कोरोना के कहर से मुश्किल में मध्यमवर्गीय परिवार, किससे करें गुहार
ये
वर्ग
स्वाभिमानी
वर्ग
है
और
भारत
की
सांस्कृतिक,
सामाजिक
और
तार्किक
आधारभूत
संरचना
है।
इसको
मदद
करने
से
देश
और
समाज
का
बड़ा
वर्ग
लाभान्वित
होगा।
भारत
सरकार
और
राज्य
सरकार
से
निवेदन
है
कि
मध्यम
वर्ग
के
लिए
कल्याणार्थ
फंड
की
घोषणा
करें।
आज
मध्यम
परिवार
में
बहुत
ऐसे
परिवार
है
जो
बहुत
कष्ट
में
है
और
उनको
भोजन
में
बहुत
परेशानी
हो
रही
है।
साथ
ही
वो
मध्यम
वर्ग
संकीर्ण
मानसिकता
का
शिकार
हो
रहे
हैं।
मध्यम
परिवार
का
नाखुश
होना
देश
की
आत्मीय
और
सांस्कृतिक
खुशी
के
लिए
नुकसानदेह
है।
सरकार
का
सारा
ध्यान
गरीबों
और
मजदूरों
पर
है,
जबकि
कमाई
बंद
होने
से
मिडल
क्लास
परिवारों
की
भी
हालत
पतली
हो
गई
है।
इसके
बावजूद
मध्यमवर्गीय
परिवारों
की
तरफ
ना
तो
सरकार
ने
ध्यान
दिया
है
और
न
ही
किसी
संगठन
ने
इस
दिशा
में
अभी
तक
पहल
की
है,
जबकि
अब
अधिकतर
मध्यमवर्गीय
परिवारों
के
लिए
घर
का
खर्च
चला
पाना
मुश्किल
हो
गया
है।
‘‘पिंजरे के पंछी
रे, तेरा दर्द
ना जाणे कोए,
कह ना सके
तू, अपनी कहानी,
तेरी भी पंछी,
क्या जिंदगानी रे,
विधि ने तेरी
कथा लिखी है,
आँसू में कलम
डुबोय, तेरा दर्द
ना जाणे कोए‘‘। यह भजन
इन दिनों कोरोना
और लॉकडाउन के
बीच फंसे मध्यमवर्गीय
परिवारों पर बिल्कुल
सटीक बैठ रही
है। मध्यमवर्गीय परिवारों
का हाल इस
समय उस पिंजरे
की पंक्षी की
तरह बेहाल है,
जिसमें ना वो
कुछ कह सकती
है और ना
ही बाहर निकल
सकती है। मतलब
साफ है मध्यमवर्गीय
परिवारों के लिए
इस वक्त मुश्किलों
का दौर है।
चूंकि लॉकडाउन में
सब कुछ बंद
है तो मध्यम
परिवार जो रोज
अपनी छोटी मोटी
व्यापार से कमाता
है और खाता
है, उसके समक्ष
विपत्ति का पहाड़
टूट पड़ा है।
खाय यह कि
सरकार द्वारा किसी
योजना का मध्यम
परिवार को लाभ
भी नहीं मिल
रहा है। उसकी
माली दयनीय हो
गई है। ये
समाज ना तो
किसी से मुफ्त
राशन की मांग
कर सकता है
ना ही किसी
लोक कल्याणकारी संस्था
से उसको लाभ
मिल रहा हैं।
राजनीतिक दलों के
सहानुभूति लिस्ट में ये
नहीं है। इनके
घर के बच्चों,
महिलाओं की स्थिति
भी दिनों दिन
खराब हो रहीं
है।
ये वर्ग
स्वाभिमानी वर्ग है
और भारत की
सांस्कृतिक, सामाजिक और तार्किक
आधारभूत संरचना है। इसको
मदद करने से
देश और समाज
का बड़ा वर्ग
लाभान्वित होगा। जायसवाल क्लब
के राष्ट्रीय अध्यक्ष
मनोज जायसवाल कहते
है भारत सरकार
और राज्य सरकार
से निवेदन है
कि मध्यम वर्ग
के लिए कल्याणार्थ
फंड की घोषणा
करें। आज मध्यम
परिवार में बहुत
ऐसे परिवार है
जो बहुत कष्ट
में है और
उनको भोजन में
बहुत परेशानी हो
रही है। साथ
ही वो मध्यम
वर्ग संकीर्ण मानसिकता
का शिकार हो
रहे हैं। मध्यम
परिवार का नाखुश
होना देश की
