Friday, 5 December 2025

भारत : रूस आर्थिक व रक्षा साझेदारी ने रचा नया भू-राजनीतिक इतिहास

भारत : रूस आर्थिक रक्षा साझेदारी ने रचा नया भू-राजनीतिक इतिहास 

वैश्विक राजनीति के उथल-पुथल भरे दौर में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा सिर्फ कूटनीतिक औपचारिकता नहीं, बल्कि उभरते हुए नए वैश्विक समीकरण की गूंज बनकर सामने आई है। जब यूक्रेन युद्ध, पश्चिमी प्रतिबंध, चीन की आक्रामकता और मध्य-पूर्व की अनिश्चितता ने विश्व व्यवस्था को अस्थिर कर रखा है, ऐसे समय में भारत और रूस ने अपनी दशकों पुरानी दोस्ती में नई ऊर्जा भरते हुए एक महत्त्वपूर्ण संदेश दिया है, रणनीतिक स्वायत्तता और आपसी भरोसा वैश्विक राजनीति का नया आधार बन रहा है। दिल्ली में हुई 23वीं वार्षिक शिखर बैठक में 16 समझौते और 4 प्रमुख घोषणाएं यह साबित करती हैं कि यह रिश्ता सिर्फ भावनात्मक नहीं, बल्कि बहुआयामी विकास, तकनीकी सहयोग, ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा उत्पादन, कृषि, अंतरिक्ष और मानव संसाधन के साझा हितों पर आधारित है। वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर के व्यापार का लक्ष्य तय करना, रूसी उद्योगों के लिए भारत से प्रशिक्षित श्रमिक भेजना, भारत को तेल-गैस की निर्बाध आपूर्ति की गारंटी, उर्वरक संयंत्र की स्थापना और आतंकवाद पर पुतिन का दो-टूक समर्थनकृइन सबने भारत को वैश्विक मंच पर नई मजबूती दी है। यह यात्रा दुनिया को बता गई कि बदलते विश्व-व्यवस्था में भारत अबसाइलेंट प्लेयरनहीं, बल्कि निर्णायक रणनीतिक शक्ति है, अपने हितों के साथ, अपने आत्मविश्वास के साथ मतलब साफ है यह सिर्फ भारत : रूस की विशेष रणनीतिक साझेदारी का नया अध्याय होगा, बकि 2030 तक 100 अरब डॉलर व्यापार, ऊर्जा-रक्षा सुरक्षा और वैश्विक भू-राजनीति में भारत की निर्णायक मजबूती होगी 

सुरेश गांधी

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 23वीं भारत, रूस वार्षिक शिखर बैठक के लिए भारत यात्रा, एक परंपरागत कूटनीतिक आयोजन भर नहीं थी. यह ऐसे समय में हुई जब दुनिया उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। यूक्रेन-रूस युद्ध जारी है, पश्चिम-रूस तनाव चरम पर है, चीन एशिया हिंद-प्रशांत में आक्रामकता बढ़ा रहा है, और मध्य-पूर्व से लेकर अफ्रीका तक ऊर्जा खाद्यान्न की वैश्विक आपूर्ति अस्थिर दिखती है। ऐसे परिदृश्य में रूस और भारत का एक-दूसरे के प्रति दृढ़ता से खड़ा रहना अंतरराष्ट्रीय संबंधों की भाषा में बहुत दूर तक संकेत देता है, और इस साझेदारी को नया रणनीतिक अर्थ दे देता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच यह बैठकविशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारीकी पुनर्पुष्टि थी। 16 समझौतों और 4 महत्वपूर्ण घोषणाओं ने यह संदेश दिया कि दोनों देश आने वाले दशक में अपनी कूटनीति, अर्थव्यवस्था, रक्षा, ऊर्जा, कृषि, मानव संसाधन, अंतरिक्ष और तकनीक को गहरे स्तर पर जोड़ने जा रहे हैं। सबसे अहम है वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य, जो बताता है कि रूस भारत को वैश्विक मंच पर केवल मित्र के रूप में नहीं, बल्कि रणनीतिक भागीदार के रूप में देख रहा है।

