Thursday, 6 October 2022

काशी के भरत मिलाप में उमड़ा हुजूम, राजा रामचंद्र के जयकारों की गूंज

काशी के भरत मिलाप में उमड़ा हुजूम, राजा रामचंद्र के जयकारों की गूंज

भरत से मिले राम, धूमधाम से हुआ राजतिलक

रथ को खींचने की मची रही होड़

कहते है इस दिन जब सूरज डूबता है तब भगवान का अंश यहां के राम लक्ष्मण में जाता है

यहां बनने वाले राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न सप्ताहभर पहले से अन्न सहित अन्य भोग विलासता वाली वस्तुओं का त्याग कर देते है

गंगा स्नान, पूजा-पाठ फल आदि का ही सेवन करते है

सुरेश गांधी

वाराणसी। धर्म एवं आस्था की नगरी काशी के लक्खा मेलों में से एक विश्व प्रसिद्ध नाटी इमली भरत मिलाप का मंचन गुरुवार को बड़े ही धूमधाम से किया गया। आंखों में काजल, माथे पर चंदन, सिर पर लाल पगड़ी में सज-धज युवाओं के बीच गोधूली बेला में जब भगवान राम, लक्ष्ण, भरत शत्रुघ्न आपस में गले मिले तो इस मनोरम दृश्य देख लोगों की आंखे भर आई। राजा रामचंद्र समेत चारों भाईयों के जयकारे से पूरा परिसर गूंजायमान हो गया। चारों भाईयों के इस पांच मिनट की अलौकिक मनोरम दृश्य को निहारने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं का रेला उमड़ा था। 

इस मौके पर हाथी पर सवार काशी नरेश के वंशज कुंवर अनन्त नारायण सिंह के हाथों लीला का शुभारंभ किया गया। प्रभु श्रीराम का रथ खीचने वाले बंधुओं द्वारा जयश्रीराम जयश्रीराम का उद्घोष पूरे वातावरण को भक्तिरस से सराबोर हो गया। आसपास के घरों की छतों से फूलों की वर्षा होती रही। मैदान में भरत मिलाप एवं राम के राजतिलक प्रसंग की प्रस्तुति दी गई। इस दौरान भव्य शोभायात्रा निकाली गई। रथ पर सवार राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान, भरत, शत्रुघ्न समेत अन्य देवी-देवताओं का जगह-जगह स्वागत किया गया। लोगों ने शोभायात्रा में शामिल चारों भाईयों को भगवान की प्रतिमूर्ति मानकर उन्हें नमन किया।

आयोजन के दौरान श्रीराम चरित मानस पाठ के साथ ही चारों भाइयों के मिलन का प्रसंग पाठ श्रीचित्रकूट राम लीला के रामायणी दल ने किया तो ठीक 440 बजे चारो भाइयों का परंपरागत रूप से मिलन का प्रसंग मंच पर हुआ तो समूची काशी निहाल हो उठी। दोपहर में रामनगर दुर्ग से लोहटिया अयोध्या भवन के लिए काशीराज परिवार के अनंत नारायण सिंह रवाना हुए तो उनके साथ परंपरागत तौर पर सेना की भी मौजूदगी रही। अनंत नारायण सिंह अपने बेटों के साथ दुर्ग से निकले तो आयोजन मानो परंपरा का रुप दोबारा लेता नजर आया। नाटी इमली मैदान में भरत विलाप देखने के लिए और अपने राजा को देखने के लिए भीड़ उमड़ती रही। चार बजे के बाद भीड़ को परिसर में आने से रोक दिया गया। इसके बाद खचाखच भरे मैदान में आयोजन का इंतजार सभी की आंखें करती नजर आईं।

दोपहर बाद रथ नाटी इमली पहुंचा तो उद्घोष से पूरा मैदान गूंज उठा। भरत मिलाप के मैदान आस्था का कोई ओर छोन नजर नहीं रहा था। भरत और शत्रुघ्न भी लीलास्थल पर पहुंचे तो आयोजन की कड़ियां शाम चार बजे जुड़ गईं। भरत मिलाप मैदान पर श्री राम लक्ष्मण और माता जानकी के आते ही पूरा मैदान हर हर महादेव और जय श्री राम के उद्घोष से गूंज उठा। भरत मिलाप मैदान खचाखच आस्थावानों से भर गया तो प्रशासन ने और लोगों की एंट्री बंद कर दी गयी। लीला के लिए क्या छत, गली, सड़क हर ओर भक्त अलौकिक छठा को नयनों में बसाने के लिए आतुर दिखे। काशी की परंपरा के अनुसार नाटी इमली मैदान में शाही सवारी पर राज परिवार के अनंत नारायण पहुंचते हैं। उन्होंने प्रभु राम, भाई लक्ष्मण और माता सीता के पुष्पक विमान की परिक्रमा कर नेग दिया। वहां उपस्थित लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के जयकारे लगाते रहे। 

भरत मिलाप से पहले यादव बंधुओं द्वारा बजाए जाने वाले डमरू दल ने पूरा वातावरण राममय और भोलेमय कर दिया। इस विश्व प्रसिद्ध भरत मिलाप को देखने के लिए देश के अलावा विदेशी मेहमान भी पहुंचे। सभी लोगों ने इस अद्भुत पल को कैमरे में कैद किया। इस मौके पर सूबे के राज्यमंत्री रवीन्द्र जायसवाल, आयुश जायसवाल, प्रदीप सिंह सहित प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारी मौजूद रहे।

