गुटखे की चुटकी से काशी में कैंसर का पहाड़, हर 36 में से एक पुरुष को मुख कैंसर
काशी, वह नगरी जिसका नाम लेते ही मन में शाश्वत स्वास्थ्य और मोक्ष का प्रतीक उभर आता है। मगर इसी पवित्र नगरी की धरती के नीचे आज एक खामोश महामारी पनप रही है, एक ऐसी महामारी जो न आवाज करती है, न तुरंत दर्द देती है, पर धीरे-धीरे पूरे समाज को खोखला करती जा रही है। तंबाकू की चुटकी, खैनी की पुड़िया, गुटखे का रंगीन पाउच, जो काशी की सड़कों, घाटों और चौराहों पर अनगिनत हाथों में दिखाई दे जाते हैं, अब जीवन पर सबसे बड़ा हमला बोल रहे हैं। महामना के नाम पर बने कैंसर अस्पताल की नवीनतम पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि काशी में हर 36 पुरुषों में से एक मुख कैंसर की संभावना में जी रहा है। यह आंकड़ा सिर्फ एक मेडिकल तथ्य नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक आदतों और नीति-व्यवस्थाओं की असफलताओं का संकेत है। कैंसर अब केवल बीमारी नहीं रहा; यह हमारी जीवनशैली, हमारी सांस्कृतिक लापरवाही और हमारे स्वास्थ्य ढांचे की वास्तविक परीक्षा बन चुका है। सवाल यह है कि क्या काशी, जिसकी पहचान ज्ञान और जागरण से है, इस चुनौती का सामना करने के लिए जागेगी?
सुरेश गांधी
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय
कैंसर केंद्र एवं होमी भाभा
कैंसर अस्पताल ने 2020 - 21 की पीबीसीआर रिपोर्ट
जारी की है, जो
अब तक की सबसे
विस्तृत और वैज्ञानिक तौर
पर मजबूत रिपोर्ट बताई जा रही
है। लगभग 41 लाख की जनसंख्या,
1295 गांव, 90 शहरी वार्ड और
सभी आठ ब्लॉक्स से
इकट्ठा किए गए आंकड़ों
ने यह स्पष्ट किया
कि कैंसर काशी के महानगर
से ज्यादा अब गाँवों की
देहात तक गहराई से
पहुंच चुका है। रिपोर्ट
कहती है, हर 36 पुरुषों
में एक मुख कैंसर
के खतरे में। पुरुषों
में सबसे सामान्य कैंसर
: मुख, जीभ और पित्ताशय
(गॉल ब्लैडर)। महिलाओं में
सबसे सामान्य : स्तन, पित्ताशय और गर्भाशय। पुरुष
कैंसर के 51.2 फीसदी महिलाओं के 14.2 फीसदी कैंसर तंबाकू से जुड़े। 57 फीसदी
आंकड़े ग्रामीण
इलाकों से, यानी अब
कैंसर ग्रामीण महामारी बन रहा। मुख
कैंसर का इतना ऊँचा
प्रतिशत भारत के किसी
भी शहरी जिले के
औसत से कई गुना
ज्यादा है। इससे पता
चलता है कि काशी
में तंबाकू सिर्फ आदत नहीं, बल्कि
सामाजिक संस्कृति का हिस्सा बन
चुका है।
