कोरोना के नाम पर कब थमेगा हमलों का दौर?
संयुक्त
राष्ट्र
से
लेकर
भारतीय
खुफिया
एजेंसियां
तक
कह
चुकी
है
कि
कोरोना
के
खिलाफ
जीतती
हुई
लडाई
को
असफल
करने
के
लिए
कुछ
लोग
दिन-रात
एक
किए
हुए
है।
इसमें
जंग
जीतने
में
जुटे
कर्मवीर
योद्धा
चाहे
चिकित्सक
हो
या
पुलिसकर्मी
या
शांतिप्रिय
इलाके
के
लोग
किसी
पर
भी
जानलेवा
हमला
करने
से
लेकर
भीड़
जुटाने
की
कुचक्र
करने
वाले
हो
शामिल
है।
खास
बात
यह
है
कि
ऐसा
मुंबई,
दिल्ली,
मुरादाबाद,
कानपुर,
मोतिहारी,
इंदौर
से
लेकर
गुजरात
तक
मेंहो
भी
रहा
है।
लेकिन
सरकार
है
कि
हाथ
पर
हाथ
बैठी
किसी
बड़ी
घटना
के
इंतजार
में
है?
और
अगर
ऐसा
नहीं
है
तो
इन
सारे
घटनाओं
की
जिम्मेदार
तबलीगी
जमात
के
सरगना
साद
को
पुलिस
अब
तक
क्यों
नहीं
पकड़
कर
साजिश
का
खुलासा
करवा
सकी?
जबकि
पहले
दिन
से
ही
आशंका
व्यक्त
की
जा
रही
है
जमात
के
लोग
भारत
की
बर्बादी
के
लिए
किसी
बड़े
मिशन
पर
है?
सुरेश गांधी
बेशक, दुनिया घातक
कोविड-19 महामारी से लड़
रही है, जो
द्वितीय विश्व युद्ध के
बाद से सबसे
अधिक चुनौतीपूर्ण संकट
है। कोरोना के
डंक में हर
रोज हजारों जाने
जा रही है।
सुरसों के मुंह
की तरह संक्रमित
मरीजों में इजाफा
हो रहा है।
देश में कोरोना
के 11,439 केस हैं।
377 लोगों की मौत
भी हो चुकी
है। जबकि 1306 मरीज
स्वस्थ होकर अपने
घरों को लौट
चुके हैं। बढ़ते
मौतों एवं संक्रमितों
की संख्या में
लगातार वृद्धि को देखते
हुए ही लॉकडाउन
की अवधि 3 मई
तक की जा
चुकी है। कोरोना
मरीजों के मामले
में पहले नंबर
पर मुंबई, दुसरे
पर दिल्ली, तीसरे
पर इंदौर व
चौथे पर यूपी
है। 24 घंटे में
यूपी में कोरोना
के 70 केस व
3 लोगों की मौत
सामने आएं है।
इसके साथ ही
राज्य में कोरोना
के मामलों की
संख्या 727 हो हई
है। अब तक
11 मौतें हुई हैं।
महाराष्ट्र में भी
पिछले 12 घंटे के
अंदर कोरोना के
117 केस आए हैं।
पूरे राज्य में
मरीजों की संख्या
अब 2801 हो गई
है, जिसमें 178 लोगों
की मौत हो
चुकी है। दिल्ली
में भी कुछ
ऐसा ही है।
लेकिन बड़ा सवाल
तो यही है
कि कोरोना से
निपटने में दिन
रात जुटे कर्मवीरों
पर हमला क्यों
हो रहे है?
आखिर क्या वजह
है कि सख्त
लॉकडाउन के बावजूद
गरीब व लाचार
मजदूरों में अफवाह
फैलाकर दिल्ली व मुंबई
जैसे महानगरों में
भीड़ इकठ्ठा कर
ली जा रही
है? कब तक
मजदूरों की मजबूरी
का फायदा उठाकर
उन्हें भड़काया जाता रहेगा?
