Friday, 20 June 2025

“योग : सेहत का सांस्कृतिक सूत्र, जो बन गया है जीवनशैली“

योग : सेहत का सांस्कृतिक सूत्र, जो बन गया है जीवनशैली“ 

आसन की स्थिरता से मन की चंचलता तक, योग अब केवल साधना नहीं, एक सशक्त जीवन शैली है. आज जब पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मना रही है, तो यह केवल भारत की सांस्कृतिक विरासत का उत्सव नहीं, बल्कि उस सार्वकालिक दर्शन का उत्सव है, जो मनुष्य को अपने भीतर झांकने की प्रेरणा देता है। योग का उद्देश्य केवल शरीर को लचीला बनाना या कुछ क्रियाओं का अभ्यास करना नहीं है, बल्कि जीवन की गति को संतुलन देने और चित्त की वृत्तियों को शान्त करने का माध्यम बनना है. 21वीं सदी की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में अगर कोई साधन सबसे सरल, सहज और सर्वसुलभ होकर भी सर्वश्रेष्ठ साबित हुआ है, तो वह है : योग। कभी तपस्वियों की गुफाओं से उठकर अब यह भारत के गांव-शहरों, स्कूल-कॉलेजों, दफ़्तरों और यहां तक कि विदेशों तक फैल चुका है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के पहले जो आंकड़े सामने आए हैं, वे यह साबित करते हैं कि योग अब सिर्फ प्रचार का विषय नहीं रहा, बल्कि वह व्यवहार का हिस्सा बन चुका है। हाल ही में हुए एक योग सर्वेक्षण में 55.8 फीसदी लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे नियमित योग करते हैं। यह इस बात का संकेत है कि भारतवासी अब पश्चिमी जीवनशैली के दिखावे से ऊपर उठकर अपनी प्राचीन परंपराओं पर भरोसा करने लगे हैं। और यह भरोसा केवल परंपरा या आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि अनुभव और परिणामों पर आधारित है। यही कारण है कि 74.7 फीसदी प्रतिभागियों ने योग को गंभीर बीमारियों के इलाज में मददगार माना। यह बदलाव किसी एक सरकार, संस्था या अभियान का परिणाम नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की भीतरी चेतना का जागरण है। योग ने भारतीय मानस को एक बार फिर उसकी जड़ों से जोड़ा है। जिस प्रकार आयुर्वेद को वैश्विक मान्यता मिल रही है, उसी प्रकार योग अब केवल व्यायाम नहीं, बल्कि समग्र जीवन दर्शन के रूप में पहचाना जा रहा है

सुरेश गांधी 

योगशब्द सुनते ही मानसपटल पर साधु-संन्यासियों की छवि उभर आती है, जो हिमालय की कंदराओं में तपस्या करते हैं। लेकिन 21वीं सदी में योग की परिभाषा का विस्तार हुआ है। अब यह केवल एक आध्यात्मिक अभ्यास नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक, सार्वभौमिक और आधुनिक जीवन-शैली बन चुका है। इसने आज के तनावग्रस्त, असंतुलित और भाग-दौड़ से भरे जीवन को नई दिशा दी है। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा वर्ष 2014 में जब भारत के प्रस्ताव पर 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया, तब से लेकर अब तक योग की स्वीकार्यता और प्रभाव विश्व के कोने-कोने तक पहुंचा है। अमेरिका से लेकर ऑस्ट्रेलिया, जापान से लेकर जर्मनी तक, हर महाद्वीप में योग शिविरों, योग संस्थानों और जागरूकता अभियानों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा योग कोवन अर्थ, वन हेल्थके रूप में वैश्विक मंच पर प्रस्तुत करना इस बात का प्रमाण है कि भारत अब सिर्फ संस्कृति का निर्यातक नहीं, बल्कि स्वस्थ भविष्य की विचारधारा भी प्रस्तुत कर रहा है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम योग को केवल एक-दिवसीय औपचारिकता बनने दें। विद्यालयों, कार्यस्थलों, घरों और सार्वजनिक जीवन में इसे दैनिकचर्या का हिस्सा बनाएं। यदि हम योग को केवल शरीर की कसरत से ऊपर उठाकर आत्मा की शुद्धि का माध्यम बना सकें, तभी इसका वास्तविक उद्देश्य पूर्ण होगा।