16 समझौतों और 4 घोषणाओं ने बहुआयामी साझेदारी को मजबूती दी है. (1) 2030 तक 100 अरब डॉलर व्यापार का लक्ष्य : द्विपक्षीय व्यापार पहले ही 65 से 70 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। अब दोनों देशों नेरणनीतिक आर्थिक सहयोग कार्यक्रम, 2030“ शुरू किया है, जिसमें ऊर्जा, कृषि, मशीनरी, फर्टिलाइज़र, समुद्री लॉजिस्टिक्स, डिजिटल सेवाओं और रक्षा उद्योग को केंद्र में रखा गया है। (2) प्रशिक्षित भारतीय कर्मियों की रूस में तैनाती : रूसी उद्योगों की आवश्यकता के अनुसार भारत कुशल श्रमिक भेजेगा। यह समझौता ऐसे समय में हुआ जब रूस में युद्ध के प्रभाव के कारण उंदचवूमत की भारी कमी है। भारत के युवाओं के लिए यह रोजगार का नया द्वार खोलता है। (3) खाद्य सुरक्षा और निर्यात सहयोग : दोनों देशों ने भारत से रूस को कृषि उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने, क्वालिटी स्टैंडर्ड साझा करने और खाद्य परीक्षण व्यवस्था मजबूत करने का फैसला किया। इससे भारतीय कृषि-उद्योग को बड़ा बाजार मिलेगा। (4) रूस में भारतीय उर्वरक संयंत्र की राह साफ : भारत की कंपनियाँ रूस में यूरिया और अन्य उर्वरक फैक्टरियाँ स्थापित करेंगी। यह भारत की खाद्य सुरक्षा के लिए निर्णायक कदम है, क्योंकि देश में उर्वरक आयात पर अभी भी भारी निर्भरता है। (5) ऊर्जा क्षेत्र में दीर्घकालिक प्रतिबद्धता : पुतिन नेअविरल, निर्बाध तेल एवं गैस आपूर्तिकी व्यक्तिगत गारंटी दी। यह ऐसे समय में बड़ी बात है जब पश्चिमी प्रतिबंध रूस की आपूर्ति-श्रृंखला को चुनौती दे रहे हैं। (6) नाभिकीय ऊर्जा और अंतरिक्ष में नई साझेदारी : कुडनकुलम परियोजना के अतिरिक्त नए संयंत्रों पर बातचीत, तथा अंतरिक्ष सहयोग को नई दिशा मिली है। (7) पर्यटन और लोगों की आवाजाही : रूसी नागरिकों को भारत 30-दिवसीय -विसा देगा, समूह पर्यटन वीजा की घोषणा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम, (8) आतंकवाद पर पुतिन का स्पष्ट समर्थन : भारत के आतंकवाद-विरोधी रुख, विशेषकर पाकिस्तान-आधारित आतंकी ढाँचों पर पुतिन का समर्थन ऐतिहासिक है : जीरो टॉलरेंस टेर्ररिज्म। यह संदेश भारत के लिए सामरिक विजय है।

भारत के लिए बहुआयामी लाभ होगा. ऊर्जा सुरक्षा का मजबूत आधार बनेगा. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक है। रूस से सस्ता कच्चा तेल भारत की अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष लाभ देता है। निर्बाध आपूर्ति के आश्वासन से पेट्रोल-डीजल कीमतों में स्थिरता, औद्योगिक ऊर्जा लागत में कमी, ऊर्जा तटस्थता में मजबूती सुनिश्चित होगी। उर्वरक कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी सहायता मिलेगी. रूस दुनिया के सबसे बड़े उर्वरक निर्यातकों में है। रूस में भारतीय उर्वरक संयंत्र से भारत में उर्वरक संकट कम होगा, लागत घटेगी, आयात पर निर्भरता कम होगी, किसानों को लाभ मिलेगा. कुशल श्रमिकों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे. भारत के आईटीआई, टेक्निकल, मेडिकल और इंडस्ट्रियल सेक्टर के युवा रूस में नौकरी प्राप्त कर सकेंगे। यह भारत के स्किल टू वर्ल्ड, विज़न को गति देगा। रक्षा साझेदारी में बड़ा लाभ होगा. रूस आज भी भारतीय सैन्य तकनीक का प्रमुख स्तंभ है, ब्रह्मोस, सुखोई, टी-90, एस-400, मिग-29 अपग्रेड, नई वार्ता में को-प्रोडक्शन और कोडेवलपमेंट पर ज़ोर दिया गया है, जिससे भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता तेज होगी। वैश्विक राजनीति में भारत की स्थिति मजबूत होगी. जब पूरी दुनिया रूस से दूरी बना रही है, भारत का संतुलित रुख यह दिखाता है कि भारत किसी दबाव में नहीं, सामरिक स्वायत्तता बनाए हुए है, ऊर्जा और रक्षा हित सर्वोपरि है. यह विदेश नीति की परिपक्वता है।

