कब थमेंगे धार्मिक आयोजनों की भगदड़?
उत्तर प्रदेश के हाथरस फुलरई मुगलगढ़ी में आयोजित सत्संग की भगदड़ में 125 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों की संख्या में लोग घायल है। चीख-पुकार के बीच हर तरफ कहीं ’कंधे पर बच्चे का शव... तो कहीं बुजुर्ग महिलाओं का। वहां के हर आंखों में आंसू...’ हालांकि घटना के बाद हरकत में आयी पुलिस प्रशासन राहत और बचाव कार्य में जुटा है. मौके पर डीजीपी से लेकर प्रमुख सचिव तक पहुंच गए है। घटना के जांच के आदेश देते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हरेक मृतक आश्रितों को दो-दो लाख व घायलों को 50-50 हजार देने का ऐलान किया है। हादसा की वजह साकार नारायण विश्व हरी भोले बाबा के प्रवचन ख़त्म करने बाद बाबा के पैर छूने और आशीर्वाद लेने की वजह से भगदड़ मची. देखा जाएं तो यह पहली घटना नहीं है। इसके पहले दर्जनों धार्मिक आयोजनों में भगदड़ जैसी घटनाएं हो चुकी है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है आखिर भगदड़ जैसी घटनाओं को रोकने के लिए सरकारें कब सबक लेंगी? दुसरा बड़ा सवाल इस तरह के भीड़ भाड़ वालें आयोजनों में उमड़ने वाले लोगों की सुरक्षा पर सजगता कब बरती जायेगी? हादसे की भयावहता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अस्पताल के बाहर लाशें गिनने व शवों को देख हार्टअटैक से एक पुलिसवाले की भी मौत हो गयी। घटनाओं की लंबी फेहरिस्त है। साल 1954 में कुंभ मेले के दौरान 800 से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई थीं। महाराष्ट्र के मंधारदेवी मंदिर में मची भगदड़ में 340 लोगों की मौत हुई थी।सुरेश गांधी
फिरहाल, इस तरह अपने
देश में धार्मिक उत्सवों
के समय भगदड़ के
कारण हुई त्रासदियों में
एक घटना और जुड़
गई। पिछले एक दशक में
यह ऐसी दर्जनों घटना
हो चुकी है, जिसमें
हजारों लोगों लोगों की जान जा
चुकी है। प्रत्येक घटनाओं
के बाद की जांच
रिर्पोटों में एक ही
बात सामने आती है कि
भीड़भरे स्थलों को संभालने के
लिए बने नियमों का
उल्लंघन हुआ है। खासकर
संत हो या बाबा
या अन्य वीआईपी जितनी
देर वे वहां रहते
है, श्रद्धालुओं को रोके रखा
जाता हैं। उनके रवाना
होने के बाद जब
लोगों की आवाजाही शुरु
होते ही अफरातफरी मच
जाती हैं अचानक मचे
भगदड़ में जब तक
लोग कुछ समझ पाते
है तक तक काफी
देर हो चुकी होती
है। अब तक के
हुए भगदड़ के कारणों
में एक ही बात
ज्यादा सामने आती है कि
उत्सव एवं बड़े-बड़े
मेलों व सत्संग वाले
स्थलों पर जुटने वाली
भीड़ के बीच लोगों
की सुरक्षा को लेकर सजगता
में घोर लापरवाही देखी
गयी है। इस हादसे
में भी प्रथम दृष्टया
कुछ ऐसा ही प्रतीत
हो रहा हैं। मतलब
साफ है इस तरह
की जगहों पर भी वीआईपी
संस्कृति का हावी होना
और लोगों में सब्र की
कमी ऐसी वजहें हैं,
जिनके कारण ऐसे हादसों
का सिलसिला अटूट बना हुआ
है। साथ ही अब
यह सुनिश्चित करना चाहिए कि
धार्मिक मौकों पर आने वाले
वीआईपी आम श्रद्धालु की
तरह आएं। भक्ति के
स्थल पर वे अपने
साथ खास व्यवहार की
अपेक्षा न करें। इसके
अतिरिक्त भीड़ संभालने के