और यह सब
उस दिन से
शुरु है जब
दिल्ली के निजामु्द्दीन
मरकज से निकले
तबलीगी जमात के
संक्रमित मरीजों को पकड़
पकड़ कर क्वारंटाइन
कराई जा रही
है। पकड़े गए
जमाती क्वारंटाइन के
दौरान संक्रमित लोगों
के लिए भगवान
बनकर उभरे डाक्टरों
पर हमले किए
जा रहे है,
उन पर थूका
जा रहा है।
जारंच के लिए
गयी टीमों पर
पथराव किया जा
रहा है। इस
हमले में इंदौर
में एक चिकित्सक
की मौत तक
हो चुकीहै जबकि
देश के अन्य
हिस्सों मे दर्जनों
घायल हैं। मतलब
साफ है ये
जमाती डॉक्टरों को
ही अपना दुश्मन
मान बैठे हैं।
यही वजह है
कि कोरोना मरीजों
का इलाज करने
वाले डॉक्टरों और
मेडिकल टीमों पर हमले
की घटना थमने
का नाम नहीं
ले रहा है।
उत्तर प्रदेश के
मुरादाबाद में जमात
के लोगों ने
एक बार फिर
डॉक्टर की टीम
को निशाना बनाया
है। इस बीच
बिहार के औरंगाबाद
व मोतीहारी में
भी स्वास्थ्य विभाग
की टीम पर
कुछ लोगों ने
हमला किया है।
वहां भी डॉक्टर
और स्वास्थ्यकर्मियों को
पीटा गया है।
वाहन में भी
तोड़फोड़ की गई
है। इससे पहले
मेरठ में मस्जिद
के इमाम समेत
4 लोगों ने पॉजिटिव
जमातियों को पकड़ने
के दौरान पुलिस
अधिकारियों की टीम
पर हमला कर
दिया। जबकि चाहे
वो मुरादाबाद हो
मेरठ तब्लीगी जमात
के लोगों के
संपर्क में आए
दो दर्जन से
अधिक लोग कोरोना
पॉजिटिव पाए गए
हैं। इसके अलावा
अमरोहा में सास
और बहू कोरोना
पॉजिटिव पाई गईं
हैं। वर्तमान में
सभी एमआइटी क्वारंटाइन
होम में भर्ती
है। रामपुर जिले
के टांडा जमात
हुई थी। जिसमें
निजामुद्दीन हुए जमात
में शामिल कुछ
जमाती भी शामिल
हुए थे। पिछले
दिनों हल्द्वानी में
निजामुद्दीन से लौटे
जमाती को कोरोना
से पीड़ित पाए
गए थे। इसके
बावजूद इनके इलाज
के दौरान जो
हरकते सामने आ
रही है वो
कहीं ना कहीं
किसी बड़ी साजिश
की ही ओर
इशारा करती है।
खास बात
यह है कि
अभी तक तबलीगी
जमात के लोग
कोरोना वायरस से संक्रमित
मिल रहे थे,
लेकिन अब इनके
संपर्क में आने
वाले दूसरे लोग
भी कोरोना की
चपेट में आने
लगे हैं। कानपुर
के एक मदरसे
में 8 बच्चे कोरोना
पॉजिटिव पाए गए
हैं। अभी जमातियों
का उत्पात थमा
भी नहीं कि
मुंबई के बांद्रा
में मंगलवार की
शाम 4ः00 बजे
रेलवे स्टेशन पर
प्रवासी मजदूरों की भारी
भीड़ इकट्ठा हो
गई। फिर स्टेशन
पर उमड़े मजदूरों
के सैलाब को
हटाने के लिए
पुलिस ने लाठीचार्ज
का इस्तेमाल करना
पड़ा। बताया जा
रहा है कि
ये सभी मजदूर
घर जाने के
लिए स्टेशन पर
पहुंच गए। मजदूरों
को किसी ने
बोल दिया कि
लॉकडाउन खत्म हो
गया है। इसमें
भदोही के उगापुर
के विनय दुबे
का नाम चर्चा
में हैं। आरोप
है कि इसी
