Thursday, 19 June 2025

कूटनीति के नकाब में युद्ध: भारत के विरुद्ध गहराती साजिश

कूटनीति के नकाब में युद्ध: भारत के विरुद्ध गहराती साजिश 

इस बार चीन नहीं, साज़िश अमेरिका में रची जा रही है। ट्रम्प, पाकिस्तानी जनरल मुनीर और ड्रैगन की अदृश्य जुगलबंदी कुछ ऐसा ही संकेत दे रहे हैं। मतलब साफ है जब दुनिया मध्य-पूर्व के युद्ध और रूस-यूक्रेन संघर्ष में उलझी है, तब एक नया और खामोश गठबंधन आकार ले रहा है। ये गठबंधन बंद कमरों में रचा जा रहा है, जहां तो टैंक गरजते हैं और मिसाइलें उड़ती हैं, लेकिन इसके परिणाम भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को गहरा झटका दे सकते हैं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प, पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष रहे जनरल आसिम मुनीर और पर्दे के पीछे सक्रिय चीन भारत के खिलाफ कोई बड़ी साजिश रच रहा है? यह गठबंधन किसी पारंपरिक युद्ध की तरह नहीं, बल्कि हाइब्रिड वॉर (मीडिया, कूटनीति, छवि युद्ध) का हिस्सा है। भारत को अब केवल रक्षा मंत्रालय से नहीं, एमईए (विदेश मंत्रालय) से भी चौकसी बढ़ानी होगी। सिर्फ सीमाओं पर नहीं, संयुक्त राष्ट्र, वॉशिंगटन डीसी और ओस्लो के दरबारों में भी। ट्रम्प, मुनीर और ड्रैगन, ये नाम भले तीन दिशाओं से आते हों, लेकिन अब इनका लक्ष्य एक दिख रहा है। भारत की उभरती शक्ति को रोकना, और भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय मंच पर नियंत्रित करना 

सुरेश गांधी

एक ओर पश्चिम एशिया जल रहा है, दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बयानबाज़ी और बैठकों ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति को और भड़का दिया है। ताज़ा विवाद तब गहराया जब ट्रम्प ने पाकिस्तान के एक पूर्व शीर्ष सैन्य अधिकारी, जिन्हें अमेरिका के कई सुरक्षा विश्लेषकजिहादी जनरलकी संज्ञा दे चुके हैं, के साथगोपनीय लंच मीटिंगकी। यही नहीं, उन्होंने इज़राइल-गाज़ा संघर्ष में चल रहे सीज़फायर कोढकोसलाबताकर एक नया मोर्चा खोल दिया। सूत्रों की मानें तो यह बैठक किसी सामान्य कूटनीतिक संपर्क का हिस्सा नहीं थी, बल्कि निजी संबंधों की गर्माहट से प्रेरित थी। और जब ट्रम्प से इज़राइल-गाज़ा संघर्ष पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “ये सीज़फायर नहीं, बस कैमरे के लिए स्टंट है।इस बयान ने पश्चिमी जगत के राजनयिक गलियारों में हलचल मचा दी है। उनकेबंद कमरे की बैठकोंने दुनिया को हैरान कर दिया है। लोग जानना चाहते है, क्या यह सिर्फ लंच था या एक छिपी योजना की पहली परत?, खासतौर से तब जब वो जनरल मुनीर जिन पर अफगानिस्तान, कश्मीर और आतंक से जुड़ी गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप लगते रहे हैं। उनके आइएसआइ प्रमुख रहते कई भारत-विरोधी ऑपरेशनों को अंजाम दिया गया था। अब वही व्यक्ति अमेरिका में ट्रम्प के साथ बैठे हैं और ट्रम्प उसी समय इज़राइल-गाज़ा युद्ध के सीज़फायर कोनकली ड्रामाबताकर खारिज कर देते हैं। यह मात्र संयोग नहीं, बल्कि प्रयोग जान पड़ता है। दुसरा बड़ा सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान मुनीर कोशांति दूतबनाना चाहती है? तीसरा बड़ा सवाल, क्या भारत के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले को अब अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार की राजनीति से वैधता देने की तैयारी चल रही है