जहां तक अमेरिका, यूरोप और चीन की बेचैनी क्यों बढ़ी? का सवाल है तो पश्चिम चाहता है कि भारत रूस पर दबाव बढ़ाए। पर भारत की स्पष्ट नीति है, राष्ट्रीय हित सर्वोपरि। अमेरिकी थिंक टैंक पहले ही कह चुके हैं कि भारत रूस की मदद कर रहा है ऊर्जा बाजार स्थिर रखने में। जबकि पुतिन का खुला आतंकवाद विरोधी समर्थन पाकिस्तान की कूटनीति पर गहरा झटका है। रूस - भारत रक्षा सहयोग का बढ़ना पाकिस्तान - चीन के गठजोड़ को असहज करता है। क्योंकि भारत और रूस दोनों आतंकवाद को साझा खतरा मानते हैं। चीन रूस को अपनी ओर खींचने की कोशिश में है। परन्तु रूस का भारत के साथ खुले रूप से जुड़ना बीजिंग की रणनीति को कमजोर करता है। वैश्विक भू-राजनीति में भी भारत रूस साझेदारी का खासा महत्व है. (1) ऊर्जा भू-राजनीति में भारत की निर्णायक भूमिका : भारत ऊर्जा का स्थिर खरीदार है, रूस स्थिर आपूर्तिकर्ता। दोनों का जुड़ना तेल-बाजार में नई स्थिरता लाता है। (2) एशियाई क्षेत्र में शक्ति संतुलन : चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच रूस-भारत सहयोग हिंद-प्रशांत में नया समीकरण बनाता है। (3) पश्चिमी दबाव में भी भारत की स्वायत्तता : भारत ने दिखाया है कि वह, अमेरिका का मित्र है, रूस का पुराना रणनीतिक साथी, परंतु किसी के प्रभाव में नहीं. यहमल्टी-वेक्टरडिप्लोमेसी की पराकाष्ठा है। भारत-रूस गठजोड़ ग्लोबल साउथ देशों की ऊर्जा, तकनीक और मुद्रा-सहयोग पहल को आगे बढ़ाता है।

हालांकि कुछ चुनौतियाँ भी है, जिन्हें भारत को ध्यान में रखना होगा. रूस पर बढ़ते प्रतिबंध भुगतान व्यवस्था और परिवहन पर असर डाल सकते हैं। भारत को वैकल्पिक वित्तीय तंत्र को मजबूत करना होगा। रूस पर चीन का प्रभाव बढ़ रहा है। भारत को संतुलन बनाए रखते हुए साझेदारी आगे बढ़ानी होगी। यूक्रेन युद्ध के लंबे खिंचने की संभावना है। इससे रूस की आर्थिक प्राथमिकताएँ बदल सकती हैं। रूस-भारत व्यापार का बड़ा हिस्सा समुद्री मार्ग से आता है। भारत को, पोर्ट, कोल्ड-चेन, लॉजिस्टिक्स को मजबूत करना होगा। कुल मिलाकर राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा ने एक स्पष्ट संदेश दिया, भारत विश्व व्यवस्था कासाइलेंट लेकिन निर्णायक पोलबन चुका है। भारत ने दिखाया कि वह, अपने हितों पर अडिग है. ऊर्जा रक्षा मुद्दों पर समझौता नहीं करेगा. रूस जैसे पुराने साझेदार को छोड़कर पश्चिम की ओर नहीं झुकेगा. और अमेरिका से समान दूरी बनाए रखकर ग्लोबल बैलेंसर की भूमिका निभाएगा. यह परिपक्व और आत्मविश्वासी भारत का रूप है। मतलब साफ है रूस की तकनीक $ भारत का बाज़ार और जनशक्ति = 2030 तक बनने वाली नई आर्थिक-रणनीतिक धुरी, भविष्य में रक्षा उत्पादन, उर्वरक, ऊर्जा, अंतरिक्ष, समुद्री व्यापार, कृषि, डिजिटल भुगतान, इनमें भारत-रूस सहयोग दुनिया के सामने नया मॉडल होगा। भारत रूस की साझेदारी विश्व-राजनीति के उतार-चढ़ाव से ऊपर उठकर आगे बढ़ी है। अब यह संबंध रणनीतिक, आर्थिक, तकनीकी, सामाजिक और भू-राजनीतिक, सभी स्तरों पर एक नए युग में प्रवेश कर चुका है। 2030 तक 100 अरब डॉलर व्यापार का लक्ष्य इस नए युग की घोषणा है। ऊर्जा-सुरक्षा, तकनीक, रक्षा आत्मनिर्भरता, कृषि रोजगार, हर क्षेत्र में भारत को निर्णायक लाभ मिलने वाला है। पाकिस्तान की बेचैनी, चीन की असहजता और पश्चिम की चिंता यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भारत का उदय अब विश्व व्यवस्था का केंद्र बन रहा है, और रूस इस यात्रा का एक स्थिर, विश्वसनीय साथी।

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