योग केवल व्यायाम नहीं, आत्मानुशासन है। यह केवल सांसों का नहीं, विचारों का भी शोधन करता है। यही कारण है कि यह भारत की धरती से निकलकर वैश्विक चेतना का अंग बन गया है। 21वीं सदी की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में अगर कोई साधन सबसे सरल, सहज और सर्वसुलभ होकर भी सर्वश्रेष्ठ साबित हुआ है, तो वह है : योग। कभी तपस्वियों की गुफाओं से उठकर अब यह भारत के गांव-शहरों, स्कूल-कॉलेजों, दफ़्तरों और यहां तक कि विदेशों तक फैल चुका है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के पहले जो आंकड़े सामने आए हैं, वे यह साबित करते हैं कि योग अब सिर्फ प्रचार का विषय नहीं रहा, बल्कि वह व्यवहार का हिस्सा बन चुका है। हाल ही में हुए एक योग सर्वेक्षण में 55.8 फीसदी लोगों ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे नियमित योग करते हैं। यह इस बात का संकेत है कि भारतवासी अब पश्चिमी जीवनशैली के दिखावे से ऊपर उठकर अपनी प्राचीन परंपराओं पर भरोसा करने लगे हैं। और यह भरोसा केवल परंपरा या आस्था के आधार पर नहीं, बल्कि अनुभव और परिणामों पर आधारित है। यही कारण है कि 74.7 फीसदी प्रतिभागियों ने योग को गंभीर बीमारियों के इलाज में मददगार माना। यह बदलाव किसी एक सरकार, संस्था या अभियान का परिणाम नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज की भीतरी चेतना का जागरण है। योग ने भारतीय मानस को एक बार फिर उसकी जड़ों से जोड़ा है। जिस प्रकार आयुर्वेद को वैश्विक मान्यता मिल रही है, उसी प्रकार योग अब केवल व्यायाम नहीं, बल्कि समग्र जीवन दर्शन के रूप में पहचाना जा रहा है।

योग केवल स्वास्थ्य का रक्षक है, बल्कि यह मानसिक तनाव, आत्मघात की प्रवृत्ति, रिश्तों में टूटन और सामाजिक अलगाव जैसी समस्याओं से भी निजात दिलाता है। स्कूलों में योग शिक्षा का शामिल होना, प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने वालों द्वारा योग को अपनाना, और बुज़ुर्गों के लिए योग सत्रों का आयोजन, ये सभी घटनाएं इस बात की पुष्टि हैं कि योग अब देश के ताने-बाने में रच-बस गया है। लेकिन इसके साथ कुछ सावधानियां भी आवश्यक हैं। योग का बाज़ारीकरण और तथाकथितयोग गुरुओंद्वारा इसे केवल धन कमाने का ज़रिया बनाना योग की आत्मा के विपरीत है। योग को केवल प्रदर्शन का विषय नहीं बनाना चाहिए, बल्कि इसे निजी अनुशासन और साधना का विषय बनाना होगा। सरकार, मीडिया और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि योग को हर तबके तक, हर गांव तक, और हर पीढ़ी तक पहुंचाया जाए। क्योंकि योग सिर्फ काया का उपचार नहीं करता, वह मन और आत्मा का संतुलन भी रचता है। इस योग दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि योग सिर्फ 21 जून तक सीमित रहे, बल्कि हर दिन हमारे जीवन में सांस लेता रहे।