उन देशों के अनुभव तथा
इंतजामों से सीखने की
जरूरत है, जहां ऐसे
आयोजन अनुशासित एवं सुरक्षित ढंग
से संपन्न् कर लिए जाते
हैं।
बता दें, हाथरस के फुलरई गांव में एक धार्मिक समागम में मची भगदड़ में अब तक 125 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई और तमाम घायल हो गए हैं. नारायण साकार हरि या साकार विश्व हरि उर्फ भोले बाबा के सत्संग के समापन पर यह हादसा हुआ. अभी तक मिल रही जानकारी के अनुसार, प्रवचन कार्यक्रम में मची भगदड़ में भक्तों की मौत का आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है. कहा जा रहा है आयोजकों के साथ प्रशासन की लापरवाही भी हादसे के कारणों में से एक है। परमिशन से अधिक संख्या में भक्तों का सैलाव उमड़ने के कारण यहां अव्यवस्था हुई. प्रशासन ने कोई भी पुख्ता व्यवस्था नहीं की थी. पुलिस की बड़ी लापरवाही भी सामने आ रही है. हादसे की भयावहता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अस्पताल के बाहर लाशें गिनने व शवों को देख हार्टअटैक से एक पुलिसवाले की भी मौत हो गयी। मृतकों की संख्या अभी बढ़ सकती है। मृतकों में ज्यादातर बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं शामिल हैं। प्रवचन में कई राज्यों के हजारों लोग पहुंचे थे। सत्संग खत्म हुआ तो भीषण उमस और गर्मी से बेहाल लोग वहां से जाने लगे। निकलने की जल्दी में भगदड़ मच गई। लोग एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे निकलने लगें।
हाथरस के जिलाधिकारी आशीष
कुमार पटेल ने बताया
कि हाथरस में मृतकों की
संख्या 125 से 150 तक हो सकती
हैं। एटा सीएमओ के
मुताबिक, अब तक एटा
में 50 से 60 शव पहुंच चुके
हैं. एसएसपी एटा राजेश कुमार
ने बताया कि शवों में
23 महिलाएं, तीन बच्चे और
एक पुरुष शामिल है. अभी तक
कुल 87 लोगों की मौत हो
गई है और करीब
150 लोग घायल हैं. घायलों
को बस-टैंपों में
लादकर जिला अस्पताल ले
जाया गया. सिंकदाराऊ से
5 किमी दूर एटा रोड
पर सत्संग का यह टैंट
लगा है. खुले खेत
में करीब 100 बीघे में सत्संग
का आयोजन किया गया था.
भगदड़ के बाद यहां
मौत का मातम पसरा
हुआ है. टाट-पट्टी
बिखरी पड़ी है. चारों
तरफ सन्नाटा है. कुछ देर
पहले वहां क्या हुआ
होगा, उसकी गवाही चारों
तरफ बिखरा लोगों का सामान दे
रहा है. आखिर भगदड़
कैसे हुई. टैंट को देखने पर
एंट्री और एग्जिट गेट
पर शक होता है.
अंदर जाने और निकलने
के लिए बहुत छोटा
रास्ता बनाया गया था. बताया
जा रहा है भगदड़
की वजह गर्मी, उमस
और घुटन है. बंद
टेंट में लोगों ने
बाहर आना शुरू किया
और फिर भगदड़ मच
गई. 10 सालों से चल रहा
था सत्संग, हजारों लोग जुटे थें।
25 जनवरी 2005 : महाराष्ट्र के सतारा जिले
के नजदीक मंधारदेवी मंदिर में भगदड़ मच
गई थी, जिसमें 340 से
ज्यादा तीर्थयात्रियों की मौत हो
गई थी। यह हादसा
उस समय हुआ जब
श्रद्धालु नारियल तोड़ने के लिए सीढ़ियों
पर चढ़े थे। फिसलन
की वजह से कुछ
लोग सीढ़ियों से गिर गए।
30 सितंबर 2008 : राजस्थान के जोधपुर शहर
में चामुंडा देवी मंदिर में
बम विस्फोट की अफवाह फैल
गई थी। अफवाह फैलने
