Saturday, 2 November 2024

“प्रकृति“ के सम्मान का उत्सव है “छठ“

प्रकृतिके सम्मान का उत्सव हैछठ“ 

छठ पर्व नहीं महापर्व है. बिहार से शुरू होने वाला यह महापर्व आज विश्व स्तर पर मनाया जाने लगा है. बिहार के लोगों के लिए छठ पर्व नहीं इमोशन है. हर किसी की ये कोशिश रहती है कि छठ में कैसे भी करके अपने घर जाएं और परिवार के साथ इस महापर्व को मनाएं. प्रकृति की प्रतिष्ठा को स्थापित करने वाला छठ एक ऐसा पर्व है, जिसका नाम सुनते ही शरीर के अंग-अंग से आध्यात्म की सरिता फूट पड़ती है। महिमा इतनी अपरंपार है कि इस आध्यात्म की धारा निराकार या अलौकिक होकर लौकिक हो जाती है। खासतौर से उस दौर में जब दुनियाभर में प्रकृति-पर्यावरण को लेकर वैज्ञानिक समेत पूरा कायनात चिंतित है। यही वजह है कि छठ पूजा प्रकृति को समर्पित पर्व है, जिसमें सूर्यदेव और छठी मैया की पूजा होती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है जिसका आरंभ चतुर्थी तिथि से हो जाता है और समापन सप्तमी तिथि पर होता है। छठ पर्व पर व्रती कमर तक जल में प्रवेश कर सूर्यदेव को अर्घ्य देते है। खास यह है कि छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है इसका वैज्ञानिक और औषधीय महत्व भी है। व्रत करने वाले शारीरिक और मानसिक रूप से इसके लिए तैयार होते हैं। छठ पूजा के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली चीजें शरद ऋतु को अनुसार ही होती हैं। कार्तिक महीने में प्रजनन शक्ति बढ़ती है और गर्भवती महिलाओं के लिए विटामिन-डी बहुत जरूरी होता है। इसलिए सूर्य पूजा की परंपरा बनाई गई है।

सुरेश गांधी

दिवाली के बाद छठ पूजा का लोगों को बेसब्री से इंतजार होता है. इसके मद्देनजर दीपावली धूमधाम से मनाने के बाद लोगबाग अब लोक आस्था का महापर्व छठ की तैयारी में जुट गए है। यह पर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश सहित देश के कई अन्य राज्यों के साथ ही विदेशों में रहने वाले सनातनी इसे धूमधाम से मनाते हैं. आस्था का प्रतीक छठ को महापर्व कहा जाता है. छठ पूजा में छठी मैया और सूर्य देवता की पूजा श्रद्धा भाव से की जाती है. इस बार भी चार दिवसीय सूर्य उपासना पर्व छठ की शुरूआत मंगलवार 05 नवंबर से हो रही है. मंगलवार को नहाय खाय के साथ इस महापर्व की शुरुआत हो जाएगी. बुधवार 06 नवम्बर को खरना होगा और गुरुवार 07 नवम्बर को अस्ताचलगामी सूर्य की आराधना के लिए व्रती महिलाएं घाटों पर पहुंच कर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देंगी. शुक्रवार 08 नवम्बर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही इस महाव्रत का महिलाएं पारण करेंगी.

वैज्ञानिक और औषधीय महत्व सूर्य को जल देने की बात करें तो इसके पीछे रंगों का विज्ञान छुपा है। इंसान के शरीर में रंगों का संतुलन बिगड़ने से भी कई बीमारियों के शिकार होने का खतरा होता है। प्रिज्म के सिद्धांत के मुताबिक सुबह सूर्यदेव को जल चढ़ाते समय शरीर पर पड़ने वाले प्रकाश से ये रंग संतुलित हो जाते हैं। जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है। त्वचा के रोग कम होते हैं। सूर्य की रोशनी से मिलने वाला विटामिन डी शरीर में पूरा होता है। वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलीय बदलाव होता है। तब सूर्य की परा बैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके दुष्प्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है। 

सामूहिकता में मनाया जाने वाला लोकपर्व छठ संदेश देता है कि हम अपने आसपास हर दिन सफाई करें। पर्यावरण को बचाएं और प्रकृति पर मंडरा रहे खतरे को दूर भगाएं। सूर्य जागृत ईश्वर है। या यूं कहे इस पर्व का प्रकृति के साथ सबसे करीबी रिश्ता माना जाता है। सूर्य की पूजा से सिर्फ मन शरीर शुद्ध होता है बल्कि प्रकृति के करीब पहुंचने का अवसर मिलता है। इसमें व्रतियों की श्रद्धा की महापरीक्षा भी होती हैं। कहते है साफ-सफाई के मामले में व्रतियों की एक भूल पूण्य की जगह पाप भोगने को विवश कर देती है। यही वजह है कि यह पर्व सामूहिक रूप से लोगों को स्वच्छता की ओर उन्मुख करता है। अर्थात प्रकृति को सम्मान संरक्षण देने का संदेश भी यह पर्व देता है। 