योग भगाए रोगः तन चंगा, मन गंगा

अंतरराष्ट्रीय योग दिवस सिर्फ एक दिन का आयोजन नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुका है, स्वास्थ्य, संतुलन और सकारात्मकता की ओर। इस बार 11वां योग दिवसयोग के साथ जीवन शैलीको समर्पित रहा, जिसमें बनारस सहित पूरे भारत में करोड़ों नागरिक भाग ले रहे है।योग सिर्फ व्यायाम नहीं, आत्मा और ब्रह्मांड के बीच मेल का माध्यम है,“ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा में कही गई यह बात अब घर-घर में गूंज रही है। योग आज सिर्फ आसनों तक सीमित नहीं, बल्कि एक सकारात्मक सोच, अनुशासित जीवन और शुद्ध मन की साधना बन गया है। मुंबई की योग शिक्षिका सीता चौरसिया कहती हैं, “मैंने योग को जीवन का हिस्सा बनाया है। हर सुबह 30 मिनट का अभ्यास अब मेरी दिनचर्या है। इससे केवल शरीर बल्कि मन भी स्थिर रहता है।“ “आयुर्वेद और योग मिलकर आज की बीमारियों का स्वाभाविक समाधान दे रहे हैं। नींद, तनाव, मोटापा और मधुमेह जैसी समस्याओं में योग की भूमिका अब वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हो चुकी है।राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन ने भी जन-जागरूकता को प्राथमिकता दी।एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्यकी थीम के साथ गांव-गांव योग शिविर लगाए गए। स्वास्थ्य विभाग ने मोबाइल हेल्थ यूनिट्स के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में भी योग प्रशिक्षण उपलब्ध कराया। योग के प्रति बढ़ती जागरूकता यह दर्शा रही है कि लोग अब दवाओं से पहले दिनचर्या को सुधारने और स्वयं को समझने की ओर बढ़ रहे हैं।

ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया मानव को अमूल्य वरदान है योग

मानसिक, शारीरिक और व्यक्तित्व विकास में योग की भूमिका अहम है। योग लचीलापन, शक्ति, संतुलन और सद्भाव की कुंजी है। शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का पथ प्रदर्शक है योग। मतलब साफ है आज की भागदौड़ और तनावपूर्ण जीवनशैली में योग काफी कारगर साबित हो रहा है। यह सिर्फ किशोरावस्था, बल्कि हर उम्र के हर पड़ाव पर मददगार साबित हो रहा है। बच्चे हो या बुजुर्ग, महिलाएं हो या पुरुष सभी के मानसिक और शारीरिक विकास में योग की भूमिका काफी अहम होती जा रही है। इसमें मार्जरी आसन, तितली आसन, सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, बालासन, सेतुबंधासन, वृक्षासन, पादहस्तासन, मत्स्यासन, चक्रासन, योग निद्रा, कपालभाति, मंडूकासन काफी अहम है. योग भारतीय सभ्यता संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है। योग ने पूरी दुनिया को स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित किया है। इसे जनमानस तक पहुंचाने में हमारे कई ऋषि-मुनियों ने आम भूमिका निभाई है। योग को हम किसी एक दायरे तक सीमित नहीं रख सकते। योग वह विद्या है, जिसका हर क्षेत्र में और हर आयु वर्ग में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा दिया गया मानव को अमूल्य उपहार है। योग हर आयु वर्ग के लिए लाभदायक है। योग के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है, तो परिणाम भी सामने है। कोरोना जैसी महामारी से निपटने में योग ने अहम रोल निभाया है। 