यहां जिक्र करना जरुरी है कि भारत में कैंसर की स्थिति (2024 - 25 के राष्ट्रीय अनुमान) : हर साल लगभग 14 लाख नए कैंसर केस। हर 9 में से 1 भारतीय को जीवनकाल में कैंसर का जोखिम। भारत में 40 फीसदी से अधिक कैंसर तंबाकू से जुड़े। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा तंबाकू उपभोगकर्ता। भारत में 2024 के अनुमान अनुसार हर साल 2.7 लाख मौतें तंबाकू से। भारत में विश्व के 30 फीसदी से अधिक मुख कैंसर केस आते हैं। पुरुषों के कैंसर में मुख/ओरल कैंसर सबसे अग्रणी। सबसे अधिक बोझ उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड में। काशी की पीबीसीआर रिपोर्ट भारत के राष्ट्रीय औसत से अधिक गंभीर है। भारत में औसतन हर 60 से 65 में से एक पुरुष को मुख कैंसर का जोखिम बताया जाता है, जबकि काशी में यह जोखिम हर 36 में से एक पर आ गया है।
यानी काशी भारत
की तुलना में लगभग दोगुनी
गति से ओरल कैंसर
क्षेत्र बन रहा है।
जबकि अंतरराष्ट्रीय तुलना में अमेरिका में
मुख कैंसर के प्रति लाख
जनसंख्या पर लगभग 11 से
12 केस। तंबाकू नियंत्रण, शिक्षा और स्क्रीनिंग से
मामलों में गिरावट। शराब
और एचपीवी प्रमुख कारण, गुटखा - खैनी जैसी चीजें
लगभग शून्य। यूरोप में उच्च शिक्षा
और स्वास्थ्य अवसंरचना के कारण मुख
कैंसर की दर स्थिर।
फ्रांस, जर्मनी, यूके में ओरल
कैंसर 60$ आयु वर्ग में
सीमित। दक्षिण एशिया (भारत, नेपाल व बांग्लादेश) में
तंबाकू का उच्चतम उपयोग।
विश्व के 70 फीसदी से अधिक ओरल
कैंसर केस। गुटखा - पान
मसाला उद्योग के कारण मृत्यु
दर सबसे अधिक। मतलब
साफ है दुनिया जहाँ
तंबाकू आधारित मुख कैंसर से
दूर जा रही है,
भारत और खासकर पूर्वी
यूपी -वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़, बलिया, सोनभद्र, इसका केंद्र बनते
जा रहे हैं।
तंबाकू : काशी की संस्कृति की सतह पर छिपा ज़हर
एमपीएमएमसीसी एवं एचबीसीएच के डायरेक्टर
डा. सत्यजीत प्रधान का कहना है कि काशी में
तंबाकू सिर्फ नशा नहीं, समाजिक
व्यवहार का हिस्सा बन
चुका है, पान दुकानों
का हर गली - नुक्कड़
पर होना, मजदूर वर्ग, रिक्शा चालकों, युवाओं में खैनी - गुटखा
की लत, स्कूल - कॉलेज
के पास खुले पान
स्टॉल, धार्मिक आयोजनों में पान की
अनिवार्यता, गुटखा कंपनियों की विज्ञापन रणनीति,
इन सबने मिलकर काशी
को एक ओरल कैंसर
हॉटस्पॉट में बदल दिया
है। डॉ. दिव्या खन्ना
का बयान चौंकाने वाला
है, “अगर तंबाकू छोड़
दिया जाए तो वाराणसी
के 50 फीसदी पुरुष कैंसर केस और 14 फीसदी
महिला केस तुरंत कम
हो जाएंगे।” यह आंकड़ा बताता
है कि कैंसर एक
‘किस्मत’ या ‘कर्म’ नहीं,
बल्कि पूरी तरह मानव
निर्मित सामाजिक बीमारी बन चुका है।
पित्ताशय का कैंसर : पूर्वी यूपी की सबसे खतरनाक चुनौती
पीबीसीआर रिपोर्ट ने इसके बारे
में अलग से चेतावनी
दी है। पूर्वी यूपी,
बिहार, बंगाल में यह अन्य
राज्यों के मुकाबले 3 से
4 गुना अधिक पाया जा
रहा है। संभावित कारण
: दूषित पानी, नदी - नालों में औद्योगिक प्रदूषण,
अस्वच्छ रसोई और तेल
का बार - बार उपयोग, जेनेटिक
प्रवृत्ति, महिलाओं में उच्च प्रसार.
