सुहागिनों ने सजाई आराधना, निहारा चांद का चेहरा और किया अखंड सौभाग्य का संकल्प
जब आकाश
में
चांद
ने
अपनी
रजत
मुस्कान
बिखेरी,
तब
घाटों
से
लेकर
गलियों
तक
सुहागिनों
के
चेहरे
पर
भी
वही
उजास
झलक
उठा
घर-आँगन
में
मंगल
गीत
गूँजते
रहे,
“सात
जन्म
का
संग
हमारा,
चंदा
तू
गवाह
रहना...”
सजधज कर
जब
सुहागिनें
लाल
चुनरी
और
मेंहदी
रचे
हाथों
से
पूजा
थाल
सजाने
लगीं
तो
पूरे
वातावरण
में
सौंदर्य
और
श्रद्धा
का
अद्भुत
संगम
बिखर
गया
सुरेश गांधी
वाराणसी। व्रत, सौंदर्य और समर्पण की त्रिवेणी बनी करवा चौथ की संध्या। शुक्रवार की रात जब आकाश में चांद ने अपनी रजत मुस्कान बिखेरी, तब घाटों से लेकर गलियों तक सुहागिनों के चेहरे पर भी वही उजास झलक उठा। किसी ने बालकनी से छलनी में झांका, किसी ने छत पर दीप जलाकर अपने चांद समान पति का दर्शन किया। करवा चौथ का यह पावन व्रत शहर की हर अँगेरी में आस्था, प्रेम और स्त्री-शक्ति का उत्सव बन उठा। काशी की सुहागिनों ने इस करवा चौथ पर एक बार फिर दिखा दिया कि परंपरा चाहे कितनी भी पुरानी क्यों न हो, जब उसमें प्रेम और श्रद्धा की बुनावट हो, तो वह सदा नवीन लगती है।
सुबह से ही
व्रतिनी महिलाओं ने निर्जला उपवास
रख अपने पति की
दीर्घायु और सौभाग्य की
कामना की। घर-आँगन
में मंगल गीत गूँजते
रहे, “सात जन्म का
संग हमारा, चंदा तू गवाह
रहना...”। सजधज कर
जब सुहागिनें लाल चुनरी और
मेंहदी रचे हाथों से
पूजा थाल सजाने लगीं
तो पूरे वातावरण में
सौंदर्य और श्रद्धा का
अद्भुत संगम बिखर गया।
काशी के दशाश्वमेध, अस्सी
और रथयात्रा, पांडेयपुर आदि इलाकों में
महिलाओं ने समूह में
करवा चौथ की कथा
सुनी। बुजुर्ग महिलाओं ने सास-बहू
परंपरा का निर्वाह करते
हुए कन्याओं को सोलह श्रृंगार
के साथ व्रत का
महत्व बताया। शाम ढलते ही
हर छत पर दीपक
की लौ और आरती
की थाल से झिलमिलाती
रोशनी ने मानो आसमान
को भी सजो लिया।
रात के चाँद
का इंतज़ार जैसे-जैसे बढ़ता
गया, वैसी-वैसी आस्था
की आभा और गहरी
होती गई। जब अंततः
चाँद निकला तो शहर की
फिज़ा “चाँद आ गया...
चाँद आ गया...” की
पुकार से गूंज उठी।
छलनी से चाँद और
फिर पति का मुख
निहारते हुए सुहागिनों की
आँखों में जो प्रेम
और पूर्णता की चमक थी,
वह किसी दीपक की
लौ से कम न
थी। इस अवसर पर
कई जगहों पर सामूहिक पूजन
का आयोजन भी हुआ। शिवाला
और भेलूपुर क्षेत्रों में महिलाओं ने
सामूहिक रूप से “करवा
चौथ कथा” का पाठ
किया। स्थानीय मंदिरों में सुहागिनों ने
माँ गौरी और भगवान
शिव के सम्मुख आरती
उतारी और अखंड सौभाग्य
की प्रार्थना की।
करवा चौथ : नारी की आस्था का प्रतीक
करवा चौथ केवल
व्रत नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री के प्रेम और
त्याग का जीवंत प्रतीक
है। यह पर्व उस
नारी-संकल्प का प्रतीक है
जो अपने प्रिय के
जीवन की रक्षा के
लिए स्वयं को तप की
अग्नि में झोंक देती
है। आज भी यह
परंपरा युगों के अंतराल में
उतनी ही जीवित और
सुंदर बनी हुई है।
लोक परंपरा में यह दिन
‘करवा’ (मिट्टी के पात्र) की
तरह है, जो रिश्तों
को सहेजने, निभाने और भरपूर स्नेह
से भरे रहने का
प्रतीक है। ‘चौथ’ यानी
चंद्रमा कृ सौंदर्य, शीतलता
और नारी के मन
की स्थिरता का द्योतक। इस
दिन की प्रतीक्षा उस
प्रेम के शाश्वत अर्थ
को उजागर करती है जो
केवल शब्दों में नहीं, बल्कि
निःस्वार्थ भावनाओं में पनपता है।
जब नारी चाँद की
ओर देखती है, तब वह
दरअसल अपने प्रेम की
अमरता का आह्वान करती
है कृ एक ऐसा
प्रेम जो समय, दूरी
और व्रत की तपस्या
से भी ऊपर है।
करवा चौथ यूँ भारतीय
संस्कृति के उस गूढ़
सूत्र को फिर से
याद दिलाता है, “जहाँ नारी
पूज्यते, तत्र रम्यते देवता”,
जहाँ नारी के भावों
का आदर होता है,
वहीं सच्चा सौभाग्य और समृद्धि फलती
है।




No comments:
Post a Comment