सूत्रों के अनुसार, पाकिस्तानी खुफिया लॉबी और कुछ अमेरिकी थिंक टैंक मिलकर जनरल मुनीर को अंतरराष्ट्रीय स्तर परशांति के समर्थकके रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। उनकी छवि को साफ-सुथरा दिखाकर उन्हें नोबेल पुरस्कार की दौड़ में शामिल करना, पाकिस्तान की एक रणनीतिक योजना का हिस्सा बताया जा रहा है। यह अलग बात है कि ट्रम्प की ये चालें उनके लिए ही घातक साबित हो सकते है। खासकर येरुशलम को इज़राइल की राजधानी मानने को लेकर। उनका यह फैसला मिडिल ईस्ट में स्थायी तनाव को न्योता दे सकता है। अरब जगत की नाराज़गी आज भी कायम है। ईरान न्यूक्लियर डील से हटने के मामले ने भी ओबामा काल के संतुलन को तोड़कर ट्रम्प ने पश्चिम एशिया में अस्थिरता को बढ़ाया है। इससे ईरान अब और आक्रामक हुआ है। इसके अलावा ट्रंप का तालिबानी डील में अफगान सरकार को किनारे लगाने का परिणाम जिस तरह पाकिस्तानी धरती पर दिख रहा है, वो और घातक हो सकता है। वैसे भी ट्रम्प की मुलाकात जिन जनरल साहब से हुई, उनका नाम आतंक समर्थक नेटवर्कों से जुड़ा रहा है। अमेरिका की फेडरल एजेंसियां तक इनसे दूरी बनाए रखने की सलाह देती रही हैं। अब ऐसे शख्स से मुलाकात और फिर मिडिल ईस्ट की शांति प्रक्रिया पर को लेकर बड़ा सवाल बन गया है, क्या ट्रम्प दुनिया का ध्यान अपनी ओर मोड़ना चाहते हैं? क्योंकि ट्रम्प की यहयारीउनके लिए भारी पड़ सकती है। इस समय जब पूरा पश्चिम एशिया युद्ध की कगार पर है, ऐसे में ट्रंप यदि ऐसे चेहरों से मेलजोल रखता है, तो यह केवल अमेरिका के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए खतरे की घंटी है। कई देशों के कूटनीतिक हलकों में अब यह तंज चर्चा का विषय बन गया है। कभी डील मेकर कहलाने वाले ट्रम्प अब उसीडीलकी कीमत चुका रहे हैं. जहां तक चीन का सवाल है तो नेपाल और श्रीलंका में भारतीय प्रभाव को सीमित करने की कोशिश, ब्रिक्स और यूएन मंचों पर भारत-विरोधी सुर में बात करना, ये संकेत दे रहा है वो इस गठबंधन काखामोश साझेदारहै। वो कश्मीर में फिर से अशांति फैलाना चाहता है। मुनीर की बैठक के बाद पाकिस्तान की ओर से फिर से “370 मुद्दाऔरयूएन जनमत संग्रहकी भाषा तेज़ होना इसका बड़ा उदाहरण है। खालिस्तान को अमेरिका-कनाडा में उकसाना, सिख अलगाववाद को अमेरिका में खुलकर समर्थन देने वाले तत्वों को अब ट्रम्प की नज़दीकी और पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को हवा देना खासकर तब जब चीन और पाकिस्तान पहले से ही म्यांमार और नागालैंड की सीमा से सटे क्षेत्रों में अस्थिरता फैलाने की कोशिश करते रहे हैं। हालांकि ट्रम्प की तीनटिकड़मेंजो अब भारी पड़ सकती हैं. इसमें येरुशलम को इज़राइल की राजधानी घोषित करना अरब जगत की नाराज़गी को पक्का कर दिया, और फिलिस्तीन के पक्ष में हिंसा को उकसाया है। ईरान न्यूक्लियर डील से हटना, पूरे क्षेत्र में तनाव का स्तर कई गुना बढ़ा दिया है।

गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर के साथ लंच के बाद फिर से दावा किया किमैंने ही भारत-पाकिस्तान जंग रुकवाई’, लेकिन साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तानी आर्मी चीफ को जंग रुकवाने का श्रेय दिया। दोनों को ट्रम्प ने स्मार्ट लीडर कहा। ट्रम्प ने कहा, “मैंने जंग रुकवाई, मुझे पाकिस्तान से प्यार है, मोदी शानदार नेता हैं। मैंने कल रात उनसे फोन पर बात की थी। हम मोदी के भारत के साथ व्यापार समझौता करने जा रहे हैं। लेकिन भारत और पाकिस्तान के बीच जंग मैंने रुकवाई। पाकिस्तान की तरफ से इस व्यक्ति (मुनीर) ने प्रभावशाली ढंग से जंग रुकवाने में काम किया, और भारत की तरफ से मोदी ने जंग रुकवाई। दोनों एटमी ताकतें हैं। मैंने जंग रुकवा दी। इनको (मुनीर को) यहां मैंने इसलिए बुलाया, क्योंकि मैं उन्हें जंग रोकने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। मैंने मोदी को भी धन्यवाद दिया है। हम भारत और पाकिस्तान के साथ व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं। मुझे खुशी है कि इन दोनों स्मार्ट नेताओं ने जंग आगे बढ़ाने का फैसला किया, वरना परमाणु युद्ध हो सकता था। दोनों बड़ी परमाणु ताकतें हैं।व्हाइट हाउस की प्रवक्ता अन्ना कैली ने कहा कि आसिम मुनीर को ट्रम्प ने लंच का न्यौता इसलिए दिया क्योंकि मुनीर ने ट्रम्प को भारत-पाकिस्तान जंग रुकवाने के कारण नोबेल शांति पुरस्कार देने का सुझाव दिया है। इससे कुछ घंटे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रेसीडेंट ट्रंप से साफ कह दिया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध पर हुआ। सीजफायर का फैसला भारत और पाकिस्तान के डीजीएमओ की बातचीत के बाद हुआ, इसमें अमेरिका का कोई रोल नहीं था। मोदी ने ट्रंप से कहा कि इस दौरान अमेरिका से जो बात हुई, उसमें सीजफायर या ट्रेड डील जैसे मसलों का जिक्र नहीं हुआ। फोन पर ये बातचीत राष्ट्रपति ट्रंप की पहल पर हुई।

मोदी और ट्रंप के बीच पैंतीस मिनट बात हुई। इस दौरान मोदी ने ट्रंप से दो-टूक तीन बातें कहीं। पहली, भारत पाकिस्तान के साथ अपने मसले खुद सुलझाने में सक्षम है। इसमें भारत ने पहले भी किसी तीसरे देश की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की, अब भी नहीं करता और आगे भी नहीं करेगा। इसमें किसी तीसरे के पंच बनने की कोई गुंजाइश नहीं हैं। दूसरी बात, ऑपरेशन सिंदूर पहलगाम के आतंकवादी हमले का जवाब था, ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है। तीसरी बात, अब भारत किसी भी आतंकी हमले को एक्ट आफ वॉर मानेगा और इसका जवाब युद्ध स्तर पर ही दिया जाएगा। भारत ने ये बात ऑपरेशन सिंदूर के वक्त ही दुनिया को बता दी थी। इसलिए अब इस मुद्दे पर किसी को कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए। ट्रंप ने मोदी की बात का समर्थन किया और आंतकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत का साथ देने का वादा किया। इसके बाद ट्रम्प ने मोदी से कहा कि वो कनाडा से भारत लौटते समय वॉशिंगटन होते हुए जाएं। लेकिन मोदी ने पहले से तय प्रोग्राम का हवाला दिया और असमर्थता जाहिर की। पाकिस्तान के आर्मी चीफ के साथ लंच के बाद डॉनल्ड ट्रंप ने बताया किमोदी इज फैन्टास्टिक मैनऔर चूंकि बात चल रही थी ईरान इस्राइल जंग की, तो चलते चलते ट्रंप ने ये डॉयलॉग दिया कि मैंने भारत और पाकिस्तान के बीच जंग रुकवाई क्योंकि ये दोनों एटमी ताकतें हैं। इसी तरह वो ईरान-इस्राइल जंग  भी खत्म करवा सकते हैं। अब ट्रंप तो ट्रंप है। कब क्या कहें, फिर कब पलट जाएं, कोई नहीं जानता। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान के साथ युद्धविराम को लेकर सबसे बड़े रहस्य से पर्दा उठा दिया। बार-बार पूछा जा रहा था कि ट्रंप ने बार-बार ये क्यों कहा कि उन्होंने ट्रेड डील की धमकी देकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध रुकवाया।