देखा जाएं तो योग कई तरह की बीमारियों से निजात दिलाता है। योग को बच्चे, महिला, पुरुष सभी दिनचर्या में शामिल करें और निरोग रहे। योग हर किसी के लिए लाभदायक है। यही वजह है कि भारत के साथ आज पूरी दुनिया योग की ताकत को मानती है। योग एक प्रवृत्ति है जो वर्षों से फल-फूल रही है, इतना ही नहीं यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बनाए रखने में एक पथ प्रदर्शक बन गया है। योग की प्रत्येक गतिविधि, लचीलेपन, शक्ति, संतुलन में सुधार और सद्भाव प्राप्त करने की कुंजी है। योग को अपनाने और प्रतिदिन योगाभ्यास करने और आनंद देने में मदद करने के लिए योग पोर्टल एक मंच बन गया है। योग संसाधनों, सामान्य योग (प्रोटोकॉल) प्रशिक्षण वीडियों और नवीनतम योग कार्यक्रमों में भाग लेने और उनकी खोज करने के लिए एक आदर्श प्रवेश द्वार है। सदियों पहले भारत में योग की शुरुआत हो चुकी थी, जो कि एक शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रैक्टिस है. योग दिवस का महत्व यही है कि लोगों में योगाभ्यास के प्रति जागरुकता फैलाई जा सके. क्योंकि, आजकल शारीरिक गतिविधि में कमी के कारण हमारा स्वास्थ्य काफी खराब हो गया है और योग, प्राणायाम और योगासनों का अभ्यास करके हम फिर से पूर्ण रूप से स्वस्थ बन सकते हैं. जो कि इस समय मानवता के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. वहीं, योग का मूल सार सिर्फ शरीर को स्वस्थ रखना या फिर दिमाग शरीर के बीच संतुलन बनाना नहीं है, बल्कि दुनिया में मानवीय रिश्तों के बीच संतुलन बनाना भी है. इसलिए ही मानवता के लिए योग का सहारा लिया जाना चाहिए.

