गंगा-वरुणा के संगम से उभरी आपदा, प्रशासन मुस्तैद
गंगा की गोद में डूबती काशी : घाट, मंदिर और बस्तियां बेहाल
शीतला घाट
का
मंदिर
जलमग्न,
दशाश्वमेध
की
केवल
तीन
सीढ़ियां
शेष
सिंधिया घाट
पर
रत्नेश्वर
महादेव
मंदिर
का
केवल
शिखर
ही
दिख
रहा
अस्सी घाट
पर
सड़क
तक
पानी,
पुलिस
ने
बैरिकेडिंग
की
महेशनगर, अघोर
फाउंडेशन,
जगन्नाथ
मंदिर
के
पास
तक
पानी
भदोही के कोनिया, इटहरा, हरिरामपुर जैसे गांवों में संपर्क टूटा, फसलें डूबीं
सुरेश गांधी
वाराणसी. अब
मां गंगा हमारे आंगन
में हैं, लेकिन इस
बार बरसों की पूंजी भी
बहा ले गईं...यह
हम नहीं, बल्कि गंगा किनारे रह
रहे 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला कलावती का कहना है।
जबकि सामने घाट के गोविन्द
बिहारी कहते है, गंगा
अब केवल घाट तक
नहीं, हमारे दरवाजे तक आ चुकी
हैं...उनके इन शब्दों
में भय, बेबसी और
आस्था का त्रिवेणी संगम
झलकता है। बता दें,
वाराणसी में गंगा और
वरुणा के जलस्तर में
निरंतर बढ़ाव से हालात
भयावह हो गए हैं।
खतरे के निशान 71.26 को
पार कर गंगा ने
71.71 मीटर तक की न
सिर्फ ऊंचाई छू ली है,
बल्कि खतरे के निशान
को भी पार गया
है।
हालत यह है
कि अब घाट ही
नहीं, शहर के कई
हिस्सों तक बाढ़ का
पानी पहुंच चुका है। सभी
84 घाटों का संपर्क टूट
चुका है। शीतला घाट
पर मंदिर पूरी तरह जलमग्न
हो गया है। सिंधिया
घाट पर रत्नेश्वर महादेव
मंदिर का केवल शिखर
दिखाई दे रहा है।
श्री काशी विश्वनाथ धाम
के ‘गंगा द्वार’ से
जल अब सिर्फ 4 सीढ़ियां
दूर है। दशाश्वमेध घाट
की भी तीन सीढ़ियां
शेष हैं। नमो घाट
पर बने स्कल्पचर डूब
गए हैं। अस्सी घाट
पर गंगा का पानी
अब सड़क पर बह
रहा है। सामनेघाट के
अघोर फाउंडेशन, महेशनगर कॉलोनी, जगन्नाथ मंदिर तक पानी पहुंच
चुका है।
बता दें, गंगा की लहरें जब-जब उफनती हैं, काशी की सांस्कृतिक, धार्मिक और जनजीवन की परंपरा भी डगमगाने लगती है। इन दिनों वहीदृश्य वाराणसी में साकार हो रहा है, जब एक ओर पौराणिक 84 घाट जलमग्न हैं तो दूसरी ओर गंगा-वरुणा की बेलगाम लहरें अब रिहायशी इलाकों में प्रवेश कर चुकी हैं। 71.26 मीटर के खतरे के निशान को पार कर चुकी गंगा अब चेतावनी बिंदु से भी आगे बढ़ने को तैयार दिख रही है।
नतीजा यह है कि मंदिर, आश्रम, कॉलोनियां, खेत और जनजीवन, सब कुछ इस संकट में समाहित होता जा रहा है। काशी के प्रमुख घाट, दशाश्वमेध, शीतला, सिंधिया, नमो घाट, अब पानी की गिरफ्त में हैं। रत्नेश्वर महादेव मंदिर का शिखर ही दिखाई दे रहा है और शीतला माता मंदिर पूरी तरह डूब गया है। जल पुलिस की चौकी भी जलमग्न है। यह अलग बात है कि गंगा-वरुणा के उफान के बीच जहां जनजीवन संकट में है, वहीं प्रशासनिक अमला सतर्क दिखाई दे रहा है।गंगा की चेतावनी
: अब ज़रूरत है दीर्घकालिक जल
प्रबंधन की या बाढ़
केवल आपदा नहीं, अवसर
भी है, तटीय संरचनाओं
की पुनर्समीक्षा का. वाराणसी जैसे
धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र
में हर वर्ष आने
वाली बाढ़ की पुनरावृत्ति
पर दीर्घकालिक नीति की आवश्यकता
है। तटीय सुरक्षा बांध,
चेतावनी प्रणाली, राहत शिविर की
स्थायी संरचना की योजना। जल
आयोग के अनुसार, खतरे
के बिंदु 80 मीटर के निकट
पहुंच चुका स्तर, तत्काल
रिस्पांस टीमों का पुनर्गठन। नदी
के पर्यावरणीय प्रवाह को बनाए रखते
हुए घाटों की संरचना को
जलग्रहण-अनुकूल बनाना होगा।
गंगा की सहायक
नदी वरुणा भी अपने उफान
पर है। महेशनगर, अघोर
फाउंडेशन, जगन्नाथ मंदिर और कोनिया के
कई गांवों में बाढ़ का
पानी पहुंच गया है। कोनिया,
हरिरामपुर, इटहरा, धनतुलसी, कलातुलसी जैसे ग्रामीण क्षेत्रों
में लगभग 200 बीघा धान, बाजरा
और अरहर की फसल
जलमग्न हो चुकी है।
सड़कों पर तीन से
चार फीट पानी भरने
से दर्जनों गांवों का संपर्क टूट
गया है। 50 हजार से अधिक
लोग बाढ़ से प्रभावित
हैं, जिनमें कई परिवारों ने
अपना घर छोड़कर सुरक्षित
स्थानों पर शरण ली
है।
प्रशासन सतर्क, राहत कार्य तेज
आपदा में सेवा का संदेश
गांवों में त्राहिमाम
राहत शिविरों में व्यवस्थाएं
चौकाघाट के सरस्वती विद्या
मंदिर में स्थापित राहत
शिविर में राज्य मंत्री
रविंद्र जायसवाल पहुंचे। उन्होंने जिला पंचायत अध्यक्ष
पूनम मौर्य, अपर जिलाधिकारी बंदिता
श्रीवास्तव के साथ शिविर
में रह रहे लोगों
से मुलाकात की और उन्हें
राहत सामग्री सौंपी। मंत्री ने कहा, “बाढ़
की इस घड़ी में
सरकार हर पीड़ित के
साथ खड़ी है। पीने
का पानी, भोजन, चिकित्सा और साफ-सफाई,
हर सेवा की जिम्मेदारी
तय है।”
बाढ़ एक आपदा ही नहीं, चेतावनी भी है
हर वर्ष जब
गंगा उफान पर आती
है, तो घाट, मंदिर,
आश्रम और गलियां पानी
में समा जाती हैं।
पर सवाल यह है,
क्या हर वर्ष काशीवासियों
को यह त्रासदी ऐसे
ही सहनी होगी? गंगा
के बाढ़ का स्वरूप
अब पारंपरिक नहीं रहा, बल्कि
यह बदलती जलवायु, अनियोजित शहरी विस्तार और
कमजोर तटीय सुरक्षा ढांचे
की देन है।
क्या हो समाधान?
स्थायी बाढ़ राहत केंद्रः
अस्थायी शिविरों की जगह सुरक्षित,
ऊंचे प्लेटफॉर्म पर स्थायी बुनियादी
ढांचे की योजना बनाई
जाए। तटीय सुरक्षा बाँधों
की समीक्षाः वर्षों पुराने घाटों और संरचनाओं को
जलग्रहण-अनुकूल बनाया जाए। पूर्व चेतावनी
तंत्र (अर्ली वार्निंग सिस्टम) को जीपीएस/सेटेलाइट
आधारित बनाया जाए, ताकि ग्रामीण
क्षेत्रों को पहले से
जानकारी मिल सके। फसल
क्षति का बीमा और
पुनर्वास योजना को सक्रिय किया
जाए। खास यह है
कि काशी न केवल
भारत की सांस्कृतिक राजधानी
है, बल्कि भावनात्मक आस्था का केंद्र भी
है। यहाँ की बाढ़
महज एक आपदा नहीं,
बल्कि नीति-नियोजन की
अग्निपरीक्षा भी है। अब
समय है कि प्रशासनिक
सजगता के साथ-साथ
दीर्घकालिक शहरी व नदी
नीति भी तैयार की
जाए, ताकि हर साल
बाढ़ का यह दृश्य
“नियम” न बने।
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