आज जबकि पूरी दुनिया में पर्यावरण को लेकर चिंता जतायी जा रही है, तब छठ का महत्व और जाहिर होता है। इस पर्व के दौरान साफ-सफाई के प्रति जो संवेदनशीलता दिखायी जाती है, वह लगतार बनी रहे तो पर्यावरण का भी भला होगा। छठ पूजा की प्रक्रिया के बारे में वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे सेहत को फायदा होता है। सूर्य को अर्घ देने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला हल्दी, अदरक, मूली और गाजर जैसे फल-फूल स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं। सूर्य की सचेष्ट किरणों का प्रभाव मनुष्य ही नहीं पेड़-पौधों पर पड़ता है। पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ देने से शरीर को प्राकृतिक तौर में कई चीजें मिल जाती हैं। पानी में खड़े होकर अर्घ देने से टॉक्सिफिकेशन होता है जो शरीर के लिए फायदेमंद होता है। यह वैज्ञानिक तथ्य है कि सूर्य की किरणों में कई ऐसे तत्व होते हैं जो प्रकृति के साथ सभी जीवों के लिए लाभदायक होते हैं। ऐसा माना जाता है कि सूर्य को अर्घ देने के क्रम में सूर्य की किरणें परावर्तित होकर आंखों पर पड़ती हैं। इससे स्नायुतंत्र सक्रिय हो जाता है और व्यक्ति खुद को ऊर्जान्वित महसूस करता है।

देखा जाएं तो सूर्य प्रत्यक्ष देवता है। इनके बिना मानव तो दूर जीव-जंतु और पेड़-पौधों की उत्पत्ति ही संभव नहीं है। उनके प्रकाश से जीवन की उत्पत्ति को भी देखा जा सकता है। बिना सूर्य की किरणों के संसार में किसी जीव जंतु और पेड़ पौधों की उत्पत्ति ही नहीं हो सकती है। फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया के जरिए ही अनाज फल और फूलों की पैदावार होती है। सूर्य की किरणों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा के बिना इकोसिस्टम की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। सूर्य देवता को पानी में खड़े होकर अर्घ्य देने से शरीर की तंत्रिकाएं सक्रिय हो जाती है। दिमाग की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टिकोण से भी छठ खास महत्व रखता है। छठ में उपयोग की जाने वाली सारी सामग्री प्राकृतिक होती है। इसमें उन्ही सामग्रियों को भगवान के समक्ष चढ़ाया जाता है जिनकी उत्पत्ति ही भगवान सूर्य की बदौलत हुई है। छठ लोगों की एकता की ताकत को दर्शाते हुए यह सीख भी देता है कि अगर लोग पर्यावरण संरक्षण के प्रति एकजुट हो जाएं तो स्वच्छता के जरिए विभिन्न बीमारियों से निजात पाया जा सकता है। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदा से भी बचा जा सकता है।

छठ प्रकृति की विस्तृत एवं आयाम को रूपकर देती है। व्रत करने वाले इस दिन परायण करते हैं। छठ को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है। इसके महत्व का इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती। इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। इस त्योहार को जितने मन से महिलाएं रखती हैं पुरुष भी पूरे जोशो-खरोश से इस त्योहार को मनाते हैं और व्रत रखते हैं। कहा जा सकता है छठ पर्व हमारी रीति-रिवाज ही नहीं हमारी सांस्कृतिक विविधता का बेजोड़ उदाहरण है। इस दिन कितनी ही व्यस्तता हो लोग छठ के मौके पर अपने घर जरूर पहुंचते है। खास बात यह है कि लोगों को अपनत्व के बंधन में भी यह पर्व बांधता है। बेटियां इस मौके पर अपने मायके आती है। इसी बहाने दामाद भी आते है। घर में आनंद, उत्साह प्रेम का एक अलग माहौल दिखता है। लोगों की बढ़ती आस्था का ही उदाहरण है कि अब विदेशों में रहने वाले भारतवंशी भी छठ व्रत करने लगे हैं।