स्वयं को जानने की कला हैयोग

आप शांति नहीं खरीद सकते, लकिन योग के व्यावहारिक पद्धति को अपनाकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में शांति का अनुभव एवं आत्म साक्षात्कार के अंतिम लक्ष्य को जरुर हासिल किया जा सकता है। मतलब साफ है योग मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, व्यावहारिक और सामाजिक उपलब्धियों को आध्यात्मिक उन्नति देता है। योग की मदद से कोरोना जैसी महामारी से भी जल्द से जल्द निजात पायी जा सकती है। कहा जा सकता है योग मानसिक के साथ-साथ शारीरिक रूप से भी लोगों को स्वस्थ बनाता है। या यूं कहे योग शरीर और दिमाग दोनों के लिए फायदेमंद है। योग केवल व्यक्ति को लचीला और फिट रखता है, बल्कि तनाव मुक्त करने और सकारात्मक रहने में भी मदद करता है। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर विभिन्न रोगों को भी दूर करता है। खासकर आज के दौर में योग से स्वास्थ्य लाभ तो हो ही रहा है, यह प्रोफेशन या पेशे के तौर पर भी बेहतर विकल्प के रूप में सामने रहा है। देश में जहां हजारों योग प्रशिक्षक अपनी प्रतिभा से रोजगार पा रहे हैं वहीं विदेशों में भी प्रशिक्षण देकर वह लाखों की कमाई कर रहे हैं। योग केवल व्यायाम मात्र नहीं, बल्कि स्वयं को जानने और प्रकृति को पहचानने की भी कला है। इन दोनों को यदि समझ लिया जाय तो संसार से नकारात्मक को निकाल सकारात्मकता का संचार किया जा सकता है। भारत योग की जन्मभूमि है। आज इसका डंका पूरे विश्व में बज रहा है। दुनिया के हर देश में योग की चर्चा है।योगशब्द संस्कृत के दो शब्दोंयुजऔरयुजीरसे बना है जिसका अर्थ हैएक साथयाएकजुट होना या यूं कहे आत्मा, मन और शरीर की एकता। योग करने से मानसिक तनाव से राहत, शारीरिक और मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने, संतुलन बनाए रखने, सहनशक्ति में सुधार समेत अन्य कई तरह के लाभ मिलते हैं। विश्व स्वास्थ्य केंद्र ने भी योग की महत्ता को बताते हुए कहा है कि स्वास्थ्य एक पूर्णता की स्थिति है, जो व्यक्ति के दैहिक, मानसिक एवं सामाजिक सेहत की संपूर्ण स्थिति पर निर्भर है, कि किसी रोग के होने या नहीं होने पर. योग तो मन शरीर और आत्मा का संतुलन बनाये रखने की पद्धति का नाम है. जैसे-जैसे चिकित्सा विज्ञान में मानसिक और शारीरिक कारकों के समन्वय या उसके अभाव का स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभाव की जानकारी बढ़ रही है, वैसे वैसे रोग में मन के प्रभाव की महत्ता भी बढ़ रही है. चिकित्सा विज्ञान में बीमारी होने, या ठीक करने में मन की भूमिका को अब महत्वपूर्ण माना जा रहा है यानी मनो-दैहिक कारणों की प्राथमिकता बढ़ती जा रही है. कोरोना काल में इन्हीं कारकों के चलते बड़ी तबाही मची. तनाव, अवसाद, और दुश्चिंता जैसे मनोविकार लोगों के मन-मस्तिष्क पर हावी होते गये तथा उसके परिणामस्वरूप संक्रमण जानलेवा होता गया. मतलब साफ है मन और आत्मा का संतुलन ही स्वास्थ्य की स्थिति है और योग इसके समन्वय का मार्ग है. योग आसनों में आमतौर पर शरीर की गतिविधियों को सिंक्रनाइज करते हुए गहरी सांस लेना शामिल होता है. यह मुख्य रूप से तनाव से राहत देकर ब्लड प्रेशर को स्वाभाविक रूप से नियंत्रित रखने में मदद कर सकता है. शिशुआसन (चाइल्ड पोज), पश्चिमोत्तानासन (फॉरवर्ड बेंड पोज), विरासन (हीरो पोज), बधाकोनासन (बटरफ्लाई पोज) और अर्ध मत्स्येन्द्रासन (सिटिंग हाफ स्पाइनल ट्विस्ट) जो हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों के लिए अत्यधिक फायदेमंद साबित हो सकते हैं. आसनों के अलावा कपालभाति और अनुलोम विलोम जैसे सांस लेने के व्यायाम भी बेहद फायदेमंद होते हैं. अनुलोम विलोम एक वैकल्पिक ब्रीदिंग टेक्निक है जो आपके नर्वस सिस्टम को शांत करती है और बॉडी सिस्टम को मेंटेन करने में मदद करती है. यह तनाव को कम करने में भी मदद करता है, जो हाइपरग्लेसेमिया और हाई ब्लड प्रेशर का मुख्य कारणों में से एक है. कपालभाति इंसुलिन के उत्पादन में मदद करती है और ब्लड शुगर को कंट्रोल रखने में मदद करता है. मानव मस्तिष्क के चार स्तर हैं, जिनमें से तीन- अचेतन, अर्धचेतन और चेतन- तो मनुष्य में मौजूद रहते हैं और चौथा- परा चेतन- विकसित किया जा सकता है. अचेतन अर्धचेतन का चेतन पर गहरा प्रभाव पड़ता है और मानव सोच प्रभावित होती है. अधिकतर बीमारियों की जड़ में अचेतन और अर्धचेतन चेतन से उपजी दुश्चिंता है. यह दुश्चिंता मन के द्वारा नकारात्मक सोच और सोच के द्वारा आंतरिक प्रणाली को प्रभावित करती है और रक्त में नकारात्मक हार्मोंस का प्रवाह बढ़ाती है. यदि नकारात्मकता अधिक समय तक रहती है, तो फिर शरीर की आंतरिक प्रणाली रोग को जन्म देती है. यही नहीं, इस नकारात्मकता के प्रभाव के चलते शरीर की रोगप्रतिरोधी क्षमता भी कमजोर पड़ती है और संक्रमण से लड़ने की शक्ति क्षीण होती है. योग अचेतन और अर्ध चेतन मन को नियंत्रित कर नकारात्मक भावनाओं की उपज को रोकने का माध्यम है तथा अपने चेतन मन को सही दिशा में ले जाने में मनुष्य की मदद करता है. योग के प्रभाव से नकारात्मक हार्मोंस का प्रवाह रुकता है और सकारात्मक हार्मोंस का प्रवाह बढ़ता है, जो स्वास्थ्य को सुदृढ़ और रोगमुक्त रखने में कारगर होता है.