से लोगों में अफरा तफरी
मच गई। भगदड़ की
वजह से 250 भक्तों की मौत हो
गई। वहीं, 60 से अधिक लोग
घायल हो गए।
3 अगस्त 2008 : हार साल सावन
महीने में हिमाचल प्रदेश
के नैना देवी मंदिर
में देवी माता का
दर्शन करने के लिए
हजारों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। साल
2008 में भी लोग बड़ी
तादाद में देवी की
दर्शन के लिए एकत्रित
हुए थे। इसी दौरान
3 अगस्त को बारिश की
वजह से मंदिर में
लैंडस्लाइड हुई और लोगों
के बीच भगदड़ मच
गई। इस अफरातफरी में
146 लोगों को अपनी जान
गंवानी पड़ी।
3 सितंबर 2008 : नैना देवी मंदिर
हादसे से देशवासी उबर
ही रहे थे कि
अगले महीने ही राजस्थान के
चामुंडा देवी मंदिर में
224 लोगों की मौत हो
गई। दरअसल, शारदीय नवरात्र के दौरान भक्तों
की जबरदस्त भीड़ उमड़ी थी।
नवरात्रि में देवी की
एक झलक पाने के
लिए भक्तों के बीच धक्का-मुक्की हुई। इसके बाद
भगदड़ मच गई। कुछ
लोगों ने इसी बीच
विस्फोट की अफवाह भी
फैला दी थी।
4 मार्च 2010 : उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले
में कृपालु महाराज के राम जानकी
मंदिर में भगदड़ मच
गई थी। इस भगदड़
में 63 लोगों की मृत्यु हो
गई थी। जानकारी के
मुताबिक, लोग मुफ्त कपड़े
और भोजन लेने के
लिए जमा हुए थे।
मरने वालों में ज्यादातर महिलाएं
शामिल थी।
1 जनवरी 2022 : नववर्ष के दिन जम्मू
कश्मीर के कटरा में
मौजूद वैष्णो देवी मंदिर में
भक्तों की भारी भीड़
के कारण मची भगदड़
में कम से कम
12 लोगों की मौत हो
गई और 12 से अधिक अन्य
घायल हो गए। भीड़
में आपसी धक्का-मुक्की
के बाद भगदड़ मच
गई थी।
21 अप्रैल 2019 : तमिलनाडु स्थित करुप्पासामी मंदिर में मची भगदड़
में करीब सात लोगों
की मौत हो गई
थी। वहीं, दस लोग घायल
हुए थे। हादसे पर
शोक जताते हुए पीएम मोदी
ने मृतकों के परिवारों को
दो-दो लाख रुपये
और घटना में घायल
हुए लोगों को 50-50 हजार रुपये की
अनुग्रह राशि देने की
भी घोषणा की थी। यह
हादसा चित्रा पूर्णिमा की रात मंदिर
में पूजा-अर्चना के
लिए जमा हुए श्रद्धालुओं
के बीच भगदड़ होने
के बाद हुई थी।
14 जनवरी 2011 : मकर संक्रांति के
त्यौहार पर लाखों की
तादाद में श्रद्धालु केरल
के इडुक्की जिले के पुलमेडू
स्थित सबरीमाला मंदिर में इकठ्ठा होते
हैं। मकर संक्रांति को
भी लोग यहां बड़ी
तादाद में इकट्ठा हुए
थे। जानकारी के मुताबिक,
श्रद्धालुओं से भरी एक
जीप भीड़ में घुसते
हुए पलट गई, जिससे
कई लोगों की घटनास्थल पर
ही मौत हो गई।
इसके बाद लोगों के
बीच भगदड़ मच गई।
इस घटना में 109 लोगों
की मौत हो गई
थी।
साल
2013 में
मध्य
प्रदेश
के
दतिया
में रतनगढ़ माता मंदिर में
भी भगदड़ मच गई
थी। शारदीय नवरात्रि के दौरान मंदिर
तक जाने वाले पुल
पर भगदड़ मच गई,
जिसमें 115 लोगों की मौत हो
गई। मारे जाने वालों
में बड़ी तादाद में
महिलाएं और बच्चे शामिल
थे।
10 फरवरी 2013 : प्रयागराज
में कुंभ मेले के
दौरान जबदस्त भगदड़ मच गई
थी। इस दिन मौनी
अमावस्या का स्नान था।
स्नान-दान करने के
बाद श्रद्धालु अपने घर जाने
के लिए रेलवे स्टेशनों
व बस अड्डों पर