छठ के प्रसाद में होता है कैल्शियम

चतुर्थी को लौकी और भात का सेवन करना शरीर को व्रत के अनुकूल तैयार करने की प्रक्रिया का हिस्सा है। पंचमी को निर्जला व्रत के बाद गन्ने के रस गुड़ से बनी खीर पर्याप्त ग्लूकोज की मात्रा सृजित करती है। छठ में बनाए जाने वाले अधिकतर प्रसाद में कैल्शियम की भारी मात्रा मौजूद होती है। भूखे रहने के दौरान अथवा उपवास की स्थिति में मानव शरीर नैचुरल कैल्शियम का ज्यादा उपभोग करता है। प्रकृति में सबसे ज्यादा विटामिन-डी सूर्योदय और सूर्यास्त के समय होता है। अर्घ्य का समय भी यही है। अदरक गुड़ खाकर पर्व समाप्त किया जाता है। हालांकि उपवास के बाद भारी भोजन हानिकारक है।

36 घंटे का है कठिन व्रत

छठ पूजा चार दिनों तक चलता है, जिसमें शुरुआत होती है नहाय-खाय और खरना से. फिर डूबते और उगते सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाता है. इसमें व्रती नदी में कमर तक जल में प्रवेश कर सूर्यदेवता को अर्घ्य देकर उनकी पूजा करते हैं. इसमें 36 घंटों तक निर्जला व्रत रखा जाता है, जो बेहद ही कठिन माना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठी मइया की पूजा करने से व्रती को आरोग्यता, सुख-समृद्धि, संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त होता है. ज्योतिर्विदों के अनुसार, छठ का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तारीख से लेकर सप्तमी तिथि तक मनाया जाता है. सात नवंबर को रात बारह बजकर 41 मिनट पर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत होगी

आठ नवंबर को रात 12 बजकर 34 मिनट पर समापन होगा. इस तरह से शाम के समय का अर्घ्य 7 नवंबर को और सुबह का अर्घ्य 8 नवंबर को दिया जाएगा. नहाय खाय कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी 5 नवंबर को है, जबकि खरना कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि यानी 6 नवंबर को खरना पड़ रहा है. दिन भर निर्जला व्रत करने के बाद शाम में व्रती छठी मैया की पूजा करते हैं. प्रसाद ग्रहण करते हैं. इसी के बाद से लगभग 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है. नहाय खाय यानी पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात, कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती है। जिसे बिना लहसुन और प्याज के खाने को पकाया जाता है. इस दिनघीया और चने की दाल से भोजन बनाया जाता है. दूसरे दिन शाम के समय गुड़ की खीर को पकाया जाता है। उसे रोटी पर रखकर भगवान को भागे लगाने के बाद सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. तीसरा दिन संध्या अर्घ्य का होता है. इस दिन संध्या अर्घ्य है. छठ पूजा का ये दिन बेहद अहम होता है. इस दिन व्रती महिलाएं सूर्यास्त के समय किसी भी जगह पानी के किनारे डूबते सूर्य को अर्घ्य देती है. चौथे और अंतिम दिन को उषा अर्घ्य कहा जाता है. इस दिन व्रती महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देती है. जिसके बाद ही महिलाएं व्रत का पारण करती है. जिसके बाद सभी को छठ का विशेष प्रसाद जिसे ठेकुआ भी कहा जाता है, लोगों को बांटा जाता है.

छठ पर्व और छठ मैया

छठ पर्व मुख्य रूप कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाते हैं लेकिन इसके अलावा चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि का छठ पर्व जिसे चैती छठ कहते हैं यह भी काफी प्रचलित है। इस तरह दो छठ व्रत विशेष रूप से महत्व है। दोनों ही छठ पर्व भगवान सूर्य को और षष्ठी माता को समर्पित है। इसलिए छठ पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और छठ मैया की पूजा कथा की जाती है।

छठ पूजा की मान्यता

छठ मैया के बारे में कथा है कि यह ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन हैं। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में शास्त्रों में बताया गया है जबकि सूर्यदेव अन्न और संपन्नता के देवता है। इसलिए जब रवि और खरीफ की फसल कटकर जाती है तो छठ का पर्व सूर्य देव का आभार प्रकट करने के लिए चैत्र और कार्तिक के महीने में किया जाता है।

छठ पूजा की महिमा

छठ पूजा को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस दौरान श्रद्धालुओं को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और रोगमुक्त जीवन के लिए किया जाता है। इस त्योहार के दौरान सूर्य की आराधना से हमें ऊर्जा और शक्ति मिलती है, जो जीवन में सकारात्मकता का संचार करती है।

छठ पूजा का प्रसाद

छठ पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फलों और नारियल का प्रयोग किया जाता है। ये सभी प्रसाद शुद्ध सामग्री से बनाए जाते हैं और सूर्य देवता को अर्पित किए जाते हैं।

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