भगवान का अंश यहां के राम लक्ष्मण में जाता है

कहते है इस दिन जब सूरज डूबता है तब भगवान का अंश यहां के राम लक्ष्मण में जाता है। खासियत यह है कि यहां बनने वाले राम, लक्ष्मण, भरत शत्रुघ्न सप्ताहभर पहले से अन्न सहित अन्य भोग विलासता वाली वस्तुओं का त्याग कर देते है। गंगा स्नान, पूजा-पाठ फल आदि का ही सेवन करते है। कहते है प्रभु श्रीराम के चैदह वर्ष वनवास काटने लंका पर अपनी विजय पताका लहराने के बाद जब अयोध्या की ओर आगमन होते हैं तो इसकी सूचना मिलने पर उनके अनुज भरत उनके दर्शन को पाने के लिए एक संकल्प लेते है कि अगर गोधुली बेला तक प्रभु के दर्शन ना हुए तो वह अपने प्राण त्याग देंगे, लेकिन लीलाधारी प्रभु श्रीराम गोधुली बेला तक भरत के सामने उपस्थित हो जाते हैं। उन्हें देख भरत उनके पैरों में गिर जाते हैं जिस पर श्रीराम उन्हें गले से लगा लेते हैं। इस दृश्य को मंच पर कलाकारों ने बेहद संजीदगी के साथ निभाया। इसे देख दर्शक भाव-विभोर हो गए। इसके बाद धूमधाम से राम का राजतिलक किया गया। यह मंचन मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र मनुष्य को आदर्शों पर चलने की सीख देता है। तुलसी के रामचरित में वर्णित हर पात्र समाज के आदर्श चरित्र का चित्र प्रस्तुत करता है। राम आदर्श पुत्र हैं तो भरत आदर्श भाई। राम के वनवास के बाद राजपाठ मिलने पर भी भरत ने राम की चरण पादुका सिंहासन पर रखकर सेवक की तरह राज संभाला। हर भाई यदि भरत के गुणों को आत्मसात करे तो घर घर में होने वाली महाभारत बंद हो जाएगी।

भरतहि बिसरेहु पितु मरन, सुनत राम वन गौनु

त्याग, अपनत्व, बन्धुत्व की अनूठी पवित्रतम निर्मल भाव निहित इस भरत-मिलाप में उस भरत का राम से मिलन दर्शाया जाता है जो राम का वनवास सुनकर पिता की मृत्यु क्षण भर के लिए ही सही भूल से गए, “भरतहि बिसरेहु पितु मरन, सुनत राम वन गौनु मान्यता है कि संत सिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने इस परंपरा की शुरूवात की थी। गोस्वामी तुलसीदास के शरीर त्यागने के बाद उनके समकालीन संत मेधा भगत काफी विचलित हो उठे थे। एक बार तुलसीदास ने उन्हें सपने में दर्शन दिए। उनकी प्रेरणा से संत मेधा भगत ने नाटी इमली में रामलीला के मंचन की शुरुआत की। तभी से यह परंपरा लगातार चली रही है। यहां जैसे ही राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न एक-दूसरे को गले लगाते है मौजूद लोगों की आंखे छलछला जाती है। भगवान को अपने बीच पाकर भक्तों का रोम रोम पुलकित हो उठता है। चारों भाइयों के अलौकिक रूप की झलक पाकर पूरा माहौल जयकारे से गूंजायमान हो उठता है। खास बात यह है कि भरत मिलाप के निर्वासन के 14 साल और उसके भाई, भारत के साथ अपने पुनर्मिलन के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने की स्मृति में मनाये जाने वाले नाटी इमली में भरत मिलाप लीला के मंचन के सम्मान में काशी के सभी जगहों की रामलीलाएं बंद कर दी जाती है।

तुलसीदास ने कराई रामलीला का मंचन

कहते है नाटी इमली में करीब 479 साल से भरत मिलाप का मंचन किया जाता है। मान्यता है कि इस लीला में भगवान राम स्वयं धरती पर अवतार लेते हैं। तुलसीदास ने काशी के घाटों पर बैठकर रामचरितमानस की रचना की थी। साथ ही सबसे पहले उन्होंने ही कलाकारों को इकट्ठा कर रामलीला का मंचन शुरू कराया था। बाद में उन्हीं के प्रेरणा से संत मेधा भगत ने इसका विस्तार किया। माना जाता है जिस चबूतरे पर भरत मिलाप का मंचन होता है, वहां कभी भगवान राम ने संत मेधा भगत को साक्षात दर्शन दिए थे। इस लीला में भूतपूर्व काशी नरेश भी सम्मिलित होते हैं। भरत-मिलाप एक संक्षिप्त लीला या झांकी मात्र है। इसमें राम-जानकी एवं लक्ष्मण बनवासी वेश में एक मंच पर खड़े रहते हैं, उनके आगमन को सुनकर भरत जो राम के समान ही तपस्वी वेश में हैं तथा शत्रुघ्न आते हैं और राम के चरणों पर गिर जाते हैं। 

राम एवं लक्ष्मण उन्हें उठाते हैं तथा चारों परस्पर मिलते हैं। तत्पश्चात पांचों स्वरुपों को विमान या रथ पर बिठाकर ढोया जाता है। विमान को काशी के व्यापारी वर्ग इस विश्वास से ढोते हैं कि उनका व्यापार अच्छा चलेगा। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भरत-मिलाप के समय मेधाभगत को स्वरुपों में साक्षात भगवान के दर्शन हुए थे। आज भी क्षण भर के लिए स्वरुपों में ईश्वरत्व जाता है, ऐसा विश्वास है। इस लीला की महिमा ही है कि स्वयं काशी नरेश अपने रामनगर स्थित राजमहल से निकल कर प्रभु के दर्शन और परिक्रमा के लिए हाथी पर सवार होकर लीला में श्रद्धा व्यक्त करते हैं। चित्रकूट रामलीला की प्राचीनता ही इसकी धरोहर है।

 

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