथियार के
रूप में इस्तेमाल करने
लगे है। इनमें व्यवसाई
यूट्यूबर भी शामिल है।
जांच एजेंसियों ने खुलासा किया
है कि जिन्हें गिरफ्तार
किया गया है, वे
सुविधाओं के लालच में
जानकारियां एकत्रित कर दूसरे देशों
को भेज रहे थे।
पहलगाम में आतंकी हमले
के बाद पाकिस्तान खिलाफ
कार्रवाई के दौरान जब
समूचा देश एकजुट होकर
सेना के साथ खड़ा
था तब ये मोबाइल
ऐप और सोशल मीडिया
के जरिए सेना की
हलचल और संवेदनशील जानकारियां
दुश्मन को मुहैया करा
रहे थे।
हरियाणा की यूट्यूबर ज्योति
रानी मल्होत्रा हो या फिर
देवेंद्र सिंह ढिल्लों, उत्तर
प्रदेश का व्यवसाई आजाद
हो या फिर मुर्तजा
अली, गजाला और यामीन। यह
सभी चेहरे हमारी आम जिंदगी के
आसपास होते हैं, इनसे
रोज मुलाकात होती है लेकिन
इनके खतरनाक इरादों का पता नहीं
चल पाता। इस तरह के
अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले
लोगों का दुश्मन के
जाल में फंसना खतरे
की गंभीरता को बताता है
कि अब दुश्मन को
खास प्रोफाइल वालों की जरूरत नहीं
है। वह सिर्फ सैन्य
तकनीकी और गूढ़ रणनीति
सूचनाएं उपलब्ध कराने वाले लोगों को
अपने जाल में फंसा
रहा है। इन लोगों
पर शिकंजा कसने के लिए
सुरक्षा एजेंसियों की तारीफ की
जानी चाहिए। जिस तरह से
जासूसी की कड़ियां जुड़ती
जा रही है, उससे
साफ है कि अभी
और खुलासा होना बाकी है।
सुरक्षा एजेंसियों के साथ आम
नागरिक के रूप में
हमारा भी कर्तव्य है
कि वह अपने आसपास
के लोगों पर नजर रखें
और किसी भी तरह
की संदीग्ध जानकारियां, पुलिस और सुरक्षाबलों को
दें। अभिव्यक्ति की आजादी और
संवेदनशील जानकारियों को सार्वजनिक करने
के बीच किसी के
लिए लक्ष्मण रेखा यही है
कि किसी रूप में
देश की सुरक्षा से
समझौता नहीं किया जाए।
जो लोग ऐसा करें,
उन को सख्त से
सख्त सजा दिलाना और
इनकी मददगारों को सबक हसिखाना
जरूरी है। हम इस
डिजिटल सुरक्षा और जन जागरूकता
पर ज्यादा ध्यान देना होगा।
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