आत्मीय और सांस्कृतिक
खुशी के लिए
नुकसानदेह है। बता
दें, कोरोना के
कारण लगाए गए
कर्फ्यू के बीच
गरीब ही नहीं
मध्यमवर्गीय परिवार भी बुरी
तरह से प्रभावित
हो रहे हैं।
उन्हें अब भविष्य
की चिंता सताने
लगी है। कमाई
का जरिया बंद
होने और आने
वाले समय में
तमाम बिल जमा
करने की चिंता
उन्हें खाए जा
रही है। सरकार
का सारा ध्यान
गरीबों और मजदूरों
पर है, जबकि
कमाई बंद होने
से मिडल क्लास
परिवारों की भी
हालत पतली हो
गई है। इसके
बावजूद मध्यमवर्गीय परिवारों की
तरफ ना तो
सरकार ने ध्यान
दिया है और
न ही किसी
संगठन ने इस
दिशा में अभी
तक पहल की
है, जबकि अब
अधिकतर मध्यमवर्गीय परिवारों के
लिए घर का
खर्च चला पाना
मुश्किल हो गया
है।
ऐसे में
सरकार को मध्यमवर्गीय
परिवारों की भी
सुध लेनी चाहिए।
भले ही सरकार
ने बिजली के
बिलों की अदायगी
न कर पाने
पर अतिरिक्त चार्ज
न लगाने, मकान
का किराया अदा
करने के लिए
दबाव न बनाने
और केबल का
बिल हालत सामान्य
होने के बाद
ही देने जैसी
रियायतों की घोषणा
की है। लेकिन
आज नही ंतो
कल उसे भरना
ही पड़ेगा। हालात
सामान्य होते ही
इतने बिलों की
अदायगी एक साथ
करना मुश्किल होगा।
इसके शिकर मध्यम
व निम्न वर्गीय
किसान परिवार के
भी है। ऐसे
किसान परिवार रबी
फसल के लिए
खेती की जोताई
व बोआई करने
के लिए खाद-बीज नहीं
खरीद पा रहे
हैं। इसके अलावा
बेटी व बेटों
की शादी की
खरीदारी, निजी विद्यालय
में फीस भरने,
दैनिक मजदूरों को
राशन खरीदने सहित
कई तरह की
परेशानियों सामना करना पड़
रहा है।
हाल यह
है कि इनपर
‘जो कुछ मिला
है उसमें संतुष्ट
रहिए अन्यथा जो
है वह भी
हाथ से चला
जाएगा वाली कहानी
मध्यमवर्गीय परिवारों की हो
गयी है। इनके
बच्चों को ना
ही पौष्टिक आहार
मिल पा रहा
है और ना
ही ठीक से
दो जून की
रोटी। खास बात
यह है कि
लॉकडाउनलोड व कर्फ्यू
के बीच नेताओं
की राजनीति भी
जारी है। कहीं
फूड पैकेट और
राशन सामग्री बांटने
के नाम पर
नेतागिरी चमकाने की तो
कहीं इसके नाम
पर धुआधार चंदा
वसूली के आरोप-प्रत्यारोप। राशन सामग्री
व फूड पैकेट
के वितरण के
समय लोगों की
भीड़ एकत्र की
जा रही है।
इस दौरान ना
ही सोशल डिस्टेंसिंग
का ध्यान रखा
जा रहा और
ना ही कर्फ्यू
का। शहरों में
जिला प्रशासन की
ओर से बांटी
जा रही सूची
व राशन सामग्री
पर भी राजनीति
शुरू हो गई
है। कुछ लोग
जहां खुद की
भेजी गई सूची
के हिसाब से
पैकेट व राशन
की बात कर
रहे है तो
कुछ लोग उन्हीं
की निगरानी में
राशन वितरित करने
को कह रहे
हैं। भाजपा द्वारा
बटवाएं जा रहे
राशन व भोजन
पर कुछ लोगों
ने कहा यह
उन्हीं को दिया
जा रहा है
जो उनके समर्थक
है, बाकी के
लोग भूखे रहने
को विवश है।
जहां तक
मध्यमवर्गीय परिवारों का सवाल
है तो इसके