मोदी ने साफ कर दिया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिका के साथ सीजफायर पर बात हुई, और व्यपार समझौता की कोई बात हुई। ये बात गलत है कि भारत ने अमेरिका के प्रेशर में आकर सीजफायर किया और ये बात भी गलत है कि भारत किसी ट्रेड डील के दबाव में था। भारत का फोकस आतंकवाद के ठिकानों और आकाओं को तबाह करने का था। आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान का क्या इतिहास है, ये अमेरिका अच्छी तरह जानता है। अमेरिका को मालूम है कि ओसामा बिन लादेन कहां छुपा हुआ था, किसने छुपाया था। अमेरिका के रिकॉर्ड में है कि 1993 में वर्ल्ड ट्रेड टावर पर जो हमला हुआ, 9/11 हमला हुआ, टाइम्स स्क्वेयर पर आतंकवादी हमला हुआ, इन सब में पाकिस्तानी दहशतगर्द शामिल थे। ये सब भागकर पाकिस्तान में छिपे थे और वहीं से पकड़े गए थे। अमेरिका खुद पाकिस्तान के आतंकवाद का शिकार है लेकिन इस समय अमेरिका को पाकिस्तान की ज़रूरत है, क्योंकि ट्रम्प ईरान पर हमला करना चाहते हैं। मोदी और ट्रंप की फोन पर बातचीत को लेकर कांग्रेस को मिर्ची क्यों लगी? जैसे ही विदेश सचिव का बयान आया, उसके थोड़ी ही देर के बाद कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सरकार के दावों पर सवाल उठा दिए। जयराम रमेश ने व्हाइट हाउस का एक प्रेस नोट दिखाकर दावा किया कि ट्रंप और मोदी की बातचीत पर व्हाइट हाउस की तरफ से जारी बयान तो विदेश सचिव के बयान के ठीक उलट है।  लेकिन कुछ देर बाद कांग्रेस के झूठ का पर्दाफाश हो गया। पता लगा जयराम रमेश व्हाइट हाउस का जिस नोट का हवाला दे रहे थे, वो 27 जनवरी का एक पुराना नोट है। इसका ट्रंप और मोदी की फोन पर हुई बातचीत से कोई लेना-देना नहीं है। हकीकत ये है कि ट्रंप और मोदी की बातचीत पर व्हाइट हाउस की तरफ से कोई बयान नहीं आया। फिर भी जयराम रमेश ने  6 महीने पुरानी खबर दिखाकर लोगों को गुमराह करने की कोशिश की और बाद में अपनी गलती मानी। ये तो साफ है कि ट्रंप को कॉल करके मोदी ने कांग्रेस केसरेंडरवाले नैरेटिव की हवा निकाल दी। कांग्रेस को चुप हो जाना चाहिए था लेकिन बिना सोचे समझे मोदी पर हमला करते जाना, कांग्रेस के कुछ लोगों की आदत हो गई है। इसी चक्कर में जयराम रमेश फंस गए और ये कोई पहली बार नहीं है। पहले पहलगाम पर मोदी के मौन रहने पर सवाल उठाए, जब प्रधानमंत्री बोले तो कहा ये इलेक्शन गिमिक है। पहले कहा कि पाकिस्तान को जवाब क्यों नहीं देते, जब घुस कर मारा, तो कांग्रेस ने कहा कि युद्ध कोई समाधान नहीं है। राहुल गांधी ने तो ऐसा इंप्रेशन दिया कि पाकिस्तान ने हमारे कई फाइटर प्लेन मार गिराए। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने ऑपरेशन सिंदूर को छिटपुट हमला करार दे दिया। हमारी फौज ने सबूतों के साथ दिखाया कैसे सटीक, नपे-तुले हमले करके पाकिस्तान के अंदर जाकर आतंकवादी अड्डे और एयरबेस तबाह किए गए। जिस बात से घबराकर पाकिस्तान अमेरिका के पास जाकर रोया, वो राहुल और उनकी टीम समझने को तैयार नहीं है। वो बस यही दोहराते रहे कि ट्रंप ने क्यों बोला।