पहुंच रहे थे। भारी
भीड़ की वजह से
प्रयागराज जंक्शन ( इलाहाबाद) पर लोग मौजूद
थे। शाम सात बजे
अचानक प्लेटफार्म छह की ओर
जाने वाली फुट ओवरब्रिज
की सीढियों पर भगदड़ मच
गई। इस घटना में
35 लोगों की मौत हो
गई। जबकि दर्जनों लोग
घायल हो गए थे।
7 मार्च 2023 : पिछले साल मार्च महीने
में मध्य प्रदेश के
इंदौर स्थित बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर (प्दकवतम ज्मउचसम ।बबपकमदज) का स्लैब टूट
गया। स्लैब टूटने से मंदिर में
मौजूद श्रद्धालुओं में भगदड़ मच
गई और 36 लोगों की मौत हो
गई। जानकारी के मुताबिक, हादसे
के वक्त बावड़ी पर
डाले गए स्लैब के
ऊपर 50 से 60 श्रद्धालु मौजूद थे।
कौन है नारायण साकार हरि
नारायण साकार हरि या साकार विश्व हरि उर्फ भोले बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के एटा जिले में हुआ था. पटियाली तहसील में गांव बहादुर में जन्मे भोले बाबा खुदको गुप्तचर यानी इंटेलीजेंस ब्यूरो (आईबी) का पूर्व कर्मचारी बताते हैं. दावा है कि 26 साल पहले बाबा सरकारी नौकरी छोड़ धार्मिक प्रवचन करने लगे. भोले बाबा के पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली समेत देशभर में लाखों अनुयायी हैं. खास बात यह है कि इंटरनेट के जमाने में अन्य साधु सतों और कथावाचकों से इतर सोशल मीडिया से दूर हैं. बाबा का कोई आधिकारिक अकाउंट किसी भी प्लेटफॉर्म पर नहीं है. कथित भक्तों का दावा है कि नारायण साकार हरि यानी भोले बाबा के जमीनी स्तर पर खासे अनुयायी हैं. पश्चिमी यूपी के अलीगढ़, हाथरस जिलों में भी नारायण साकार हरि का कार्यक्रम हर मंगलवार को आयोजित किया जाता है. इसमें हजारों की तादाद में भीड़ उमड़ती है. इस दौरान भोले बाबा से जुड़े हजारों स्वयंसेवक और स्वयंसेविकाएं खाने पीने से लेकर भक्तों के लिए जरूरी इंतजाम करते हैं. कोरोनकाल के दौरान प्रतिबंध के बावजूद भी भोले बाबा हजारों की भीड़ इकट्ठा करके चर्चा में आए थे.
सूत्रों के मुताबिक हाथरस में आरोपी बाबा जो सत्संग कर रहा था उसके ऊपर कई सारे आपराधिक मुक़दमे दर्ज बताए जा रहे हैं। स्वयंभू संत भोले बाबा उर्फ नारायण साकार हरि बाबा खुद को लेकर कई दावे करते हैं। दावे के मुताबिक 18 साल की नौकरी के बाद वीआरएस ले लिया था। वीआरएस के बाद उन्हें भगवान से साक्षात्कार हुआ। इसके बाद उनका झुकाव आध्यात्म की ओर हुआ। नारायण साकार हरि अन्य धार्मिक बाबाओं की तरफ गेरुआ वस्त्र या कोई अलग पोशाक में नजर नहीं आते हैं। नारायण हरि अक्सर सफेद सूट, टाई और जूते पहने रहते हैं तो कई बार कुर्ता-पायजामा भी पहने दिखाई देते हैं। साकार हरि खुद बताते हैं कि नौकरी के दिनों में उनका मन बार-बार आध्यात्म की तरफ भागता था, इसीलिए उन्होंने निस्वार्थ भाव से सेवा कार्य शुरू कर दिया। साकार हरि ने बताया कि 1990 के दशक में उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। उनके समागम या सत्संग में जो भी दान, दक्षिणा, चढावा आता है, वे अपने पास नहीं रखते, भक्तों के लिए खर्च कर देते हैं।
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