इस दिन सबसे बड़ा दिन

अब योग ने पश्चिमी दुनिया में भी अपना रास्ता खोज लिया है। अब भारत से बाहर दूसरी संस्कृतियों ने भी योग को अपना लिया है। 21 जून वही तिथि है जब उत्तरी गोलार्ध में साल का सबसे लंबा दिन है, इसका दुनिया के कई हिस्सों में खास महत्व है। इस दिन ग्रीष्मकालीन संक्रांति का दिन होता है, इस दिन उत्तरी गोलार्ध में किसी ग्रह के अक्ष का झुकाव उस तारे की ओर सबसे अधिक झुका होता है जिसकी वह परिक्रमा करता है। भारत में यह पृथ्वी और सूर्य पर लागू होता है। इसके अलावा 21 जून को वर्ष का सबसे लंबा दिन माना जाता है जिसमें सूर्य जल्दी उगता है और सबसे देर में सूर्यास्त होता है। भारतीय पौराणिक कथाओं में भी इसे खास दिन माना जाता है। इससे एक ऐसी घटना जुड़ी मानी जाती है जिसे योगिक विज्ञान की शुरुआत माना जा सकता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार सात लोग आदि योगी के पास आत्मज्ञान के लिए गए। लेकिन वे अपने शरीर में उपस्थित नहीं थे, इसलिए वे चले गए। फिर ये लोग शिव के पास गए और आदि योगी से सीखने की जिद पर अड़े रहे लेकिन शिव ने यह कहकर मना कर दिया कि इसके लिए लंबी तैयारी चाहिए। वहां से निकलकर इन सात लोगों ने फिर 84 साल की साधना की। इस दौरान शिव का उन पर ध्यान गया, यह ग्रीष्मकालीन संक्रांति का दिन था। उसके 28 दिनों के बाद अगली पूर्णिमा पर आदि योगी ने खुद को आदि गुरु में बदल दिया और अपने शिष्यों को योग विज्ञान सिखाना शुरू कर दिया। योग दिवस के दिन लोग योग कर लंबे जीवन का संकल्प लेते हैं।

प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है

योग के आसन और प्राणायाम की विधि से मनुष्य अपने चेतन को निर्देशित कर सही भावनाओं का सृजन कर सकता है और अपने रोगरोधक क्षमता को मजबूत बना सकता है, जो अंततः स्वास्थ्य के लिए अति आवश्यक है. मानव शरीर अपनी शारीरिक प्रणाली को स्वस्थ रखने में सक्षम है और रोग से स्वयं लड़ सकता है बिना हस्तक्षेप के. योग द्वारा इस शक्ति को बढ़ाया जा सकता है. लेकिन योग सिर्फ इतना ही नहीं है. योग परा चेतना की प्राप्ति का भी मार्ग है और इसी परा चेतना से मनुष्य आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति कर सकता है. योग का अंतिम उद्देश्य उसी परा चेतना की प्राप्ति है. शरीर संचालन योग का वो द्वार है, जो सभी के लिए सदैव खुला है। शरीर संचालन का तात्पर्य शरीर के विभिन्न अंगों, जोड़ों रीढ़ को थोड़ा-बहुत हिलाने-डुलाने से है। इसकी तरक़ीब आसान है और यह बहुत अधिक नियमों से बंधा हुआ भी नहीं है। यही कारण है कि इसे बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक सभी कर सकते हैं। सामान्यतः इसे प्रातः काल करना चाहिए। लेकिन यदि लंबे समय तक काम करने से शरीर में खिंचाव थकान महसूस कर रहे हैं तो तत्काल जोड़ संचालन भी कर सकते हैं। इसे करने के लिए मात्र 5-7 मिनट देना होंगे।

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