प्रधानमंत्री मोदी ने इसका भी सटीक, नपा-तुला जवाब दे दिया। ये बिलकुल साफ हो गया कि भारत अमेरिका के सामने नहीं झुका। जब हमारी सेनाओं को लगा कि अपना काम हो गया, अब फायरिंग रोकने में कोई नुकसान नहीं है, तो डीजीएमओ की बात मान ली। हैरानी की बात ये है कि इतनी बुरी तरह मार खाने के बाद पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर आजकल अमेरिका में घूम रहे हैं। पूरे पाकिस्तान में ये ढोल पीटा जा रहा है कि जनरल आसिम मुनीर को प्रेसीडेंट ट्रंप ने लंच पर बुलाया है। लेकिन ट्रंप के साथ लंच से पहले वॉशिंगटन में जनरल मुनीर की आरती कैसे उतारी गई। जनरल आसिम मुनीर जब पाकिस्तानी मूल के लोगों को संबोधित करने पहुंचे, तो उस वक्त होटल के सामने सैकड़ों पाकिस्तानियों ने खूनी हत्यारा कहते हुए नारेबाजी की। अगले दिन मुनीर जब एक मॉल में टहलने गए तो उनके साथ सिर्फ सात सिक्योरिटी गार्ड्स थे, लेकिन उनका विरोध करने के लिए सात सौ से ज्यादा पाकिस्तानी पहुंचे थे। अमेरिका के अलग-अलग शहरों से आए पाकिस्तानी मूल के लोगों ने मुनीर को कातिल और भगोड़ा कहा। इन लोगों ने जनरल मुनीर के खिलाफ नारे लगाए और कहा कि आसिम मुनीर पाकिस्तान में लोकतंत्र का लुटेरा है। आसिम मुनीर को अमेरिका में जिस तरह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, ऐसा पाकिस्तान के किसी आर्मी चीफ के साथ पहले कभी नहीं हुआ था। उनका कहना है कि चाहे देश में रहने वाले पाकिस्तानी हों या फिर विदेश में रहने वाले, इन सबके बीच आसिम मुनीर की छवि अच्छी नहीं है। ज्यादातर लोग मानते हैं कि आसिम मुनीर ने पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार की बजाए अपनी कठपुतली सरकार बनाई है, इसलिए मुनीर का विरोध हो रहा है। पाकिस्तानी पत्रकार आरिफा जाकिया ने कहा कि जनरल मुनीर के फेमली मेंबर्स और उसके करीबियों ने ट्रंप फैमिली की होल्डिंग वाली क्रिप्टो करेंसी कंपनी में इंवेस्ट किया है। जनरल मुनीर ट्रंप को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसीलिए उन्हें ट्रंप का न्यौता मिला है।

पाकिस्तान के पीटीआई नेता बैरिस्टर शहजाद अकबर ने कहा कि आसिम मुनीर ने पहले पाकिस्तान के नेताओं की चापलूसी की और आर्मी चीफ की कुर्सी तक पहुंचे। अब वो ट्रंप की चापलूसी करके पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होना चाहते हैं। आसिम मुनीर अब वो सब करेंगे, जो ट्रंप कहेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि जनरल मुनीर भारत में पहलगाम नरसंहार का गुनहगार है। वो किसी सम्मान का हकदार नहीं है। लेकिन व्हाइट हाउस में लंच के लिए किसे बुलाया जाए, किसे डिनर के लिए बुलाया जाए, ये भारत कैसे तय कर सकता है? क्या जयराम रमेश ट्रंप को बताएंगे कि उन्होंने मोदी के साथ अपनी बातचीत पर बयान जारी क्यों नहीं किया? क्या संजय राउत ट्रंप को समझाएंगे कि उन्हें अपने शब्द वापस लेने चाहिए? ये निहायत बचकानी बातें हैं। कोई ट्रंप की जुबान पर लगाम लगा सकता है, कोई व्हाइट हाउस की गेस्ट लिस्ट तय कर सकता है। ये जरूर पूछा जाएगा कि आखिर ट्रंप ने मुनीर को क्यों बुलाया? ट्रंप के निशाने पर ईरान है। पाकिस्तान की ईरान से करीब 1000 किमी लम्बी सरहद लगी हुई है।  ईरान पर हमला करने के लिए अमेरिका को पाकिस्तान के एयरबेस की जरूरत होगी। पाकिस्तान के एयरस्पेस की आवश्यकता होगी। खबर तो ये भी है कि अमेरिका के स्पाई प्लेन अभी से पाकिस्तान के एयरस्पेस में हैं और ईरान की सीमा से सूचनाएं इक्ट्ठी की जा रही है। ट्रंप ने अपना काम निकालने के लिए आसिम मुनीर को लंच दिया, तो उन्हें कौन रोक सकता है? अमेरिका को अपना काम निकालना है, इसके लिए वह पाकिस्तान को थोड़ा सहलाए, थोड़ा बहलाए, तो इसे कौन रोक सकता है? पहले भी अमेरिका ने अफगानिस्तान में सोवियत सेना से मुकाबला करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल किया था। फिर जनरल मुशर्रफ ने 9/11 के बाद अफगानिस्तान से तालिबान का खात्मा करने के लिए अमेरिकी सेना को अपने मुल्क की तरफ से सारी सहूलियतें दी थी। पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने दो महीने पहले कहा था कि अमेरिका का कपतजल रवइ  करने के लिए पाकिस्तान ने आतंकवादियों की फौज खड़ी की, जिसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ा। अब अगर पाकिस्तान फिर से इस्तेमाल होने के लिए तैयार है, तो कोई क्या कर सकता है?