भारत गॉल ब्लैडर कैंसर
में विश्व के शीर्ष 5 देशों
में है। काशी इसका
केंद्र बन रहा है।
महिलाओं का कैंसर पैटर्न : काशी का बदलता सामाजिक ताना-बाना
महिलाओं में तीन प्रमुख
कैंसर :- 1. स्तन, 2. पित्ताशय, 3. गर्भाशय ग्रीवा : स्तन कैंसर हर
76 महिलाओं में से एक
को संभव है। गर्भाशय
का कैंसर अब भी स्क्रीनिंग
न होने के कारण
देर से पकड़ा जाता
है। महिलाओं की स्वास्थ्य जांच
में झिझक, जागरूकता की कमी और
घरेलू जिम्मेदारियां इस जोखिम को
और बढ़ाती हैं।
ग्रामीण वाराणसी : कैंसर का नया केन्द्र
एमपीएमएमसीसी एवं एचबीसीएच के डायरेक्टर
डा. सत्यजीत प्रधान का कहना है कि पीबीसीआर की
सबसे बड़ी उपलब्धि यह
है कि उसने गाँवों
का वास्तविक डेटा सामने रखा।
काशी के कुल आंकड़ों
में 57 फीसदी ग्रामीण डेटा यानी गाँवों
में कैंसर तेजी से पैर
पसार रहा है। कारण
: तंबाकू की आदत, दूषित
पानी, प्रदूषण, गलत खानपान, देर
से अस्पताल पहुँचना, आर्थिक सीमाएँ, अज्ञानता. यानी ग्रामीण क्षेत्रों
में कैंसर अब ‘चुपचाप मारने
वाली बीमारी’ बन चुका है।
फिरहाल, कैंसर क्यों बढ़ रहा? इसकी
बड़ी वजह 1. तंबाकू और उसका सुनियोजित
उद्योग : भारत में तंबाकू
कंपनियाँ हर साल 11,000 करोड़
से अधिक कमाती हैं।
गुटखे की एक पुड़िया
2 से 5 रुपये में उपलब्ध, यानी
सबसे सस्ता नशा। 2. प्रदूषण : काशी का एक्यूआई
पिछले वर्षों में लगातार 180 से
290 के बीच। पीएम 2.5 और
पीएम 10 फेफड़ों - गले, मुख-कैंसर
को बढ़ाते हैं। 3. खानपान : तला - भुना, बार-बार गरम
किया तेल, डिब्बाबंद मसाले,
नमकीन, सब कैंसर जोखिम
बढ़ाते हैं। 4. शराब का बढ़ता
उपयोग : शराब और तंबाकू
साथ मिलकर कैंसर का खतरा 3 से
4 गुना बढ़ा देते हैं।
5. स्क्रीनिंग की कमी : भारत
में सिर्फ 10 से 15 फीसदी महिलाएँ ही नियमित स्तन/गर्भाशय स्क्रीनिंग कराती हैं। ग्रामीण पुरुषों
में तो स्क्रीनिंग लगभग
शून्य।
पीबीसीआर : काशी के लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण दस्तावेज़?