दो प्रमुख कारण
है। चूंकि अमूमन
अमीर वर्ग को
किसी की सहायता
की जरूरत नही
पड़ती और गरीब
के लिए नेता
समाजसेवी और सरकारी
सहायता देने वाले
पदाधिकारी मिल ही
जाते हैं। इस
सबके विपरीत एक
सामाजिक विडंबना यह है
कि मध्यम वर्गीय
परिवार अपना दर्द
किसी को दिखा
नही सकता। जग
हंसाई के कारण
वह राहत हासिल
करने वालों की
कतार में खड़ा
भी नही हो
सकता। समाज व
सरकार दोनों की
नजर में मध्यमवर्गीय
परिवार गरीब की
अहर्ता नहीं रखते।
बता दें, चीन
से आए कोरोना
नाम के वायरस
ने पूरे देश
को झकझोर कर
रख दिया है।
इसमें कोरोना ने
मध्यम वर्गीय परिवार
को बुरी तरह
आहत किया है।
इस दौरान धंधों
तथा वाहनों का
परिचालन पूरी तरह
ठप हो जाने
से भी इन
परिवारों की आमदनी
बंद है। मध्यम
वर्गीय परिवार से ताल्लुक
रखने वाले कई
लोगों ने अपनी
पीड़ा जाहिर करते
हुए बताया कि
हमारा दर्द सुनने
जानने का कोई
प्रयास नहीं करता।
कहने पर कोई
विश्वास नहीं करता।
लॉकडाउन में कोई
कर्ज भी नहीं
देता। दुकानदार उधार
देने की बजाय
मुंह मोड़ लेता
है। इन लोगों
का कहना है
सरकार द्वारा लॉकडाउन
की अवधि अगर
दोबारा बढ़ाई जाती
है तो इन
परिवारों की समस्या
और विकराल बन
जाएगी।
शादी विवाह
की तैयारी में
लोगों के घर
शहनाई बजेगी या
नहीं संशय बना
हुआ है। खासकर
मध्यम वर्गीय परिवारों
के लिए यह
गंभीर चुनौती का
विषय बन गया
है। लोक लाज
से बचने के
लिए लोग अप्रैल
मध्य से शुरू
होने वाले लगन
में पूर्व निर्धारित
शादियों की तिथि
में हेरफेर कर
रहे हैं। लोग
अपनी अपनी शादियों
को नवंबर-दिसंबर
तक टाल रहे
हैं। लोगों का
कहना है कि
यदि लॉकडाउन जारी
रहा तो शादी
समारोहों के उल्लास
पर भी पानी
फिर जाएगा। इस
स्थिति में कोई
रिश्तेदार भी नहीं
आएगा। व्यावसायिक वाहन,
पंडाल, बाजा आदि
के संचालक पसोपेश
में है। अब
सबकी निगाहें सरकार
के आगामी निर्णय
पर टिकी हुई
है। अधिकांश मध्यम
वर्गीय परिवारों के राशन
कार्ड का आवेदन
जिला मुख्यालय के
कार्यालयों में धूल
फांक रहे हैं।
फलस्वरूप इन परिवारों
को सस्ते दर
पर अथवा मुफ्त
सरकारी अनाज भी
नसीब नही हो
पा रहा है।
येन केन प्रकारेण
किसी तरह अपने
परिवार का पेट
भरने के लिए
राशन के साथ
साथ ईंधन, जलावन
व पशुचारा का
जुगाड़ करना अब
दूभर हो रहा
है। कई लोग
तो जग हंसाई
के चलते अपना
जेवर आदि तक
गिरवी रख परिवार
की भूख मिटाने
व बीमार परिजनों
का इलाज कराने
को विवश हैं।
इस स्थिति में
कोई रिश्तेदार भी
नही आएगा। व्यावसायिक
वाहन, टेंट, पंडाल
नाच व बाजा
आदि के संचालक
पसोपेश में हैं।
3 मई तक लॉकडाउन
बढ़नेका सबसे ज्यादा
प्रभाव इन्हीं पर पड़ा
है। इन लोगों
को समझ नहीं
आ रहा है
कि वह इससे
कैसे निपटें।
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