युद्धग्रस्त इलाकों से नागरिकों को सुरक्षित निकालना बन रहा बड़ी चुनौती

युद्ध क्षेत्रों से भारतीयों को सुरक्षित निकालना अब एक नियमित कूटनीतिक अभ्यास बनता जा रहा है, लेकिन हर बार इसकी चुनौती नई होती है। यह सिर्फ सरकार की तत्परता का परीक्षण है, बल्कि एक सभ्य, संवेदनशील और जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में भारत की पहचान का प्रतीक भी। दुनिया के किसी भी कोने में जब संकट आता है, खासकर युद्ध या गृहयुद्ध की स्थिति बनती है, तो वहां फंसे भारतीयों की सुरक्षित वापसी भारत सरकार की प्राथमिकता बन जाती है। चाहे यूक्रेन हो, अफगानिस्तान, यमन या हाल ही में सूडानहर बार भारत ने साहस, संयम और सूझबूझ के साथ अपने नागरिकों को सकुशल स्वदेश लाने का अभियान चलाया है। पिछले कुछ वर्षों में विदेशों में फंसे भारतीयों को निकालने के लिए भारत सरकार ने कई विशेष अभियान चलाए हैं : ऑपरेशन गंगा : रूस-यूक्रेन युद्ध में फंसे 22,000 से ज्यादा भारतीय छात्र जब खौफ में जी रहे थे, तब भारत सरकार ने युद्ध की गोलियों के बीच उन्हें घर तक पहुंचाया। ऑपरेशन कावेरी : सूडान संकट के दौरान लगभग 3,000 भारतीयों को सुरक्षित सऊदी अरब के रास्ते स्वदेश लाया गया। ऑपरेशन देवी शक्ति : अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद चले अभियान में भारतीयों के साथ अफगानी अल्पसंख्यकों को भी सुरक्षित निकाला गया। युद्ध क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि एयरस्पेस बंद हो जाते हैं, सड़कों पर टैंक और हथियारबंद गाड़ियाँ तैनात होती हैं, संचार व्यवस्था ठप हो जाती है और हर मिनट खतरनाक हो जाता है। इन हालात में भारतीय मिशनों को स्थानीय एजेंसियों से समन्वय कर, सीमित साधनों के बीच अपने नागरिकों की लोकेशन तय करनी होती है, फिर उन्हें सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाना और विमान या नौसेना के जरिए बाहर निकालना होता है। भारत सरकार ने हर बार यह स्पष्ट किया है कि अपने नागरिकों की सुरक्षा सर्वोपरि है। विदेश मंत्रालय, भारतीय वायुसेना और नौसेनासबने मिलकर हर बार एक जीवंत मिशन के रूप में इन अभियानों को अंजाम दिया। भारत की यह नीति केवल दुनिया में उसकी जिम्मेदार शक्ति की छवि को मजबूत करती है, बल्कि प्रवासी भारतीयों में भी विश्वास जगाती है कि संकट में मातृभूमि उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ेगी।

 

 

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