एमपीएमएमसीसी एवं एचबीसीएच के डायरेक्टर
डा. सत्यजीत प्रधान का कहना है कि यह रिपोर्ट
तीन कारणों से काशी के
लिए ऐतिहासिक है, 1. कैंसर का असली बोझ
सामने आया, 2. नीति-निर्माण के
लिए वैज्ञानिक आधार मिला, 3. समय
पर इलाज, जन-जागरूकता की
दिशा तय हुई. टाटा
ट्रस्ट के तीन स्तंभ
- सेवा, शिक्षा, अनुसंधान, इस रिपोर्ट में
स्पष्ट दिखते हैं।
समाधान : काशी को स्वस्थ बनाने की राह
1. स्कूल - कालेज में तंबाकू निषेध
अभियान, 15 से 30 आयु वर्ग में
तंबाकू की लत सबसे
तेजी से फैलती है।
2. स्वास्थ्य केंद्रों में मुफ्त स्क्रीनिंग
: मुख कैंसर परीक्षण, महिलाओं में स्तन और
गर्भाशय ग्रीवा टेस्ट, ग्रामीण कैंप, 3. पान दुकानों का
शहरी नियमन : स्कूलों और अस्पतालों के
200 मीटर के दायरे में
पूर्ण प्रतिबंध। 4. जागरूकता अभियान : काशी के कलाकारों,
गायक मंडलियों, घाटों पर आयोजन। 5. पानी
और पर्यावरण की निगरानी : गॉल
ब्लैडर कैंसर घटाने के लिए सबसे
जरूरी कदम। 6. डिजिटल हेल्थ रजिस्टर : हर ब्लॉक में
कैंसर सम्भावना वाले मरीजों की
सूची तैयार हो।
काशी का भविष्य : जागरण से जागृति की ओर
काशी ज्ञान की
नगरी है। यहाँ परिवर्तन
की शुरुआत सिर्फ अस्पतालों से नहीं, बल्कि
घाटों और गलियों से
होना चाहिए। अगर काशी ने
तंबाकू की संस्कृति को
चुनौती दी, तो पूरे
पूर्वांचल में स्वास्थ्य क्रांति
आ सकती है। मतलब
साफ है काशी की
नई पीबीसीआर रिपोर्ट सिर्फ एक मेडिकल फाइल
नहीं, बल्कि भविष्य की चेतावनी है।
अगर काशी आज नहीं
जागी, तो आने वाली
एक पूरी पीढ़ी कैंसर
के बोझ तले दब
जाएगी। अब समय है
कि गुटखे की पुड़िया नहीं,
बल्कि जागरूकता की चिंगारी हर
हाथ में दिखाई दे।
विशेषज्ञ चेतावनी
एमपीएमएमसीसी एवं एचबीसीएच के डायरेक्टर
डा. सत्यजीत प्रधान का कहना है कि तंबाकू छोड़ना
ही मुख व जीभ
कैंसर को रोकने का
सबसे प्रभावी उपाय है। गॉल
ब्लैडर कैंसर पूर्वी यूपी में तेज़ी
से बढ़ रहा है,
इस पर तत्काल शोध
और जागरूकता जरूरी। जल्द जांच और
शुरुआती इलाज से कैंसर
का जोखिम काफी कम किया
जा सकता है।
स्वास्थ्य संदेश
डा. सत्यजीत प्रधान का कहना है कि गुटखा
छोड़ें, जांच कराएं, जीवन
बचाएं। मतलब साफ है
कैंसर रोका जा सकता
है, बशर्ते काशी अपनी आदतों
में बदलाव के लिए तैयार
हो।
पित्ताशय का कैंसर : पूर्वी यूपी के लिए उभरती चेतावनी
पीबीसीआर रिपोर्ट में पित्ताशय (गॉल
ब्लैडर) कैंसर के उभरते बोझ
को खास तौर पर
चिह्नित किया गया है।
यह बीमारी वाराणसी और पूर्वी उत्तर
प्रदेश के जिलों में
असामान्य रूप से अधिक
पाई जा रही है।
पर्यावरण, जल की गुणवत्ता
और खानपान आदतें इसके कारक मानी
जा रही हैं। यह
प्रवृत्ति सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए नई
चिंता का विषय है।
कैंसर उपचार और जागरूकता
एमपीएमएमसीसी एवं एचबीसीएच के डायरेक्टर
डा. सत्यजीत प्रधान का कहना है कि टाटा स्मारक
केंद्र की सेवा, शिक्षा
और अनुसंधान की त्रयी के
अनुरूप पीबीसीआर रिपोर्ट न केवल उपचार
सेवाओं को वैज्ञानिक आधार
देती है, बल्कि जिले
के लिए कैंसर नियंत्रण
रणनीति का मार्गदर्शक भी
है। यह रिपोर्ट प्रशासन,
स्वास्थ्य विभाग और समाजकृसभी के
लिए एक चेतावनी है
कि यदि तंबाकू का
प्रसार नहीं रूका, तो
आने वाले वर्षों में
स्थिति और भयावह हो
सकती है।


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