ने प्रवासी मजदूरों
को बांद्रा स्टेशन
पर भीड़ लगाने
के लिए उकसाया।
पुलिस के मुताबिक
गिरफ्तार विनय ने
ही यह अफवाह
फैलाया था कि
ट्रेन चल रही
है जिसके बाद
बांद्रा स्टेशन पर जन
सैलाब उमड़ पड़ा
था। वह नवी
मुंबई का रहने
वाला है। अपने
फेसबुक अकाउंट के जरिए
खुद को उद्यमी
और सामाजिक कार्यकर्ता
लिखता है। ’चलो
घर चलें’ नाम से
विनय ने सोशल
मीडिया पर एक
मुहिम भी चलाई
थी। अपने पेज
के जरिए विनय
कई बार प्रशासन
को चुनौती और
चेतावनी भी दे
चुका है। कुछ
दिन पहले इसने
अपनी एक पोस्ट
में लिखा था,
’’आज लिखित में
देश की केंद्र
सरकार, उत्तर भारत की
राज्य सरकारों को
चेतावनी पत्र दिया।
18 अप्रैल तक अगर
दूसरे राज्यों में
फंसे लोगों को
अपने घर पहुंचाने
का प्रबंध नहीं
हुआ तो उग्र
आंदोलन किया जाएगा।’’ विनय के फेसबुक
अकाउंट में अपलोड
किए गए एक
फोटो में वह
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के
प्रमुख राजठाकरे के साथ
मंच साझा करता
दिखाई दे रहा
है तो दुसरे
फोटो में तबलीगी
जमात के लोग
के साथ में
है।
जमातियों के हरकतों
को देखकर कहा
जा सकता है
इन लोगों ने
जैसे देश को
बर्बाद करने या
यूं कहे कोने
कोनें में कोरोना
से देश को
संक्रमित करने का
बीडा उठा रखा
है। बीते 14 मार्च
से लेकर 22 मार्च
तक के प्राप्त
मोबाइल डाटा में
भी कुछ ऐसे
ही संकेत मिले
है। जानकारी तो
ये सामने आई
कि करीब 4,000 जमाती
अलग-अलग तारीखों
पर एक मरकज़
में इकट्ठा हुए
थे। ये सभी
प्लानिंग के तहत
हुआ। इस पूरे
प्लान को उतनी
ही तेजी से
अंजाम दिया गया,
जितने जल्दी ये
साजिश रची गई
थी। इन 4 हजार
जमातियों में से
करीब 1,500 जामातियों ने 23 मार्च
तक मरकज छोड़
दिया था, लेकिन
निजामुद्दीन इलाके में बनी
जमात की छह
मंजिला इमारत में बाकी
जमाती रुके हुए
थे। जमातियों के
देश भर में
फैलने से सबसे
बड़ी चिंता यही
थी कि इनमें
से कोरोना पॉजिटिव
केस कहीं बाकियों
में भी इस
वायरस को ना
फैला दें। इसलिए
सबसे बड़ी चुनौती
उन्हें ट्रेस करने की
थी, ये पता
लगाना किसी चुनौती
से कम नहीं
था कि कौन
सा जमाती देश
के कौन से,
हिस्से में गया
है। इंटेलिजेंस ब्यूरो
को मार्च के
दूसरे हफ्ते में
निजामुद्दीन से चलकर
हैदराबाद पहुंचने वाली ट्रेन
को लेकर एक
खबर मिली थी।
ट्रेनों में सफर
कर रहे ज्यादातर
यात्री जमाती थे और
उनमें से कई
कोविड-19 पॉजिटिव भी थे।
सोचिए अगर अलग
अलग राज्यों की
पुलिस को इस
बात की खबर
नहीं होती कि
जमाती कहां कहां
पहुंचें हैं तो
कोरोना के मामलों
की संख्या बहुत
बड़ी हो सकती
थी।
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